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बाँसुरी चली आओ [कविता] – डॉ. कुमार विश्वास

तुम अगर नहीं आयी, गीत गा न पाउँगा,
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाउँगा,
तान भावना की है, शब्द शब्द दर्पण है।
बाँसुरी चली आओ, होठ का निमंत्रण है।

तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है,
तीर पार कान्हा से दूर राधिका सी है,
शाम की उदासी में याद संग खेला है,
कुछ गलत न कर बैठे मन बहुत अकेला है,
औषधि चली आओ, चोट का निमंत्रण है।
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।

तुम अलग हुई मुझसे साँस की खताओं से,
भूख की दलीलों से, वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है,
कँचनी कसौटी को, खोट का निमंत्रण है।
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।

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27 टिप्पणियाँ

  1. डॉ. विश्वास की यह रचना मेरी पसंदीदा रचनाओं में है।

    तान भावना की है, शब्द शब्द दर्पण है।

    औषधि चली आओ, चोट का निमंत्रण है।

    आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है,
    कँचनी कसौटी को, खोट का निमंत्रण है।
    बाँसुरी चली आओ, होठ का निमंत्रण है।

    बेहद प्रभावित करते हैं आपके शब्द।

    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  2. कुमार विश्वास को मंच पर बहुत सुना है। पढने का अवसर आज ही मिला। उपर लगा पोस्टर अच्छा है लेकिन कुछ शब्द साफ नहीं दिख रहे हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. तुम अलग हुई मुझसे साँस की खताओं से,
    भूख की दलीलों से, वक्त की सज़ाओं से
    दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
    आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है,
    कँचनी कसौटी को, खोट का निमंत्रण है।
    बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।

    बहुत सुन्दर।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर दिल को छूती हुई कविता. बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  5. Dr kumar vishwas ki har kavita mein ek alag ras hota hai
    bhaut sunder lagi thi ye bhi

    dubara padhna achha laga

    जवाब देंहटाएं
  6. डा. कुमार की अपनी अलग भाव शैली है.... यह कविता भी उम्दा है.... मेरा व्यक्तिगत निवेदन है कुमार साहब से कि एक बार एक पगली लडकी को पढवाने का अवसर प्रदान करें मेरे जीवन की मह्त्वपूर्ण रचना है वह उस कविता के कारण डा कुमार विश्वास का नाम मेरे मानस पर १९९३ से लिखा हुआ है..... कायल हैं साहब आपके.....
    बधाई स्वीकार करें.....

    जवाब देंहटाएं
  7. कँचनी कसौटी को, खोट का निमंत्रण है।
    बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।

    वाह।

    जवाब देंहटाएं
  8. भाव सुंदर हैं
    बोधगम्‍य हैं
    वर्तनी में
    अशुद्धियों से
    बचने के लिए
    निवेदन है।

    जवाब देंहटाएं
  9. तुम अगर नहीं आयी, गीत गा न पाउँगा,
    साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाउँगा,

    बहुत सुंदर...


    औषधि चली आओ, चोट का निमंत्रण है।
    बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है।
    ....

    आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है,
    कँचनी कसौटी को, खोट का निमंत्रण है।

    वाह ......


    बधाई
    स-स्नेह

    जवाब देंहटाएं
  10. भावनात्मक व लय की कसोटी पर सोने सी खरी उतरती हुई रचना ... मन को भा गयी.

    जवाब देंहटाएं
  11. ऐसी विलक्षण कविता पढ़ के मन में उठे भाव शब्दों
    में नहीं बताये जा सकते...सिर्फ़ दिल से महसूस किए जा सकते हैं...अद्भुत रचना...वाह
    नीरज

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  12. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  13. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  14. डॉ. विश्वास की यह रचना पहले से ही मुझे बहुत प्संद है. दोबारा पढ़ना अच्छा लगा. आशा है कि आगे डॉक्टर साहब की और भी सुंदर और नवीन रचनायें पढ़ने को मिलेंगीं.

    जवाब देंहटाएं
  15. डॉ. विश्वास साहित्य शिल्पी पर आपको देख कर मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा है... पुन: एक बहुत ही अच्छी रचना के लिये बधाई

    जवाब देंहटाएं
  16. तुम अगर नहीं आयी, गीत गा न पाउँगा,
    साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाउँगा,

    "very heart touching words, read first time"

    Regards

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  17. Bahut Khoob Dr.Sahab........
    Kya khoob likha hai...

    "तुम अलग हुई मुझसे साँस की खताओं से,
    भूख की दलीलों से, वक्त की सज़ाओं से
    दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है"

    जवाब देंहटाएं
  18. DR. Kumar Visvas ka me shuru se hi Fida hai.
    Unki har kavita dil ko chhu jati hai.
    AAj aapke blog par ''basusi chali aao'' padkar bahut accha laga.

    Acchi rachnao ke liye Dhanyabad...
    ram Joshi

    जवाब देंहटाएं
  19. आपकी किताब " कोई दीवाना कहता है " में इस कविता को पढ़ा था ! आज फिर से पढ़ा... बहुत ढूँढा पर आपकी किताब में जितनी कविताएँ प्रकाशित हैं उनके अलावा कुछ कहीं पर भी नही मिल रहा...
    बहुत अच्छी कविता थी.. आपकी कलम से कुछ ताज़ा सुनने की इच्छा है.. आशा है आप पूरी करेंगे!

    जवाब देंहटाएं
  20. तुम अगर नहीं आयी, गीत गा न पाउँगा,
    साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाउँगा,
    तान भावना की है, शब्द शब्द दर्पण है।
    बाँसुरी चली आओ, होठ का निमंत्रण है

    heart touching line of kumar vishwas
    from sandeep shrivastava

    जवाब देंहटाएं


  21. #Stu #AlpuDFB #बाँसुरी #बज़्म
    #_कहना_है बहुत ही अच्छा

    जवाब देंहटाएं

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