
वसुधा के अतृप्त अधर पर
हरे पल्लवों से ढल - ढलकर
अम्बर के प्याले से मानो,
जलजों ने अमृत ढाला है;
धूल अर्श पर बहुत पडी थी ,
बारिश ने सब धो डाला है।
प्यासी ,थकी दरारों मे,
अमृत डाला है घट भर भर कर;
बालवृन्द सब झूम उठे,
हैं लगे नहाने किलकारी भर।
स्वस्ति सुधा की इन बूँदों ने,
मन आह्लादित कर डाला है;
स्नेह भरा हृत्पात्र, नयन में,
बारिश ने कुछ कर डाला है।
पृथा, कृषक की आँखो से,
गिर पड़े हर्ष-चक्ष्वारि उमड़कर;
कहीं मगर, शोकान्धकार
ले आये खल घट घुमड़-घुमड़कर ।
शुष्क पत्र सदृश अन्तस पर,
नीर भरा क्यों पल डाला है;
याद दिला दी उस सावन की ,
बारिश ने क्या कर डाला है।
हरे पल्लवों से ढल - ढलकर
अम्बर के प्याले से मानो,
जलजों ने अमृत ढाला है;
धूल अर्श पर बहुत पडी थी ,
बारिश ने सब धो डाला है।
प्यासी ,थकी दरारों मे,
अमृत डाला है घट भर भर कर;
बालवृन्द सब झूम उठे,
हैं लगे नहाने किलकारी भर।
स्वस्ति सुधा की इन बूँदों ने,
मन आह्लादित कर डाला है;
स्नेह भरा हृत्पात्र, नयन में,
बारिश ने कुछ कर डाला है।
पृथा, कृषक की आँखो से,
गिर पड़े हर्ष-चक्ष्वारि उमड़कर;
कहीं मगर, शोकान्धकार
ले आये खल घट घुमड़-घुमड़कर ।
शुष्क पत्र सदृश अन्तस पर,
नीर भरा क्यों पल डाला है;
याद दिला दी उस सावन की ,
बारिश ने क्या कर डाला है।
इसी भाँति जगती का रज- कण,
इन्द्रधनुष सा रंग डाला है;
धूल अर्श पर बहुत जमी थी,
बारिश ने सब धो डाला है।
20 टिप्पणियाँ
इसी भाँति जगती का रज- कण,
जवाब देंहटाएंइन्द्रधनुष सा रंग डाला है;
धूल अर्श पर बहुत जमी थी,
बारिश ने सब धो डाला है।
-बहुत उम्दा!!
आलोक जी
जवाब देंहटाएंआप एसी कविता गढते हैं जो आज बिरले कलमों से जनमती है। आपका शब्द चयन आपका बिम्ब-गठन कौशल देखते ही बनता है।
अम्बर के प्याले से मानो,
जलजों ने अमृत ढाला है;
धूल अर्श पर बहुत पडी थी ,
बारिश ने सब धो डाला है।
स्वस्ति सुधा की इन बूँदों ने,
मन आह्लादित कर डाला है;
स्नेह भरा हृत्पात्र, नयन में,
बारिश ने कुछ कर डाला है।
रचना में डूबते हुए बारिश में स्वयं भीग कर आनंद लेने जैसा अनुभव है। और कवि शब्दों को जैसे ही करवट देता है रचना और जीवंत हो उठती है। कृषक की आँखों के सावन का विवरण कविता को और उँचाईया प्रदान कर रहा है। पंक्तिया संवेदित भी करती हैं:
शुष्क पत्र सदृश अन्तस पर,
नीर भरा क्यों जल डाला है;
याद दिला दी उस सावन की ,
बारिश ने क्या कर डाला है।
आलोक जी आप असाधारण कवि हैं।
***राजीव रंजन प्रसाद
उधर कविता प्रकाशित हुई
जवाब देंहटाएंइधर दिल्ली में बारिश हुई
वास्तव में आलोक शंकर
और साहित्य शिल्पी ने
मिलकर मस्त कर डाला
मौसम हुआ है मतवाला।
क्या लिखते हो आलोक भाई वाह, एसी कविता पढने कहाँ मिलती हैं आजकल..
जवाब देंहटाएंवसुधा के अतृप्त अधर पर
जवाब देंहटाएंहरे पल्लवों से ढल - ढलकर
अम्बर के प्याले से मानो,
जलजों ने अमृत ढाला है;
....
