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था जुदा होना ही हमको [ग़ज़ल] - श्रद्धा जैन

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था जुदा होना ही हमको हाथ को मलते कभी
काश कि फुरक़त के लम्हे वक़्त से टलते कभी

आजकल रिश्तों में क्या है, लेने-देने के सिवा
खाली हाथों को यहाँ, दो हाथ न मिलते कभी

थक गये थे तुम जहाँ, वो आख़िरी था इम्तिहाँ
दो कदम मंज़िल थी तेरी, काश तुम चलते कभी

कुरबतें ज़ंज़ीर सी, लगती उसे अब प्यार में
चाहतें रहती जवाँ, गर हिज्र में जलते कभी

कल सिसक के हिन्दी बोली, ए मेरे बेटे कहो
क्यूँ शरम आती है तुमको, जो मुझे लिखते कभी

आजकल मिट्टी वतन की, रोज कहती है मुझे
लौट आओ ए परिंदों, शाम के ढलते कभी

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35 टिप्पणियाँ

  1. बहुत उम्दा,,, श्रृद्धा जी!! बेहतरीन रचना!!

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  2. "कल सिसक के हिन्दी बोली, ए मेरे बेटे कहो
    क्यूँ शरम आती है तुमको, जो मुझे लिखते कभी

    आजकल मिट्टी वतन की, रोज कहती है मुझे
    लौट आओ ए परिंदों, शाम के ढलते कभी"...

    बहुत खूब....उम्दा रचना के लिए धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. थक गये थे तुम जहाँ, वो आख़िरी था इम्तिहाँ
    दो कदम मंज़िल थी तेरी, काश तुम चलते कभी

    कल सिसक के हिन्दी बोली, ए मेरे बेटे कहो
    क्यूँ शरम आती है तुमको, जो मुझे लिखते कभी

    बहुत अच्छी रचना। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. सभी शेर अच्छे हैं खास कर हिन्दी प्रेम प्रदर्शित करता आपका यह शेर-

    कल सिसक के हिन्दी बोली, ए मेरे बेटे कहो
    क्यूँ शरम आती है तुमको, जो मुझे लिखते कभी

    जवाब देंहटाएं
  5. हर शेर पर वाह वाह कर उठा, बह्त बहुत बधाई इस रचना की।

    जवाब देंहटाएं
  6. थक गये थे तुम जहाँ, वो आख़िरी था इम्तिहाँ
    दो कदम मंज़िल थी तेरी, काश तुम चलते कभी

    कुरबतें ज़ंज़ीर सी, लगती उसे अब प्यार में
    चाहतें रहती जवाँ, गर हिज्र में जलते कभी

    बहुत अच्छा लिखा है.

    जवाब देंहटाएं
  7. श्रद्धा जी,
    प्रत्येक शेर अपने आप में एक दर्द की कहानी है. बहुत अच्छी गजल.
    बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  8. आजकल रिश्तों में क्या है , लेने देने के सिवा
    खाली हाथों को यहाँ, दो हाथ न मिलते कभी

    रिश्तों की बे-रौनक़ी पर क्या बा-रौनक़ बात कही आपने।

    थक गये थे तुम जहाँ वो आख़िरी था इम्तिहाँ
    दो कदम मंज़िल थी तेरी काश तुम चलते कभी

    एक नाज़ुक़ सा दर्द भरा शेर - छू गया ।
    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने

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  9. था जुदा होना ही हमको हाथ को मलते कभी
    काश कि फुरक़त के लम्हे वक़्त से टलते कभी


    थक गये थे तुम जहाँ, वो आख़िरी था इम्तिहाँ
    दो कदम मंज़िल थी तेरी, काश तुम चलते कभी

    कुरबतें ज़ंज़ीर सी, लगती उसे अब प्यार में
    चाहतें रहती जवाँ, गर हिज्र में जलते कभी

    बहुत अच्छी गजल.

    श्रद्धा जी,

    बधाई..

