मनुष्य स्वभाव से ही आनन्द-प्रिय, शुभाकांक्षी एवं प्रकाशोन्मुख प्राणी है। वह सदा प्रसन्न तथा स्वस्थ रहना चाहता है। किन्तु अपनी अज्ञानतावश अंन्धकार की ओर अभिमुख हो जाता है। केवल चमकती रौशनी को प्रकाश मान उसके पीछे मतवाला हो भागता है और अंधकार के गर्त में गिर जाता है। धर्म सदैव व्यक्ति को सत्य की राह दिखाता है तथा प्रकाश की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है। यह संदेश त्योहारों के माध्यम से भी दिया जाता है. भारत एक धर्म प्रधान देश है अतः यहाँ पर समय-समय पर त्योहारों के माध्यम से यही जागृति उत्त्पन्न की जाती है । हमारे सभी त्योहार इसी प्रकार के संदेश लाते हैं।
दीपावली अन्धकार पर प्रकाश की और असत्य पर सत्य की विजय का त्योहार है। कार्तिक मास की अमावस की रात बड़ी अँधेरी होती है। दिए जलाकर इसे पूर्णिमा बना दिया जाता है। इसे लोग एक त्योहार नहीं त्योहारों की एक श्रृखंला कहते हैं। यह पूरे पाँच दिन का त्योहार है।
पहला धनतेरस- धनवंतरी जी के सागर मंथन से प्रकट होने का दिन। इसी दिन से पुष्टि वर्धक औषधियों का सेवन प्रारम्भ किया जाता है। नए बर्तन, सोने-चाँदी के सिक्के खरीदते हैं और संध्या को एक दीपक यम के नाम का जलाकर निरोगी काया की प्रार्थना करते हैं। दूसरे दिन नरक चतुर्दशी को साफ- सफाई कर वातावरण स्वच्छ बनाया जाता है। यह दिन नरकासुर वध से भी जोड़ा जाता है। तीसरा दिन लक्ष्मी -पूजा का है। अमावस की रात को दीपों के द्वारा जगमगा कर लक्ष्मी पूजा कर धूम-धाम से त्योहार मनाते हैं। चतुर्थ दिन गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाता है। गाय की पूजा भारत में प्राचीन काल से ही की जाती है। पंचम दिन भाई दोज के साथ यह त्योहार समाप्त होता है।
यह त्योहार घर और बाहर के मालिन्य को दूर करने की प्रेरणा देता है। मन को अंधकार रहित करना बाहर के अंधकार को मिटाने से भी अधिक आवश्यक है। स्वच्छता रोगों के विरूद्ध तैयारी भी है। घर का साफ करना बहुत वैग्यानिक है। रोग- शोक से मुक्ति और सुन्दर वातावरण में मन का प्रसन्न होना नितान्त स्वाभाविक ही है।
अमावस की रात को दीप जलाकर जीवन में भी यही संदेश मिलता है कि दिल में खुशी एवं आशा के दीप जलाते रहना चाहिए। इतने दीप जलाओ कि अँधकार दस्तक भी ना दे पाए। किसी कवि ने बहुत सुन्दर लिखा था- जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना, अँधेरा धरा पर कहीं रह ना पाए।
लक्ष्मी-पूजा का उद्देश्य केवल धन प्राप्ति नहीं अपितु ऐसे धन की कामना है जो सद् वृत्तियों को जगाए। गणेश जी की सवारी चूहा है जो कुतर्क करता है। उसपर सवारी कर गणपति कुतर्क का नाश करते हैं। हम भी विवेक को जागृत करें तथा कुतर्क का नाश करें तभी पूजा सफल होगी। त्योहार राम की रावण पर विजय का भी प्रतीक है अतः जब तक समाज में और जीवन में तामसिकता है, कुविचार हैं -दीपावली अधूरी है। दीप जलाना मात्र औपचारिकता नहीं है। दीप अन्तर के तमस को अन्त करने की प्रेरणा देता है। आओ हम सब मिलकर देश को आतंक और कुत्सित प्रवृतियों से मुक्त करने की प्रेरणा लें। वरना - सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी।
निशा आ ना पाए। ऊषा जा ना पाए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना, अँधेरा धरा पर कहीं रह ना पाए।
शुभ दीपावली
10 टिप्पणियाँ
Itne diye jalaao ki andheraa
जवाब देंहटाएंdastak bhee n de sake,bahut khoob
Shobha jee.Deewali ke shubh avsar
par aapko nana shubh kamnayen aur
badhaaeean.
Itne diye jalaao ki andheraa
जवाब देंहटाएंdastak bhee n de sake,bahut khoob
Shobha jee.Deewali ke shubh avsar
par aapko nana shubh kamnayen aur
badhaaeean.
दीपावली के इस शुभ अवसर पर आप और आपके परिवार को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है शोभा जी,
जवाब देंहटाएंमन का अंधियारा मिटे तो सब जग उजयारा हो..
और तभी सच्ची दीपावली मनाई जा सकती है
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकिसी परम्परा को मानने से पहले उस के पीछे छुपे कारणों को जानना अच्छा है | दीवाली के पर्व के पीछे छुपी मान्यताओ से अवगत कराने का धन्यवाद .... :-)
जवाब देंहटाएंदीपावली पर प्रस्तुत आपका आलेख उत्कृश्ट है, अंत में आपने जो संदेश दिया है वह काश सब तक पहुँचे:
जवाब देंहटाएं"मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी।निशा आ ना पाए। ऊषा जा ना पाए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना, अँधेरा धरा पर कहीं रह ना पाए।"
***राजीव रंजन प्रसाद
शोभा जी, दीपावली की बहुत शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंशुभ दीपावली।
जवाब देंहटाएंअत्युत्तम जानकारी के लिये आभार ।
जवाब देंहटाएंप्रवीण पंडित
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.