शुष्क पत्र सदृश अन्तस पर,
नीर भरा क्यों जल डाला है;
याद दिला दी उस सावन की ,
बारिश ने क्या कर डाला है।
भाषा, शैली,
भाव, कथ्य......
सभी मन - मोहित ...
बधाई ....आलोक जी...
स्नेह
आलोक जी,
जवाब देंहटाएंएक साधारण विषय पर गूढ कविता लिखना बहुत कठिन कार्य है जिसे आपने बहुत खूबी से निबाया है. भाव, भाषा और शैली पर रचना खरी उतरती है
आलोक जी, 90 के दशक की फिल्मों के गीत याद करें. 'तेरी नानी मरी तो मैं क्या करूं... लोगों को लगने लगा कि स्तरीय माल नहीं बिकेगा. लेकिन नई सदी में ये मिथ टूटा. फिर स्तरीय गीत लिखे जाने लगे और खूब सराहे भी गये... आपकी कविता भी कुछ वैसी ही है... जमाना हो गया ऐसी कविता गढ़े-पढ़े. हर लिहाज से उम्दा और लाजबाब. साहित्य शिल्पी अपने सही लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत साधुवाद...
खबरी
9811852336
बहुत ही सुंदर कविता... बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंआप सभी का उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद | कृपया "नीर भरा क्यों जल डाला है " में जल की जगह "पल " पढ़े |
जवाब देंहटाएं(तनहा भाई का इस टंकण की त्रुटि पर ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद :) )
आलोक भाई!
जवाब देंहटाएंआपकी रचना पढकर हमेशा हीं दिल को सुकून मिलता है। इस बार भी वही हुआ। कोई निराशा नहीं। बस एक शिकायत थी, जो मैने आपको gtalk पर बता दिया था और आपने सुधार भी दिया है।
बधाईयाँ।
सुंदर भाव-बोध लिये बढ़िया कविता..
जवाब देंहटाएंबधाई...
आपकी कविता पढ रही हूँ और बाहर बारिश हो रही है। यह कविता-मल्हार है क्या? बहुत ही अच्छी कविता लिखी है आपनें।
जवाब देंहटाएंआपकी कविता का भाव बहुत सुंदर है. शब्दों के चयन में दोनों बाते है, रसभरे है, हिंन्दी की सुंदरता का प्रतीक भी है परंतु क्लिष्ट भी हैं जैसे-- हर्ष-चक्ष्वारि जैसे शब्दों का अर्थ अलग से लिखने की आवश्यकता मुझे लगती है....
जवाब देंहटाएंधूल अर्श पर बहुत जमी थी,
बारिश ने सब धो डाला है।
इन दो लाइन की लय और धुन तत्व उम्दा है.....
बधाई स्वीकार करें.....
बरसते हम भी थे , रह रह ख्याल आता है
जवाब देंहटाएंमेरे बरसने से ही दुनिया में रंग आता है
मगर कुछ बदल गई दुनिया की रंगत ऐसी
अब मेरा छूना भी उन्हें चोट सा लग जाता है
आपकी संस्कृतनिष्ठ शैली के बखूबी दर्शन हुए... पढ़कर ही पता चल जाता है कि यह कलम आपकी है...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब आलोक जी... ज़बरदस्त कविता..!
वाह, बहुत अच्छी कविता। बारिश के कई रंग हैं इसमें।
जवाब देंहटाएंआलोक जी! आपकी काव्य-प्रतिभा का तो मैं वैसे ही कायल हूँ. काफी समय बाद आपकी कविता पढ़ने को मिली. आभार इस सुंदर रचना के लिये!
जवाब देंहटाएंआलोक जी !
जवाब देंहटाएंबहुत समय से आपको पढ़ता रहा हूं। शब्दों एवं भावों के सौंदर्य शिल्पी हैं आप।
'बारिश' से धो डाला आपने।
शुभेच्छाएं ।
प्रवीण पंडित
डा. रमा द्विवेदीsaid....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आलोक जी....यूं तो पूरी कविता ही सुगठित शिल्प में रची है पर ये पंक्तियां मुझे बहुत अच्छी लगीं....बधाई एवं शुभकामनाएं ।
अम्बर के प्याले से मानो,
जलजों ने अमृत ढाला है;
धूल अर्श पर बहुत पडी थी ,
बारिश ने सब धो डाला है।
स्वस्ति सुधा की इन बूँदों ने,
मन आह्लादित कर डाला है;
स्नेह भरा हृत्पात्र, नयन में,
बारिश ने कुछ कर डाला है।
kavita aap ko pasand aayi, bahut bahut aabhaar
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.