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टुकडे अस्तित्व के [कविता] – राजीव रंजन प्रसाद

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जरासंध की जंघाओं से दो फांक हो कर
जुडते हैं इस तरह टुकडे अस्तित्व के
जैसे कि छोटी नदिया गंगा में मिल गयी हो
चाहो तो जाँच कर लो
अब मिल गया है सब कुछ, एक रंग हो गया है
हर हर हुई है गंगे, हर कुछ समा गया है
फिर उठ खडा हुआ हूँ, हिम्मत बटोर ली है
मैं जानता हूँ दुनिया भी भीम हो गयी है
वो दांव-पेंच जानें कि फिर चिरा न जाऊं
लेकिन लडूंगा जब तक सागर में मिल न जाऊं

मैं जानता हूँ कान्हा तुम राज जानते हो
टुकडा उठा के तृण का
दो फांक कर के तुमने उलटा रखा है एसे
जैसे कि वक्त मेरा मुझको छला किये है

मैं मुस्कुरा रहा हूँ
मैं मिटने जा रहा हूँ
तुममें समा रहा हूँ
फिर ये सवाल होगा, क्या मुझसे वक्त जीता?
तुम सोच रखो उत्तर, तुम ठेके हो सत्य के
जब सामना करेंगे मेरे टुकडे अस्तित्व के...

*****

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21 टिप्पणियाँ

  1. पुरातन को नवीन से जोडना एक नया प्रयोग है उपमा का --
    कविता क भाव पसँद आया राजीव जी
    - लावण्या

    जवाब देंहटाएं
  2. कविता की सबसे प्रशंसनीय बात है उसकी पृष्ठभूमि। जिस उपमा को कविता का आधार बनाया गया है वह महाभारत में नकारात्मक चरित्र है, बहुत सफाई से उसे आपने नये संदर्भ में पिरो कर ईश्वरीय सत्ता को कटघरे में खडा किया है। बहुत अच्छी कविता।

    जवाब देंहटाएं
  3. मैं मुस्कुरा रहा हूँ
    मैं मिटने जा रहा हूँ
    तुममें समा रहा हूँ
    फिर ये सवाल होगा, क्या मुझसे वक्त जीता?
    तुम सोच रखो उत्तर, तुम ठेके हो सत्य के
    जब सामना करेंगे मेरे टुकडे अस्तित्व के...

    बहुत अच्छी कविता। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. मैं मुस्कुरा रहा हूँ
    मैं मिटने जा रहा हूँ
    तुममें समा रहा हूँ
    फिर ये सवाल होगा, क्या मुझसे वक्त जीता?
    तुम सोच रखो उत्तर, तुम ठेके हो सत्य के
    जब सामना करेंगे मेरे टुकडे अस्तित्व के...
    बहुत अच्छी कविता।

    जवाब देंहटाएं
  5. कालान्तर को मिटा कर अतीत को वर्तमान से जोडना एक कला है और इस रचना में उसे बखूबी निभाया गया है

    जवाब देंहटाएं
  6. हर हर हुई है गंगे, हर कुछ समा गया है
    फिर उठ खडा हुआ हूँ, हिम्मत बटोर ली है
    मैं जानता हूँ दुनिया भी भीम हो गयी है
    वो दांव-पेंच जानें कि फिर चिरा न जाऊं
    लेकिन लडूंगा जब तक सागर में मिल न जाऊं

    एक एक पंक्ति एक एक क्विंट्ल की हैं,

    बहुत अच्छी कविता।
    बधाई स्वीकारें, राजीव जी।

    जवाब देंहटाएं
  7. rajeev ranjan ko padna achchha lagta hai. kavita vahi jo sawaal kare apne se bhi aur doosron se bhi..
    ye bechenibani rahe...
    badhai rajeev.

    जवाब देंहटाएं
  8. very nice poem rajeev jee. like u as always.

    Alok Kataria

    जवाब देंहटाएं
  9. अच्‍छी रचना हैृ कम से कम शब्‍दों में पूरी बात

    सूरज

    जवाब देंहटाएं
  10. महाभारत को लेकर

    छोटी सी

    महाकविता का व्‍यापक

    फलक हलक सुखा देता है

    इसे पढ़ना एक लाजवाब

    अनुभव से गुजरना है।

    जवाब देंहटाएं
  11. कभी पढा एक शेर याद आ गया कि
    " दुनिया वाले सब सच्चे पर जीना है उस को भी , एक गरीब अकेला पापी , किस किस से शरमाये |"
    जरासंघ के सहारे हमारी कहानियों में त्रेता द्वापर से चले आ रहे भगवानों को हाशिये पर लिया है आप ने | और साथ में समर्पण भी है कि मिलना तो वहीं है जा कर .. परमात्मा में | एक आम आदमी का संग्राम दर्शाती हुई कविता ... जो ना तो भगवन है और ना ही कोई नायक...पर उसे जीने का हक़ है और लड़ने का भी |

