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पूर्णिमा वर्मन को जयजयवंती सम्‍मान [विशेष प्रस्‍तुति] - संगीता मनराल

हिन्दी अभी भी बहुत पीछे है, जैसे यदि विकीपीडिया में सभी रोज़ कुछ ना कुछ रचनात्मक योगदान करें तो हम हिन्दी को बेहतरी की ओर तेजी से ले जा सकते हैं। 11 सितम्‍बर 2008 को सांय भारत की राजधानी नई दिल्ली स्थित इंडिया हैबीटेट सेंटर में संपन्न जयजयवंती सम्मान से सम्मानित होने वाली इंटरनेट पर अभिव्यक्ति और अनुभूति पत्रिकाओं के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार और संवर्धन में निरंतर संलग्न बहुमुखी प्रतिभा की धनी हिन्दी हितैषी माननीया पूर्णिमा वर्मन जी ने यह उद्गार व्यक्त किए। उन्होंनेँ अपने छोटे से वक्तव्य में सभागार में मौजूद हर जन को भाव विह्वल कर दिया। समारोह का सफल संचालन प्रख्यात कवि डॉ. अशोक चक्रधर और प्रवासी संसार पत्रिका के संपादक श्री राकेश पांडेय ने किया। कार्यक्रम की भव्य शुरूआत मुख्य अतिथि काग़्रेस के युवा सांसद श्री नवीन जिन्दल, वरिष्ठ सांसद श्री सत्यव्रत शास्त्री, श्रीमती पूर्णिमा वर्मन, श्री अशोक चक्रधर, श्रीमती बागेश्री चक्रधर के द्वारा किए गए दीप प्रज्ज्वलन से हुई,तदुपरांत जयजयवंती की संगीत छात्राओं ने अपना समूह गान प्रस्‍तुत किया। जयजयवंती – हिन्दी संगोष्ठी (हिन्दी का भविष्‍य और भविष्य की हिन्दी) पावन उद्देश्य को लेकर पिछले एक वर्ष से सफलतापूर्वक चलाई जा रही है और हिन्दी के विविध पहलुओं के विकास के लिए उल्लेखनीय कार्य कर रही है।
पूर्णिमा वर्मन जी की अंतर्जाल पर लोकप्रियता का आलम यह है कि सभागार दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था। जिनमें सर्व/श्री पद्मश्री वीरेन्द्र प्रभाकर, अरविन्द कुमार, राहुल देव, वी के मल्होत्रा, प्रेम जनमेजय, बालेन्दु दाधीच, जैनेन्द्र कर्दम, मनोहर पुरी, विजेन्द्र विज, वर्तिका नंदा , डॉ. जगदीश व्योम, राजीव कुमार, आशीष भटनागर, अविनाश वाचस्पति, राजीव तनेजा, सुशील कुमार , पुष्कर पुष्प, उमाशंकर मिश्र, पायल शर्मा इत्यादि के नाम उल्‍लेखनीय हैं। इस अवसर पर श्री अशोक चक्रधर की जयजयवंती समारोह की एक वर्ष की मल्टी मीडिया प्रस्तुति ने सबका मन मोह लिया।
सांसद नवीन जिन्दल ने अपने संबोधन में महाराष्ट्र में हिन्दी को लेकर हो रही राजनीति पर चिंता प्रकट की। सांसद सत्यव्रत शास्त्री ने हिन्दी से जुड़ी हुई अपनी यादों को ताजा किया, जिसमें उपस्थित जनमानस आकंठ डूब गया।
माननीया पूर्णिमा वर्मन को यदि अंतर्जाल जगत में हिन्दी का पुरोधा कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। पूर्णिमा जी की अंतर्जाल पत्रिकाओं अभिव्यक्ति और अनुभूति की खासियत यह है कि इसका संपादन एक देश में होता है, तो डिजायनिंग का कार्य दूसरे देश और टाइपिंग का कार्य तीसरे देश में। इसके रचनात्मक सहयोगी और पाठक पूरे विश्व में व्याप्त हैं।
विकीपीडिया से जुड़ने के लिए पूर्णिमा वर्मन का हर हिंदी भाषी से खुला आह्ववान है और वे हिंदी हित संधान के लिए सदैव तत्‍पर रहती हैं। उनसे संपर्क करने के लिए अभिव्‍यक्ति और अनुभूति के लिंक नीचे दिए गए हैं :-

http://www.anubhuti-hindi.org/
http://www.abhivyakti-hindi.org/

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20 टिप्पणियाँ

  1. बधाई पूर्णिमा जी को..
    योग्यता का सम्मान करना कोई अशोक चक्रधर जी से सीखे.
    खैर..
    पुनः बधाई...

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  2. पूर्णिमाजी को हमारी भी बधाई!

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  3. पूर्णिमा जी को मेरे तरफ से भी ढेरो बधाई :)

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  4. पूर्णिमा जी को बहुत बहुत बधाई... आपके कार्यों को नमन भी !

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  5. पूर्णिमा जी को हार्दिक बधाई।

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  6. पूर्णिमा जी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं.

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  7. पूर्णिमा जी को हार्दिक शुभकामनायें! एक अच्छी रिपोर्ट के लिये संगीता मनराल जी का आभार!

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  8. संगीता जी संगोष्ठियों का संगीत ऐसे ही बजता रहना चाहिये।

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  9. पूर्णिमा जी,
    नये सम्मान के लिये बहुत बहुत बधाई

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  10. पूर्णिमा जी,
    विदेश की धरती से हिन्दी का परचम लहराने के लिये आप धन्य हैं. निश्चय ही सम्मान और चिन्हित होना किसी भी क्षेत्र में कार्य करने के सफ़ूर्ति भर देता है. आपको जयजयवंती सम्मान के लिये हार्दिक बधाई.

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  11. सच में पूर्णिमा जी इस सम्मान की हकदार थी। उनका प्रयास सराहनीय है। उनको ढेरों बधाई।

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  12. पूर्णिमा जी, जयजयवंती सम्मान हेतु हार्दिक बधाई। आपने अन्तर्जाल पर हिन्दी को एक नई पहचान दी है, जो काबिले तारीफ ही नहीं अनुकरणीय भी है।

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  13. असली बधाई तो तभी मानी जाएगी
    जब हिंदी विकीपीडिया की गाड़ी तेजी
    से दौड़ाई जाएगी, जितने भी और जो
    भी दे रहे हैं टिप्‍पणी, सबसे हिंदी
    विकीपीडिया से जुड़ने का आग्रह है।

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  14. जय जय वंती मान हुआ है
    हिन्दी का सम्मान हुआ है
    पीलीभीत की एक बेटी का
    दिल्ली भी दरबान हुआ है

    चाँद शुक्ला हदियाबादी
    डेनमार्क

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  15. पूर्णिमा जी को मेरे तरफ से भी ढेरो बधाई. सच में पूर्णिमा जी इस सम्मान की हकदार थी।
    http://vangmaypatrika.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  16. पूर्णिमा जी को हार्दिक बधाई. हीरे की परख जौहरी ही समझता है. अशोक जी एक बेहतर शिल्पकार के साथ एक अच्छे जौहरी भी हैं, उन्होंने एक बार फ़िर से साबित कर दिया है.

    जवाब देंहटाएं

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