अगर चाहोगे तुम जीना तो मरना सीखना होगा
के मिट्टी के खिलौनों में भी जीवन फूंकना होगा
हरे पेड़ों पे चलती आरियों को रोकलो वरना
नयी नस्लों को खमियाजा़ यक़ीनन भोगना होगा
परिन्दों को मुंडेरों पर जरा तुम चहचहाने दो
स्वयं उड़ जायेंगें जब बिल्लियों से सामना होगा
दुल्हन की लाश देखी तो यही अनुमान था सबका
के जलते वक्त भी हाथों में इस के आईना होगा
तुम्हारी राजशाही से हमारी गोदड़ी अच्छी
फ़कीरों का यह अन्दाज़ तुमको मानना होगा
कहीं मज़हब की मीनारें कहीं नस्लों की दीवारें
के इनसे दूर हट के मौदगिल कुछ सोचना होगा
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28 टिप्पणियाँ
सोचना ही नहीं, कुछ करना भी होगा।
जवाब देंहटाएंअगर चाहोगे तुम जीना तो मरना सीखना होगा
जवाब देंहटाएंके मिट्टी के खिलौनों में भी जीवन फूंकना होगा
दुल्हन की लाश देखी तो यही अनुमान था सबका
के जलते वक्त भी हाथों में इस के आईना होगा
कहीं मज़हब की मीनारें कहीं नस्लों की दीवारें
के इनसे दूर हट के मौदगिल कुछ सोचना होगा
बहुत अच्छी गज़ल
दुल्हन की लाश देखी तो यही अनुमान था सबका
जवाब देंहटाएंके जलते वक्त भी हाथों में इस के आईना होगा
इन पंक्तियों का जवाब नहीं।
एक एक शेर मैदगिल जी के अनुभवों से निकला है। बहुत अच्छी प्रस्तुति है।
जवाब देंहटाएंदुल्हन की लाश देखी तो यही अनुमान था सबका
जवाब देंहटाएंके जलते वक्त भी हाथों में इस के आईना होगा
गज़ल की जितनी प्रशंसा की जाये कम है। बहुत गहरी रचना है।
अगर चाहोगे तुम जीना तो मरना सीखना होगा
जवाब देंहटाएंके मिट्टी के खिलौनों में भी जीवन फूंकना होगा
.....
दुल्हन की लाश देखी तो यही अनुमान था सबका
के जलते वक्त भी हाथों में इस के आईना होगा
इन पंक्तियों का जवाब नहीं।बहुत अच्छी प्रस्तुति है।
दुल्हन की लाश देखी तो यही अनुमान था सबका
जवाब देंहटाएंके जलते वक्त भी हाथों में इस के आईना होगा
" very impresive words with a deep meaning'
regards
गज़ल का प्रत्येक शेर लाजवाब है. बहुत बढ़िया गजल.
जवाब देंहटाएंबधाई मौदगिल जी.
हरे पेड़ों पे चलती आरियों को रोकलो वरना
जवाब देंहटाएंनयी नस्लों को खमियाजा़ यक़ीनन भोगना होगा
यकीकन अब भी नहीं चेते तो खामियाजा भोगना ही होगा।
योगेन्द्र जी की गज़ल बहुत ही लाजबाब होती है.... बहुत भावपूर्ण गजल... बधाई
जवाब देंहटाएंपं दिनेशराय द्विवेदी जी से सहमत। अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंपं दिनेशराय द्विवेदी जी से सहमत। अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंaache vichar aachi prastuti
जवाब देंहटाएं---------Anupama
अगर चाहोगे तुम जीना तो मरना सीखना होगा
जवाब देंहटाएंके मिट्टी के खिलौनों में भी जीवन फूंकना होगा
हरे पेड़ों पे चलती आरियों को रोकलो वरना
नयी नस्लों को खमियाजा़ यक़ीनन भोगना होगा
परिन्दों को मुंडेरों पर जरा तुम चहचहाने दो
स्वयं उड़वाह! बहुत बढ़िया. यही ज़िन्दगी का मूल मंत्र है. जायेंगें जब बिल्लियों से सामना होगा
अच्छी रचना है।
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें।
sundar rachna hai.
जवाब देंहटाएंbadhai
आदरणीय मौदगिल साहब की लेखनी का कोई भी कायल हो सकता है। न केवल उनकी विधा पर गहरी पकड है अपितु भावाभिव्यक्ति के भी वे सुन्दर चितेरे हैं। इसी गज़ल के ये शेर विशेष पसंद आये..
