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यह जमीं है गाँव की [कविता] - योगेश समदर्शी



गौर से देखो इसे और प्यार से निहार लो
आराम से बैठो यहाँ पल दो पल गुजार लो
सुध जरा ले लो यहाँ पर एक हरे से घाव की
कि यह जमीं है गाँव की, हाँ ये जमीं है गाँव की..

कुल कुनबा और कुटुम का अर्थ बेमानी हुआ
ताऊ चाचा खो गये सब, खो गई बड़की बुआ
गाँव भर रिश्तों की कैसी डोर में ही था बँधा
जातियों का भेद रिश्तों की तराजू था सधा
याद है अब तक धीमरों के कुएं की छाँव की
कि यह जमीं है गाँव की, हाँ ये जमीं है गाँव की..

आपसी संबंधों के चौंतरों पर बैठ कर
थे सभी चौडे बहुत ही रौब से कुछ ऐंठ कर
था नही पैसा बहुत और न अधिक सामान था
पर मेरे उस गाँव में सबका बहुत सम्मान था
माँग कर कपडे बने बारातियों के ताव की..
कि यह जमीं है गाँव की, हाँ ये जमीं है गाँव की..

गाँव का जब से शहर में आना जा हो गया
गाँव का हर आदमी अब खाना खाना हो गया
सैंकडों बीघे का मालिक गाँव का अपना ही था
तनख़्वाह के चक्कर मे रामू शहर में है खो गया
बात करनी है मुझे उस दौर के ठहराव की..
कि यह जमीं है गाँव की, हाँ ये जमीं है गाँव की...

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29 टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही सुंदर कविता... गाँव की याद ताजा हो गई... बधाई

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  2. कुल कुनबा और कुटुम का अर्थ बेमानी हुआ
    ताऊ चाचा खो गये सब, खो गई बड़की बुआ
    गाँव भर रिश्तों की कैसी डोर में ही था बँधा
    जातियों का भेद रिश्तों की तराजू था सधा
    याद है अब तक धीमरों के कुएं की छाँव की
    कि यह जमीं है गाँव की, हाँ ये जमीं है गाँव की..

    बहुत ख़ूब...अच्छे भाव हैं...

    जवाब देंहटाएं
  3. योगेश जी,


    आप न केवल मिट्टी से अपने अंतर्तम से जुडे हैं अपितु आपकी जनवादी सोच प्रभावी है। आप गहराई से विषय में उतरते हैं यह कविता इसका एक बेहतरीन उदाहरण है। कुछ पंक्तियाँ तो एसी हैं कि कोई भी अपने गाँव पहुँच कर रहेगा:


    "कुल कुनबा और कुटुम का अर्थ बेमानी हुआ
    ताऊ चाचा खो गये सब, खो गई बड़की बुआ"

    "था नही पैसा बहुत और न अधिक सामान था
    पर मेरे उस गाँव में सबका बहुत सम्मान था
    माँग कर कपडे बने बारातियों के ताव की..
    कि यह जमीं है गाँव की, हाँ ये जमीं है गाँव की.."


    "सैंकडों बीघे का मालिक गाँव का अपना ही था
    तनख़्वाह के चक्कर मे रामू शहर में है खो गया
    बात करनी है मुझे उस दौर के ठहराव की.."


    अंतिम पंक्तियों में आपकी पीडा स्पष्ट दिखती है और आपका आक्रोश भी जो ठहराव की बात करने की आड में छुपा हुआ है।

    ***राजीव रंजन प्रसाद

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  4. umdaa baat kahi...
    javed akhtar saahab ka ek samvad hai "barf ka muqaddar hai apne paani mein pighal kar rah jaana"..jis ki paidaish gaon athwa chotey shaharo ki hai, wo bade shaharo mein jaa kar apna paani khojta rahta hai..gaon ek bimb hai.. bhavarth to apni mitti se hai.. jahaan humara bachpan beeta, har dooja shakhs koi rishtedaar tha.. ye sab ab bade shaharo mein dekhne ko nahi milta..
    is vyatha ko achey shabdo mein kaha aapne..
    khaleel Dhantejvi sahab ka sher yaad aa raha hai
    "ab main raashan kii kataaron men nazar aataa huuN
    apane kheton se bichhaDane kii sazaa paataa huuN "

    जवाब देंहटाएं
  5. dar-asal aakhiri 4 panktiyaan mujhe khaas pasand aa gayee to unhi ki baat karta rah gaya.. :-)

    ye panktiyan bhi bahut jami....
    ताऊ चाचा खो गये सब, खो गई बड़की बुआ
    गाँव भर रिश्तों की कैसी डोर में ही था बँधा

    main mahsoos karta hu ise.. tah-e-dil se..

