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अंतर्जाल को हिन्दी सामग्री से भर दें..

हिन्दी नें कंप्यूटर के कीबोर्ड तक पहुँचने में लम्बी यात्रा तय की है। हिन्दी साहित्य का उदय लगभग 1000 ई0 के आसपास हुआ और तब से अब तक शिलालेखों, ताड-पत्रों, और पुस्तकों से होते हुये आज अंतर्जाल का अजूबापन समाप्त करती हिन्दी भाषा और इसका इतिहास अपनी यात्रा को रोमांचकारी कह सकते हैं


 

हम अपनी संस्कृति को जिस गर्व से गंगा-जमनी कहते हैं, यह भाषा उसी गर्व का एक उदाहरण प्रस्तुत करती है। कभी पुरानी राजस्थानी, तो कभी मैथिली, अवधी या कि ब्रज भाषा, या फिर खडी बोली; इस भाषा बाँसुरी ने बहुत से रागों में अपना संगीत गुंजायित किया है। जिस प्रकार एक नदी अपनी सहायक नदियों के बिना अधूरी है, वैसे ही हिन्दी को अनेकानेक प्रांतीय बोलियों ने पुष्पित और पल्लवित किया है।

 


हिन्दी ने न केवल आज, अपितु हमेशा से ही इस राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोया है। हिन्दी का भक्तिकाव्य, गंगा का कावेरी से संगम कराता रहा है। कबीर के मठ संपूर्ण भारत में हैं तथा महाराष्ट्र के अनेक मंदिरों में उनकी पाँडुलिपियाँ सुरक्षित बतायी जाती हैं। नामदेव महाराष्ट्र के थे, किंतु हिन्दी को उनका योगदान स्वर्णाक्षरों में अंकित है। जायसी की पद्मावत का अनुवाद बांग्ला में मध्यकाल में ही हो गया था, जो हिन्दी और उसकी रचनात्मकता के जनमानस पर प्रभाव को स्पष्ट करता है। यह उल्लेखित करना गलत नहीं होगा कि हिन्दी, मध्यकाल से ही संपूर्ण भारतवर्ष की संपर्क भाषा रही  है।



हिन्दी किसी धर्म या जाति विशेष की भाषा कभी नहीं रही। हिन्दी साहित्य का आरंभ ही बौद्ध सिद्धों तथा जैन मुनियों की रचनाओं से हुआ। इस भाषा को मुसलमान सूफियों तथा सिक्ख संतो व विद्वानों नें समृद्ध किया है। कबीर, जायसी, रहीम, रसखान, तुलसी, सूर, नामदेव, रैदास जैसे असंख्य मोतियों से बनता है भारत देश का गौरव और इसी लिये हम अपनी मातृभाषा को राष्ट्र के मस्तक की बिन्दी भी कहते हैं।

 


हिन्दी, प्रेमचंद के मानसरोवर में गोते लगाती हुई दुष्यंत के उस आकाश तक पहुँची जिसे तबीयत से पत्थर उछाल कर अनंत कर दिया गया था। हिन्दी बच्चन की मधुशाला में झूमी तो महादेवी के गले लग कर गाती भी मिली कि मैं नीर भरी दुख की बदली। हिन्दी नें स्वयं पर अंग्रेजी कंबल को ओढाये जाने की साजिश भी देखी और हिन्दी शहरी बाबुओं के उस षडयंत्र का शिकार भी हुई जहाँ दो तीन प्रतिशत अंग्रेज़ीदाँ लोगों के इस देश को अनपढ घोषित कर दिया, चूंकि, न केवल भारतमाता, अपितु माता हिन्दी भी ग्रामवासिनी ही तो है। हिन्दी पीपल के नीचे थक कर सुस्ताते किसान की भाषा बोलती है तो ईंट ढोते मजदूर की। हिन्दी सरसो के साग की बात करती है तो राधा के विरह की। शहर कटाक्ष करता रहा है, इस भाषा के सीधेपन पर; इसकी ममता पर। शहर फूहड़ चुटकुलों पर हँसता रहा है और यह पीढी जब मोबाईल संदेशों और तुकबाज विदूषकों में हिन्दी साहित्य तलाश कर निराश होने लगी तो अब हिन्दी नें कम्प्यूटर पर अपनी आमद की घोषणा कर दी है।

 



हिन्दी भाषा और साहित्य को तकनीक की पहुँच में लाने का दायित्व हमारी पीढी का है. यह कुछ कर गुजरने का समय है। आईये, जुट जायें और गागर में केवल एक कंकड ही डालें, प्यास बुझ कर रहेगी एक दिन। हिन्दी को तकनीक के हर आयाम तक पहुँचायें। हिन्दी को अपना गौरव समझें, अपना फैशन बनायें। अंतर्जाल को हिन्दी सामग्री से भर दें, विकीपीडिया-गूगल जैसे माध्यमों के लिये हिन्दी का कोई शब्द अबूझा न रहे। हिन्दी भाषा प्रतीक्षारत है कि कब हिन्दी दिवस मनाये जाने की आवश्यकता नहीं रहेगी और गर्व से कह उठेंगें हम  - हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा

