तीस दिन के रोजों (व्रत) के बाद आज ईद का पाक दिन आया था। इस मुबारक मौके पर हर व्यक्ति नये कपड़े पहने ईदगाह की तरफ भागा चला जा रहा था। हर व्यक्ति की चाल में एक अजब सी मस्ती थी और चेहरे पर एक मीठी मुस्कान। छोटा हो या बड़ा, अमीर हो या गरीब सभी के चेहरे एक विशेष प्रकार की आभा से दमक रहे थे। इंसानी चेहरों पर ऐसी खुशी कभी-कभी ही देखने को मिलती है।
सिर्फ ईदगाह के अन्दर ही नहीं, बल्कि बाहर तक लोगों की कतारें लगी हुई थीं। मस्जिद के माइक से ईद की नमाज की महत्ता पर प्रकाश डाला जा रहा था। बीच-बीच में इमाम साहब फितरा (ईद की नमाज के पूर्व दिया जाने वाला दान) अदा करने का नियम भी बताते जा रहे थे। क्योंकि ईद की नमाज से पहले फितरा अदा कर देना आवश्यक होता है। ऐसा न करने वाले व्यक्ति की नमाज अधूरी मानी जाती है।
सारी प्रक्रियाएं समझाने के बाद इमाम साहब ने ईद की नमाज पढ़ायी। नमाज के बाद उन्होंने खुतबा (उपदेश) का पाठ किया। खुतबा के बाद सभी नमाजियों ने मिल कर एक स्वर में खुदा से रहमतों और बरकतों की दुआ की। दुआ खत्म होते ही सभी लोग एक दूसरे से गले मिल कर मुबारकबाद देने लगे। लगभग 15 मिनट तक मुबारकबाद का सिलसिला चलता रहा। उसके बाद लोग प्रसन्नता रूपी मकरंद बिखेरते हुए अपने-अपने घरों की ओर चल पड़े।
खुशी के इस इस अथाह समन्दर में शामिल सादिक जब अपने अब्बू के साथ ईदगाह की सीढ़ियां उतरने लगा, तो अचानक उसकी नजर सामने खड़े एक लड़के पर जा पड़ी। फटे-पुराने कपड़ों में लिपटा वह लड़का दीनता भरे स्वर में कह रहा था, ''बाबू जी, कुछ पैसे दे दो, हम भी खुशी मना लें।''
उसकी दशा देखकर सादिक एक पल के लिए रुका और फिर पैसे निकालने के लिए जेब में हाथ डाला। पर उसकी जेब खाली थी। जल्दबाजी के चक्कर में वह अपने सारे पैसे घर पर ही छोड़ आया था। तभी पीछे से एक धक्का आया और वह खुद-ब-खुद आगे बढ़ गया।
रास्ते भर सादिक उस लड़के के बारे में सोचता रहा। कब घर आ गया, उसे पता ही नहीं चला। घर में सभी लोगों से सलाम-दुआ करने के बाद वह अपने कमरे में जा बैठा। उसके चेहरे की खुशी अब काफूर हो चुकी थी। उसकी आँखों में भिखारी लड़के की तस्वीर और कानों में उसकी आवाज अब भी गूंज रही थी।
'कितना गरीब था वह लड़का। उसकी आवाज में भी कितना दर्द था। बेचारे के पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि ईद के दिन भी ठीक-ठाक कपड़े पहन सके।' सादिक के विचारों की ट्रेन बड़ी तेजी से भागी जा रही थी, '...क्या हम उसके लिए कुछ नहीं कर सकते? सिर्फ फितरा देकर ही काम चला लेंगें? नहीं, हमें उन लोगों की मदद करनी चाहिए। हमारा भी तो उनके प्रति कोई कर्तव्य है।''
''क्या हुआ सादिक बेटे? तुम यहाँ अकेले क्यों बैठे हो?'' अम्मी ने कमरे में प्रवेश करते हुए पूछा, ''चलो, सिवइयाँ खा लो, मैंने निकाल कर रखी हैं।''
''नहीं अम्मी, अभी मेरा मन नहीं है।'' सादिक धीरे से बोला।
''क्यों? क्या हुआ तुम्हें?'' सादिक की बात सुनकर अम्मी के माथे पर चिन्ता की रेखाएं उभर आईं, ''कहीं बुखार-वुखार तो नहीं है?''
