बीती रात का सपना, छिपा ही रह जाये,
तो वो, सपना, सपना नहीँ रहता है!
पायलिया के घूँघरू, ना बाजेँ तो,
फिर,पायल पायल कहाँ रहती है?
बिन पँखोँ की उडान आखिरी हद तक,
साँस रोक कर देखे वो दिवा- स्वप्न भी,
पल भर मेँ लगाये पाँख, पँखेरु से उड,
ना जाने कब, हो जाते हैँ !
मन का क्या है? सारा आकाश कम है
भावोँ का उठना, हर लहर लहर पर,
शशि की तम पर पडती, आभा है!
रुपहली रातोँ मेँ खिलतीँ कलियाँ जो,
भाव विभोर, स्निग्धता लिये उर मेँ,
कोमल किसलय के आलिँगन को,
रोक सहज निज प्रणयन उन्मन से
वीत राग उषा का लिये सजाती,
पल पल मेँ, खिलतीँ उपवन में!
मैँ, मन के नयनोँ से उन्हेँ देखती,
राग अहीरों के सुनती, मधुवन में,
वन ज्योत्सना, मनोकामिनी बनी,
गहराते सँवेदन, उर, प्रतिक्षण में!
सुर राग ताल लय के बँधन जो,
फैल रहे हैँ, चार याम,ज्योति कण से,
फिर उठा सुराही पात्र, पिलाये हाला,
कोई आकर, सूने जीवन पथ में!
यह अमृत धार बहे, रसधार, यूँ ही,
कहती में, यह जग जादू घर है !
रात दिवा के द्युती मण्डल की,
यह अक्षुण्ण अमित सीमा रेखा है
29 टिप्पणियाँ
मोहक कविता....कहीं कहीं भाव एकदम सहज रूप से लिखे गये हैं।
जवाब देंहटाएंबीती रात का सपना, छिपा ही रह जाये,
जवाब देंहटाएंतो वो, सपना, सपना नहीँ रहता है!
मन का क्या है? सारा आकाश कम है
भावोँ का उठना, हर लहर लहर पर,
शशि की तम पर पडती, आभा है!
यह अमृत धार बहे, रसधार, यूँ ही,
कहती में, यह जग जादू घर है !
रात दिवा के द्युती मण्डल की,
यह अक्षुण्ण अमित सीमा रेखा है
बहुत सुन्दर रचना है।
लावण्या जी,
जवाब देंहटाएंमन का क्या है? सारा आकाश कम है
भावोँ का उठना, हर लहर लहर पर,
शशि की तम पर पडती, आभा है!
सुन्दर भावाभिव्यक्ति। बहुत अच्छा।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
आदरणीया लावण्या जी,
जवाब देंहटाएंकविता मन को हरा कर देती है। आपके उपमान और साधारण से लगने वाले शब्दों में कही गयी असाधारण बात कविता को प्रभावी बना रही है
।
Beautiful composition, Nice poster on poem.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
यह अमृत धार बहे, रसधार, यूँ ही,
जवाब देंहटाएंकहती में, यह जग जादू घर है !
रात दिवा के द्युती मण्डल की,
यह अक्षुण्ण अमित सीमा रेखा है
अध्भुत।
सुन्दर कविता, मन को छू लेने वाली।
जवाब देंहटाएंइतनी सुंदर कविता कि कहने को शब्द कम पड़ रहे हैं।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
मन का क्या है? सारा आकाश कम है
जवाब देंहटाएंभावोँ का उठना, हर लहर लहर पर,
शशि की तम पर पडती, आभा है!
"so touching and loving"
Regards
फिर उठा सुराही पात्र, पिलाये हाला,
जवाब देंहटाएंकोई आकर, सूने जीवन पथ में...
सुंदर गीत, जीवन की महत्वपूर्ण आकांक्षा की अभिव्यक्ति।
लावण्या जी आपको साहित्य शिल्पी पर देख बहुत ही अच्छा लगा। आपकी रचनाये वैसे ही बहुत ही उतम है बधाई स्वीकारे
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता है आपकी लावण्या जी।
जवाब देंहटाएं"मन का क्या है? सारा आकाश कम है"
अति सुंदर
सुर राग ताल लय के बँधन जो,
जवाब देंहटाएंफैल रहे हैँ, चार याम,ज्योति कण से,
फिर उठा सुराही पात्र, पिलाये हाला,
कोई आकर, सूने जीवन पथ में!
बहुत सुंदर भाव है इस रचना के ..