    जवाब देंहटाएं
  6. गाँव पहुच गया हूँ, यादें सँजो ली हैं और आँख नम हो गयी है।

    जवाब देंहटाएं
  7. गाँव की मिट्टी और पुरानी यादें। योगेश जी की इस कविता में सब के अहसास हैं।

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  8. योगेश जी,

    अधिकतर लोग जो आज शहरों में आ बसे हैं उनकी जडें गांव में ही हैं.. सिर्फ़ रोजी रोटी ने मिट्टी से दूर कर दिया है... आपकी रचना पढ कर फ़िर से सपनों की गांव में पंहुच गये.

    सुन्दर पोस्टरों ने कविता का मजा दूगना कर दिया.
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. गाँव का जब से शहर में आना जा हो गया
    गाँव का हर आदमी अब खाना खाना हो गया
    सैंकडों बीघे का मालिक गाँव का अपना ही था
    तनख़्वाह के चक्कर मे रामू शहर में है खो गया
    बात करनी है मुझे उस दौर के ठहराव की..
    कि यह जमीं है गाँव की, हाँ ये जमीं है गाँव की...

    ये पंक्तियाँ आपकी प्रस्तुति में प्राण हैं।

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  10. आपसी संबंधों के चौंतरों पर बैठ कर
    थे सभी चौडे बहुत ही रौब से कुछ ऐंठ कर
    था नही पैसा बहुत और न अधिक सामान था
    पर मेरे उस गाँव में सबका बहुत सम्मान था
    माँग कर कपडे बने बारातियों के ताव की..
    कि यह जमीं है गाँव की, हाँ ये जमीं है गाँव की..
    वाह! बहुत अच्छा लिखा है। गाँव को साकार कर दिया। चित्र भी गज़ब है और उसपर लिखी कविता तो सोने में सुहागा। कवि तथा साहित्य शिल्पी को बधाई।

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  11. "गाँव का जब से शहर में आना जा हो गया
    गाँव का हर आदमी अब खाना खाना हो गया
    सैंकडों बीघे का मालिक गाँव का अपना ही था
    तनख़्वाह के चक्कर मे रामू शहर में है खो गया
    बात करनी है मुझे उस दौर के ठहराव की..
    कि यह जमीं है गाँव की, हाँ ये जमीं है गाँव की..."

    क्या बात कही है,आपने.रचना की सभी पंक्तियों ने मन बाँध लिया.बहुत बहुत सुंदर कविता रची है आपने और एक ऐसे सत्य/पीड़ा को उकेर गए कि क्या कहूँ...bhaavpoorn manmohak kavita ke liye aabhaar

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  12. सच ही कहा है आपने कैसे देखते-देखते गाँव घर बदल गए है और बदलते ही जा रहे है।

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  13. गाँव भर रिश्तों की कैसी डोर में ही था बँधा
    जातियों का भेद रिश्तों की तराजू था सधा


    सैंकडों बीघे का मालिक गाँव का अपना ही था
    तनख़्वाह के चक्कर मे रामू शहर में है खो गया
    बात करनी है मुझे उस दौर के ठहराव की..


    गाँव के दर्शन करवा दिये आपने..गाँव साकार हो उठा है आपकी रचना में..वहाँ के सुख-दुख,बहुत अच्छी तरह से उकेरे हैं आपकी लेखनी ने...


    बहुत खूब......

    बधाई

    चित्रों ने भी मन-मोह लिया
    साहित्य-शिल्पि को भी बधाई


    स-स्नेह
    गीता पंडित

    जवाब देंहटाएं
  14. बडे भईया, बहुत सुन्दर, कविता है, जो आपके अन्दर के रूप को भलिभाँति प्रतिबिम्बित करती है... simply Good Good :)

    जवाब देंहटाएं
  15. ''गाँव का जब से शहर में आना जाना हो गया
    गाँव का हर आदमी अब खाना खाना हो गया
    सैंकडों बीघे का मालिक गाँव का अपना ही था
    तनख़्वाह के चक्कर मे रामू शहर में है खो गया
    बात करनी है मुझे उस दौर के ठहराव की..
    कि यह जमीं है गाँव की, हाँ ये जमीं है गाँव की...''

