
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाउँगा,
तान भावना की है, शब्द शब्द दर्पण है।
बाँसुरी चली आओ, होठ का निमंत्रण है।
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है,
तीर पार कान्हा से दूर राधिका सी है,
शाम की उदासी में याद संग खेला है,
कुछ गलत न कर बैठे मन बहुत अकेला है,
औषधि चली आओ, चोट का निमंत्रण है।
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।
तुम अलग हुई मुझसे साँस की खताओं से,
भूख की दलीलों से, वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है,
कँचनी कसौटी को, खोट का निमंत्रण है।
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।
27 टिप्पणियाँ
डॉ. विश्वास की यह रचना मेरी पसंदीदा रचनाओं में है।
जवाब देंहटाएंतान भावना की है, शब्द शब्द दर्पण है।
औषधि चली आओ, चोट का निमंत्रण है।
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है,
कँचनी कसौटी को, खोट का निमंत्रण है।
बाँसुरी चली आओ, होठ का निमंत्रण है।
बेहद प्रभावित करते हैं आपके शब्द।
***राजीव रंजन प्रसाद
कुमार विश्वास को मंच पर बहुत सुना है। पढने का अवसर आज ही मिला। उपर लगा पोस्टर अच्छा है लेकिन कुछ शब्द साफ नहीं दिख रहे हैं।
जवाब देंहटाएंतुम अलग हुई मुझसे साँस की खताओं से,
जवाब देंहटाएंभूख की दलीलों से, वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है,
कँचनी कसौटी को, खोट का निमंत्रण है।
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।
बहुत सुन्दर।
बहुत सुंदर दिल को छूती हुई कविता. बधाई.
जवाब देंहटाएंDr kumar vishwas ki har kavita mein ek alag ras hota hai
जवाब देंहटाएंbhaut sunder lagi thi ye bhi
dubara padhna achha laga
डा. कुमार की अपनी अलग भाव शैली है.... यह कविता भी उम्दा है.... मेरा व्यक्तिगत निवेदन है कुमार साहब से कि एक बार एक पगली लडकी को पढवाने का अवसर प्रदान करें मेरे जीवन की मह्त्वपूर्ण रचना है वह उस कविता के कारण डा कुमार विश्वास का नाम मेरे मानस पर १९९३ से लिखा हुआ है..... कायल हैं साहब आपके.....
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकार करें.....
कँचनी कसौटी को, खोट का निमंत्रण है।
जवाब देंहटाएंबाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।
वाह।
:))
जवाब देंहटाएंभाव सुंदर हैं
जवाब देंहटाएंबोधगम्य हैं
वर्तनी में
अशुद्धियों से
बचने के लिए
निवेदन है।
तुम अगर नहीं आयी, गीत गा न पाउँगा,
जवाब देंहटाएंसाँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाउँगा,
बहुत सुंदर...
औषधि चली आओ, चोट का निमंत्रण है।
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।
....
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है,
कँचनी कसौटी को, खोट का निमंत्रण है।
वाह ......
बधाई
स-स्नेह
भावनात्मक व लय की कसोटी पर सोने सी खरी उतरती हुई रचना ... मन को भा गयी.
जवाब देंहटाएंऐसी विलक्षण कविता पढ़ के मन में उठे भाव शब्दों
जवाब देंहटाएंमें नहीं बताये जा सकते...सिर्फ़ दिल से महसूस किए जा सकते हैं...अद्भुत रचना...वाह
नीरज
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जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंmast as dr saab's style is
जवाब देंहटाएंडॉ. विश्वास की यह रचना पहले से ही मुझे बहुत प्संद है. दोबारा पढ़ना अच्छा लगा. आशा है कि आगे डॉक्टर साहब की और भी सुंदर और नवीन रचनायें पढ़ने को मिलेंगीं.
जवाब देंहटाएंडॉ. विश्वास साहित्य शिल्पी पर आपको देख कर मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा है... पुन: एक बहुत ही अच्छी रचना के लिये बधाई
जवाब देंहटाएंतुम अगर नहीं आयी, गीत गा न पाउँगा,
जवाब देंहटाएंसाँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाउँगा,
"very heart touching words, read first time"
Regards
Bahut Khoob Dr.Sahab........
जवाब देंहटाएंKya khoob likha hai...
"तुम अलग हुई मुझसे साँस की खताओं से,
भूख की दलीलों से, वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है"
Bahut-bahut BADHAI apko ek aur dil choo lene waali kriti k liye.....
जवाब देंहटाएंDR. Kumar Visvas ka me shuru se hi Fida hai.
जवाब देंहटाएंUnki har kavita dil ko chhu jati hai.
AAj aapke blog par ''basusi chali aao'' padkar bahut accha laga.
Acchi rachnao ke liye Dhanyabad...
ram Joshi
आपकी किताब " कोई दीवाना कहता है " में इस कविता को पढ़ा था ! आज फिर से पढ़ा... बहुत ढूँढा पर आपकी किताब में जितनी कविताएँ प्रकाशित हैं उनके अलावा कुछ कहीं पर भी नही मिल रहा...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता थी.. आपकी कलम से कुछ ताज़ा सुनने की इच्छा है.. आशा है आप पूरी करेंगे!
तुम अगर नहीं आयी, गीत गा न पाउँगा,
जवाब देंहटाएंसाँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाउँगा,
तान भावना की है, शब्द शब्द दर्पण है।
बाँसुरी चली आओ, होठ का निमंत्रण है
heart touching line of kumar vishwas
from sandeep shrivastava
very nice sir.
जवाब देंहटाएंvery nice sir.
जवाब देंहटाएंTHE GREAT DR. KUMAR VISHWAS
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जवाब देंहटाएं#Stu #AlpuDFB #बाँसुरी #बज़्म
#_कहना_है बहुत ही अच्छा
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