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चलो चाँद नापते हैं [कविता] – उपासना अरोरा

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चलो चाँद नापते हैं
तुम ज़रा सूरज वाली चलना
मैं ज़मीन की तरफ का सिरा पकड़ती हूँ
देखो आँखें ना भींच लेना रास्ते में
बहुत रोशनी है आगे
ज़रा सा रास्ता भूले तो किसी उल्का में फँस जाओगे
फिर मुझे सिरा पकड़ के उल्टा चलना पड़ेगा
कितना अच्छा हो ना कि उस वक़्त
तुम पीछे से आके मुझे चौंका दो!मैं सैय्यार की ज़मीन पे गिरते गिरते बचूँ
और तुम मुझे थाम के
चाँद कि ज़मीन पे बिठा दो
और फिर धुआँ हो जाए हर नाप--सिरा
कोई डोर ना बचे दरमियाँ……और फिर चाँद नापे
दूरियाँ हमारे बीच की
मगर सिरा ना ढूँढ पाए
कुछ ऐसे भी एक बार मोहब्बत करते हैं
चलो चाँद नापते हैं

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19 टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर सोच है। इस परिकल्पना में खो ही गया। भई खूब!

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  2. और फिर चाँद नापे
    दूरियाँ हमारे बीच की
    मगर सिरा ना ढूँढ पाए
    कुछ ऐसे भी एक बार मोहब्बत करते हैं
    चलो चाँद नापते हैं
    "ytharth se bhut dur ek anokhee kalpna, jo semmohet kertee hai, bhut he sunder, "

    Regards

    जवाब देंहटाएं
  3. धुआँ हो जाए हर नाप-ओ-सिरा
    कोई डोर ना बचे दरमियाँ……
    और फिर चाँद नापे
    दूरियाँ हमारे बीच की
    मगर सिरा ना ढूँढ पाए


    एक हसीन सपने से.....
    साक्षात्कार कराने के लियें ..

    आपका आभारी है मन.......

    बहुत सुंदर..

    बधाई..

    गीता पंडित

    जवाब देंहटाएं
  4. और फिर धुआँ हो जाए हर नाप-ओ-सिरा
    कोई डोर ना बचे दरमियाँ……
    और फिर चाँद नापे
    दूरियाँ हमारे बीच की
    मगर सिरा ना ढूँढ पाए
    कुछ ऐसे भी एक बार मोहब्बत करते हैं
    चलो चाँद नापते हैं

    जबरदस्त कल्पनाशक्ति है आपमें। रचना खूबसूरत बिम्बों से सजी है किंतु कोमल अनुभूति को पाठक तक संप्रेषित करने में पूर्णत: सक्षम:


    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  5. उपासना जी,

    यहां तो नापते नापते नपने वाली बात हो गई..प्यार में तो अकसर यही होता है..ढूंदने निकलते हैं और खुद खो जाते हैं.
    बढिया भाव भरी रचना

    जवाब देंहटाएं
  6. चलो चाँद नापते हैं
    तुम ज़रा सूरज वाली ओर चलना
    मैं ज़मीन की तरफ का सिरा पकड़ती हूँ
    देखो आँखें ना भींच लेना रास्ते में
    बहुत रोशनी है आगे
    बहुत सुन्दर और प्यारी सी कल्पना है। सुन्दर शब्द योजना और सुन्दर भावाभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  7. चलो चांद नापते है....
    पढी...
    एक बार .....
    दो बार्.....
    तीन बार.....
    ढूंढा..... सार
    विचार......
    व्यवहार....
    चांद ढूंढा....
    और तो और चांद नापने वालों को भी ढूंढा
    पर मुझे इस कविता में यह सब कुछ नहीं मिला...
    मुझे मिला... प्यार...
    प्यार की पुकार और और कल्पन अपार
    वास्तव में कविता हुई साकार...
    आपका ढेर सारा आभार....
    नमस्कार...
    सतकार....

    जवाब देंहटाएं
  8. वास्‍तव में सब
    कविता की उपासना
    में खो गए
    जैसे खोते हैं प्रेम में।

    यह भी न सोचा
    कि नापने चले थे चांद
    नापने लगे दूरी
    धरती से चांद की।

    चांद नापना
    आसान है क्‍या
    पहले उसका
    केन्‍द्र बिन्‍दु
    करना होगा ज्ञात
    फिर बनाना होगा
    व्‍यास एक खास
    नापी जाएगी दूरी
    हर दिल से कि
    चांद दिल के
    कितना पास है
    कितनी दूर है
    गणितीय होती हुई भी
    अगणितीय है यह प्रक्रिया
    देखना है कि
    कितने नापते हैं और
    नपते हैं कितने
    या नपता है चांद
    या धरती से चांद
    की दूरी
    पहले तलाश लो
    धुरी
    यह है बहुत
    जरूरी।

    जवाब देंहटाएं
  9. और तुम मुझे थाम के
    चाँद कि ज़मीन पे बिठा दो
    और फिर धुआँ हो जाए हर नाप-ओ-सिरा
    कोई डोर ना बचे दरमियाँ……
    और फिर चाँद नापे
    दूरियाँ हमारे बीच की
    मगर सिरा ना ढूँढ पाए
    कुछ ऐसे भी एक बार मोहब्बत करते हैं
    चलो चाँद नापते हैं




    बहुत खूब .गुल्ज़रिश अंदाज की ये नज़्म बहुत कुछ कह जाती है ओर बहुत कुछ अनकहा छोड़ जाती है.....

    जवाब देंहटाएं
  10. कुछ ऐसे भी एक बार मोहब्बत करते हैं
    चलो चाँद नापते हैं

    दिल की बात बखूबी कही है आपनें...

    जवाब देंहटाएं
  11. सुंदर कल्पना है! वैसे चाँद भी दूरियाँ कहाँ खोज पायेगा - पिय मेरे, मैं पीउ की, दोऊ भये एकरंग !
    बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  12. कुछ ऐसे भी एक बार मोहब्बत करते हैं
    चलो चाँद नापते हैं

    बहुत अच्छी कविता है।

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत ही सुंदर कविता... बहुत बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  14. इस रचना के बारे में क्या कहूँ।

    मूक हूँ , साथ हीं साथ मंत्रमुग्ध भी।

    ऎसा प्रयोग बिरले हीं देखने को मिलता है।

    बधाई स्वीकारें।

    जवाब देंहटाएं

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