जरासंध की जंघाओं से दो फांक हो कर
जुडते हैं इस तरह टुकडे अस्तित्व के
जैसे कि छोटी नदिया गंगा में मिल गयी हो
चाहो तो जाँच कर लो
अब मिल गया है सब कुछ, एक रंग हो गया है
हर हर हुई है गंगे, हर कुछ समा गया है
फिर उठ खडा हुआ हूँ, हिम्मत बटोर ली है
मैं जानता हूँ दुनिया भी भीम हो गयी है
वो दांव-पेंच जानें कि फिर चिरा न जाऊं
लेकिन लडूंगा जब तक सागर में मिल न जाऊं
मैं जानता हूँ कान्हा तुम राज जानते हो
टुकडा उठा के तृण का
दो फांक कर के तुमने उलटा रखा है एसे
जैसे कि वक्त मेरा मुझको छला किये है
मैं मुस्कुरा रहा हूँ
मैं मिटने जा रहा हूँ
तुममें समा रहा हूँ
फिर ये सवाल होगा, क्या मुझसे वक्त जीता?
तुम सोच रखो उत्तर, तुम ठेके हो सत्य के
जब सामना करेंगे मेरे टुकडे अस्तित्व के...
*****
21 टिप्पणियाँ
पुरातन को नवीन से जोडना एक नया प्रयोग है उपमा का --
जवाब देंहटाएंकविता क भाव पसँद आया राजीव जी
- लावण्या
wah jee wah, kya khub chitaran kiya hai
जवाब देंहटाएंकविता की सबसे प्रशंसनीय बात है उसकी पृष्ठभूमि। जिस उपमा को कविता का आधार बनाया गया है वह महाभारत में नकारात्मक चरित्र है, बहुत सफाई से उसे आपने नये संदर्भ में पिरो कर ईश्वरीय सत्ता को कटघरे में खडा किया है। बहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंमैं मुस्कुरा रहा हूँ
जवाब देंहटाएंमैं मिटने जा रहा हूँ
तुममें समा रहा हूँ
फिर ये सवाल होगा, क्या मुझसे वक्त जीता?
तुम सोच रखो उत्तर, तुम ठेके हो सत्य के
जब सामना करेंगे मेरे टुकडे अस्तित्व के...
बहुत अच्छी कविता। बधाई।
बहुत अच्छी कविता.बधाई.
जवाब देंहटाएंमैं मुस्कुरा रहा हूँ
जवाब देंहटाएंमैं मिटने जा रहा हूँ
तुममें समा रहा हूँ
फिर ये सवाल होगा, क्या मुझसे वक्त जीता?
तुम सोच रखो उत्तर, तुम ठेके हो सत्य के
जब सामना करेंगे मेरे टुकडे अस्तित्व के...
बहुत अच्छी कविता।
कालान्तर को मिटा कर अतीत को वर्तमान से जोडना एक कला है और इस रचना में उसे बखूबी निभाया गया है
जवाब देंहटाएंहर हर हुई है गंगे, हर कुछ समा गया है
जवाब देंहटाएंफिर उठ खडा हुआ हूँ, हिम्मत बटोर ली है
मैं जानता हूँ दुनिया भी भीम हो गयी है
वो दांव-पेंच जानें कि फिर चिरा न जाऊं
लेकिन लडूंगा जब तक सागर में मिल न जाऊं
एक एक पंक्ति एक एक क्विंट्ल की हैं,
बहुत अच्छी कविता।
बधाई स्वीकारें, राजीव जी।
rajeev ranjan ko padna achchha lagta hai. kavita vahi jo sawaal kare apne se bhi aur doosron se bhi..
जवाब देंहटाएंye bechenibani rahe...
badhai rajeev.
very nice poem rajeev jee. like u as always.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
अच्छी रचना हैृ कम से कम शब्दों में पूरी बात
जवाब देंहटाएंसूरज
महाभारत को लेकर
जवाब देंहटाएंछोटी सी
महाकविता का व्यापक
फलक हलक सुखा देता है
इसे पढ़ना एक लाजवाब
अनुभव से गुजरना है।
बहुत अच्छी कविता। बधाई।
जवाब देंहटाएंकभी पढा एक शेर याद आ गया कि
जवाब देंहटाएं" दुनिया वाले सब सच्चे पर जीना है उस को भी , एक गरीब अकेला पापी , किस किस से शरमाये |"
जरासंघ के सहारे हमारी कहानियों में त्रेता द्वापर से चले आ रहे भगवानों को हाशिये पर लिया है आप ने | और साथ में समर्पण भी है कि मिलना तो वहीं है जा कर .. परमात्मा में | एक आम आदमी का संग्राम दर्शाती हुई कविता ... जो ना तो भगवन है और ना ही कोई नायक...पर उसे जीने का हक़ है और लड़ने का भी |
फिर ये सवाल होगा, क्या मुझसे वक्त जीता?