    जवाब देंहटाएं
  10. आजकल मिट्टी वतन की, रोज कहती है मुझे
    लौट आओ ए परिंदों, शाम के ढलते कभी

    'bhut jaberdast abheevyktee, mind blowing"

    regards

    जवाब देंहटाएं
  11. कल सिसक के हिन्दी बोली, ए मेरे बेटे कहो
    क्यूँ शरम आती है तुमको, जो मुझे लिखते कभी

    बहुत बढ़िया कहा आपने

    जवाब देंहटाएं
  12. आजकल मिट्टी वतन की, रोज कहती है मुझे
    लौट आओ ए परिंदों, शाम के ढलते कभी

    बेहतरीन रचना। अंग्रेजी में जैसे हम कहते हैं कि बिल्कुल क्रिस्प रचना। बहुत अच्छे।

    जवाब देंहटाएं
  13. कल सिसक के हिन्दी बोली, ए मेरे बेटे कहो
    क्यूँ शरम आती है तुमको, जो मुझे लिखते कभी

    बहुत अच्छी गज़ल।

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत अच्छी रचना...

    जवाब देंहटाएं
  15. आजकल मिट्टी वतन की, रोज कहती है मुझे
    लौट आओ ए परिंदों, शाम के ढलते कभी
    श्रद्धाजी
    . मैं भी यही कहती हूँ. लौट आओ .

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  16. हर शब्‍द एक नगीना है
    लगता बहाया पसीना है

    सोचा इतनी गहराई तक
    गहराई तक शमाई अब।

    जवाब देंहटाएं
  17. Shradha jain kee gazal achchhe
    lagee.kaee ashaar lage ki dil se
    nikle hon.Kuchh khamian hai jinkee
    aur main gazalkara ka dhyaan dilaana chata hoon.Chunki gazalkara
    ne matla yani prarambhik do pankian
    mein "malte"aur "talte"qaafion yani
    tukon kaa elaan kar diya hai isliye
    har sher mein qaafia "Dhalta",
    "Chalta"aur"Khalta"hee aayegaa.
    "Milta"aur"Likhta"nahin.
    Misre mein "Tum"ke liye
    "Teri"kaa prayog anuchit hai.
    Isliye ye misra khariz ho jaataa
    hai----
    Do kadam manzil teree,kash tum
    chalte kabhee
    Sher mein pahle "tera"
    aur phir"tum"likhna Urdu shairee
    mein "Shutar gurbaa"dosh kahlaataa
    hai.

    जवाब देंहटाएं
  18. श्रद्धा जी,
    मुझे आपकी गजल बहुत अच्छी लगी खास कर यह शेर
    आजकल रिश्तों में क्या है, लेने-देने के सिवा
    खाली हाथों को यहाँ, दो हाथ न मिलते कभी

    आजकल मिट्टी वतन की, रोज कहती है मुझे
    लौट आओ ए परिंदों, शाम के ढलते कभी

    लिखते रहिये

    जवाब देंहटाएं
  19. श्रद्धा जी,

    आपकी गज़लों के भाव पक्ष का कोई भी कायल हो सकता है। बहुत अच्छी गज़ल है और भावों को संप्रेषित करने में आप पूर्णत: सफल

    थक गये थे तुम जहाँ, वो आख़िरी था इम्तिहाँ
    दो कदम मंज़िल थी तेरी, काश तुम चलते कभी

    कल सिसक के हिन्दी बोली, ए मेरे बेटे कहो
    क्यूँ शरम आती है तुमको, जो मुझे लिखते कभी

    आजकल मिट्टी वतन की, रोज कहती है मुझे
    लौट आओ ए परिंदों, शाम के ढलते कभी

    बहुत आभार इस प्रस्तुतिकरण का।

    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  20. Namskaar pran ji,
    aaj aapka meri gazal tak aana aur use pad kar galtiyan batana jaise main dhany ho gayi ki aapko gazal is layak lagi ki aapne usmain galtiyan batayi

    main aapko mahavir sir ke blog se aur abhivayakti se pad rahi hoon aur aapki gazal aur soch ki kayal rahi hoon

    aapne jo baaten batayi hai wo dosh main door karne ki koshish karungi aur umeed hai aapke margdarshan se main behatar kar paaungi

    ek baar phir se shukriya

    जवाब देंहटाएं
  21. sameer ji bahut bahut dhanyvaad aapka aana ab zarurat ban gaya hai meri soch ki rawani ke liye, utsaah ke liye
    aate rahe