''नहीं अम्मी, ऐसी कोई बात नहीं।'' सादिक ने मुस्कराने की कोशिश की, पर वह उसमें पूरी तरह से सफल नहीं हो सका।
''अच्छा जाओ कुर्ता-पैजामा उतार कर पैंट-शर्ट पहन लो और दोस्तों के साथ घूम-फिर आओ। तुम्हारा मन बहल जाएगा।'' कहती हुई अम्मी कमरे से बाहर चली गयीं।
सादिक बेमन से उठा और कपड़े बदलने लगा। उसकी आँखों के आगे अब भी उसी लड़के की तस्वीर तैर रही थी। तभी अचानक उसे कहीं दूर से उसी लड़के की आवाज सुनाई पड़ी। उसने अलमारी से पांच रूपये का नोट उठाया और सीधा बाहर की ओर भागा।
बाहर गली में वह लड़का पड़ोस वाले घर के सामने खड़ा अपनी बात दुहरा रहा था, ''बाबू जी! कुछ पैसे दे दो, हम भी खुशी मना लें।''
सादिक ने आवाज देकर उसे अपने पास बुला लिया। वह उसे पाँच रूपये का नोट देते हुए बोला, ''अब तो खुश हो?''
''हाँ बाबूजी, खुदा आपको सलामत रखे। आपकी थैली हमेशा रुपये-पैसों से भरी रहे।'' कहते-कहते उस लड़के के चेहरे पर प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी।
उसने सादिक को सलाम किया और फिर हिरन की तरह कुलाचें मारता हुआ गली में एक ओर भाग गया। उस लड़के को इस तरह से भागता देखकर सादिक का चेहरा खिल उठा। वह तब तक उसे देखता रहा, जब तक वह उसकी नजरों से ओझल नहीं हो गया।
तभी सादिक को लगा कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा है। उसने मुड़ कर देखा, सामने अब्बू खड़े थे। उनके हाथ में एक बड़ा सा थैला था। उस थैले को देखकर सादिक को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोला, ''इसमें क्या है अब्बू?'
''तुम्हारे कपड़े और कुछ खाने-पीने की चीजें।'' अब्बू ने मुस्कराकर जवाब दिया।
''मेरे कपड़े?'' सादिक चौंका, ''आप इनको लेकर कहां जा रहे हैं?''
''आओ मेरे साथ, तुम्हें स्वयं पता चल जाएगा।'' कहकर वे एक ओर चल पड़े।
सादिक की कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वह भी चुपचाप अब्बू के साथ हो लिया।
चार-पांच गलियों को पार करते हुए वे लोग एक ऐसी जगह पहुंचे, जहाँ पर तमाम झुग्गी-झोपड़ियां बनी हुई थीं। उनकी ओर इशारा करते हुए अब्बू बोले, ''सादिक बेटे, इनमें वे लोग रहते हैं, जिन्हें तीज-त्यौहारों पर भी ढंग का खाना नहीं नसीब होता। हमारा फर्ज़ बनता है कि हम इनकी मदद करें। यह सामान इन्हीं लोगों के लिए हैं। लो, इसे अपने हाथों से बाँट दो।''
सादिक ने गर्व से अब्बू की ओर देखा। उसके चेहरे की चमक फिर से लौट आई थी। वह ईद के चाँद की तरह जगमग कर रहा था। उसने थैला हाथ में पकड़ा और आगे बढ़ गया। उम्मीद के दीपक से जगमगाती सैकड़ों निगाहें उसका अगला लक्ष्य थीं।
25 टिप्पणियाँ
बहुत ही बढ़िया कहानी.. ईद की ढेरो मुबारकबाद
जवाब देंहटाएंसंदेश और कहानी के साथ सच्ची ईद मनाने का संदेश। रजनीश की आभार।
जवाब देंहटाएंईद मुबारक ।
जवाब देंहटाएंसीधे, सरल शब्दों में
एक संदेश - पूर्ण
मन-मोहक कहानी,
रजनीश जी
बधाई ।
zakir sahab
जवाब देंहटाएंeid mubarak
realy u have celeberete fantastic eid.u have painted a real picture of india .
thanks
parth
ज़ाकिर भाई!
जवाब देंहटाएंईद मुबारक़।
सादिक़ के ज़हन मे उपजा ख़्याल ही ईद की सबसे बड़ी सौगात है।ईद-ए-मुबारक़ सबको हंसी खुशी से लबरेज़ करे।
प्रवीण पंडित
उसने थैला हाथ में पकड़ा और आगे बढ़ गया। उम्मीद के दीपक से जगमगाती सैकड़ों निगाहें उसका अगला लक्ष्य थीं।
जवाब देंहटाएं"very motivating and inspiring story, allah kre subkaee idq aise hee khusheeyon se bhree rhe"
regards
त्योहारों पर बच्चों को ऐसे ही संस्कार देने चाहियें. ईद मुबारक.
