देखो इस दर्दनाक मंज़र को
डरे -सहमे, जान बचाते दौड़ते इन लोगों को
खून से लथपथ चारों तरफ फैली इन लाशों को
शरीर के इन टुकड़ों को
इस हाथ को
जो कितने ही लोगों के पेट पालता होगा
दुलारता होगा माथे पर इस बच्ची को
जो पापा पापा पुकारते, रोते हुए सो गई
उसकी हंसी न जाने कहाँ खो गई
सुनो
इस छोटे से बच्चे के सवाल को
जो अपने पिता को मुखाग्नि देता पूछ रहा
"मेरे पापा को क्यों मारा? "
गुब्बारे बेचने वाली इस औरत की पुकार को
हांफती, रोती, इधर-उधर तलाशती
बस अपने बेटे को पुकार रही..
इस दर्दनाक मंज़र को बनाने वालों
आँखें तुम्हारी रोती क्यों नहीं?
दिल तुम्हारा पसीजता क्यों नहीं?
दिमाग तुम्हारा कुछ सोचता क्यों नहीं?
तुम हर बार ऐसा करने से ठिठकते क्यों नहीं?
लगता हैं
तुम इंसान नहीं.....
31 टिप्पणियाँ
यथार्थ का बयान करती एक सुंदर कविता. कवि को इतनी सुंदर अभ्व्यक्ति के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंमोहन शर्मा को सम्मान देना जरूरी है। इससे युवाओं को कुछ कर गुजरने की प्रेरणा मिलेगी। कविता सच्चाई का बयान करती है
जवाब देंहटाएं।
कब तक ये सब चलता रहेगा पता नहीं....
जवाब देंहटाएंशहीद ...
जवाब देंहटाएंमोहन चंद शर्मा जी को..... नमन
उनके परिवार के प्रति
मेरी विशेष सहानुभूति....
सुंदर कविता...
आज के हालात को
सही तरह बयान करती हुई....
बधाई ||
आतंकवाद की कठोर से कठोरतम शब्दों में भर्त्सना की जानी चाहिये। आपकी रचना विभत्स्य दृश्य को प्रस्तुत कर रहे हैं। नर-पिशाच संवेदित नहीं होते अन्यथा क्या एसी वारदात कोई इंसान सोच भी सकता है?
जवाब देंहटाएं***राजीव रंजन प्रसाद्
पीड़ा को स्वर देती कविता
जवाब देंहटाएंअपने छोटे से स्वरूप में
एक विस्तृत फलक लिए
ज्वलंत प्रश्न छोड़ती है
कि कैसे दिग्भ्रमित पीढ़ी
सच्चाई से मुंह मोड़ती है.
शायद वो इंसान नही हैं, इंसान की शक्ल मे भेडिये आ गयें हैं... और इसलिये वो "वो" नही देख सकते, जो हमारी आँखे देख के पथरा जाती हैं, खून के आँसु रोती हैं। मार्मिक कविता... अपने कलम की धार को यूँ ही बरकरार रखिये।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमज़हबी दुश्मनी ने देखो कैसी आग लगाई है,
जवाब देंहटाएंदिलों में दूरियां तो पहले ही थीं, अब चिंगारियां भी लगाई हैं,
इबादत का मतलब भी मालूम नहीं जिन्हें शायद,
धमाकों को वो खुदा की इबादत कहते हैं,
किताबें पढ़ने की उम्र में किसी ने बम भी बनाए हैं,
पूछो जरा लोगों से कि किस धर्म ने इसको इबादत कहा है,
मानवता की मौत जब होती है, जीत का अहसास किसी को होता होगा,
इंसानियत की ताकत का अंदाजा नहीं दहशतगर्दो को,
इसको आसानी से दहलाया नहीं जा सकता........................
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति..सशक्त!!
जवाब देंहटाएंशहीद मोहन चन्द शर्मा जी को नमन एवं श्रृद्धांजलि!!!
वो इनसान नहीं हैवान हैँ
जवाब देंहटाएंआदम नहीं शैतान हैँ
ऐसी किसी भी घटना के समय मंज़र सचमुच बेहद दर्दनाक होता है. पर काश इस दर्द का अहसास वो भी कर पाते जो ऐसी हरकतों को अंज़ाम देते हैं.
जवाब देंहटाएंrooh tak kaanp uthti hai aisa jab jab sunte hain
जवाब देंहटाएंdekhne walon ki halat ka bayan mushkil hai
aur jinhone saha hai wo kya kabhi muskara paate hain pata nahi
शहीद शर्मा जी को प्रणाम!