    जवाब देंहटाएं
  22. Rajiv ji aapka saath mere saye jaise saath raha hai mere pahle kadam se hi aap saath hai aur aapke bina to main apni koi bhi post ki kalpana hi nahi kar paati

    mere itne busy hone ke baad bhi aap aas pass hi hai ye dekh kar bhaut khushi hui

    apna saath banaye rakhe

    जवाब देंहटाएं
  23. Nanadan ji aapka gazal ko padna aur sarahana bahut achha laga

    aage bhi aapka saath aur pyar milta rahega umeed hai

    जवाब देंहटाएं
  24. Shraddha jee,Rajiv Ranjan prasad ji
    ne sahee kahaa hai ki aapkee gazal
    ke bhavpaksh kaa koee bhee kaayal
    ho sakta hai.Aap bahut aage jayengee.Abhyaas mat chhodna.ye
    chotee-motee galtian apne aap door
    hotee jayengee.Aap mein bharpoor
    pratibha hai.Bahar gazal kee reedh
    kee haddi hotee hai.Aapne apnee
    gazal mein ise bahut achchhee tarah
    nibhaya hai.Shubh kamnayen.

    जवाब देंहटाएं
  25. आजकल रिश्तों में क्या है, लेने-देने के सिवा
    खाली हाथों को यहाँ, दो हाथ न मिलते कभी

    थक गये थे तुम जहाँ, वो आख़िरी था इम्तिहाँ
    दो कदम मंज़िल थी तेरी, काश तुम चलते कभी

    श्रद्धा जी बेहतरीन रचना। बहुत ही अर्थपूर्ण। बधाई। देवी नागरानी जी की पंक्तियाँ याद आ रही है-

    बाजार बन गए हैं चाहत, वफा, मुहब्बत।
    रिश्ते तमाम आखिर सिक्कों में ढल रहे हैं।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  26. आजकल रिश्तों में क्या है, लेने-देने के सिवा
    खाली हाथों को यहाँ, दो हाथ न मिलते कभी

    थक गये थे तुम जहाँ, वो आख़िरी था इम्तिहाँ
    दो कदम मंज़िल थी तेरी, काश तुम चलते कभी

    श्रद्धा जी बेहतरीन रचना। बहुत ही अर्थपूर्ण। बधाई। देवी नागरानी जी की पंक्तियाँ याद आ रही है-

    बाजार बन गए हैं चाहत, वफा, मुहब्बत।
    रिश्ते तमाम आखिर सिक्कों में ढल रहे हैं।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  27. आजकल रिश्तों में क्या है, लेने-देने के सिवा
    खाली हाथों को यहाँ, दो हाथ न मिलते कभी

    हर बार की तरह उम्दा।

    जवाब देंहटाएं
  28. श्रद्धा जैन की गज़ल में गज़ल-विधा की दुष्यंत कुमार परम्परा का हमें प्रसन्न विकास मिलता है। भविष्य के अत्यंत संभावनाशील उत्स यहाँ मौज़ूद हैं। तृप्ति मिली।-सुशील कुमार।

    जवाब देंहटाएं
  29. आजकल मिट्टी वतन की, रोज कहती है मुझे
    लौट आओ ए परिंदों, शाम के ढलते कभी
    शाएरा के ख्याल खुबसूरत हैं
    ज़बान मैं चाशनी की सी मिठास है
    कुछ कर गुजरने का पुख्ता इरादा है
    अल्लाह करे जोरे कलम और ज़यादा---
    चाँद शुक्ला हदियाबादी
    डेनमार्क

    जवाब देंहटाएं
  30. थक गये थे तुम जहाँ, वो आख़िरी था इम्तिहाँ
    दो कदम मंज़िल थी तेरी, काश तुम चलते कभी agar sabhi aisa vichar rakhe to jine ki rah aasan ho jaye

    जवाब देंहटाएं

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