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रामधारी सिंह दिनकर: व्यक्तित्व एवं कृतित्व [विशेष प्रस्तुति] – राजीव रंजन प्रसाद

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सुनूँ क्या सिंधु मैं गर्जन तुम्हारा, स्वयं युगधर्म का हुँकार हूँ मैं
कठिन निर्घोष हूँ भीषण अशनि का, प्रलय गांडीव की टंकार हूँ मैं..


दबी सी आग हूँ भीषण क्षुधा की, दलित का मौन हाहाकार हूँ मैं
सजग संसार, तू जग को संभाले,व प्रलय का क्षुब्ध पारावार हूँ मैं..

मानव की शक्ति चेतना को जागृत करती उपरोक्त पंक्तियों के रचयिता तथा भारतीय जनमानस के दमित आक्रोश को स्वर देने वाले दिनकर को युग कवि होने का गौरव प्राप्त है। राष्ट्रकवि दिनकर का जन्म बिहार के मुंगेर जिले के सिमिरिया ग्राम में 23 सितंबर 1908 को हुआ। इनके पिता श्री रवि सिंह एक साधारण किसान थे, तथा इनकी माता का नाम मनरूप देवी था जो अशिक्षित व सामान्य महिला होने के बावजूद, जीवट व गंभीर साहसिकता से युक्त थीं। पटना विश्वविद्यालय से बी.ए ऑनर्स की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात दिनकर नें पहले सब-रजिस्ट्रार के पद पर और फिर प्रचार विभाग के उप-निदेशक के रूप में कुछ वर्षों तक सरकारी नौकरी की। इसके बाद इनकी नियुक्ति मुजफ्फरपुर के लंगट सिह क़ॉलेज में हिन्दी प्राध्यापक के रूप में हुई। दिनकर की जीवटता न केवल उनके कृतित्व में अपितु व्यक्तित्व में भी दृष्टिगोचर होती है। अपनी नौकरी के पहले चार वर्षों में ही अंग्रेज सरकार नें उन्हें बाईस बार स्थानांतरित किया। उनके पीछे अंग्रेज गुप्तचर लगे रहते थे, उनपर नौकरी छोडने का दबाव बनाया जाता रहा। दिनकर तो भारत की अंधकार में खोई आत्मा को ज्योति प्रदान करने के लिये कलम की वह लडाई लडने को उद्यत थे जिससे सारे राष्ट्र को जागना था। वे स्वयं दृढ रहे, जितनी सशक्तता से उन्होंने आशावादिता का दृष्टिकोण दिया कि:

वह प्रदीप जो दीख रहा है, झिलमिल दूर नहीं है
थक कर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं


सन 1952 में इन्होंने संसद सदस्य के रूप में राजनीति में प्रवेश किया। कुछ समय तक वे भागलपुर विश्वविद्यालय के उप-कुलपति भी रहे। भारत सरकार नें उन्हें “पद्मभूषण” की उपाधि से सम्मानित किया। भारत सरकार के गृह-विभाग के अंतर्गत हिन्दी सलाहकार के दायित्व का भी उन्होंने दीर्घकाल तक निर्वाह किया। उनका देहावसान 24 अप्रैल 1974 में हुआ।


रामधारी सिंह का उपनाम ‘दिनकर’ था। दिनकर आशावाद आत्मविश्वास और संघर्ष के कवि रहे हैं। आरंभ में उनकी कविताओं में क्रमश: छायावाद तथा प्रगतिवादी स्वर के दर्शन होते हैं। शीघ्र ही उन्होंने अपनी वांछित भूमिका प्राप्त कर ली और वे राष्ट्रीय भावनाओं के गायक के रूप में विख्यात हुए। दिनकर की रचनायें प्रबंध भी हैं और मुक्तक भी, दोनों ही शैलियों में वे समान रूप से सफल हुए हैं। डॉ. सावित्री सिन्हा के शब्दों में दिनकर में “क्षत्रिय के समान तेज, ब्राह्मण के समान अहं, परशुराम के समान गर्जन तथा कालिदास की कलात्मकता का अध्भुत समंवय था”। दिनकर अपने आप को ‘जरा से अधिक देशी सोशलिस्ट” कहा करते थे। गाँधीवाद के प्रति आस्थावान रहते हुए भी वे नपुंसक अहिंसा के समर्थक नहीं थे। रामवृक्ष बेनीपुरी कहते हैं “दिनकर इंद्रधनुष है जिस पर अंगारे खेलते हैं”।

