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वक्त पर कुछ छोटी कवितायें [कविता] – विश्व दीपक ’तन्हा’


वक्त-
एक कुली है,
वादों को ढोता है
और
लम्हों की मजूरी लेता है।
वादे अगर बढ जाते हैं
तो थककर बैठ जाता है।
बड़ा ईमानदार है,
फिर मजूरी भी कम लेता है।
और लोग कहते हैं
कि
वक्त गुजरता हीं नहीं।

***


वह बरगद-
जवां था जब,
कई राहगीर थे उसकी छांव में,
वक्त भी वहीं साँस लेता था,
फिर बरगद बूढा हुआ,
राहगीरों ने
उससे उसकी छांव छीन ली,
अब कई घर हैं वहाँ,
वक्त अब उन घरों में जीता है,
सच हीं कहते हैं -
वक्त हमेशा एक-सा नहीं होता।

***


बड़ा जिद्दी था वह,
मुझसे हमेशा
दौड़ में बाजी लगाया करता था,
जानता था कि जीत जाएगा।
पर अब नहीं,
अब वो नजर भी नहीं आता,
क्योंकि
अब मैं जो जिद्दी हो गया हूँ,
न थकने की जिद्द पा ली है मैने।
शायद वक्त था वह,
कब का मुझसे पिछड़ चुका है।

***


कुछ साल पहले,
हम तीन संग थे-
तुम , मैं और वक्त,
फिर तुम कहीं गुम हो गए,
तब से न जाने क्यों
वक्त भी मुझसे रूठ गया है,
सुनो -
तुम बहुत प्यारी थी ना उसको,
शायद तुमसे हीं मानेगा,
उसे बहला-फुसलाकर भेज दो,
और सुनो,उसके लिए-
तुम भी आ जाओ ना।

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27 टिप्पणियाँ

  1. तनहा जी, आपने मेरी कविता पर एक बार जो जो टिप्पणी की थी,वही शब्द आज आपकी कविता के लिये उद्दरित करने पड रहे हैं "आपकी कविता से अपने पसंदीदा वाक्य....पूरी की पूरी कविता कापी करनी पडेगी।

    जवाब देंहटाएं
  2. क्या बढिया कविता है... छोटी है पर है बहुत ही खुबसुरत... बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. और लोग कहते हैं
    कि
    वक्त गुजरता हीं नहीं।

    bahdiya analysis hai... waqt ka.. achee pakad vishwa deepak bhai.. hum sab mahsoos kar sakte hain is kavita ko.. :-)

    जवाब देंहटाएं
  4. तनहा जी,


    आपके बिम्ब और बडी बात कम शब्दों में अभिव्यक्त कर देने की कला प्रशंसनीय है।

    वक्त-
    एक कूली है,
    वादों को ढोता है

    यह तीन पंक्तियाँ भी एक पूरी क्षणिका हैं। फिर संवेदना उकेरते आपके ये लाजवाब शब्द:-


    वक्त अब उन घरों में जीता है,
    सच हीं कहते हैं -
    वक्त हमेशा एक-सा नहीं होता।

    उमीद जगाने का यह अंदाज:-


    न थकने की जिद्द पा ली है मैने।
    शायद वक्त था वह,
    कब का मुझसे पिछड़ चुका है।

    और रुमानियत भी:-


    उसे बहला-फुसलाकर भेज दो,
    और सुनो,उसके लिए-
    तुम भी आ जाओ ना।

    वक्त को उसके हर रंग में आपने बाकमाल चित्रित किया है। बधाई स्वीकारें...


    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  5. रचना को सराहने के लिए सभी मित्रों का तहे-दिल से शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  6. विश्वदीपक भाई रंग जमा दिया। वक्त पर बहुत लिखा गया है लेकिन आप भी कम नहीं हैं।

    जवाब देंहटाएं
  7. हमारा वक्‍त बचता नहीं है
    ऐसे भी हैं जिनका
    वक्‍त आज भी कटता नहीं है
    कम पड़ता यहीं है
    जबरदस्‍ती जब आंखें
    जवाब देने लगती हैं
    तब सोना लूटना ही पड़ता है।
    प्रेरणादायी स्‍फूर्तिदायक रचनायें हैं।

    जवाब देंहटाएं
  8. तन्हा जी,

    वक्त दुनिया में सबसे सशक्त शय है.. यही यादों को ढोता भी है और उन्हें धीरे धीर भूल जाने में मदद भी करता है.. जिसके पक्ष में हो जाये वो राजा और जिससे रूठ जाये वो भिखारी से भी बदतर हो जाता है..

    सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिये बधाई

    जवाब देंहटाएं
  9. शायद तुमसे हीं मानेगा,
    उसे बहला-फुसलाकर भेज दो,
    और सुनो,उसके लिए-
    तुम भी आ जाओ ना।



    तनहा जी !

    भावपूर्ण .....
    सुन्दर रचनाऐं....


    बधाई

    स्नेह

    जवाब देंहटाएं
  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  11. वक्त मुट्ठी का रेत है.... आपने उसे मुट्ठी में बांधने की कोशिश की... समझने में थोडी कठिन रचना है फिर भी अच्छी है... खास कर यह
    बड़ा जिद्दी था वह,
    मुझसे हमेशा
    दौड़ में बाजी लगाया करता था,
    जानता था कि जीत जाएगा।
    पर अब नहीं,
    अब वो नजर भी नहीं आता,
    क्योंकि
    अब मैं जो जिद्दी हो गया हूँ,
    न थकने की जिद्द पा ली है मैने।
    शायद वक्त था वह,
    कब का मुझसे पिछड़ चुका है।

    बधाई स्वीकार करें

    जवाब देंहटाएं
  12. तन्हा जी! अब भी कुछ कहने को बाकी रह गया है क्या??? आभार!

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत सुंदर और प्रभावी रचनाएं हैं, तन्हा जी! वक़्त के अलग-अलग रूपों की बहुत अच्छी प्रस्तुति!

    जवाब देंहटाएं
  14. लम्हों की मजूरी लेता है।
    वादे अगर बढ जाते हैं
    तो थककर बैठ जाता है।
    बड़ा ईमानदार है,
    फिर मजूरी भी कम लेता है।
    और लोग कहते हैं
    कि
    वक्त गुजरता हीं नहीं।
    वाह! बहुत सुंदर लिखा है. काव्यानंद मिल गया. बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  15. एक ही लफ्ज़ है......सुभान-अल्लाह.....

    जवाब देंहटाएं
  16. वक्‍त पर इतनी भावपूर्ण रचना पढ़कर अभी-अभी ख्‍याल आया है-

    वक्‍त की दरि‍या में गोता लगाया था हमने
    कमबख्‍त डूबे भी नहीं और सूखा ही नि‍कल आए।
    -जि‍तेन्द्र भगत

    जवाब देंहटाएं
  17. तन्हा जी ... सच कहूँ तो मज़ा नही आया .. हां पहले और अंतिम बात ने बहुत प्रभावित किया पर आप दूसरी और तीसरी को और भी बेहतर बना सकते थे..

    जवाब देंहटाएं
  18. तन्हा जी ... सच कहूँ तो मज़ा नही आया .. हां पहले और अंतिम बात ने बहुत प्रभावित किया पर आप दूसरी और तीसरी को और भी बेहतर बना सकते थे..

    जवाब देंहटाएं
  19. वाह तनहा जी,
    एक ही वक्त के कई पहलुओं को छूती हुई शानदार रचनाएँ.
    बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  20. बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना बधाई

    जवाब देंहटाएं
  21. bahut choti par pyaari kavitain hain...!! Tanha ji...

    जवाब देंहटाएं
  22. वक्त का सागर गहरा है
    दिल पर गमों का पहरा है
    वो झोंका हवा का आए
    पलकों पर मुझे बिठाए
    पूछे मुझसे मेरी जुबानी
    भर आए आंखें उसकी
    सुन बीती मेरी कहानी
    मन इसी सोंच में ठहरा है
    और वक्त का सागर गहरा है
    कितनी दूर है मंजिल मेरी
    जाने कैसी है मेरी तन्हाई
    राह में धुंध सा कोहरा है
    और वक्त का सागर गहरा है

    जवाब देंहटाएं

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