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विकल्पहीन [लघुकथा] – सूरजप्रकाश


उस स्कूल की हैडमिस्ट्रेस रोज ही देखती है कि मिसेज मनचन्दा स्कूल का समय खत्म हो जाने के बाद भी स्कूल में ही बैठी रहती हैं और लाइब्रेरी वगैरह में समय गुजारती हैं। वे आती भी सबसे पहले हैं। बाकि अध्यापिकाएं तो जितनी देर से आती हैं उतनी ही जल्दी जाने की हड़बड़ी में होती हैं। अगर मैनेजमेन्ट ने हर अध्यापिका के लिये कम से कम पांच घण्टे स्कूल में रहने की शर्त न लगा रखी होती तो कई अध्यापिकाएं तो अपने दो तीन पीरियड पढ़ा कर ही फूट लेतीं।


मिसेज मनचन्दा ने हाल ही में यह स्कूल ज्‍वाइन किया है। वे सुन्दर हैं, जवान हैं और सबसे बड़ी बात, बाकि अध्यापिकाओं की तुलना में उनके पास डिग्री भी बड़ी है, बेशक वेतन उनका इतना मामूली है कि महीने भर आने जाने का ऑटोरिक्शा का भाड़ा भी न निकले।


आखिर पूछ ही लिया प्रधानाध्यापिका ने उनसे।


मिसेज मनचन्दा ने ठण्डी सांस भर कर जवाब दिया है - आपका पूछना सही है। दरअसल मेरा घर बहुत छोटा है, एक ही कमरे का मकान। उसी में हमारे साथ रिश्ते का हमारा जवान देवर रहता है। रात पाली में काम करता है. मेरे पति शाम सात बजे तक ही आ पाते हैं लेकिन देवर सारा दिन घर पर रहता है। अब मैं कैसे बताऊं कि सारा दिन घर से बाहर रहने के लिये ही ये नौकरी कर रही हूं। बेशक इस नौकरी से मेरे हाथ में एक भी पैसा नहीं आता, फिर भी किसी तरह के दैहिक शोषण की आशंका से बची रहती हूं। न सही दैहिक शोषण का डर, सारा दिन उस निठल्ले की चाकरी तो नहीं बजानी पड़ती। घर पर उनकी मौजूदगी में तो मैं घड़ी भर लेट कर कमर तक सीधी करने की कल्पना नहीं कर पाती।

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23 टिप्पणियाँ

  1. बिल्‍कुल दुरुस्‍त नजरिया है सूरजप्रकाश जी
    चाकरी बजाना भी दैहिक शोषण का ही एक
    परोक्ष पहलू है, पर प्रत्‍यक्ष पहलू से कम
    जोखिम भरा है।

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  2. एक सांस में कहानी पढी फिर कई दीर्घ स्वांसे लेनी पडी।

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  3. चलिए पंकज सक्‍सेना जी
    इस बहाने योग ही हो गया।

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  4. सूरज जी,

    सशक्त लघू कथा है... मानव की संकीर्ण मानसिकता, अपने स्वार्थ के द्वंद और दूसरों के प्रति अपने द्वारा पूर्वनिर्धारित नजरीये को उजाकर करती हुई.. आभार

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  5. बहुत सधी हुई लघु कथा के लिये आप बधाई के पात्र हैं... इस मंच पर आपको पढना और भी ज्यादा सुखद है....

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  6. आदरणीय सूरजप्रकाश जी की कहानियों को पढना एक अलग ही किस्म का अनुभव है। इतनी छोटी सी कहानी में भी शब्द शब्द के साथ बडी जिज्ञासा बढती गयी और अंत के साथ उतना ही मन संवेदिन भी हुआ।

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  7. bhai baDee hoshiyaar hain mrs. manchanda aur baDe bhaagyashaalee hain school vaale . par ab devar school kholane nikal paDenge .

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  8. नपे-तुले शब्दों में बहुत कुछ कह गये...
    पढ कर अच्छा लगा....

    आभार ||

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  9. chakri bajana bhi waqyi shoshan jaisa hi hai

    ek saans mein padhi kahani aur fir dubara padhi
    bhaut achhe shabdon ke saath aapne baat ko bhaut kam shabdon mein pahuchaya hai

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  10. वर्तमान दौर के सामान्य शहरी नागरिकों की समस्याओं और मानसिक संकीर्णता को बहुत कम शब्दों में अभिव्यक्त करने में कहानी सक्षम रही है. बधाई स्वीकारें!

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  11. कहानी सोचने पर मज़बूर करती है।

    बधाई स्वीकारें।

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  12. सूरज जी
    इतनी छोटी कथा मैं आपने इतना कुछ कह दिया की क्या कहूँ. लाजवाब. बहुत सुंदर.

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  13. laghu katha aam taur par ek hi disha mein chaltee hai aur us ka swar aarambh ki panktiyo mein samajh aa jata hai. itne kam shabdo mein kahani ko ek mod dena bada mushkil kaam hai jo aap ne bakhubi kiya ..aur maslaa bhi acha chuna. aage bhi umeed hai..
    Divyanshu

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  14. बहुत अच्छी कहानी। नारी सरोकारों और उसके मन को सूरज जी नें बखूबी समझा व प्रस्तुत किया।

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  15. अंत में संवेदनाएँ उमड़ आईं... बहुत ही अच्छी तरह अपनी बात कही है सूरज जी... बहुत बहुत धन्यवाद सुंदर और सार्थक साहित्य सृजन के लिए !

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  16. ओSS ह- इतने कम शब्दों मे कही गयी बात ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही।
    पठन के बाद अब मनन कर रहा हूं।

    प्रवीण पंडित

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  17. कामकाजी महिलाओं की स्थिति का सही चित्रण किया आपने ...बधाई

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