मनभावन
जवाब देंहटाएंयह अमृत धार बहे, रसधार, यूँ ही
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद .........
bahut sundar bhaav hain DI, saath hi uper likhi BAAUJI ki panktiyaan baar baar padh rahi huun
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता....अच्छा लगा padhkar !
जवाब देंहटाएंमन को छूती हुई भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंमन का क्या है? सारा आकाश कम है
जवाब देंहटाएंभावोँ का उठना, हर लहर लहर पर,
शशि की तम पर पडती, आभा है!
या फिर
मैँ, मन के नयनोँ से उन्हेँ देखती,
राग अहीरों के सुनती, मधुवन में,
वन ज्योत्सना, मनोकामिनी बनी,
गहराते सँवेदन, उर, प्रतिक्षण में!
भावपूर्ण भी और रागपूर्ण भी-सुंदर रचना।
प्रवीण पंडित
रुपहली रातोँ मेँ खिलतीँ कलियाँ जो,
जवाब देंहटाएंभाव विभोर, स्निग्धता लिये उर मेँ,
कोमल किसलय के आलिँगन को,
रोक सहज निज प्रणयन उन्मन से
वीत राग उषा का लिये सजाती,
पल पल मेँ, खिलतीँ उपवन में!
मैँ, मन के नयनोँ से उन्हेँ देखती,
राग अहीरों के सुनती, मधुवन में,
वन ज्योत्सना, मनोकामिनी बनी,
गहराते सँवेदन, उर, प्रतिक्षण में!.........
सुंदर शब्दों में गुंथी भावप्रवण मनमोहक रचना है.बहुत ही सुंदर.
well composed
जवाब देंहटाएंnicely edited
vist to my post if possible
regards
Yadi main yeh kahun ki Lavnya jee
जवाब देंहटाएंkee kavita kathya aur shilp kee
drishti se anupam hai to koee
atishyokti nahin.Lavanya jee kee
kavita padhkar mujhe inke pitashree
kavivar Pt.Narendra Sharma jee kee
kavityen yaad aa jaatee hain.
यह अमृत धार बहे, रसधार, यूँ ही,
जवाब देंहटाएंकहती में, यह जग जादू घर है !
रात दिवा के द्युती मण्डल की,
यह अक्षुण्ण अमित सीमा रेखा
अति सुंदर.
आदरणीया लावण्या जी की रचना में न केवल आदरणीय नरेन्द्र शर्मा जी का आभास भी मिलता है अपितु उनके शब्दचयन का कायल हुआ जा सकता है। एसे एसे शब्द जो रचना के स्तर को न केवल उठाते हैं अपितु भावों को भी एक आकाश प्रदान करते हैं। पहली दो पंक्तियाँ तो बस याद रह गयीं:-
जवाब देंहटाएंबीती रात का सपना, छिपा ही रह जाये,
तो वो, सपना, सपना नहीँ रहता है!
***राजीव रंजन प्रसाद
मनमोहक रचना .... मेरे ब्लॉग पर पधारने हेतु सादर आमंत्रण है
जवाब देंहटाएंगहन अनुभूति, सौंदर्य की व्यापक कल्पना और शब्दों का जादू..... लावण्या जी की कविता
जवाब देंहटाएंने मर्म को छू लिया। वैसे भी बहुमुखी प्रतिभा का विकास लावण्या जी की अनेक दिशाओं में हुआ है। उनकी रचनाएं पढ़ कर अपने उदगारों को व्यक्त करने के लिए उचित शब्दों को ढूंढना कठिन हो जाता है।
प. नरेन्द्र शर्मा जी और लावण्या जी के चित्र यहां देख कर हृदय और आंखों को बहुत ही अच्छा लग रहा है।
आप सभी ने मेरी कविता को पसँद किया उसका सच्चे ह्र्दय से आभार !
जवाब देंहटाएंकविता अव्यक्त का प्रसाद है जो रची नहीँ जाती बस खुदबखुद अवतरित होती है ऐसा मेरा अनुभव है ~
आप सभी से इतना ही विनम्र अनुरोध है कि स्नेह बनाये रखियेगा -
भाई श्री राजीव रँजन जी का खास धन्यवाद जो उन्होँने चित्रोँ को स्थान दिया है और मेरे स्व. पापा की पँक्तियाँ देखकर ह्र्दय प्रसन्न और भावविभोर है
ये श्वेत / श्याम फोटोग्राफ्ज़ स्वर कोकिला लता मँगेशकर जी ने खीँचे हैँ और उन्हीँने ये कोलाज बनाकर भेजा भी है !
स स्नेह,
-लावण्या
बहुत सुंदर रचना लावण्या जी... मन मोह लिया !
जवाब देंहटाएंatisundar!
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.