- Home-icon
- स्थाई स्तंभ
- _काव्य शास्त्र
- __काव्य का रचना शास्त्र
- __ग़ज़ल: शिल्प और संरचना
- __छंद परिचय
- _हिन्दी साहित्य का इतिहास
- _मैंने पढ़ी किताब
- _भाषा सेतु
- _नाटक पर स्थाई स्तंभ
- _सप्ताह का कार्टून
- स्वर शिल्पी
- विधायें
- _गद्य
- __अनुवाद
- __आत्मकथा
- __आलेख
- __आलोचना
- __कहानी
- __जीवन परिचय
- __नाटक
- __यात्रा वृतांत
- __व्यंग्य
- __संस्मरण
- __साक्षात्कार
- _पद्य
- __कविता
- __काव्य-पाठ
- __कुण्डलियाँ
- __ग़ज़ल
- __गीत
- __गीतिका
- __मुक्तक
- __हाइकू
- _बाल-साहित्य
- _प्रेरक प्रसंग
- _श्रद्धांजलि
- _समाचार
- _कार्टून
- _पेंटिंग
- रचनाकार
- पुस्तकालय
23 टिप्पणियाँ
प्यारी गज़ल है।
जवाब देंहटाएंमन में सघन उदासी थी
यूँ होठों पर हास रहा।
internet पर अच्छा काम शुरु हुआ है. अच्छी गजल है
जवाब देंहटाएंजैसे कितनी कविता पढ़ ली मंचों पर
जवाब देंहटाएंपर छपने का एक अलग अहसास रहा।
बहुत सुंदर दीपक भाई
जमे रहो
वाह ... वाह ... वाह ...
न लिखा जाएगा तो
आपको कहां आनंद आएगा।
सबकी खातिर गंगाजल
जवाब देंहटाएंखुद की खातिर प्यास रहा।
maaf kijiyega , lekin
"प्यास रहा" thik nahi lag raha hai, "pyas rahi" hona chahiye, lekin us sthiti me gazal ka misra thik nahi baithta hai.
बहुत ही सुंदर और सच्ची गजल है....
जवाब देंहटाएंबधाई
बढिया गजल है.
जवाब देंहटाएंसबकी खातिर गंगाजल
जवाब देंहटाएंखुद की खातिर प्यास रहा।
बाहर से तो राजमहल
भीतर से वनवास रहा।
तुम ही मेरे अपने थे
तुमको कब एहसास रहा।
बहुत ख़ूब...शानदार...
behtareen prayaas.. chota beher aur gahree baat.. umeed hai aap se aage bhi..
जवाब देंहटाएंकौन नहीं इस दुनिया में
जवाब देंहटाएंइच्छाओं का दास रहा।
बहुत ही सुंदर पंक्तिया और गजल उससे सुंदर...
वाह वाह
दीपक जी,
जवाब देंहटाएंछोटी बहर की सुन्दर गजल... मन को भा गई..
मन में सघन उदासी थी
यूँ होठों पर हास रहा।
आदमी यूं भी स्वंय को छलता है..
सबकी खातिर गंगाजल
खुद की खातिर प्यास रहा।
जिन्दगी सफ़ल है अगर औरों की प्यास बुझा पाये.
आलोक जी गजल में रहा "प्यास" के लिये नहीं "स्वंय" के लिये कहा गया है... इसलिये मुझे नहीं लगता कि कोई गलती है.
वाकी दीपक जी स्पष्ट कर सकते हैं
Mohinder ji, aap sahi kah rahe hain.
जवाब देंहटाएंDubara padhne par ye baat saaf ho gayi.
वाह!
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया।
अब जाना गज़ल किसे कहते हैं। ऎसे हीं लिखते रहें।
बधाई!
प्यारी नहीं, प्यासी गज़ल है
जवाब देंहटाएंछोटा और सुंदर शिल्प
Deepak ji bhaut sunder gazal
जवाब देंहटाएंhamesha ki hi tarah
aapk har sher kamaal hai
बाहर से तो राजमहल
जवाब देंहटाएंभीतर से वनवास रहा।
तुम ही मेरे अपने थे
तुमको कब एहसास रहा।
वाह .....छोटी बहर की
बहुत सुंदर गज़ल दीपक जी...
aap sab log jinhone meri ghazal par apne comments diye hain , main unka shukragujaar hoon.........koshish karoonga ki aapko aachhe sher aur ghazalein deta rahoon.......
जवाब देंहटाएंkavi deepak gupta
www.kavideepakgupta.com
9811153282 , 9311153282
बाहर से तो राजमहल
जवाब देंहटाएंभीतर से वनवास रहा।
तुम ही मेरे अपने थे
तुमको कब एहसास रहा।
कौन नहीं इस दुनिया में
इच्छाओं का दास रहा।
वाह! बहुत खूब. सुंदर ग़ज़ल.
दीपक जी,
जवाब देंहटाएंछोटे बहर की बेहद खूबसूरत ग़ज़ल। कुछ शेर खास पसंद आये:
मन में सघन उदासी थी
यूँ होठों पर हास रहा।
सबकी खातिर गंगाजल
खुद की खातिर प्यास रहा।
तुम ही मेरे अपने थे
तुमको कब एहसास रहा।
बधाई स्वीकारें।
***राजीव रंजन प्रसाद
अब इतनी टिप्पणियों के बाद कहने को कुछ बचा ही नहीं. सिर्फ़ बधाई स्वीकारें!
जवाब देंहटाएंgreat great
जवाब देंहटाएंvery fine plz keep it up...........
सबकी खातिर गंगाजल
जवाब देंहटाएंखुद की खातिर प्यास रहा।
बाहर से तो राजमहल
भीतर से वनवास रहा।
sundar panktiyan....
बहुत प्यारी रचना..दीपक भाई के तो हम फैन हैं.
जवाब देंहटाएं'बाहर से तो राजमहल
जवाब देंहटाएंभीतर से वनवास रहा।'
बहुत ख़ूब!
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.