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कोमल बेल या मोढा [कविता] – मोहिन्दर कुमार

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बेटी व्याही, तो समझो गंगा नहाये
सुनकर लगा था कभी
जैसे कोई पाप पानी मे बहा आये

बचपन से क्षीण परिभाष्य
हर दर, हर ठौर, भारित आश्रय
एक कोमल बेल सी मान
हर पल एक मोंढ़ा* गढते
थक गई थी
अनदेखे
अनबूझे
अनचाहे
सहायक अवरोधों पर चढते चढते

फ़िर हुआ कन्या दान
एक पक्ष
अपने दायित्व से मुक्त
दूसरा पक्ष
धन और दो अतिरिक्त हाथों से युक्त

परन्तु क्या बदला है
घर
गांव
अडोस-पडोस
अवलम्बन
बाकी सब वही है
एक बेल को उखाड कर
दूसरी जगह रोपा
एक भार दूसरे को सोंपा
बेल पनपेगी,
पल्लवित होगी
पर कौन जाने
कितनी सबल बनेगी ?
क्या जनेगी ?
कोमल बेल
या
मोंढ़ा

उसी से उसका आंकलन होगा
देखें आज का दुल्हा कल क्या कहाता है
मुक्त रहता है, या गंगा नहाता है

(*मोढा = लकडी का सम्बल जो कोमल बेल को चढने के लिये लगाया जाता है)

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18 टिप्पणियाँ

  1. बहुत अच्छी कविता। एक बेटी के दर्द को अच्छा पकड़ा है आपने

    जवाब देंहटाएं
  2. परिपूर्ण कविता है।
    उसी से उसका आंकलन होगा
    देखें आज का दुल्हा कल क्या कहाता है
    मुक्त रहता है, या गंगा नहाता है

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर है यह आपकी रचना मोहिंदर जी

    जवाब देंहटाएं
  4. "bhut dil se likhe gye bhav hain, pr sach hai aaj ka dulha kya kehta hai ye ek sval hai"

    Regards

    जवाब देंहटाएं
  5. जब दिल से कोई बात निकलती है तो एसी ही कविता में परिणित हो जाती है..

    जवाब देंहटाएं
  6. इस कविता महसूस कर सका।

    जवाब देंहटाएं
  7. परन्तु क्या बदला है? इस सवाल का उत्तर पता नहीं कब मिलेगा।
    देखें आज का दुल्हा कल क्या कहाता है
    मुक्त रहता है, या गंगा नहाता है
    बहुत अच्छी कविता।

    जवाब देंहटाएं
  8. मोहिन्दर जी,

    आप वैसे भी कोमल भावनाओं के कुशल चितेरे हैं।
    इस कविता की कई पंक्तियाँ सीधे प्रहार करती हैं:

    "बेटी व्याही, तो समझो गंगा नहाये
    सुनकर लगा था कभी
    जैसे कोई पाप पानी मे बहा आये"

    "एक पक्ष
    अपने दायित्व से मुक्त
    दूसरा पक्ष
    धन और दो अतिरिक्त हाथों से युक्त"


    "बेल पनपेगी,
    पल्लवित होगी
    पर कौन जाने
    कितनी सबल बनेगी"

    "उसी से उसका आंकलन होगा
    देखें आज का दुल्हा कल क्या कहाता है
    मुक्त रहता है, या गंगा नहाता है"

    बेहद सशक्त रचना के लिये बधाई स्वीकारें।

    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  9. उसी से उसका आंकलन होगा
    देखें आज का दुल्हा कल क्या कहाता है
    मुक्त रहता है, या गंगा नहाता है

    बहुत अच्छी कविता। बधाई मोहिन्दर जी...

    जवाब देंहटाएं
  10. मोहिंदर जी ,
    कविता ने दिल को छू लिया. यह प्रसंग ही ऐसा है भावुक कर देने वाला. सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  11. कविता एक माध्यम है, मन की भावनाओं और सामाजिक विद्रूपताओं को व्यक्त करने का। आपकी यह कविता इस लिहाज से लाजवाब है। यह पंक्तियाँ तो बहुत ही सुन्दर हैं-

    उसी से उसका आंकलन होगा
    देखें आज का दुल्हा कल क्या कहाता है
    मुक्त रहता है, या गंगा नहाता है।

    बहुत-बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  12. देखें आज का दुल्हा कल क्या कहाता है
    मुक्त रहता है, या गंगा नहाता है



    मोहिंदर जी

    सुंदर प्रस्तुति..

    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  13. हमेशा के तरह.. रंग में हैं मोहिंदर जी... कितनी सरलता से कह गये आप अपनी बात..
    सशक्त और सार्थक कविता...

    जवाब देंहटाएं
  14. सुनकर लगा था कभी
    जैसे कोई पाप पानी मे बहा आये

    bahut hi sundar kavita.. waqai choo liya aap ne dil..khaas taur se ant jis tarah se kiya hai. us mein ek baap ki majbori, saamajik vyavastha par prashn, beti ki peeda..sab kuch hai...badi shaktishaali kavita...
    badhai se zyada main dhanyavaad dena chahungaa

    जवाब देंहटाएं
  15. काश !मोढ़ों की फ़सल को घुन लग जाए।
    मोहिंदर जी की कविता बेल- लताओं के लिये फूल सी और मोढ़ों के लिये शूल सिद्ध हो।
    इसी बलवती आशा के साथ ,

    प्रवीण पंडित

    जवाब देंहटाएं
  16. नमस्ते मोहिन्दर जी,
    आपकी कविता बहुत सुन्दर है। आपने एक बहुत ही नाज़ुक विषय को उठाया है। ये weblink भेजने के लिये धन्यवाद।

    सन्ध्या भगत
    अटलाँटा

    जवाब देंहटाएं

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