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सपने का सच [बाल विज्ञान कथा] – डॉ. अरविन्द मिश्र

इधर कुछ दिनों से रोहित को अजीबोगरीब सपने दिखाई दे रहे थे। कभी तो वह देखता कि वह किसी पहाड़ की चोटी पर खड़ा है और नीचे की वादियों में उड़ रही चिड़ियों की गिनती कर रहा है या फिर किसी बड़ी सी चिड़िया की पीठ पर सवार होकर वह खुद भी आसमान में ऊँचे और ऊँचे उड़ता जा रहा है। हद तो तब हो गई जब एक दिन उसने देखा कि वह खुद ही उड़ने लगा है। सपने में ही वह कुछ चिड़ियों के जमीन पर उछल कर उड़ने के तरीके को ध्यान से देख रहा है और उसी तरह खुद भी उछलते हुए हवा में ऊपर और ऊपर उड़ चला है। वह हाथों को चिड़ियों के डैनों की तरह फैलाते और सिकोड़ते हुए उड़ रहा है और आगे बढ़ता जा रहा है। वह अपने घर के ऊपर उड़ता-उड़ता आ गया है, फिर उड़कर सामने के नीम के पेड़ से भी ऊँचा उठ गया है, जहाँ से वह नीचे गाँव की बस्तियों को देख रहा है। अपने गन्ने के खेत के ऊपर से गुजरते हुए गांव के किनारे पर स्कूल की बिल्डिंग की ओर बढ़ चला है। जहाँ रात का धुंधलका और सन्नाटा है। यहीं तो वह सुबह पढ़ने जायेगा। सपने में भी ये विचार उसके मन में कौंध रहे हैं। वह और आगे बढ़ाना चाहता है, लेकिन उसे डर का अनुभव होने लगता है और हवा में जल्दी-जल्दी हाथ पांव मारते हुए घर लौट चलता है। सपना पूरा हो जाता है। इन दिनों वह इसी सपने को दूसरे सपनों से ज्यादा देख रहा था। ये सभी सपने उसे सुबह उठने पर भी पूरी तरह से याद रहते। एक - एक दृश्य उसकी आँखों के सामने तैरने लगते। वह रोमांचित हो उठता।


***


“पिताजी, आज फिर मैंने वही सपना देखा। काफी देर तक आसमान में उड़ता रहा। फिर आपके बुलाने की आवाज सुनकर नीचे उतर आया।“ रोहित उस दिन सुबह उठते ही अपने पिताजी के सामने रात का सपना बयान कर रहा था।


“पर, मैने तो तुम्हे बुलाया नहीं था बेटे।“ रोहित के पिता जो गांव के प्रधान थे ने चुटकी ली।


“पिता जी, मैं सपने की बात बता रहा हूं।“ रोहित ने मचलते हुए कहा।


“अच्छा बेटे, अब सपने की बात छोड़ो, जल्दी तैयार हो जाओ स्कूल के लिए। सपने की बात फिर कर लेना।“ यह कह कर प्रधानजी घर के बाहर निकल पड़े। रोहित मन मसोस कर रह गया। दरअसल वह आज पिताजी को अपने उड़ने वाले सपने के बारे में विस्तार से चर्चा करना चाहता था... लेकिन उसकी इच्छा पूरी नहीं हो पायी। बुझे मन से स्कूल के लिए तैयार होते हुए उसने सोचा क्यों न वह अपने सपनों की चर्चा कक्षा के अध्यापक से करे। वह नवीं कक्षा का छात्र है, उसके कक्षा अध्यापक विज्ञान पढ़ाते हैं, वे जरूर उसके सपने की समस्या पर विचार करेंगे। यही सोचता विचारता हुआ वह स्कूल के प्रांगण तक जा पहुंचा, बच्चों के शोर से उसका ध्यान भंग हुआ। रेसस में वह अपने स्वप्न की चर्चा विज्ञान के अध्यापक यतींद्रजी से करेगा। उसने यह दृढ़ निश्चय कर लिया था।