रामधारी सिंह दिनकर की कविता का मूल स्वर क्रांति, शौर्य व ओज रहा है। उनकी कविता में आत्मविश्वास, आशावाद, संघर्ष, राष्ट्रीयता, भारतीय संस्कृति आदि का ओजपूर्ण विवरण मिलता है। जनमानस में नवीन चेतना उत्पन्न करना ही उनकी कविताओं का प्रमुख उद्देश्य रहा है। उनकी कविताओं की विशेषता यथार्थ कथन, दृढतापूर्वक अपनी आस्था की स्थापना तथा उन बातों को चुनौती देना है, जिन्हे वे राष्ट्र के लिये उपयोगी नहीं समझते थे। भारतीय संस्कृति के प्रति उनके इसी अगाध प्रेम नें उन्हें राष्ट्र कवि के रूप में प्रतिष्ठा दिलायी।


रेणुका, द्वंद्वगीत, हुँकार, रसवंती, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, उर्वशी, नीलकुसुम, परशुराम की प्रतीक्षा, धूपछाँह आदि दिनकर की प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं। एक कवि से पृथक भी दिनकर को गद्यकार एवं बालसाहित्यकार के रूप में जाना जाता है। दिनकर की गद्य रचनाओं में उजली आग (गद्य- काव्य), संस्कृति के चार अध्याय (संस्कृति इतिहास), अर्ध-नारीश्वर, मिट्टी की ओर, रेती के फूल, पंत प्रसाद और निराला (निबंध व आलोचना) आदि प्रमुख हैं। बाल साहित्य में चित्तौड का साका, सूरज का व्याह, भारत की सांस्कृतिक कहानी, धूप छाँह, मिर्च का मजा आदि प्रमुख हैं।

मूलरूप से दिनकर ओजस्वी अभिव्यक्ति के अमर कवि है। दिनकर की भाषा विषय के अनुरूप है जिसमें कहीं कोमलकांत पदावली है तो कहीं ओजपूर्ण शब्दों का प्रयोग मिलता है। भाषा में प्रवाह लाने के लिये उन्होंने उर्दू-फारसी तथा देशज शब्दों का भी प्रचुर प्रयोग किया है। दिनकर की रचनाओं के सामाजिक सरोकारों से आन्दोलित हुए बिना नहीं रहा जा सकता। एक ओर जहाँ जातिवाद का विरोध करते हुए वे लिखते हैं:-

जाति जाति का शोर मचाते केवल कायर क्रूर
पाते हैं सम्मान तपोबल से धरती पर शूर...

वही दूसरी ओर उनका आक्रोश क्रांति के लिये पृष्ठभूमि भी तैयार करता है:-


श्वानों को मिलता दूध वस्त्र, भूखे बालक अकुलाते हैं
माँ की हड्डी से चिपक ठिठुर जाडों में रात बिताते हैं
युवती के लज्जा वसन बेच, जब व्याज चुकाये जाते हैं
मालिक जब तेल-फुलेलो पर, पानी सा द्रव्य बहाते हैं
पापी महलों का अहंकार, देता तुझको तब आमंत्रण..

दिनकर विवशता को भी प्रस्तुत करने से नहीं चूकते:-

जहाँ बोलना पाप वहाँ गीतों में क्या समझाउं मैं?

राष्ट्रीय गौरव पर आहत हो कर दिनकर, उसे अतीत में तलाशते भी दीख पडते हैं:-

तू पूछ अवध से राम कहाँवृंदा बोलो घनश्याम कहाँ
ओ मगध कहाँ मेरे अशोकवह चंद्रगुप्त बलधाम कहाँ?

प्रेम पर दिनकर के विचार इस कविता से समझे जा सकते हैं:-

दृग बंद हों, तब तुम सुनहले स्वप्न बन आया करो
अमितांशु निंद्रित प्राण में, प्रसरित करो अपनी प्रभा
प्रियतम कहूँ मैं और क्या?

प्रकृति चित्रण में दिनकर आलंकारिक हो उठते हैं और कभी रहस्यमयता को भी अपने अंदाज में शब्द देते हैं:-

किरणों का दिल चीर देख सबमें दिनमणि की लाली रे
चाहे जितने फूल खिलें, पर एक सभी का माली रे..

दिनकर का अपनी ही शैली में कहा गया एक व्यंग्य देखिये:

चुल्लू भर पानी से बुझाने आग गाँव की
चल पडी टोलियाँ अमीर उमराव की..

जनाक्रोश को नये व प्राचीन संदर्भों में पिरो कर देश और भाषा की अमिट सेवा करने वाले दिनकर कभी विस्मृत नहीं किये जा सकते। आज उनके जन्मदिवस पर उन्हें स्मरण करते हुए उनके समक्ष मैं नतमस्तक हूँ...

