नाट्य कला यानि नवोदित कलाओं का सम्मलित रूप| नाटय शास्त्र संस्कृत की देन था, लेकिन भाषा से नाटक का कोई आवश्यक संबंध नहीं है। नाटक, संवेदनाओं की अभिव्यक्ति पर टिका हुआ होता हैं, और अभिव्यक्ति शब्दों से भी आगे की बात है। नाट्य कला सभी नवोदित कलाओं का युग्म है, अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम नाटय कला है। बहुरूपिया, भाट, नट आदि समुदाय इस कला को समर्पित रहे हैं। समाज जब आज जैसा विकसित नहीं था तब भी नाटक का अस्तित्व था। आज हम तकनीकी रूप से विकसित हो गये हैं, समाज संपन्न हुआ है साथ ही नाटक कला का विकास भी हुआ है। मुझे यह कहने में जरा भी हिचक नहीं, कि नाटक कला का विकास उस स्तर पर नहीं हुआ, जितना अपेक्षित था। नाटक आज भी अपने पैरों पर स्वतंत्र खडी विधा नहीं बन सका है। आज देश में नाटक के कई विद्यालय बेशक हमने स्थापित कर लिये हों, परंतु वह सब किसी न किसी रूप में सरकारी अनुदान पर पल रहे हैं। सभी नाट्य ग्रुप स्वतंत्र रूप से अपना अस्तितव जमा पाने में विफल ही रहे है, जिससे आम जनता में नाटक आज भी अनजानी चीज बना हुआ है।
यह विवेचना आवश्यक है कि नाटक का यह नुकसान कैसे हुआ और क्यों नाटक आज भी अपनी यात्रा को उस मुकाम पर नहीं ला सका, जिस मुकाम पर आज सिनेमा पहुंच गया, जबकि नाट्क विधा सिनेमा का पिता है। सिनेमा वस्तुत: नाटक, अभिनय, नाट्य मंच से चल कर ही कैमरे में कैद हुआ था और उसने अपनी लोकप्रियता के आधार पर, चमक दमक के आधार पर और मनमानी के आधार पर नाट्क को जैसे हमेशा के लिये पीछे कर दिया, कारागार में डाल दिया... आज नाट्क कला की तरफ आने वाले अधिकांश लोगों का मकसद नाट्य कला की सेवा न होकर नाट्य मंच के रास्ते फिल्मों में जाना हो गया है। मैं फिल्मो का विरोधी नहीं हूं लेकिन नाटक का पक्षधर पहले हूं, नाटक में जो जीवंतता है फिल्म में उतनी ही नीरसता है। अकेले बैठे देखते रहो, अकेले कैमरे के सामने बोलते रहो.. जबकि नाटक में कलाकार चाहकर भी अपने किरदार से बाहर नही आ सकता। वह वास्तव मे लेखक द्वारा लिखे किरदार को हजारों हजार लोगों के बींच जीता है...कलाकार साधना करता है, चरित्र को अपने आप में पैदा करने का प्रयास करता है... वह चरित्र को जीता है, स्वयं से बाहर आ जाता है..लोक कलाओं में नाट्य कला विभिन्न स्वरूपों में रही है, चाहे वह नौटंकी हो या स्वांग, गांवों मे आयोजित रामलीलाएं नाट्य कला के प्रवेश द्वार बन गये थे। आज भी अधिकांश स्थापित नाट्य कलाकार, पहले रामलीलाओं मे अभिनय कर चुके है। मुझे याद है हमारे गांव मे होने वाली राम लीलाओं मे जो लोग राम, लक्षमण, रावण और हनुमान का चरित्र अदा करते थे, वह प्रस्तुतियों के दिनों मे सात्विक जीवन जीते थे, व्रत करते थे, ताकि उनके अभिनय से भगवान का चरित्र निकल सके, संस्कार की उपज हो सके। वास्तव में कलाकार समाज का आईना बनने का प्रयास करता है। नाटय विधा आज भी उतनी ही सार्थक है एवं समाज को दिशा देने में सक्षम भी। चलिये, यह बहस में पडने का वक्त नहीं है और न ही इस समीक्षा का, कि नाट्क और फिल्म में क्या भेद है।
मैं नाट्क की महत्ता और आज भी उसकी प्रासंगिकता से साहित्य शिल्पी के पहले नाट्य स्तंभ की शुरूआत करना चहता हूँ। नाट्क आज पुन: समाज के चरित्र और संवेदना को सरेआम करने का सशक्त माध्यम हो सकता है। दरअसल फिल्म और नाट्क अलग अलग विधायें हैं नाटक घोर साधना कि मांग करता है... दिल्ली, दिल्ली के आसापास और पूरे देश में नाटक और नाट्य विधा से जुडे लोग आज भी कम नहीं है। थोडे भट्काव को यदि भूल जाएं तो नाट्य विधा की सेवा में जुटे लोग आज भी इस विधा के लिये अपना संपूर्ण जीवन लगा कर बैठे है। हम इस मंच से समय समय पर ऐसे ही कुछ समूहों और नाट्य विधा से जुडे लोगों के बारे मैं जानकारी लेकार आते रहेंगे तथा नाटक के विभिन्न आयामों पर चर्चाएं करेंगे। इस मंच पर हम आपको नाटक और उसके निर्माण से संबंधित स्थितियों से रू-ब्-रू कराएंगे। हम प्रयास करेंगे कि आपको नाटक सुनवाया भी जाये। नाट्क पढने की चीज भी होता है, हम नाटक रीडिंग भी आपको सुनवाने का प्रयास करेंगे।
