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एक दर्दनाक मंज़र [कविता, शहीद मोहन चंद शर्मा को श्रद्धांजली स्वरूप] - सुशील कुमार छौकर

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देखो इस दर्दनाक मंज़र को
डरे -सहमे, जान बचाते दौड़ते इन लोगों को
खून से लथपथ चारों तरफ फैली इन लाशों को
शरीर के इन टुकड़ों को

इस हाथ को
जो कितने ही लोगों के पेट पालता होगा
दुलारता होगा माथे पर इस बच्ची को
जो पापा पापा पुकारते, रोते हुए सो गई
उसकी हंसी न जाने कहाँ खो गई

सुनो
इस छोटे से बच्चे के सवाल को
जो अपने पिता को मुखाग्नि देता पूछ रहा
"मेरे पापा को क्यों मारा? "

गुब्बारे बेचने वाली इस औरत की पुकार को
हांफती, रोती, इधर-उधर तलाशती
बस अपने बेटे को पुकार रही..

इस दर्दनाक मंज़र को बनाने वालों
आँखें तुम्हारी रोती क्यों नहीं?
दिल तुम्हारा पसीजता क्यों नहीं?
दिमाग तुम्हारा कुछ सोचता क्यों नहीं?
तुम हर बार ऐसा करने से ठिठकते क्यों नहीं?

लगता हैं
तुम इंसान नहीं.....

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31 टिप्पणियाँ

  1. यथार्थ का बयान करती एक सुंदर कविता. कवि को इतनी सुंदर अभ्व्यक्ति के लिए बधाई.

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  2. मोहन शर्मा को सम्मान देना जरूरी है। इससे युवाओं को कुछ कर गुजरने की प्रेरणा मिलेगी। कविता सच्चाई का बयान करती है

    जवाब देंहटाएं
  3. कब तक ये सब चलता रहेगा पता नहीं....

    जवाब देंहटाएं
  4. शहीद ...
    मोहन चंद शर्मा जी को..... नमन

    उनके परिवार के प्रति
    मेरी विशेष सहानुभूति....


    सुंदर कविता...

    आज के हालात को
    सही तरह बयान करती हुई....

    बधाई ||

    जवाब देंहटाएं
  5. आतंकवाद की कठोर से कठोरतम शब्दों में भर्त्सना की जानी चाहिये। आपकी रचना विभत्स्य दृश्य को प्रस्तुत कर रहे हैं। नर-पिशाच संवेदित नहीं होते अन्यथा क्या एसी वारदात कोई इंसान सोच भी सकता है?

    ***राजीव रंजन प्रसाद्

    जवाब देंहटाएं
  6. पीड़ा को स्‍वर देती कविता
    अपने छोटे से स्‍वरूप में
    एक विस्‍तृत फलक लिए
    ज्‍वलंत प्रश्‍न छोड़ती है
    कि कैसे दिग्‍भ्रमित पीढ़ी
    सच्‍चाई से मुंह मोड़ती है.

    जवाब देंहटाएं
  7. शायद वो इंसान नही हैं, इंसान की शक्ल मे भेडिये आ गयें हैं... और इसलिये वो "वो" नही देख सकते, जो हमारी आँखे देख के पथरा जाती हैं, खून के आँसु रोती हैं। मार्मिक कविता... अपने कलम की धार को यूँ ही बरकरार रखिये।

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. मज़हबी दुश्‍मनी ने देखो कैसी आग लगाई है,
    दिलों में दूरियां तो पहले ही थीं, अब चिंगारियां भी लगाई हैं,
    इबादत का मतलब भी मालूम नहीं जिन्हें शायद,
    धमाकों को वो खुदा की इबादत कहते हैं,
    किताबें पढ़ने की उम्र में किसी ने बम भी बनाए हैं,
    पूछो जरा लोगों से कि किस धर्म ने इसको इबादत कहा है,
    मानवता की मौत जब होती है, जीत का अहसास किसी को होता होगा,
    इंसानियत की ताकत का अंदाजा नहीं दहशतगर्दो को,
    इसको आसानी से दहलाया नहीं जा सकता........................

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  10. बहुत उम्दा अभिव्यक्ति..सशक्त!!

    शहीद मोहन चन्द शर्मा जी को नमन एवं श्रृद्धांजलि!!!

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  11. वो इनसान नहीं हैवान हैँ

    आदम नहीं शैतान हैँ

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  12. ऐसी किसी भी घटना के समय मंज़र सचमुच बेहद दर्दनाक होता है. पर काश इस दर्द का अहसास वो भी कर पाते जो ऐसी हरकतों को अंज़ाम देते हैं.