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22 टिप्पणियाँ

  1. आज उनके जन्मदिवस पर उन्हें स्मरण करते हुए उनके समक्ष मैं नतमस्तक हूँ...
    " hum bhee aapke sath hain"

    Regards

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  2. रामधारी सिंह दिनकर जैसी हुंकार हिन्‍दी साहित्‍य में दूसरी नहीं मिलती।

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  3. बहुत बहुत धन्यवाद राजीव जी, दिनकर जी के जन्मदिन पर उनका स्मरण कराने के लिए। आज आपका लेख पढ़ कर अचानक ही 'रश्मिरथि' की दो पंक्तियाँ याद आ गयी जिसमें कृष्ण जी कौरवों को उनका भविष्य दिखाते हुए कहते हैं:
    मृतकों से पटी हुई भू है

    पहचान कहाँ इसमें तू है


    काश हम सभी इन पंक्तियों से कुछ सबक ले पाते।

    दिनकर जी को बहुत बहुत श्रद्धांजली

    जवाब देंहटाएं
  4. यह क्रंदन , यह अश्रु मनुज की
    आशा बहुत बड़ी है
    बतलाता है यह ,
    मनुष्यता अब तक नही मरी है

    फूलों पर आँसू के मोती,
    और अश्रु में आशा
    मिटटी के छोटे जीवन की
    नपी तुली परिभाषा
    - कुरुक्षेत्र

    जवाब देंहटाएं
  5. क्षमा सोहती की जगह क्षमा शोभती कर दीजिये

    जवाब देंहटाएं
  6. राष्ट्र-कवि दिनकर जी को नमन...

    बहुत अच्छा लगा लेख देखकर और पढकर...
    आगे भी ऐसे ही लेख और भी पढ पायें.....

    आभार..

    गीता पंडित

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सराहनीय संकलन तैयार किया है आपने। एसे लेख internet पर देखेने को नहीं

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  8. "मुजफ्फरपुर कालेज" की जगह "मुजफ्फर पुर का लंगट सिंह कालेज"

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  9. दिनकर के जन्मदिवस पर मेरा शत शत नमन

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  10. saamyik prastuti.. Din kar ek kavi hi nahi ek ojpoorna vichaarak they.. un ki kratiyaan yuva peedi k liye maargdarshak ho saktee hain..
    jeevni sanklit karne k liye rajiv bhai ko dhanyavad..
    Divyanshu

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  11. रामधारी सिंह दिनकर अपने आप में साहित्य का एक युग हैं जिसे समय के किसी भी काल में भुला पाना असम्भव है. उनके जन्म दिवस पर साहित्य शिल्पी समूह की और से उन्हें सादर नमन.

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  12. दिनकर जी के जन्मदिवस पर उनके बारे में जानकारी देता हुआ बढ़िया लेख.

    "क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो"

    हमारे नेताओं को ये याद दिलाने की जरूरत है आतंकवाद के विरूद्ध लड़ाई के लिए.

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  13. राजीव जी,
    दिनकर जी से इतना विस्तार से परिचय कराने के लिए आभार। आपने अपने लेख में बहुत सुन्दर रूप में उनके व्यक्तित्व के हर पहलू को लिया है। दिनकर जी का साहित्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है। प्रभु से प्रार्थना है कि हमको उस महान आत्मा को समझने और उनके गुणों को धारण करने की क्षमता प्रदान करे। सस्नेह

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  14. राजीव रंजन जी का बहुत श्रम से तैयार किया गया आलेख राष्‍ट्रकवि 'दिनकर' की स्‍मृति को बरबस मानस में उकेर देता है। आभार।

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  15. दिनकर सच्चे अर्थों में राष्ट्र-कवि थे. उनके समक्ष हर भारतीय व साहित्यप्रेमी नतमस्तक है. सुंदर आलेख के लिये राजीव जी का आभार!

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  16. दिनकर तो दिनकर हैं। उनके समाज तथा साहित्य के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।

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  17. अच्छा लेख। पढ़ाने के लिये धन्यवाद!

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  18. दिनकर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अच्छा आलेख।

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  19. dinkar ki ek jhalak dikhalane ke liye dhanyvad.

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  20. आपका यह लेख तो अतिउत्तम है ही, लेकिन अगर आप दिनकर जी द्वारा लिखित 'हिम्मत और जिंदगी' नामक निबंध उप्लबध करा सके तो अति क्रपा होगी। (ये निबंध NCERT कि सत्र 2005-2006 कि कक्षा 9 कि हिंदी कि पाठ्य पुस्तक साहित्य मंजरी भाग 1 मे भी सम्मलित था।)

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