    जवाब देंहटाएं
  12. फिर ये सवाल होगा, क्या मुझसे वक्त जीता?

    rajiv ji,
    bahut sundar.
    bhut dino baad aapki kalam me wahi aag dekhne ko mili

    जवाब देंहटाएं
  13. सभ्यता के निगेटिव चरित्र को लेकर जब कोई
    कविता रची जाती है और उसमें मानव-मूल्यों का संधान किया जाता है तो यह एक ज़ोखिम भरा,किंतु महत्वपूर्ण कार्य होता है। जैसे कि,रावण और कैकेयी को लेकर लिखी गयी कई कविताएँ भी हैं जहाँ मनुष्य के उदात्त मूल्यों की सृष्टि की गयी है। राजीव रंजन प्रसाद की कविता ‘टुकड़े अस्तित्व के’ में भी हम एक ऐसी ही कल्पना से साक्षात्कार करते हैं।यहाँ कविता की अंतर्वस्तु इतिहास को अभिनव रुप में प्रस्तुत करती हुई दृष्टिगत हुई है जिसमें कविता का रुप, उसकी भाषा तदनुसार लक्ष्य करके कवि की संवेदना को अभिव्यक्त करती है। वर्तमान सदैव इतिहास का अंधानुगामी नहीं होता, अपने अनुसार भी सिरजता है,यह कविता उसका अप्रतिम उदाहरण हो सकती है। मानवीय संघर्ष उस ईश्वरता के भी विरुद्ध यहाँ क्रियाशील और सचेष्ट दीखता है जो हमें छ्ल-छ्द्म सीखाते हैं -"फिर ये सवाल होगा, क्या मुझसे वक्त जीता?/तुम सोच रखो उत्तर, तुम ठेके हो सत्य के/जब सामना करेंगे मेरे टुकडे अस्तित्व के..." कविता मानवमन में बैठी जड़ता ,उसके रुढ़ि को तोड़ती हुई, सत्य के ठेकेदारों को चुनौती देती हुई उसके युगीन संघर्ष में शामिल होने की प्रेरणा देती है, उसकी जिजीविषा को उकसाती है। इसे ध्यान से पढ़ने की जरुरत है।अच्छी और संश्लिष्ट अर्थों को उघारती इस कविता के लिये राजीव जी बधाई स्वीकारें।- सुशील कुमार (मो. )ईमेल-

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  14. Ab mil gayaa haisab kuchh
    ek rang ho gayaa hai
    Har-har huee hai Ganga
    har kuchh samaa gayaa hai
    Phir uth khada hua hoon
    himmat bator lee hai
    Main jaanta hoon dunia
    bhee bheem ho gayee hai
    Vo daanv-pech n jaane
    ki phir chiraa n jaaoon
    lekin ladunga jab tak
    sagar mein mil n jaaoon
    Chhandmukt kavita mein bbhee
    lai hotee hai aapkee kavita iskaa
    prataksh udahran hai.Puraatan
    vishya aur seedhee-sadee aadhunik
    bhasha aapka bahut achchha prayog
    hai.Badhaaee.

    जवाब देंहटाएं
  15. मैं मुस्कुरा रहा हूँ
    मैं मिटने जा रहा हूँ
    तुममें समा रहा हूँ
    फिर ये सवाल होगा, क्या मुझसे वक्त जीता?
    तुम सोच रखो उत्तर, तुम ठेके हो सत्य के
    जब सामना करेंगे मेरे टुकडे अस्तित्व के...
    वाह बहुत सुन्दर।

    जवाब देंहटाएं
  16. क्या कहने हैं राजीव जी! क्या पृष्ठभूमि ।है
    अभिभूत हूं ,समय के दूरस्थ छोरों को किस कौशल के साथ बद्ध किया है आपने।
    यह महाभारत उस अकेले का महाभारत है जिसकी अपनी परिभाषाएं हैं और अपने समाधान ।
    चमत्कारी चित्रण ।
    प्रवीण पंडित

    जवाब देंहटाएं
  17. तुममें समा रहा हूँ
    फिर ये सवाल होगा, क्या मुझसे वक्त जीता?
    तुम सोच रखो उत्तर, तुम ठेके हो सत्य के
    जब सामना करेंगे मेरे टुकडे अस्तित्व के...


    वाह .....बहुत सुन्दर।...

    बधाई स्वीकारें.... राजीव जी !

    जवाब देंहटाएं

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