जवाब देंहटाएंrajiv ji,
bahut sundar.
bhut dino baad aapki kalam me wahi aag dekhne ko mili
सभ्यता के निगेटिव चरित्र को लेकर जब कोई
जवाब देंहटाएंकविता रची जाती है और उसमें मानव-मूल्यों का संधान किया जाता है तो यह एक ज़ोखिम भरा,किंतु महत्वपूर्ण कार्य होता है। जैसे कि,रावण और कैकेयी को लेकर लिखी गयी कई कविताएँ भी हैं जहाँ मनुष्य के उदात्त मूल्यों की सृष्टि की गयी है। राजीव रंजन प्रसाद की कविता ‘टुकड़े अस्तित्व के’ में भी हम एक ऐसी ही कल्पना से साक्षात्कार करते हैं।यहाँ कविता की अंतर्वस्तु इतिहास को अभिनव रुप में प्रस्तुत करती हुई दृष्टिगत हुई है जिसमें कविता का रुप, उसकी भाषा तदनुसार लक्ष्य करके कवि की संवेदना को अभिव्यक्त करती है। वर्तमान सदैव इतिहास का अंधानुगामी नहीं होता, अपने अनुसार भी सिरजता है,यह कविता उसका अप्रतिम उदाहरण हो सकती है। मानवीय संघर्ष उस ईश्वरता के भी विरुद्ध यहाँ क्रियाशील और सचेष्ट दीखता है जो हमें छ्ल-छ्द्म सीखाते हैं -"फिर ये सवाल होगा, क्या मुझसे वक्त जीता?/तुम सोच रखो उत्तर, तुम ठेके हो सत्य के/जब सामना करेंगे मेरे टुकडे अस्तित्व के..." कविता मानवमन में बैठी जड़ता ,उसके रुढ़ि को तोड़ती हुई, सत्य के ठेकेदारों को चुनौती देती हुई उसके युगीन संघर्ष में शामिल होने की प्रेरणा देती है, उसकी जिजीविषा को उकसाती है। इसे ध्यान से पढ़ने की जरुरत है।अच्छी और संश्लिष्ट अर्थों को उघारती इस कविता के लिये राजीव जी बधाई स्वीकारें।- सुशील कुमार (मो. )ईमेल-
Ab mil gayaa haisab kuchh
जवाब देंहटाएंek rang ho gayaa hai
Har-har huee hai Ganga
har kuchh samaa gayaa hai
Phir uth khada hua hoon
himmat bator lee hai
Main jaanta hoon dunia
bhee bheem ho gayee hai
Vo daanv-pech n jaane
ki phir chiraa n jaaoon
lekin ladunga jab tak
sagar mein mil n jaaoon
Chhandmukt kavita mein bbhee
lai hotee hai aapkee kavita iskaa
prataksh udahran hai.Puraatan
vishya aur seedhee-sadee aadhunik
bhasha aapka bahut achchha prayog
hai.Badhaaee.
मैं मुस्कुरा रहा हूँ
जवाब देंहटाएंमैं मिटने जा रहा हूँ
तुममें समा रहा हूँ
फिर ये सवाल होगा, क्या मुझसे वक्त जीता?
तुम सोच रखो उत्तर, तुम ठेके हो सत्य के
जब सामना करेंगे मेरे टुकडे अस्तित्व के...
वाह बहुत सुन्दर।
अच्छी कविता की बधाई।
जवाब देंहटाएंक्या कहने हैं राजीव जी! क्या पृष्ठभूमि ।है
जवाब देंहटाएंअभिभूत हूं ,समय के दूरस्थ छोरों को किस कौशल के साथ बद्ध किया है आपने।
यह महाभारत उस अकेले का महाभारत है जिसकी अपनी परिभाषाएं हैं और अपने समाधान ।
चमत्कारी चित्रण ।
प्रवीण पंडित
तुममें समा रहा हूँ
जवाब देंहटाएंफिर ये सवाल होगा, क्या मुझसे वक्त जीता?
तुम सोच रखो उत्तर, तुम ठेके हो सत्य के
जब सामना करेंगे मेरे टुकडे अस्तित्व के...
वाह .....बहुत सुन्दर।...
बधाई स्वीकारें.... राजीव जी !
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.