था जुदा होना ही हमको हाथ को मलते कभी
काश कि फुरक़त के लम्हे वक़्त से टलते कभी
आजकल रिश्तों में क्या है, लेने-देने के सिवा
खाली हाथों को यहाँ, दो हाथ न मिलते कभी
थक गये थे तुम जहाँ, वो आख़िरी था इम्तिहाँ
दो कदम मंज़िल थी तेरी, काश तुम चलते कभी
कुरबतें ज़ंज़ीर सी, लगती उसे अब प्यार में
चाहतें रहती जवाँ, गर हिज्र में जलते कभी
कल सिसक के हिन्दी बोली, ए मेरे बेटे कहो
क्यूँ शरम आती है तुमको, जो मुझे लिखते कभी
आजकल मिट्टी वतन की, रोज कहती है मुझे
लौट आओ ए परिंदों, शाम के ढलते कभी
35 टिप्पणियाँ
बहुत उम्दा,,, श्रृद्धा जी!! बेहतरीन रचना!!
जवाब देंहटाएं"कल सिसक के हिन्दी बोली, ए मेरे बेटे कहो
जवाब देंहटाएंक्यूँ शरम आती है तुमको, जो मुझे लिखते कभी
आजकल मिट्टी वतन की, रोज कहती है मुझे
लौट आओ ए परिंदों, शाम के ढलते कभी"...
बहुत खूब....उम्दा रचना के लिए धन्यवाद
थक गये थे तुम जहाँ, वो आख़िरी था इम्तिहाँ
जवाब देंहटाएंदो कदम मंज़िल थी तेरी, काश तुम चलते कभी
कल सिसक के हिन्दी बोली, ए मेरे बेटे कहो
क्यूँ शरम आती है तुमको, जो मुझे लिखते कभी
बहुत अच्छी रचना। बधाई।
सभी शेर अच्छे हैं खास कर हिन्दी प्रेम प्रदर्शित करता आपका यह शेर-
जवाब देंहटाएंकल सिसक के हिन्दी बोली, ए मेरे बेटे कहो
क्यूँ शरम आती है तुमको, जो मुझे लिखते कभी
हर शेर पर वाह वाह कर उठा, बह्त बहुत बधाई इस रचना की।
जवाब देंहटाएंथक गये थे तुम जहाँ, वो आख़िरी था इम्तिहाँ
जवाब देंहटाएंदो कदम मंज़िल थी तेरी, काश तुम चलते कभी
कुरबतें ज़ंज़ीर सी, लगती उसे अब प्यार में
चाहतें रहती जवाँ, गर हिज्र में जलते कभी
बहुत अच्छा लिखा है.
श्रद्धा जी,
जवाब देंहटाएंप्रत्येक शेर अपने आप में एक दर्द की कहानी है. बहुत अच्छी गजल.
बधाई.
श्रद्धा जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी गज़ल....
आजकल रिश्तों में क्या है , लेने देने के सिवा
जवाब देंहटाएंखाली हाथों को यहाँ, दो हाथ न मिलते कभी
रिश्तों की बे-रौनक़ी पर क्या बा-रौनक़ बात कही आपने।
थक गये थे तुम जहाँ वो आख़िरी था इम्तिहाँ
दो कदम मंज़िल थी तेरी काश तुम चलते कभी
एक नाज़ुक़ सा दर्द भरा शेर - छू गया ।
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने
था जुदा होना ही हमको हाथ को मलते कभी
जवाब देंहटाएंकाश कि फुरक़त के लम्हे वक़्त से टलते कभी
थक गये थे तुम जहाँ, वो आख़िरी था इम्तिहाँ
दो कदम मंज़िल थी तेरी, काश तुम चलते कभी
कुरबतें ज़ंज़ीर सी, लगती उसे अब प्यार में
चाहतें रहती जवाँ, गर हिज्र में जलते कभी
बहुत अच्छी गजल.
श्रद्धा जी,
बधाई..
