
’दुनिया’
मेरे लिए एक छोटा रहस्य है।
दुनिया को जानने का कौतुहूल
जरूर बना रहा मन में
किंतु ‘माँ’ को जानकर
जाना जा सकता है
आसानी से इस ‘संसार’ को
यह बहुत देर में जाना.....
छोटी सी थी तो देखती....
माँ को बडे धैर्य से....
बडी शांति से वह संवार देती थी
’घर और जीवन’ की हर बिगडी चीज को
बिना माथे पर शिकन लाए
गाती गुनगुनाती सहजता से
सब्जी मे भूले से
ज्यादा नमक डल जाने पर
सोख लेती थी उसका ‘सारा खारापन’
सहजता से, आटे की पेडी डाल उसमें....
अधिक डली हल्दी के बदरंग और स्वाद
की ही तरह....
ठीक कर लेती थी
संबधों और परिस्थितियों के भी
बिगडे रंग और स्वाद...
चाय मे अधिक चीनी हो
या फिर फटा दूध
या कि स्वेटर बुनते हुए
असावधानी वश सलाई से छूट गया ‘फन्दा’
(गिरे हुये घर को)
कैसे आसानी से उठा लेती थी ‘माँ’
वह गिरा हुआ फन्दा
कैसे सहेजता से, बुनाई – सिलाई के झोल की
ही तरह
निकाल लेती थी
जीवन के भी सारे झोल.....
हम तो घबरा उठते हैं
छोटी छोटी मुश्किलों में....
छोड देते हैं धैर्ये.....
चुक जाती है शक्ति.....
शायद ‘माँ’ होना
अपने आप मे ही ‘ईश्वरीय शक्ति’
का होना है।
16 टिप्पणियाँ
ठीक कर लेती थी
जवाब देंहटाएंसंबधों और परिस्थितियों के भी
बिगडे रंग और स्वाद...
चाय मे अधिक चीनी हो
या फिर फटा दूध
या कि स्वेटर बुनते हुए
असावधानी वश सलाई से छूट गया ‘फन्दा’
(गिरे हुये घर को)
कैसे आसानी से उठा लेती थी ‘माँ’
आपने ठीक कहा कि माँ होना अपने आप मे ही ‘ईश्वरीय शक्ति’ का होना है।
सुन्दर रचना है।
जवाब देंहटाएंpaas men leta/leti abodh, mutthiyan baandh, aankhen band
जवाब देंहटाएंkar kasmasata laal kisi bhi aakar ko aapki ichhanusaar leta par man
mastishk se srvatha... bhinn ! kyonki
vah kisi aur ka bhee hai ...ka srjn
kar aamool parivartit hui nari ..manavta ke liye svsukhon,moolyon ko badalti tyagmayee moorat ma hai .
vahi to jaanti hai hatheli ki 5 alag alag ungliyon ki mutthi kaisi bandhi jae ? rasayan shastr me dhatuon ki pratikriya , vividh amlon aur ksharon se vividh yaugik lavan, gas aur paani ka vichched karti hain. her pratikriyatmak padarth bhinn rang gun ka hota hai par.. MA ? vah mool dhatu ek hi hoti hai !
dekhiye yah eeshvar ki rchna jo ma hai poojaneey hai vandaneey hai kyonki us ke bina srujan adhoora hai.
khoob kaha aap ne !
shubh kamnaen!
मीनाक्षी जी,
जवाब देंहटाएंसाहित्य शिल्पी पर आपको देख कर प्रसन्नता हुई।
माँ पर आपकी कविता बहुत अच्छी है। बधाई.....
जीवन के भी सारे झोल.....
जवाब देंहटाएंहम तो घबरा उठते हैं
छोटी छोटी मुश्किलों में....
छोड देते हैं धैर्ये.....
चुक जाती है शक्ति.....
शायद ‘माँ’ होना
अपने आप मे ही ‘ईश्वरीय शक्ति’
का होना है।
सुन्दर अभिव्यक्ति।
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंअनुभूति और
फिर अभिव्यक्ति
रची बसी है
मां में ही
समूची शक्ति।
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंअनुभूति और
फिर अभिव्यक्ति
रची बसी है
मां में ही
समूची शक्ति।
शायद ‘माँ’ होना
जवाब देंहटाएंअपने आप मे ही ‘ईश्वरीय शक्ति’
का होना है।
जबरदस्त रचना है मीनाक्षी जी, आपकी रचनाशैली प्रभावी है।
***राजीव रंजन प्रसाद
मीनाक्षी जी
जवाब देंहटाएंमाँ पर सारगर्भित और भावभीनी रचना के लिए .
आभार. आपकी रचना पढ़ कर माँ से जुड़ी कितनी ही यादें ताजा हो गयी.
’दुनिया’
जवाब देंहटाएंमेरे लिए एक छोटा रहस्य है।
दुनिया को जानने का कौतुहूल
जरूर बना रहा मन में
किंतु ‘माँ’ को जानकर
जाना जा सकता है
आसानी से इस ‘संसार’ को
छोटी छोटी मुश्किलों में....
छोड देते हैं धैर्ये.....
चुक जाती है शक्ति.....
शायद ‘माँ’ होना
अपने आप मे ही ‘ईश्वरीय शक्ति’
का होना है।
मीनाक्षी जी ! आपने ठीक कहा....
सुन्दर अभिव्यक्ति।
बधाई.....
माँ पर पढी हुई सबसे अच्छी कविताओं में मैं इसे शामिल करता हूँ।
जवाब देंहटाएंबहुत सच्ची और अच्छी रचना !
जवाब देंहटाएंमीनाक्षी जी! इस विषय पर कुछ भी कहना मेरी सामर्थ्य से बाहर है. बस आभार स्वीकारें!
जवाब देंहटाएंमाँ पर रची गयी यह रचना मन में रह गयी। बहुत सी यादें हरी कर दी आपनें।
जवाब देंहटाएंsweater bunne ka udaaharan bahut achaa raha.. main bhi bachpan mien dekha karta tha ki kis tarah do salai aur oon se poora sweater bana deti hai maan.. :-) vyakti bhale hi badal jaye par maan har vyakti mein ek hi si hoti hai..
जवाब देंहटाएंsundar kavita.
badhai
Divyanshu
माँ शब्द हीं अपने-आप में एक रचना है।
जवाब देंहटाएंआपने तो इतनी बड़ी भावपूर्ण रचना लिख डाली है।
बधाई स्वीकारें।
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.