HeaderLarge

नवीनतम रचनाएं

6/recent/ticker-posts

कोसी- शोक में डूबी एक नदी का नाम है [कविता] - सुशील कुमार


कोसी मंद पड़ रही
लौट रहे लोग
सब कुछ हारकर वापस
अपने घर मकान खेत-खलिहान।
सबकी आँखें ढूँढ़ रही अपने-अपनों को।

लोगों की बाढ़ अब उमर रही
दियारा में गाँव में शिविरों में
सिर पर मोटरी उनके
गोद में, कंधे पर बाल-गोपाल
चेहरे पर गहरी चिंता लिये
मन-मन भर भारी पैर से
चलते हैं धीरे-धीरे
नई मिट्टी और रेत पटे रस्ते पर
पगडंडियों पर
दूर बहुत दूर तलक पसरे
मृणमय श्मशानी चुप्पियों
और मातम के बीच।

विलाप और थकान सर्वत्र
महामारी और सड़ा पानी सर्वत्र।

हर आँख में लहराता
आँसूओं का पारावार।

धराशायी झोंपड़ी और मकान
गिरे हुए पेड़
पानी में तैरती लाशें
उन पर चीलों-कौवों छीना-झपटी
से जब-तब टूटता हुआ सन्नाटा
मरे जानवरों से उठती दुर्गंध
राहत-शिविरों में अन्न की
उम्मीद में घंटों खड़े लोग
ध्वस्त मकानों की ओट में
प्रसव-पीड़ा से कराहती औरतें
बरबादी के खौफ़नाक़ मंजर,
और और!

पानी घट रहा
कि पानी बढ़ रहा!
कोसी मंद पड़ रही
कि कोसी समा रही!
जन-जन की आँख में
नीर बनकर,
हृदय में लोगों के
दुस्सह पीड़ बनकर!!

एक टिप्पणी भेजें

22 टिप्पणियाँ

  1. पानी घट रहा
    कि पानी बढ़ रहा!
    कोसी मंद पड़ रही
    कि कोसी समा रही!
    जन-जन की आँख में
    नीर बनकर,
    हृदय में लोगों के
    दुस्सह पीड़ बनकर!!

    विभीत्सिका का एसा चित्रण किया है कि मन द्रवित हो गया।

    जवाब देंहटाएं
  2. कोसी बिकार का शाप क्यों कही जाती है आपकी कविता उसे दर्शाती है। बाढ और बाढ के बाद की परिस्थिति को आपने बहुत अच्छी तरह कविता में प्रस्तुत किया है।

    जवाब देंहटाएं
  3. कोसी के शोक को आपने शब्दों में जीवित कर दिया है। असाधारण कविता है जिसमें एक एक शब्द पीडा है।

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  5. यह सुशील कुमार की बेहतरीन कविता है। मैं उनको बराबर पढ़ते रहा हूँ। उनकी कविताओं में लोक-बिंब बड़े सहज होकर प्रस्तुत होते हैं।-अशोक सिंह।

    जवाब देंहटाएं
  6. स्वांस लेती सुशील कुमार जी की यह कविता ना सिर्फ़ कोसी का सजीव चित्रण है, वरन शिल्प में बेजोड और सहज प्रस्तुती के कारण विचारों में अंदर तक धंसती है। सधन्यवाद....
    जितेन्द्र कुमार

    जवाब देंहटाएं
  7. कविता की दृष्टि से यह एक सफल रचना है चूंकि आप मेरी आँख नम कर गये। कोसी नें बहुत दर्द दिया है और आपने उस दर्द को अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं
  8. ''राहत-शिविरों में अन्न की
    उम्मीद में घंटों खड़े लोग
    ध्वस्त मकानों की ओट में
    प्रसव-पीड़ा से कराहती औरतें
    बरबादी के खौफ़नाक़ मंजर,
    और और!''
    -कोसी -क्षेत्र की दुर्दशा का जीवंत और मार्मिक चित्रण हैं। बधाई।- अंशु भारती।

    जवाब देंहटाएं
  9. इस विषय पर लिखा तो बहुत गया लेकिन एसा स-शक्त पहली बार पढा। कवि नें परिस्थिति को जी कर लिखा है।

    जवाब देंहटाएं
  10. जन-जन की आँख में
    नीर बनकर,
    हृदय में लोगों के
    दुस्सह पीड़ बनकर!!
    "bhut marmik, or bhavnatmak prstutee'

    regards

    जवाब देंहटाएं
  11. सुशील कुमार जी,

    कविता वही सफल है जो उद्वेलित कर दे। आपकी यह एक सफल कविता है। आपने एक दॆश्य उपस्थित कर दिया वह भी इस तरह कि आपके एक एक शब्द की पीडा सीधे पाठक के अंतस तक पहुँचती है।

    सिर पर मोटरी उनके
    गोद में, कंधे पर बाल-गोपाल
    चेहरे पर गहरी चिंता लिये
    मन-मन भर भारी पैर से

    चलते हैं धीरे-पानी में तैरती लाशें
    उन पर चीलों-कौवों छीना-झपटी
    से जब-तब टूटता हुआ सन्नाटा
    मरे जानवरों से उठती दुर्गंध


    पानी घट रहा
    कि पानी बढ़ रहा!
    कोसी मंद पड़ रही
    कि कोसी समा रही!
    जन-जन की आँख में...