आजकल मिट्टी वतन की, रोज कहती है मुझे
जवाब देंहटाएंलौट आओ ए परिंदों, शाम के ढलते कभी
'bhut jaberdast abheevyktee, mind blowing"
regards
कल सिसक के हिन्दी बोली, ए मेरे बेटे कहो
जवाब देंहटाएंक्यूँ शरम आती है तुमको, जो मुझे लिखते कभी
बहुत बढ़िया कहा आपने
आजकल मिट्टी वतन की, रोज कहती है मुझे
जवाब देंहटाएंलौट आओ ए परिंदों, शाम के ढलते कभी
बेहतरीन रचना। अंग्रेजी में जैसे हम कहते हैं कि बिल्कुल क्रिस्प रचना। बहुत अच्छे।
कल सिसक के हिन्दी बोली, ए मेरे बेटे कहो
जवाब देंहटाएंक्यूँ शरम आती है तुमको, जो मुझे लिखते कभी
बहुत अच्छी गज़ल।
बहुत अच्छी रचना...
जवाब देंहटाएंbahut hi umda gazal... bahut khoob
जवाब देंहटाएंआजकल मिट्टी वतन की, रोज कहती है मुझे
जवाब देंहटाएंलौट आओ ए परिंदों, शाम के ढलते कभी
श्रद्धाजी
. मैं भी यही कहती हूँ. लौट आओ .
हर शब्द एक नगीना है
जवाब देंहटाएंलगता बहाया पसीना है
सोचा इतनी गहराई तक
गहराई तक शमाई अब।
Shradha jain kee gazal achchhe
जवाब देंहटाएंlagee.kaee ashaar lage ki dil se
nikle hon.Kuchh khamian hai jinkee
aur main gazalkara ka dhyaan dilaana chata hoon.Chunki gazalkara
ne matla yani prarambhik do pankian
mein "malte"aur "talte"qaafion yani
tukon kaa elaan kar diya hai isliye
har sher mein qaafia "Dhalta",
"Chalta"aur"Khalta"hee aayegaa.
"Milta"aur"Likhta"nahin.
Misre mein "Tum"ke liye
"Teri"kaa prayog anuchit hai.
Isliye ye misra khariz ho jaataa
hai----
Do kadam manzil teree,kash tum
chalte kabhee
Sher mein pahle "tera"
aur phir"tum"likhna Urdu shairee
mein "Shutar gurbaa"dosh kahlaataa
hai.
श्रद्धा जी,
जवाब देंहटाएंमुझे आपकी गजल बहुत अच्छी लगी खास कर यह शेर
आजकल रिश्तों में क्या है, लेने-देने के सिवा
खाली हाथों को यहाँ, दो हाथ न मिलते कभी
आजकल मिट्टी वतन की, रोज कहती है मुझे
लौट आओ ए परिंदों, शाम के ढलते कभी
लिखते रहिये
श्रद्धा जी,
जवाब देंहटाएंआपकी गज़लों के भाव पक्ष का कोई भी कायल हो सकता है। बहुत अच्छी गज़ल है और भावों को संप्रेषित करने में आप पूर्णत: सफल
थक गये थे तुम जहाँ, वो आख़िरी था इम्तिहाँ
दो कदम मंज़िल थी तेरी, काश तुम चलते कभी
कल सिसक के हिन्दी बोली, ए मेरे बेटे कहो
क्यूँ शरम आती है तुमको, जो मुझे लिखते कभी
आजकल मिट्टी वतन की, रोज कहती है मुझे
लौट आओ ए परिंदों, शाम के ढलते कभी
बहुत आभार इस प्रस्तुतिकरण का।
***राजीव रंजन प्रसाद
Namskaar pran ji,
जवाब देंहटाएंaaj aapka meri gazal tak aana aur use pad kar galtiyan batana jaise main dhany ho gayi ki aapko gazal is layak lagi ki aapne usmain galtiyan batayi
main aapko mahavir sir ke blog se aur abhivayakti se pad rahi hoon aur aapki gazal aur soch ki kayal rahi hoon
aapne jo baaten batayi hai wo dosh main door karne ki koshish karungi aur umeed hai aapke margdarshan se main behatar kar paaungi
ek baar phir se shukriya
sameer ji bahut bahut dhanyvaad aapka aana ab zarurat ban gaya hai meri soch ki rawani ke liye, utsaah ke liye