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  13. rooh tak kaanp uthti hai aisa jab jab sunte hain
    dekhne walon ki halat ka bayan mushkil hai
    aur jinhone saha hai wo kya kabhi muskara paate hain pata nahi

    जवाब देंहटाएं
  14. यह इंसान नहीं हैं, शैतान हैं. इंसान प्रेम करता है और शैतान नफरत करता है.
    शर्मा जी को मेरा शत-शत नमन.

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  15. आपको पहली बार पढने का अवसर मिला है। आपकी रचना के तेवरों की प्रशंसा करनी होगी।

    शहीद मोहन चंद शर्मा को श्रद्धांजली..

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  16. बहुत दर्द नाक लिखी है आपने यह कविता एक वीर को सच्ची श्रदांजलि है यह ...

    इस दर्दनाक मंज़र को बनाने वालों
    आँखें तुम्हारी रोती क्यों नहीं?
    दिल तुम्हारा पसीजता क्यों नहीं?
    दिमाग तुम्हारा कुछ सोचता क्यों नहीं?
    तुम हर बार ऐसा करने से ठिठकते क्यों नहीं?

    लगता हैं
    तुम इंसान नहीं.....

    सच में इंसान कहलाने लायक नहीं है यह

    जवाब देंहटाएं
  17. इस दर्दनाक मंज़र को बनाने वालों
    आँखें तुम्हारी रोती क्यों नहीं?
    दिल तुम्हारा पसीजता क्यों नहीं?
    दिमाग तुम्हारा कुछ सोचता क्यों नहीं?
    तुम हर बार ऐसा करने से ठिठकते क्यों नहीं?

    लगता हैं
    तुम इंसान नहीं.....
    बिल्कुल सही कहा।

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत सटीक और सामयिक रचना, मर्मस्पर्शी भी.
    शहीद मोहन चंद शर्मा को श्रद्धांजली!

    जवाब देंहटाएं
  19. गुब्बारे बेचने वाली इस औरत की पुकार को
    हांफती, रोती, इधर-उधर तलाशती
    बस अपने बेटे को पुकार रही..
    no words just silence
    the thin line between wild and those who wanna live
    regards

    जवाब देंहटाएं
  20. शहीद मोहन चन्द शर्मा जी को नमन एवं श्रृद्धांजलि!!!

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  21. बहुत सटीक रचना,
    शहीद मोहन चंद शर्मा को श्रद्धांजली!

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  22. आतंकवाद कभी भी किसी के लिये अच्छा नही हो सकता ..आतंकवाद की कठोर से कठोरतम शब्दों में भर्त्सना की जानी चाहिये...... बहुत अच्छी प्रस्तुति.. बधाई

    जवाब देंहटाएं
  23. "bhut dardnak manjar ke abheevyktee, ek aise sach ko byan kertee jo na janee kitno ko ujjad gya hai"

    Regards

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  24. दर्द से सराबोर कर दिया आपने...
    पर वादा है मोहन जी की जान लेने वालों से... उन्होंने एक मारा है, लेकिन यहाँ हज़ार हैं...

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  25. भावों व यथार्त का सुन्दर चित्रण करती एक मार्मिक रचना..

    जवाब देंहटाएं
  26. शहीद के प्रति श्रद्धा स्वरूप यह लौ जलाए रखें हम ,नितांत आवश्यक है। किंतु, आवश्यक यह भी है कि इस लौ की लपट हर भारतीय को सचेत रखे, जागरूक रखे हर पल -आतंकवाद के विरुद्ध ।
    हमारे भीतर का सिपाही ज़िंदा रहे-अनन्त तक ।

    जवाब देंहटाएं
  27. अब तो दहशतगर्दों पर कलम चलाना भी शर्मनाक लगने लगा है।उन पर तो कोई भी असर होने से रहा।

    शहीद मोहन शर्मा जी को नमन!

    रचना अच्छी है। बधाई स्वीकारें।

    जवाब देंहटाएं
  28. इस दर्दनाक मंज़र को बनाने वालों
    आँखें तुम्हारी रोती क्यों नहीं?
    दिल तुम्हारा पसीजता क्यों नहीं?
    दिमाग तुम्हारा कुछ सोचता क्यों नहीं?
    तुम हर बार ऐसा करने से ठिठकते क्यों नहीं?

    सुशील कुमार छौक्कर जी, ऐसे लोगों के पास दिल हो तब तो पसीजे। जब ये खुदा से नहीं डरते और खुदा को ही बदनाम करते रहते हैं तो ये नीचे वालों की क्या खाक कद्र करेंगे।

    खैर, आज के ज्वलंत मुद्दे पर अच्छी कविता लिखने के लिए दिल से बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  29. सही बात आंतकवाद किसी के लिये अच्छा नही... मरते तो गरीब ही है... बहुत ही सुंदर और दर्दनाक रचना.. बधाई

    जवाब देंहटाएं

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