जवाब देंहटाएंयह इंसान नहीं हैं, शैतान हैं. इंसान प्रेम करता है और शैतान नफरत करता है.
जवाब देंहटाएंशर्मा जी को मेरा शत-शत नमन.
आपको पहली बार पढने का अवसर मिला है। आपकी रचना के तेवरों की प्रशंसा करनी होगी।
जवाब देंहटाएंशहीद मोहन चंद शर्मा को श्रद्धांजली..
बहुत दर्द नाक लिखी है आपने यह कविता एक वीर को सच्ची श्रदांजलि है यह ...
जवाब देंहटाएंइस दर्दनाक मंज़र को बनाने वालों
आँखें तुम्हारी रोती क्यों नहीं?
दिल तुम्हारा पसीजता क्यों नहीं?
दिमाग तुम्हारा कुछ सोचता क्यों नहीं?
तुम हर बार ऐसा करने से ठिठकते क्यों नहीं?
लगता हैं
तुम इंसान नहीं.....
सच में इंसान कहलाने लायक नहीं है यह
इस दर्दनाक मंज़र को बनाने वालों
जवाब देंहटाएंआँखें तुम्हारी रोती क्यों नहीं?
दिल तुम्हारा पसीजता क्यों नहीं?
दिमाग तुम्हारा कुछ सोचता क्यों नहीं?
तुम हर बार ऐसा करने से ठिठकते क्यों नहीं?
लगता हैं
तुम इंसान नहीं.....
बिल्कुल सही कहा।
Marmik yatharth
जवाब देंहटाएंVidrupit yatharth
khair........
बहुत सटीक और सामयिक रचना, मर्मस्पर्शी भी.
जवाब देंहटाएंशहीद मोहन चंद शर्मा को श्रद्धांजली!
गुब्बारे बेचने वाली इस औरत की पुकार को
जवाब देंहटाएंहांफती, रोती, इधर-उधर तलाशती
बस अपने बेटे को पुकार रही..
no words just silence
the thin line between wild and those who wanna live
regards
शहीद मोहन चन्द शर्मा जी को नमन एवं श्रृद्धांजलि!!!
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक रचना,
जवाब देंहटाएंशहीद मोहन चंद शर्मा को श्रद्धांजली!
आतंकवाद कभी भी किसी के लिये अच्छा नही हो सकता ..आतंकवाद की कठोर से कठोरतम शब्दों में भर्त्सना की जानी चाहिये...... बहुत अच्छी प्रस्तुति.. बधाई
जवाब देंहटाएं"bhut dardnak manjar ke abheevyktee, ek aise sach ko byan kertee jo na janee kitno ko ujjad gya hai"
जवाब देंहटाएंRegards
दर्द से सराबोर कर दिया आपने...
जवाब देंहटाएंपर वादा है मोहन जी की जान लेने वालों से... उन्होंने एक मारा है, लेकिन यहाँ हज़ार हैं...
भावों व यथार्त का सुन्दर चित्रण करती एक मार्मिक रचना..
जवाब देंहटाएंशहीद के प्रति श्रद्धा स्वरूप यह लौ जलाए रखें हम ,नितांत आवश्यक है। किंतु, आवश्यक यह भी है कि इस लौ की लपट हर भारतीय को सचेत रखे, जागरूक रखे हर पल -आतंकवाद के विरुद्ध ।
जवाब देंहटाएंहमारे भीतर का सिपाही ज़िंदा रहे-अनन्त तक ।
अब तो दहशतगर्दों पर कलम चलाना भी शर्मनाक लगने लगा है।उन पर तो कोई भी असर होने से रहा।
जवाब देंहटाएंशहीद मोहन शर्मा जी को नमन!
रचना अच्छी है। बधाई स्वीकारें।
इस दर्दनाक मंज़र को बनाने वालों
जवाब देंहटाएंआँखें तुम्हारी रोती क्यों नहीं?
दिल तुम्हारा पसीजता क्यों नहीं?
दिमाग तुम्हारा कुछ सोचता क्यों नहीं?
तुम हर बार ऐसा करने से ठिठकते क्यों नहीं?
सुशील कुमार छौक्कर जी, ऐसे लोगों के पास दिल हो तब तो पसीजे। जब ये खुदा से नहीं डरते और खुदा को ही बदनाम करते रहते हैं तो ये नीचे वालों की क्या खाक कद्र करेंगे।
खैर, आज के ज्वलंत मुद्दे पर अच्छी कविता लिखने के लिए दिल से बधाई...
सही बात आंतकवाद किसी के लिये अच्छा नही... मरते तो गरीब ही है... बहुत ही सुंदर और दर्दनाक रचना.. बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.