    भाई, मन की व्‍यथा कह दी आपने। इस संवेदनशील रचना के लिए हृदय से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  16. सजीव कविता लिखी है आपने योगेश जी .. अंतर्मन की पीड़ा को बखूबी काग़ज़ पर उतारा आपने... एक सच्ची कविता के लिए शुक्रिया...

    जवाब देंहटाएं
  17. गाँव का जब से शहर में आना जा हो गया
    गाँव का हर आदमी अब खाना खाना हो गया
    सैंकडों बीघे का मालिक गाँव का अपना ही था
    तनख़्वाह के चक्कर मे रामू शहर में है खो गया
    बात करनी है मुझे उस दौर के ठहराव की..
    कि यह जमीं है गाँव की, हाँ ये जमीं है गाँव की

    gaanv ki zameen ko aur unki soch aur vichar dincharya ko shabdn main aise bandha hai padh kar jaise gaanv hi pahunch gaye ho

    aapki rachna ki khasiyat yahi hai ki wo dil tak jaati hai

    जवाब देंहटाएं
  18. गाँव का जब से शहर में आना जा हो गया
    गाँव का हर आदमी अब खाना खाना हो गया

    क्या बात है, योगेश जी..

    आपने तो मुझे अपने गाँव की याद दिला दी।

    सराहनीय रचना। दिल से बधाई स्वीकारें।

    ऐसे ही लिखते रहें, यही दुआ है।

    जवाब देंहटाएं
  19. कितना बड़ा सच कहा
    गाँव का जब से शहर में आना जा हो गया
    गाँव का हर आदमी अब खाना खाना हो गया
    सैंकडों बीघे का मालिक गाँव का अपना ही था
    तनख़्वाह के चक्कर मे रामू शहर में है खो गया

    जवाब देंहटाएं
  20. सैंकडों बीघे का मालिक गाँव का अपना ही था
    तनख़्वाह के चक्कर मे रामू शहर में है खो गया
    बात करनी है मुझे उस दौर के ठहराव की..
    कि यह जमीं है गाँव की, हाँ ये जमीं है गाँव की...

    इन पंक्तियों में बहुत हीं गहरी बात कही गई है।
    गाँव की यादें कुछ ऎसी हीं होती हैं।

    बधाई स्वीकारें।

    जवाब देंहटाएं
  21. योगेश जी! सचमुच एकबारगी तो आपने फिर से गाँव में ही पहुँचा दिया. वैसे अब गाँव भी बहुत बदल गये हैं, इस बात का दुख भी आपकी कविता ने हरा कर दिया. बधाई इस सुंदर रचना के लिये!

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  22. गांव अब गांव कहां रह गये हैं
    दिलों के भीतर शहर हो गये हैं

    हम दोपहर दो पहर सो गये हैं
    संबंध सारे कड़वे जहर हो गये हैं

    बहुत सुंदर भाव, अभिव्‍यक्ति भी जानदार। जो अच्‍छा लगता है उस पर चंद लाईनें स्‍वयमेव मानस में आ जाती हैं।

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  23. तनख़्वाह के चक्कर मे रामू शहर में है खो गया
    बहुत सुंदर।

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  24. kya baat hai muja aa gya
    aaz kafi dino baad laga kuchh toh hai az ki generation me bhi

    जवाब देंहटाएं
  25. behatareen kavita.sahar se gawon ko dekhne kee ki yah adda dil ko bha gayee.
    waise main gawan se gawan ko dekhne kee koshish kar raha hun.kuch wahee chiz mujhe bhee dikhaee deti hai jo aapne is kavita me dekhi hi.yah itefak asar kar gaya.
    apko badhaee.

    जवाब देंहटाएं
  26. बहुत अच्छी गांवों की महिमा का बयान किया है जी

    जवाब देंहटाएं
  27. .. वाह इतना सजीव चित्रण बहुत ही अच्छी कविता लिखी आपने बस पढ़ते ही गांव की गलियों में पहुंच गई

    जवाब देंहटाएं

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