आज के बाद आप और हम निरंतर आपसी संवाद से तय करेंगे कि आप इस नाटय स्तंभ से क्या चाहते हैं। . आज शुरूआत के तौर पर प्रस्तुत है नाटक कि दुनिया में कम समय मे अपना स्थान बनाने वाले भाई मनीष जोशी 'बिसमिल' और उनके नाटक समूह 'सांझा रंगमंच' के बारे में एक आलेख।
आप इस नाटय खंड में और क्या देखना चाह्ते हैं हमें अपने सुझाव अवश्य दीजिये्गा।
(नोट: नीचे दिये गये पोस्टर पर क्लिक कर उसे पढने के लिये बडा करें)

13 टिप्पणियाँ
नाटक पर internet में कोई विशेष काम नहीं हुआ है। यह स्तंभ अच्छी तरह लिखा गया है। य्श्स शुभकामना है कि इस स्तंभ में नाटक पर अच्छा पढने को मिले।
जवाब देंहटाएंपोस्टर बहुत अच्छा है। नाटक पर इस स्तंभ का स्वागत है।
जवाब देंहटाएंयोगेश भाई बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं
जवाब देंहटाएंनाटक की आहट जरा हट कर होती है
इस हटशाला का नगमा गुंजाते रहो
सिनेमा से बेहतर होता है, मानते हैं
इसका शिल्प दिलों में जमाते रहो।
is column ke liye kaise likha ja sakta hai
जवाब देंहटाएंsatyajeet, noida
नाटक विधा पर जानकारी बहुत तथ्यपूर्ण है खास कर फिल्म को ले कर तुलना
जवाब देंहटाएंनाटक जो किसी समय एक सशक्त विधा थी अपने विचारों के प्रस्तुति करण की..आज के युग में दम तोडती जा रही है. इसे फ़िर से पुनर्जीवत करने की आवशयकता को देखते हुये..साहित्यशिल्पी ने इस स्तंभ का आरम्भ किया है. आप इस स्तंभ के माध्यम से नाटकों के मंचन, प्रस्तुतिकरण और संबन्धित विषयों पर जानकारी ले पायेंगे. इसकी पहली कडी के रूप में... योगेश जी ने उन अडचनों को दर्शाया है जो नाटकों को आम जनता तक पहुंचाने में आ रही हैं साथ ही नाटक से जुडे व्यक्तियों के बारे में जानकारी देते रहने की भी बात कही है.
जवाब देंहटाएंइस विषय पर लिखना कोई बच्चों का खेल नहीं है ना ही इस बारे में कोई रेडीमेड जानकारी हासिल है.. इस सब को देखते हुये योगेश जी का लिखा हुआ लेख कमाल का है.. साथ ही उनका बनाया हुआ पोस्टर भी अपने आप में किसी आलेख से कम नहीं. इसके लिये योगेश जी बधाई के पात्र हैं.
पाठकों से अनुरोध है कि वो इस स्तंभ को अपना पूर्ण समर्थन दें.
नाट्य -चर्चा एक चिर-प्रतीक्षित इच्छा थी।
जवाब देंहटाएंपूर्ण होती सी दिखाई दी।
सुख मिला।
विभिन्न मंचीय विधाओं - जैसे प्रकाश व्यवस्था,मंच सज्जा, मेक अप ,ध्वनि व्यवस्था आदि पर भी कुछ जानकारी जुटाई जा सके तो सोने मे सुहागा।
शेष शुभ ।
प्रवीण पंडित
योफेश जी,
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी नें पते की बात उठायी है। यदि प्रकाश व्यवस्था,मंच सज्जा, मेक अप ,ध्वनि व्यवस्था आदि पर भी आलेख व निर्देशकों के विचार आगामी प्रस्तुतियों में हों तो सोने पर सुहागा होगा। भाई मनीष जोशी 'बिसमिल' और उनके नाटक समूह 'सांझा रंगमंच' के विषय में जानकारी बहुत सारगर्भित थी। आलेख के लिये आप साधुवाद के पात्र हैं...
क्या बात है... अंतरजाल पर बहुत ही नया प्रयोग... बधाई
जवाब देंहटाएंji haan aapne bilkul sahi likha hai mera bhi ek dost hai shahank vo vaise to delhi me kisi ke sath theater join kar rakha hai per filmo me jana chahata hai.
जवाब देंहटाएंbilkul vaisa hi jaisa aapne likha hai
per kya im logo ki ye soch sahi hai?
बडे भईया ... नाटक स्तम्भ पर आगे ऐसे ही जानकारी देते रहियेगा... हमे बहूत अच्छा लगेगा :)
जवाब देंहटाएंनाटक विधा के बारे मे जानकारी ०% होने के कारण इसके प्रति उदासीनता या कुछ और जानने की जागरूकता के बीच कडी का काम करेगा आपका यह स्तम्भ :)
नाटक विषय पर अंतर्जाल पर वास्तव में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है. ऐसे में योगेश जी का यह प्रयास बहुत प्रशंसनीय है. आशा है कि आगे इस स्तंभ में उपयोगी जानकारी मिलेगी. मनीष जी के सांझा रंगमंच से परिचय कराता पोस्टर बहुत अच्छा लगा. आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा स्तंभ नाटक पर ..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा पोस्टर...
साधुवाद
गीता पंडित
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.