
चाँद के चकले पर लबों की बेलन डाले,
बेलते नूर हैं हमे, सेकने को उजाले ।
उफ़क को घोंटकर
सिंदुर
पोर-पोर में
सी रखा है!
धोकर धूप को,
तलकर
हाय!
अधर ने तेरे चखा है!!
फलक को चूमकर
तारे
गढे हैं
तेरे ओठों ने!
हजारों आयतें,
रूबाईयाँ
आह!
इन लबों ने लखा है!!
सूरज को पीसकर,दिए इनको निवाले,
बेलते नूर हैं हम, सेकने को उजाले ।
18 टिप्पणियाँ
बहुत ही उम्दा रचना.
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
.बहुत सुंदर लगी आपकी यह रचना ..दीपावली की बधाई
जवाब देंहटाएंफलक को चूमकर
जवाब देंहटाएंतारे
गढे हैं
तेरे ओठों ने!
हजारों आयतें,
रूबाईयाँ
आह!
इन लबों ने लखा है!!
" kmaal kmaal kmaal bemeesal, bhut hee sunder"
Regards
उफ़क को घोंटकर
जवाब देंहटाएंसिंदुर
पोर-पोर में
सी रखा है!
बहुत सुंदर रचना ...
दीपावली की
हार्दिक बधाई
बहुत अच्छी कविता, शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना! बधाई स्वीकारें!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता लिखी है. लब-ए-महबूब का ज़िक्र तो वैसे भी शायरी का एक अहम हिस्सा है. आभार पढ़वाने का!
जवाब देंहटाएंNice poem
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
नये उपमान है, अच्छा लगा पढना।
जवाब देंहटाएंएकदम नूतन संग्याएं।
जवाब देंहटाएंपढ़कर भी अच्छा लगा , और महसूस करके भी।
प्रवीण पंडित
अच्छी कविता है....
जवाब देंहटाएंतन्हा जी,
जवाब देंहटाएंसुंदर उपमाओं से सजी रचना ... बधाई
थोड़े भारी शब्द है पर अच्छा लिखा है
जवाब देंहटाएंbrijesh शर्मा
दीपावली मुबारक
कठिन शब्दों का अगर मतलब भी आम पाठकों के लिए दिया जाता तो इस बेहतरीन रचना का मज़ा दुगना नहीं बल्कि चौगुना हो जाता।
जवाब देंहटाएंउपमा ही उपमा में पूरी कविता, समझने में श्रम तो लगा किंतु कविता अच्छी है।
जवाब देंहटाएंतनहा जी,
जवाब देंहटाएंआपकी एक और अच्छी कविता की बहुत बहुत बधाई
तनहा जी,
जवाब देंहटाएंशब्द चित्र बखूबी खीचा है आपने, लेकिन कविता दुरूह अवश्य है। कविता को एक ही बार पढ कर काव्यरस नही लिया जा सकता अपितु इसे ध्यान पूर्वक बिम्बों की श्रंखला में डूब कर पढना आवश्यक है।
कविता उत्कृष्ट है, एक कवि के तौर पर यह आपके श्रेष्ठ में से एक है।
***राजीव रंजन प्रसाद
उपमाओ का परिवहन शब्द भाव भार से दबे दबे हैं ।सुंदर प्रयास ।छगनलाल गर्ग।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.