जवाब देंहटाएंहरे पेड़ों पे चलती आरियों को रोकलो वरना
नयी नस्लों को खमियाजा़ यक़ीनन भोगना होगा
दुल्हन की लाश देखी तो यही अनुमान था सबका
के जलते वक्त भी हाथों में इस के आईना होगा
कहीं मज़हब की मीनारें कहीं नस्लों की दीवारें
के इनसे दूर हट के मौदगिल कुछ सोचना होगा
***राजीव रंजन प्रसाद
मौदगिल जी,
जवाब देंहटाएंसहज शब्दों में गहरी बात कह दी आपने.. यकीनन इस समाज को अपनी सोच बदलनी होगी और लीक से हट कर सोचना होगा
परिन्दों को मुंडेरों पर जरा तुम चहचहाने दो
जवाब देंहटाएंस्वयं उड़ जायेंगें जब बिल्लियों से सामना होगा|
ये शेर काफ़ी जमा | निदा फाजली साहब का भी एक शेर है इस तर्ज़ पर |
बच्चो के छोटे हाथों को , चाँद सितारे छूने दो ,
चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएंगे |
सुंदर ग़ज़ल | इस की बेहर क्या है ? जानना चाहूंगा | :-)
कहीं मज़हब की मीनारें कहीं नस्लों की दीवारें
जवाब देंहटाएंके इनसे दूर हट के मौदगिल कुछ सोचना होगा
बहुत सही फरमाया मौदगिल जी आपने।
अगर चाहोगे तुम जीना तो मरना सीखना होगा
जवाब देंहटाएंके मिट्टी के खिलौनों में भी जीवन फूंकना होगा
sir bahut sunder
regards
Maudgil jee kee gazal padhee.
जवाब देंहटाएंNaye vichaar aur nayee bhanayen
hain.Achchhe gazl ke liye
aapko aur Maudgil jee ko dheron
badhaaeean.
अगर चाहोगे तुम जीना तो मरना सीखना होगा
जवाब देंहटाएंके मिट्टी के खिलौनों में भी जीवन फूंकना होगा
दुल्हन की लाश देखी तो यही अनुमान था सबका
के जलते वक्त भी हाथों में इस के आईना होगा
बहुत अच्छी गज़ल
मौदगिल जी ,
बधाई
एक शेर याद आ गया --
जवाब देंहटाएंआंधिया ही अब करेंगी हर दीये का फैसला
जिस दिये में जान होगी वो दिया रह जायेगा।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
बहुत सुँदर ...
जवाब देंहटाएंराजीव रंजन व उनके साथियों के सद्प्रयासों से संचालित यह ब्लागपत्रिका बेहद स्तरीय एवं अनुकरणीय बनती जा रही है. दिनबदिन नये सोपान जुड़ रहे हैं निश्चित ही आप सभी बधाई के पात्र हैं.
जवाब देंहटाएंसाथ ही मैं अपने समस्त पाठकों, शुभचिंतकों एवं टिप्पणीदाताऒं का भी आभारी हूं. आप पाठकों में कुछ नये मित्र हैं. उनकी जानकारी के लिये कि वे मुझे या मेरी अन्य गजलों को पढ़ना चाहें तो उनका निम्न लिंक पर स्वागत है-
yogindermoudgil.blogspot.com
राजीव भाई मैं चूंकि हरियाणा का हूं तो एक बात और बताता हूं कि हरियाणवी जैसी लठमार बोली में भी मैंने गज़लें कहीं हैं आप उनका आनन्द इस लिंक पर ले सकते हैं
haryanaexpress.blogspot.com
शेष शुभ अन्यथा न लें पुन बधाई
दुल्हन की लाश देखी तो यही अनुमान था सबका
जवाब देंहटाएंके जलते वक्त भी हाथों में इस के आईना होगा
वाह ... बहुत खूब लिखा है आपने
बरबस ही मुँह से वाह निकलती है..!
दुल्हन की लाश देखी तो यही अनुमान थासबका
जवाब देंहटाएंके जलते वक्त भी हाथों में इस के आईना होगा
सच मे , ग़ज़ल दर्द भी है और खूबसूरती भी।
यह शे'र आईना है दोनो का।
प्रवीण पंडित
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.