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जब तक उसके पास रहा [ग़ज़ल] – दीपक गुप्ता



जब तक उसके पास रहा
मैं ही उसका ख़ास रहा।

मन में सघन उदासी थी
यूँ होठों पर हास रहा।

सबकी खातिर गंगाजल
खुद की खातिर प्यास रहा।

बाहर से तो राजमहल
भीतर से वनवास रहा।

तुम ही मेरे अपने थे
तुमको कब एहसास रहा।

कौन नहीं इस दुनिया में
इच्छाओं का दास रहा।

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23 टिप्पणियाँ

  1. प्यारी गज़ल है।

    मन में सघन उदासी थी
    यूँ होठों पर हास रहा।

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  2. internet पर अच्छा काम शुरु हुआ है. अच्छी गजल है

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  3. जैसे कितनी कविता पढ़ ली मंचों पर
    पर छपने का एक अलग अहसास रहा।

    बहुत सुंदर दीपक भाई
    जमे रहो
    वाह ... वाह ... वाह ...
    न लिखा जाएगा तो
    आपको कहां आनंद आएगा।

    जवाब देंहटाएं
  4. सबकी खातिर गंगाजल
    खुद की खातिर प्यास रहा।
    maaf kijiyega , lekin
    "प्यास रहा" thik nahi lag raha hai, "pyas rahi" hona chahiye, lekin us sthiti me gazal ka misra thik nahi baithta hai.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुंदर और सच्ची गजल है....

    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  6. सबकी खातिर गंगाजल
    खुद की खातिर प्यास रहा।

    बाहर से तो राजमहल
    भीतर से वनवास रहा।

    तुम ही मेरे अपने थे
    तुमको कब एहसास रहा।

    बहुत ख़ूब...शानदार...

    जवाब देंहटाएं
  7. कौन नहीं इस दुनिया में
    इच्छाओं का दास रहा।

    बहुत ही सुंदर पंक्तिया और गजल उससे सुंदर...
    वाह वाह

    जवाब देंहटाएं
  8. दीपक जी,

    छोटी बहर की सुन्दर गजल... मन को भा गई..
    मन में सघन उदासी थी
    यूँ होठों पर हास रहा।

    आदमी यूं भी स्वंय को छलता है..

    सबकी खातिर गंगाजल
    खुद की खातिर प्यास रहा।

    जिन्दगी सफ़ल है अगर औरों की प्यास बुझा पाये.

    आलोक जी गजल में रहा "प्यास" के लिये नहीं "स्वंय" के लिये कहा गया है... इसलिये मुझे नहीं लगता कि कोई गलती है.

    वाकी दीपक जी स्पष्ट कर सकते हैं

    जवाब देंहटाएं
  9. Mohinder ji, aap sahi kah rahe hain.
    Dubara padhne par ye baat saaf ho gayi.

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह!
    मज़ा आ गया।
    अब जाना गज़ल किसे कहते हैं। ऎसे हीं लिखते रहें।

    बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  11. प्यारी नहीं, प्यासी गज़ल है
    छोटा और सुंदर शिल्प

    जवाब देंहटाएं
  12. बाहर से तो राजमहल
    भीतर से वनवास रहा।

    तुम ही मेरे अपने थे
    तुमको कब एहसास रहा।


    वाह .....छोटी बहर की
    बहुत सुंदर गज़ल दीपक जी...

    जवाब देंहटाएं
  13. aap sab log jinhone meri ghazal par apne comments diye hain , main unka shukragujaar hoon.........koshish karoonga ki aapko aachhe sher aur ghazalein deta rahoon.......

    kavi deepak gupta
    www.kavideepakgupta.com
    9811153282 , 9311153282

    जवाब देंहटाएं
  14. बाहर से तो राजमहल
    भीतर से वनवास रहा।

    तुम ही मेरे अपने थे
    तुमको कब एहसास रहा।

    कौन नहीं इस दुनिया में
    इच्छाओं का दास रहा।
    वाह! बहुत खूब. सुंदर ग़ज़ल.

    जवाब देंहटाएं
  15. दीपक जी,


    छोटे बहर की बेहद खूबसूरत ग़ज़ल। कुछ शेर खास पसंद आये:


    मन में सघन उदासी थी
    यूँ होठों पर हास रहा।

    सबकी खातिर गंगाजल
    खुद की खातिर प्यास रहा।

    तुम ही मेरे अपने थे
    तुमको कब एहसास रहा।

    बधाई स्वीकारें।


    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  16. अब इतनी टिप्पणियों के बाद कहने को कुछ बचा ही नहीं. सिर्फ़ बधाई स्वीकारें!

    जवाब देंहटाएं
  17. सबकी खातिर गंगाजल
    खुद की खातिर प्यास रहा।

    बाहर से तो राजमहल
    भीतर से वनवास रहा।

    sundar panktiyan....

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत प्यारी रचना..दीपक भाई के तो हम फैन हैं.

    जवाब देंहटाएं
  19. 'बाहर से तो राजमहल
    भीतर से वनवास रहा।'
    बहुत ख़ूब!

    जवाब देंहटाएं

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