 



आज इसी उद्देश्य के साथ हम अंतर्जाल पर दैनिक पत्रिका साहित्य शिल्पी को ले कर प्रस्तुत हुए हैं। सभी पाठकों को हिन्दी दिवस की शुभकामनायें देते हुए हम हिन्दी और साहित्य की सेवा के इस अभियान में सम्मिलित होने का आमंत्रण देते हैं। माँ शारदा की वंदना करते हुए आज के इस पुनीत दिवस से हम साहित्य शिल्पी समूह प्रस्तुत हैं आपके समक्ष।

 



-साहित्य शिल्पी समूह। 

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19 टिप्पणियाँ

  1. आपके ब्लॉग पर आकर सुखद अहसास हुवा

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  2. बहुत सुंदर साज सज्जा और उतना ही सुंदर कथ्य ,,, मेरी शुभकामनायें

    शशि निगम

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  3. इस सार्थक प्रयास के लिए हार्दिक शुभकामनाएं

    मनीष चंचलानी

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  4. बहुत सुंदर, पोस्टर बहुत अच्छे से डिजाईन किए हुए हैं. स्लाइड शो की बजह से शायद दिर से खुल रहा है ... शुभ कामनाएं

    द्वारका प्रसाद

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  5. हिन्दी भाषा पैर इतना विस्तार से लिखने के लिए साहित्य शिल्पी को बहुत बहुत बधाई और साधुवाद. एक सही दिशा मैं चले हैं पढ़कर बहुत अच्छा लग रहा है. उम्मीद है की यहाँ सच मैं साहित्य से मुलाकात होगी. सस्नेह

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  6. बहुत सुंदर ..हिन्दी दिवस की बधाई ..सभी दोस्तों को ..

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  7. मेहनत का काम चुना है आपने। शुभकामनाऍं।

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  8. बेहतरीन शुरुआत.
    सभी मित्रों को तथाकथित हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं.
    आलोक सिंह "साहिल"

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  9. हिन्दी की सामग्री को ईंटरनेट पर प्रसारित व स्थापित करना एक यज्ञ के समान है। साहित्य शिल्पी को शुभकामनायें।

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  10. एक क्रांतिकारी कदम है। शुभकामनायें

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  11. हिन्दीभाषा के विकास और लोकप्रियता को जन-जन तक पहुंचाने और सर्वजन को उस भाषा के अधिकाधिक प्रयोग व रचनात्मक भागीदारी के लिये प्रेरित करने के लिये उठाया गया कदम प्रशंसनीय है। माध्यम कोई भी हो और मंच कोई भी बात यदि भाषा व साहित्य के विकास की है तो हम सब आपके साथ हैं। पत्रिका का कलेवर पसन्द आया। उज्जवल भविष्य की कामना है।

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  12. बहुत बहुत बधाई. इस शुभ दिवस पर ये शुभ कार्य करने के लिए आप सभी को शुभकामनायें.

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  13. हिंदी भाषा और इसके साहित्य को लोकप्रिय बनाने का कोई भी प्रयास किसी भी माध्यम से किया जाये, उसका समर्थन व स्वागत हर साहित्य व संस्कृति-प्रेमी करता है. यह मंच अपनी शुभाकांक्षाओं को फलीभूत कर सके, इसके लिये हार्दिक शुकामनायें!

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  14. इतना सारगर्भित लेख पढ़वाने के लिये साधुवाद!

    आपयदि अपने पोस्ट के टेक्स्ट को 'जस्टिफ़ाई' न करें तो यह फ़ायरफ़ाक्स एवं फ़्लाक आदि ब्राउजरों पर भी ठीक से पढ़ने में आयेगा।

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  15. मैं हिन्दी का पिछला प्यादा, शपथ आज लेता हूँ,
    आजीवन हिन्दी लिखने का दायित्व वहन करता हूँ। - प्रकाश 'पंकज'
    ... ... ...
    (राष्ट्र प्रेरणा से प्रेरित और मातृभाषा को समर्पित यह कविता पूरी जरूर पढ़ें)
    पूरा पढ़ें:
    http://pankaj-patra.blogspot.com/2010/09/hindi-diwas-rashtrabhasha-prakash.html

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  16. हिन्दी की महत्ता प्रकाशित करने के लिए ये बहुत ही उपयुक्त है

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  17. sahitya shilpi par bastar ke liye alag se sthan dena nishchay hi aapaka bastar ke prati lagav ko siddha karata hai. main basttarki beti hone ke nate aapke is lagav ko naman karti hun.
    shakuntala tarar(dewangan) raipur cg

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