जवाब देंहटाएंaate rahe
Rajiv ji aapka saath mere saye jaise saath raha hai mere pahle kadam se hi aap saath hai aur aapke bina to main apni koi bhi post ki kalpana hi nahi kar paati
जवाब देंहटाएंmere itne busy hone ke baad bhi aap aas pass hi hai ye dekh kar bhaut khushi hui
apna saath banaye rakhe
Ritu ji aapka aana dil ko bahut sakun de gaya
जवाब देंहटाएंshukriya bhaut bahut
Nanadan ji aapka gazal ko padna aur sarahana bahut achha laga
जवाब देंहटाएंaage bhi aapka saath aur pyar milta rahega umeed hai
Pankaj ji bhaut bahut shukriya pasand karne ke liye
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंShraddha jee,Rajiv Ranjan prasad ji
जवाब देंहटाएंne sahee kahaa hai ki aapkee gazal
ke bhavpaksh kaa koee bhee kaayal
ho sakta hai.Aap bahut aage jayengee.Abhyaas mat chhodna.ye
chotee-motee galtian apne aap door
hotee jayengee.Aap mein bharpoor
pratibha hai.Bahar gazal kee reedh
kee haddi hotee hai.Aapne apnee
gazal mein ise bahut achchhee tarah
nibhaya hai.Shubh kamnayen.
आजकल रिश्तों में क्या है, लेने-देने के सिवा
जवाब देंहटाएंखाली हाथों को यहाँ, दो हाथ न मिलते कभी
थक गये थे तुम जहाँ, वो आख़िरी था इम्तिहाँ
दो कदम मंज़िल थी तेरी, काश तुम चलते कभी
श्रद्धा जी बेहतरीन रचना। बहुत ही अर्थपूर्ण। बधाई। देवी नागरानी जी की पंक्तियाँ याद आ रही है-
बाजार बन गए हैं चाहत, वफा, मुहब्बत।
रिश्ते तमाम आखिर सिक्कों में ढल रहे हैं।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
आजकल रिश्तों में क्या है, लेने-देने के सिवा
जवाब देंहटाएंखाली हाथों को यहाँ, दो हाथ न मिलते कभी
थक गये थे तुम जहाँ, वो आख़िरी था इम्तिहाँ
दो कदम मंज़िल थी तेरी, काश तुम चलते कभी
श्रद्धा जी बेहतरीन रचना। बहुत ही अर्थपूर्ण। बधाई। देवी नागरानी जी की पंक्तियाँ याद आ रही है-
बाजार बन गए हैं चाहत, वफा, मुहब्बत।
रिश्ते तमाम आखिर सिक्कों में ढल रहे हैं।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
आजकल रिश्तों में क्या है, लेने-देने के सिवा
जवाब देंहटाएंखाली हाथों को यहाँ, दो हाथ न मिलते कभी
हर बार की तरह उम्दा।
श्रद्धा जैन की गज़ल में गज़ल-विधा की दुष्यंत कुमार परम्परा का हमें प्रसन्न विकास मिलता है। भविष्य के अत्यंत संभावनाशील उत्स यहाँ मौज़ूद हैं। तृप्ति मिली।-सुशील कुमार।
जवाब देंहटाएंआजकल मिट्टी वतन की, रोज कहती है मुझे
जवाब देंहटाएंलौट आओ ए परिंदों, शाम के ढलते कभी
शाएरा के ख्याल खुबसूरत हैं
ज़बान मैं चाशनी की सी मिठास है
कुछ कर गुजरने का पुख्ता इरादा है
अल्लाह करे जोरे कलम और ज़यादा---
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क
थक गये थे तुम जहाँ, वो आख़िरी था इम्तिहाँ
जवाब देंहटाएंदो कदम मंज़िल थी तेरी, काश तुम चलते कभी agar sabhi aisa vichar rakhe to jine ki rah aasan ho jaye
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