जवाब देंहटाएंजाकिर जी ईद मुबारक .कहानी बहुत पसंद आई ...अच्छा संदेश देती है यह
जवाब देंहटाएंबढ़िया कहानी..
जवाब देंहटाएंईद मुबारक!!
नवरात्रि की हार्दिक मंगलकामनाऐं.
ऐसे ही अब्बू सबके होँ और ईद मुबारक हो जाये ..
जवाब देंहटाएंआपको भी शुभकामना एक सुँदर कहानी के लिये और ईद के लिये भी !
रजनीज जी,
जवाब देंहटाएंआपकी कहानी संदेश प्रद तो है ही, आपका लेखन कौशल कहानी को इतना प्रभावी बना गया है कि इसे सुन कर बच्चे अनुकरण किये बिना नहीं रहेंगे..आपकी समाज निर्माण को उद्यत लेखनी स्तुत्य है।
***राजीव रंजन प्रसाद
रजनीश जी, आपको इद मुबारक..बहुर सुन्दर कहानी।
जवाब देंहटाएंईद मुबारक!!
जवाब देंहटाएंनवरात्रि की हार्दिक मंगलकामनाऐं
और साथ में अमीर ग़रीब सब के लिए खुशहाली की दुआएं
ईद मुबारक, जाकिर भाई।
जवाब देंहटाएंजरूरतमंद की मदद से बड़ा कोई धर्म नहीं है। कहानी के जरिए यह अहसास कराने के लिए आभार।
ज़ाकिर भाई,
जवाब देंहटाएंईद मुबारक
जो खुशी दूसरों को खुशी दे कर मिलती है वह सबसे अहम और सबसे बड़ी होती है. सार्थक संदेश देती हुई रचना के लिए बधाई
bhaut hi achha sandesh
जवाब देंहटाएंbahut hi samvedansheel kahani
Eid mubarak ho
मेरी तरफ से भी आपको ईद मुबारक। कहानी अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंइद मुबारक। आपने सच्ची इद मनाने की दिशा बतायी है।
जवाब देंहटाएंकहानी बहुत अच्छी लगी। ईद की मुबारकबाद
जवाब देंहटाएंप्रेमचन्द की 'ईदगाह' की भी याद ताजा हो गयी । रमजान के पूरे महीने ,रोज़ा-अफ़्तार के ठीक पहले, ढकी हुई थालियाँ ले कर मस्जिद पहुँचते हैं - लड़के व लड़कियाँ । जिनके रोजे को मस्जिद में खुलना है ,उनके लिए ।
जवाब देंहटाएंईद मुबारक़ ! मेरे भाई
ज़ाकिर भाई दिल जीत लिया आपने।ईद मुबारक हो। ये बताने की बात नही है लेकिन आज आपसे इस खुशी को बांटने की इच्छा हुई,सो बता रहा हूं।मेरे एक स्टाफ़ ने काम छोड दिया ।वो अक्सर मेरी माताजी को मंदिर,बाज़ार और रिश्तेदारो के यहां ले जाता था।उस्के जाने के बाद माताजी अक्सर उसके बारे मे पूछती रहती।एक दिन मैने उनसे कहा की उसे मैने नौकरी से हटा दिया है।तब भी ईद करीब थी।माताजी उदास हो गयी।मैंने उनसे कहा की वो चोर है उसकी बात मत करना।उसके बाद माताजी उदास रहने लगी। आखिर मैने उनसे कारण पूछा तो उन्होने कहा की वो त्योहार कैसे मनायेगा।उस दिन से मैने उसके बच्चों को त्योहार पर कपडे और उनकी पढाई का खर्चा देना शुरु किया जो आज-तक चल रहा है। अपनी तारीफ़ नही कर रहा हूं। आज उनके घर जाउंगा।सच मे सूकून मिलता है। और सबसे अच्छी बात माताजी बहुत खूश हुई।
जवाब देंहटाएंसीधे सरल लहजे में संदेश देना कोई आप से सीखे
जवाब देंहटाएंयकीनन खुशी बांटने से ही बढती है और कुछ मुस्काने इस खुशी में चार चाँद लगा देतीं हैं
ईद मुबारक हो
आप सबको भी ईद, नवरात्रि और दुर्गा पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंकहानी आप लोगों को पसंद आई, जानकर अतीव प्रसन्नता हुई। लगा कि मेरा श्रम सार्थक हो गया।
रजनीश जी,
जवाब देंहटाएंअपनी खुशियों को सभी के साथ बाँटने का संदेश देती हुई एक भावनात्मक कहानी. बहुत ही अच्छी लगी.
बधाई.
कहानी बहुत अच्छी लगी।रजनीश जी
जवाब देंहटाएंबधाई रजनीश।
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.