    बिम्ब तो अद्वतिय हैं ही रसों के उतार चढाव भी रचना को तीर बना रहे हैं जो सीधे मन की आँख बेध रहे हैं..

    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  12. सुशील कुमार जी की यह कविता बिहार में आयी बाढ़ की स्थिति का जीवंत चित्र प्रस्तुत करती है। इसको बार -बार पढ़ने को जी चाहता है। हर बार लगता है कि कुछ छूट गया। कविता काफ़ी संप्रेषणीय है जिसमें प्रयुक्त बिंबो की बाजीगरी है। धन्यवाद इस कविता के लिए।- राघव कुमार अनिल

    जवाब देंहटाएं
  13. बिहार के कछार-क्षेत्र में हाल में कोसी नदी से उपजी बाढ़-विभीषिका पर बहुत प्रभावोत्पादक कविता, शुक्रिया !-नंद कुमार

    जवाब देंहटाएं
  14. अत्यंत धारदार कविता । शब्द-चयन समझदारी से और पैनापन भी।
    "पानी घट रहा
    कि पानी बढ़ रहा!
    कोसी मंद पड़ रही
    कि कोसी समा रही!
    जन-जन की आँख में
    नीर बनकर,
    हृदय में लोगों के
    दुस्सह पीड़ बनकर"

    --सौंदर्य-सृष्टि में सफल। इंद्रिय-बोध सुशील कुमार जी में काफ़ी तीव्र है। इनमें एक बड़े कवि की संभावना परिलक्षित होती है। ऐसे ही लिखते रहिए।- दीनानाथ प्रसाद।

    जवाब देंहटाएं
  15. ठीक कहा ,दीनानाथ जी आपने। सुशील कुमार की कविताओं में इंद्रिय- बोध बड़ा प्रबल होता है। इसलिए सौंदर्य-सृष्टि में वे अक्सर सफल रहते हैं।- जितेन्द्र कुमार।

    जवाब देंहटाएं
  16. संपूर्ण अभिव्यक्ति दुर्दमनीय विभीषिका का सजीव चित्रण है।मन को आंदोलित करने मे सक्षम ।

    प्रवीण पंडित

    जवाब देंहटाएं
  17. कोसी
    कोस भर नहीं बही
    पर कोस कोस भर गई।

    कविता
    जीवंत चित्रण है
    लघु फिल्‍म है
    बल्कि फीचर फिल्‍म है।

    निपट सच्‍चाई है
    कवि सुशील की कलम से
    निकल कर बाहर आई है
    और मन के रास्‍ते
    हर आंख में समाई है।

    पीड़ा बनी जिसकी
    उसका हर जोड़
    पोर पोर रिस रहा
    बना दुखदाई है।

    जवाब देंहटाएं
  18. बाढ और बाढ के बाद की विभीषिका का वर्णन करती आपकी कविता मन को उद्वेलित करती है

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत अच्छा लिखा है आपने सुशील जी..
    भली भांती खुद को समप्रेषित कर पा रही है कविता

    जवाब देंहटाएं
  20. प्रिय पाठकगण,
    मैं आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियों का कायल हूँ। आपने मेरी यह कविता दत्त-चित्त होकर पढ़ी ,यही मेरी लेखनी की फलश्रुति है । आपके स्नेह का आभारी,आपका-
    सुशील कुमार(sk.dumka@gmail.com)
    -दुमका,झारखंड से।

    जवाब देंहटाएं
  21. पीड़ा का पुरजोर वर्णन।

    पानी घट रहा
    कि पानी बढ़ रहा!
    कोसी मंद पड़ रही
    कि कोसी समा रही!
    जन-जन की आँख में
    नीर बनकर,
    हृदय में लोगों के
    दुस्सह पीड़ बनकर!!

    सारी बातें उपरोक्त पंक्तियों में बयां हो जाती हैं।
    आह! क्या कहूँ!!!

    जवाब देंहटाएं
  22. बाढ से विनाश को जो खाका आपने खींचा है वह आपके भीतर छिपे मानव प्रेम का द्योतक है..

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

आइये कारवां बनायें...

~~~ साहित्य शिल्पी का पुस्तकालय निरंतर समृद्ध हो रहा है। इन्हें आप हमारी साईट से सीधे डाउनलोड कर के पढ सकते हैं ~~~~~~~

डाउनलोड करने के लिए चित्र पर क्लिक करें...