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आग नफ़रत की लगा कर तिलियाँ ख़ुश हो गईं [ग़ज़ल] – दिनेश रघुवंशी

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आग नफ़रत की लगा कर तिलियाँ ख़ुश हो गईं
आशियाने को जला कर बिजलियाँ ख़ुश हो गईं

नाँव में रक्खे उन्होंने जाल देखे ही नहीं
बस मछेरे देखते ही मछलियाँ ख़ुश हो गईं

छीनकर पल में सहारा एक अबला का यहाँ
दानवों के तन पे जैसे वर्दियाँ ख़ुश हो गईं

ये ही क्या कम है कि एसे भी कोई खुश तो हुआ
मुझसे ख़ुशियाँ छीनकर के आँधियाँ ख़ुश हो गईं

एक दिन उपवास रख कर और माथा टेक कर
शायद उनको ये भरम है देवियाँ ख़ुश हो गईं

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19 टिप्पणियाँ

  1. दिनेश रघुवंशी जी को पढना सु:खद रहा। बहुत अच्छी गज़ल।

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  2. आग नफ़रत की लगा कर तिलियाँ ख़ुश हो गईं
    आशियाने को जला कर बिजलियाँ ख़ुश हो गईं

    बहुत अच्छी गज़ल। दिनेश रघुवंशी जी को सुना तो बहुत है, पढने का सौभाग्य पहली बार मिला।

    जवाब देंहटाएं
  3. vere nice gazal. Dinesh ji is not only a good presenter but a good shair too.

    Alok Kataria

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  4. एक एक शेर शायर का परिचय दे रहा है।

    आग नफ़रत की लगा कर तिलियाँ ख़ुश हो गईं
    आशियाने को जला कर बिजलियाँ ख़ुश हो गईं

    ये ही क्या कम है कि एसे भी कोई खुश तो हुआ
    मुझसे ख़ुशियाँ छीनकर के आँधियाँ ख़ुश हो गईं

    बहुत खूब। दिनेश रघुवंशी जी को निरंतर पढने का अवसर प्राप्त होगा, यह अपेक्षा है।

    जवाब देंहटाएं
  5. एक दिन उपवास रख कर और माथा टेक कर
    शायद उनको ये भरम है देवियाँ ख़ुश हो गईं

    वाह, क्या बात है। दिनेश जी की आवाज में भी गज़ल लगाईये, आनंद चार गुना हो जायेगा।

    जवाब देंहटाएं
  6. छीनकर पल में सहारा एक अबला का यहाँ
    दानवों के तन पे जैसे वर्दियाँ ख़ुश हो गईं

    एक दिन उपवास रख कर और माथा टेक कर
    शायद उनको ये भरम है देवियाँ ख़ुश हो गईं

    बहुत अच्छी गज़ल। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीय दिनेश रघुवंशी जी,


    आप वैसे भी हर दिल अजीज़ हैं। आपकी प्रस्तुत गज़ल से इसके कारण का भी पता चल जाता है। बहुत साधारण शब्द, आम से लगने वाले बिम्ब और इतनी गहरी गहरी बातों का प्रस्तुतिकरण आपकी कलम की विशेषता बयां कर रहा है।

    नाँव में रक्खे उन्होंने जाल देखे ही नहीं
    बस मछेरे देखते ही मछलियाँ ख़ुश हो गईं

    छीनकर पल में सहारा एक अबला का यहाँ
    दानवों के तन पे जैसे वर्दियाँ ख़ुश हो गईं

    एक दिन उपवास रख कर और माथा टेक कर
    शायद उनको ये भरम है देवियाँ ख़ुश हो गईं

    बधाई स्वीकारें।

    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  8. आग नफ़रत की लगा कर तिलियाँ ख़ुश हो गईं
    आशियाने को जला कर बिजलियाँ ख़ुश हो गईं
    बहुत सुंदर...

    जवाब देंहटाएं
  9. ghazal achhi hai.. bhaav bhi achhe hain..
    bas kuch jagah kuchh alfaaz beher mein bithaane ke liye zabran lagaay huye se lage...

    jis wajah se padhne ki lay mein rukavat si mehsoos hui...

    जवाब देंहटाएं
  10. नाँव में रक्खे उन्होंने जाल देखे ही नहीं
    बस मछेरे देखते ही मछलियाँ ख़ुश हो गईं

    यह शेर ज़रा उलझा हुआ सा लगा.. मछेरे को देखकर मछलियाँ खुश क्यों होंगी भला ?
    आख़िरी शेर दमदार था.. मज़ा आया दिनेश जी..

    जवाब देंहटाएं
  11. दिनेश जी,

    सभी शेर दमदार हैं.. बहुत से भ्रम पाल कर बहुत से लोग खुश हैं मगर हकीकत क्या है आप ने बयां कर दी.....

    जवाब देंहटाएं
  12. लाजवाब।
    खुश हो लेने दीजिये, मछलियों से भी हक़ीक़त अब ज़्यादा दूर नहीं है।

    प्रवीण पंडित

    जवाब देंहटाएं
  13. एक दिन उपवास रख कर और माथा टेक कर
    शायद उनको ये भरम है देवियाँ ख़ुश हो गईं
    वाह! दिनेश जी. एक ही शेर सौ के बराबर है. बहुत बढ़िया. बधाई स्वीकारें. सस्नेह.

    जवाब देंहटाएं
  14. सुंदर गजल
    लेकिन अंतिम शेर का जवाब नहीं

    जवाब देंहटाएं
  15. वाह एक एक शेर का जबाब नही फ़िर भी विशेष उल्लेख के लिए

    एक दिन उपवास रख कर और माथा टेक कर
    शायद उनको ये भरम है देवियाँ ख़ुश हो गईं

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत खूब रचना है जनाब बधाई स्वीकार कारें खास कर
    एक दिन उपवास रख कर और माथा टेक कर
    शायद उनको ये भरम है देवियाँ ख़ुश हो गईं
    वाह वाह
    मजा आ गया...

    जवाब देंहटाएं
  17. एक दिन उपवास रख कर और माथा टेक कर
    शायद उनको ये भरम है देवियाँ ख़ुश हो गईं
    ati sundar..

    जवाब देंहटाएं
  18. बहुत अच्छी रचना sir...बधाई
    आपको 16 जनवरी को लाल किले पर सुनने का सुअवसर प्राप्त हुआ...बहुत- हुत आभार....

    जवाब देंहटाएं

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