“भई रोहित, तुम्हारे सपने पर तो मैं जानकारी नहीं दे पाऊंगा पर इतना जरूर बता सकता हू¡ कि धरती के गुरुत्वाकर्षण के चलते कोई भी इंसान बिना किसी उपकरण या साधन के सहारे नहीं उड़ सकता। गुरुत्वाकर्षण यानि ग्रैविटी से तो तुम परिचित ही हो। धरती प्रत्येक वस्तु को अपनी ओर खींचती है और इसके प्रभाव के चलते ही हम सतह पर टिके हैं नहीं तो अब तक अंतरिक्ष में विलीन हो जाते। तुम्हारे उड़ने की बात केवल सपने में ही सम्भव है, सचमुच ऐसा नहीं हो सकता।“ रोहित के कक्षा अध्यापक अपराºन अवकाश के समय उसकी जिज्ञासा का समाधान करने का प्रयास कर रहे थे।


“लेकिन सर, उड़ने वाला सपना ही मैं बार-बार क्यों देखता हूं!” रोहित के प्रश्न थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे।


“भई, मनोवैज्ञानिकों की राय में लोग वही स्वप्न देखते हैं जो वे चाहते हैं मगर वास्तव में अपनी चाहत पूरी नहीं कर पाते। मनुष्य का दिमाग बस उन्हीं मनचाही किन्तु असम्भव बातों को सपने के जरिए हासिल कर लेना चाहता है, हो सकता है तुम्हारे मन में आसमान में उड़ती चििड़यों को देखकर लगता हो कि काश तुम भी उन्हीं की तरह उड़ पाते।“ यतीन्द्र ने यह कहकर रोहित की ओर ध्यान से देखा।


“जी सर, यह तो मेरी इच्छा है कि काश मैं भी चिड़ियों की तरह उड़ पाता।“ रोहित ने तुरन्त हामी भरी।


“फिर तो सारा माजरा समझ में आ गया। जो तुम वास्तव में नहीं कर पा रहे हो, यानि उड़ नहीं पा रहे हो, स्वप्न के जरिए उसी काम को तुम्हारा मस्तिष्क अंजाम दे रहा है।“


“यस सर!” रोहित ने हामी भरी। लेकिन उसे अभी भी यही अनुभव हो रहा था कि उसकी जिज्ञासा पूरी तरह शांत नहीं हो सकी है।


***


अभी स्कूल बन्द होने में थोड़ा समय था किन्तु सरदर्द के कारण रोहित ने घर जाने की अनुमति प्रधानाध्यापक से प्राप्त कर ली। वह एक शार्टकट रास्ते से यानि नहर वाले निर्जन रास्ते से जल्दी घर पहु¡चने के लिए तेज कदमों से चल पड़ा था। अभी वह आधा फासला ही तय कर पाया था कि सहसा एक प्यारी सी आवाज सुनायी पड़ी।


“अरे भई रोहित, जरा मुझसे भी मिल लीजिए।“


“यहाँ कौन?” कहीं कोई भी तो दिखाई नहीं पड़ रहा।


“अरे, मैं तो नहर के बीचो-बीच पानी में हूं। भई रोहित, जरा नहर के मेड़ पर चढ़ो तो।“ फिर से वही मधुर आवाज सुनायी दी।


रोहित सहम गया। कहीं उसने इस नहर वाले रास्ते से चलने का निर्णय लेकर बड़ी गलती तो नहीं की है उसके पिताजी हमेशा मेन रोड वाले लम्बे किन्तु सीधे रास्ते से ही स्कूल आने-जाने के लिए कहते हैं, सहसा ही यह विचार उसके मन में कौंधा।


“अरे डरो नहीं रोहित, मैं तुम्हारा दोस्त हूँ, दुश्मन नहीं। पहले तुम दांयी ओर नहर के ऊपर चढ़ो तो।“ फिर वही आवाज, जिसमें इस बार एक विशेष आमंत्रण था।


रोहित यंत्र सा खिंचा नहर की मेड़ पर चढ़ गया। उसने नहर के पानी में एक काफी बड़े आकार का मेढ़कनुमा जानवर देखा ण्ण्ण् ऐसा जानवर तो उसने कभी नहीं देखा था, वह सहसा बेहद डर गया। डर के मारे उसकी घिग्घी बंध गई।


