उम्र भर तड़पे सहर के वास्ते
बिक गये जो एक घर के वास्ते।
वो परिंदा कब तलक लड़ता भला
था कफ़स में उम्र भर के वास्ते।
घिस गया माथा दुआ करते हुए
उम्र भर तड़पे असर के वास्ते।
मेरे मौला रात लंबी खत्म कर
अब उजाला कर सफ़र के वास्ते।
कितने बदले हैं किराए के मकान
छ्त्त बना पाये न सर के वास्ते।
हम तो हैं बस मील के पत्थर ख्याल
जिंदगी है रहगुजर के वास्ते।
22 टिप्पणियाँ
सतपाल जी बहुत अच्छी गज़ल है, विशेषकर ये शेर:
जवाब देंहटाएंउम्र भर तड़पे सहर के वास्ते
बिक गये जो एक घर के वास्ते।
कितने बदले हैं किराए के मकान
छ्त्त बना पाये न सर के वास्ते।
हम तो हैं बस मील के पत्थर ख्याल
जिंदगी है रहगुजर के वास्ते।
बधाई स्वीकारें।
***राजीव रंजन प्रसाद
मेरे मौला रात लंबी खत्म कर
जवाब देंहटाएंअब उजाला कर सफ़र के वास्ते।
कितने बदले हैं किराए के मकान
छ्त्त बना पाये न सर के वास्ते।
bahut sunder
हम तो हैं बस मील के पत्थर ख्याल
जवाब देंहटाएंजिंदगी है रहगुजर के वास्ते।
बहुत बढ़िया गजल.
बहुत ही बढिया गजल है।बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंहम तो हैं बस मील के पत्थर ख्याल
जवाब देंहटाएंजिंदगी है रहगुजर के वास्ते...
bhavapoorn gagal ke dhanyawad. badhai.
वाह! वाह! क्या शेर कहे हैं जनाब
जवाब देंहटाएंउम्र भर तड़पे सहर के वास्ते
बिक गये जो एक घर के वास्ते।
बहुत खूब...
घिस गया माथा दुआ करते हुए
उम्र भर तड़पे असर के वास्ते।
वाह! वाह! गजब का शेर है जनाब
कितने बदले हैं किराए के मकान
छ्त्त बना पाये न सर के वास्ते।
वास्तविकत से रूबरू कराता हुआ हर शेर आप बधाई के पात्र हैं
कितने बदले हैं किराए के मकान
जवाब देंहटाएंछ्त्त बना पाये न सर के वास्ते।
टोपी खरीद ली होती ?
यह कम नहीं है कि रह रहे हैं किराए के घर में
कम नहीं हैं जो रह रहे हैं फुटपाथ पर शहर में
'घिस गया माथा दुआ करते हुए
जवाब देंहटाएंउम्र भर तड़पे असर के वास्ते।'
बहुत ख़ूब सतपाल जी। बहुत ही ख़ूब!
इतनी अच्छी ग़ज़ल पढ़वाने के लिये राजीव जी को भी हार्दिक धन्यवाद।
घिस गया माथा दुआ करते हुए
जवाब देंहटाएंउम्र भर तड़पे असर के वास्ते।
मेरे मौला रात लंबी खत्म कर
अब उजाला कर सफ़र के वास्ते।
हम तो हैं बस मील के पत्थर ख्याल
जिंदगी है रहगुजर के वास्ते।
सतपाल जी ! बहुत अच्छी गज़ल...
बधाई ।
घिस गया माथा दुआ करते हुए
जवाब देंहटाएंउम्र भर तड़पे असर के वास्ते।
badhiyaa baat kahi satpal saahab...ek halki fulki magar goodh artho wali ghazal... shukriya..:-)
वाह सतपाल जी कमाल की गज़ल है। बस तींस शेरों में उम्र का रिपीट होना खटकता है। गजल बहुत अच्छी है।
जवाब देंहटाएंसतपाल जी! ज़िंदगी से जुड़ी बातों को बहुत सादगी से मुख्तलिफ़ अशआर में पिरोया है आपने. हाँ, एक ही गज़ल में ’उम्र भर तड़पे’ का दोबारा प्रयोग, गज़ल की खूबसूरती को कम करता लगा.
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा गजल प्रस्तुत की है, वाह!!!
जवाब देंहटाएंउम्र भर तड़पे सहर के वास्ते
बिक गये जो एक घर के वास्ते।
बहुत अच्छी प्रस्तुति है। गज़ल पर आपकी पकड बहुत अच्छी प्रतीत होती है, आपके निजी ब्ळॉग पर भी आपकी रचनायें पढ कर यह तो कहा ही जा सकता है। इस गज़ल के कई शेर बहुत अच्छे बन पडे हैं।
जवाब देंहटाएंअच्छी गज़ल।
जवाब देंहटाएंसतपाल जी,
जवाब देंहटाएंछोटे बहर की खूबसूरत गजल के लिये बधाई. गहरी बातें साफ़ सहज लफ़्जों में कह देना एक बहुत बडी खासियत है इस गजल की
बहुत ही अच्छी गज़ल...बधाई
जवाब देंहटाएंकितने बदले हैं किराए के मकान
जवाब देंहटाएंछ्त्त बना पाये न सर के वास्ते।
टोपी खरीद ली होती ?
यह कम नहीं है कि रह रहे हैं किराए के घर में
कम नहीं हैं जो रह रहे हैं फुटपाथ पर शहर में
itne khoobsurat comment ke liye aabhaari hooN. aane wale samay me ho sakta hai topian hi khariidnee paRe.Kaho to ek aapke liye bhi khreed ke rakh looN.
Thanks again.
dil khush ho gaya
जवाब देंहटाएंkeep it up !
उम्दा गज़ल है। रदीफ़, काफ़िया दुरूस्त है। बहर के बारे में बता नहीं सकता(अभी सीख रहा हूँ)
जवाब देंहटाएंपंकज सक्सेना जी की बात पर ध्यान दीजियेगा।
बधाईयाँ।
बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल--हर शेर नायाब ।
जवाब देंहटाएंसतपाल जी ! मील का पत्थर कोई यूं ही नहीं बन जाता
प्रवीण पंडित
घिस गया माथा दुआ करते हुए
जवाब देंहटाएंउम्र भर तड़पे असर के वास्ते।
satpal ji aapki gazal ko padhne ka to hamesha hi intezaar rahta hai
kisi ek sher ko achha kahana mushkil hai magar jaise ye sher yaad hi ho gaya ho nazren tik gayi ho
dua main asar bhi hota hai suna to tha
jane kyu meri dua puri nahi hoti
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