“तुम नाहक ही डर रहे हो रोहित, मैं तुम्हारे ग्रह का प्राणी नहीं हूं। मैं अन्तरिक्ष के ऐसे छोर से आया हूं जहां केवल जल ही जीवन है। इसलिए तो मुझे भी इस नहर के पानी में ही शरण लेनी पड़ी है। अब चूंकि धरती का एक तिहाई भाग ठोस धरातल है, जहां तुम जैसे थलचारी हैं और इसलिए हम तुम्हारे पास सीधे आ नहीं सकते। इसलिए तुम्हारे सपनों में ही अपनी उपस्थिति दर्ज कर संतोष कर रहे हैं।“ रोहित को मानों काटो तो खून नहीं। यह क्या माजरा है भला। सहसा उसकी समझ में नहीं आया कि वह क्या करे। वहां रुके या फिर भाग चले।


“फिर से किस विचार में डूब गये रोहित, मैं तुम्हे कोई हानि नहीं पहुंचाऊंगा, अब मेरा चेहरा-मोहरा तो धरतीवासियों सा है नहीं। यदि मैं दोस्ती की पेशकश करूँ तो तुम ठुकरा दोगे।“ वह मेंढकनुमा सा होकर भी बिल्कुल इन्सानों की जुबान बोल रहा था। उसने अन्तरिक्षवासियों की कहानियाँ पढ़ी तो थीं, तो क्या सामने का जीव सचमुच कोई अन्तरिक्षवासी ही है। कोई दुश्मन अंतरिक्षवासी न होकर एक दोस्त।“ रोहित का दिमाग फिर सक्रिय हो उठा था।


“तुम जो सपने देख रहे हो वे हमारी विचार तरंगों से ही उत्पन्न हो रहे हैं। हमारे ग्रह के वासियों का एक झुंड धरती पर उतर कर यहाँ के जन-जीवन का अध्ययन कर रहा है।“


“भला क्यों?” रोहित के मुँह से अकस्मात निकल पड़ा।


“इसलिए कि हमारे यहाँ जनसंख्या बहुत अधिक हो चली है, हमें बसने के लिए कोई दूसरी जगह चाहिए और इस गैलेक्सी में तुम्हारी धरती जैसा कोई दूसरा ग्रह नहीं, यहाँ तो दो तिहाई पानी ही पानी है अनुमान यह है कि अगली दो शताब्दियों में बढ़ते तापक्रम के चलते उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों की सारी बर्फ पिघल जाएगी और तब पूरी तरह जलमग्न धरती हमारे लिए स्वर्ग बन जायेगी´´


“और हमारे लिए नर्क” रोहित के मुंह से फिर अकस्मात ये शब्द फूट पड़े।


“उस स्थिति के लिए हम जिम्मेदार नहीं है रोहित, बहरहाल तुम अपने सपनों को लेकर चिंतित न होओ यह भी जान लो कि तुम्हारा स्वप्न महज एक स्वप्न भर नहीं एक हकीकत है।“


“क्या?”


“जी हाँ”, रोहित हमने एक ऐसी ‘एंटी ग्रैविटान’ तरंगो की खोज कर ली है जिसकी मदद से हम दूर-दूर तक अंतरिक्ष भ्रमण कर लेते हैं। गुरुत्वाकर्षण का कोई प्रभाव हम पर नहीं पड़ता, पर इसका अर्थ यह नहीं है कि हमारे ग्रह पर गुरुत्वाकर्षण नहीं है। वहां भी धरती की ही तरह गुरुत्वाकर्षण है, लेकिन एंटीग्रविटान वेब´ के नियंत्रित उपयोग से हम सुदूर अन्तरिक्ष यात्राए¡ कर लेते हैं ये तरंगे हमारे अंतरिक्ष यानों को गुरुत्व के विरूद्ध गति देती हैं।“


“तो क्या मैं भी सचमुच उड़ सकता हूं।“ अचानक रोहित के उड़ने की इच्छा बलवती हो उठी।


“ठीक है रोहित मैं अपने ग्रह-मुख्यालय से संपर्क कर आज रात तुम्हारे इर्द-गिर्द एंटी ग्रैविटी तरंगों का घेरा तैयार करूंगा। तुम रात 11 बजे के आस-पास घर के बाहर निकलना, नहीं तो घर की छत से जाकर चिपक जाओगे। अब तुम जाओ, उड़ने का आनन्द लेने के बाद मुझसे मिलना फिर और बातें होंगी। लेकिन हां, मेरे बारे में किसी को बताना नहीं, क्योंकि कोई विश्वास करेगा नहीं और कोई विश्वास कर भी ले तो उसके यहा¡ तक आने पर मैं छुप जाऊंगा-पानी के भीतर भला कौन देख पाएगा मुझे। बस तुम भले मुझसे मिल सकोगे।“ सहसा ही वह मेढ़कनुमा जीव पानी में डुबकी लगाकर अदृश्य हो गया। स्तब्ध सा रोहित इस अद्भुत घटना पर सोच विचार करता घर की ओर चल पड़ा।


***


“रोहित, रोहित उठो। कब तक सोते रहोगे आज।“ पिता जी की आवाज सुनकर रोहित उठ बैठा।


“रोहित बेटे आज मैंने भी सपना देखा कि तुम रात 11 बजे घर के बाहर निकले। मैं भी तुम्हारे पीछे-पीछे चल पड़ा। फिर मैंने देखा कि तुम एक जगह थोड़ी देर रुके रहे, फिर आसमान में ऊपर उठ चले और काफी देर तक इधर-उधर मंडराते रहे। फिर धीरे से नीचे उतर आए! भई मैं तो हैरान हूं हम तुम एक जैसा ही सपना देख रहे हैं, आखिर इसका कारण क्या है।“ रोहित के पिता जी की आवाज में चिन्ता की स्पष्ट झलक थी और रोहित इस उधड़ेबुन में था कि सपने का सच पिता को बताए या नहीं। आखिर उन्होंने कोई सपना नहीं बल्कि एक सच्ची घटना जो देखी थी।


******


डॉ. अरविन्द मिश्र: एक परिचय

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14 टिप्पणियाँ

  1. विज्ञान और कथा का सुन्दर संगम है। बच्चों को एसी रचनाओं से परिचित कराने की बेहद आवश्यकता भी है। डॉ. अरविन्द को धन्यवाद इस प्रस्तुति के लिये।

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  2. बचपन में मैं भी रोहित था और एसे ही सपने देखता था।

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  3. मुझे इस तरह की कहानियाँ बहुत पसंद आती है ..अच्छी लगी यह भी ..बच्चो को भी पसंद आएगी यह ..:)

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  4. इस तरह की कहानियों से बच्चों में जिज्ञासा बढ़ाई जा सकती है।

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  5. अरविंद जी हिन्दी के शीर्षस्थ विज्ञान कथाकार हैं। उनकी यह कहानी बच्चों के लिए आदर्श विज्ञान कथा के रूप में सामने आई है। उन्हें बहुत बहुत बधाई।

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  6. डॉ अरविन्द आपको साहित्य शिल्पी पर देख कर अच्छा लगा। बहुत अच्छी बाल विज्ञान कथा है। बधाई..

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  7. डा. साहिब मुझे तिल्सिम और वैज्ञानिक पृष्ठभूमि पर रची गई कहानियो को पढने में बहुत आनंद आता है. आपकी रचना पढ़ का आनन्दित हुआ... आभार

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  8. डो. अरविन्द जी,

    शायद यही रास्ता है जो शिक्षा की पद्यति से जुड कर रचनात्मक क्रांति ला सकता है। साहित्य-शिल्पी पर आपकी अन्य कहानियों की भी प्रतीक्षा रहेगी।

    ***राजीव रंजन प्रसाद

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  9. बेहतरीन बालकथा...अरविन्द जी को बहुत बहुत बधाई.

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  10. बहुत दिनों बाद ऐसी बाल विज्ञान कथा पढने को मिला..
    धन्यवाद..

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  11. आप सभी को प्रेरणा और प्रोत्साहन भरे इन स्नेहिल शब्दों के लिए कोटिशः धन्यवाद !

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  12. रोचकता, कौतूहल और आकर्षण से
    परिपूर्ण एक अनूठी कहानी!
    --
    इसका अंत सबसे अधिक प्रभावशाली है!

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    मेरे मन को भाई : ख़ुशियों की बरसात!
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    संपादक : सरस पायस

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