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मुश्किलों में मुस्कुराना सीखिये [ग़ज़ल] - नीरज गोस्वामी

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मुश्किलों में मुस्कुराना सीखिये
फूल बन्जर में उगाना सीखिये

खिड़कियों से झांकना बेकार है
बारिशों में भीग जाना सीखिये

आंधियां जब दे रही हो दस्तकें
तब दिये की लौ बचाना सीखिये

ताक पर धरके उसूलों को कभी
नाम अपना मत कमाना सीखिये

खामशी से आज सुनता कौन है
शोर महफिल में मचाना सीखिये

डालिये दरिया में यूं मत नेकियां
अब भला करके जताना सीखिये

तान के रखिये इसे हरदम मगर
सर किसी दर पे झुकाना सीखिये

भीगती 'नीरज' किसी की याद से
आंख को सबसे छुपाना सीखिये

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27 टिप्पणियाँ

  1. सुंदर भावपूर्ण रचना.. सही में आदमी की पहचान तभी होती है जब उसका सामना कठनाईयों से होता है. नम्रता और धैर्य ही मानव की शक्ति हैं

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  2. खामशी से आज सुनता कौन है
    शोर महफिल में मचाना सीखिये

    डालिये दरिया में यूं मत नेकियां
    अब भला करके जताना सीखिये
    सुंदर रचना..

    जवाब देंहटाएं
  3. ग़ज़ल के माध्यम से अची सीख दी नीरज जी ने | हर शेर के पीछे एक सोच है एक दिशा है जो कि बहुत साफ़ दिखाई दे रही है |

    डालिये दरिया में यूं मत नेकियां
    अब भला करके जताना सीखिये

    बहुत खूब ... ग़ज़ल के मकते में भी काफ़ी दम है ..:-) मैं तह ऐ दिल से इत्तेफाक रखता हूँ ... अच्छे ख्याल से सजी हुई ग़ज़ल ... बाकी तकनीकी पक्ष पर टिपण्णी तो कोई उस्ताद ही कर सकते हैं |

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  4. बहुत अच्‍छी सीख दी है आपने लोगों को , इस गजल के माध्‍यम से। धन्‍यवाद।

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  5. 'अब भला करके जताना सीखिये'
    बहुत ही सटीक व्यंग!

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  6. ख़याल बहुत अच्छे हैं नीरज साहब.. छोटे बहर की ग़ज़ल होने के बावजूद पूर्णता दिखाई देती है इसमें .. भाव के बारे में तो बात हो चुकी है जिससे मैं सहमत हूँ

    लेकिन मैं तकनीकियों पे भी कुछ कहना चाहूँगी...
    एक बात जिसके लिए आपको बधाई है.. वो यह है की आप बहर पर पकड़ कभी नही छोड्ते..

    लेकिन इस कारण भाषा टूट फूट जाती है.. और शब्द ज़ब रन फ़साए और बिठाए हुए से लगते हैं.. जैसे की ये..
    आंधियां जब दे रही हो दस्तकें
    दस्तकें कोई लफ्ज़ नही होता..
    दस्तक ही होता है
    नाम अपना मत कमाना सीखिये
    इस मिसरे में सब्जेक्ट वर्ब ऑब्जेक्ट सब अस्त व्यस्त हो गये...

    ग़ज़ल इसीलिए लिखी नही जाती क्यूँ की ग़ज़ल हमेशा कही जाती है.. क्यूँ की ग़ज़ल मुख्य तौर पे बातचीत करने का एक तरीका होता है.. और बात चीत में हमेशा vocablury और grammer का जिस तरह प्रयोग होता है.. उसी तरह ग़ज़ल में भी होना चाहिए...

    जैसे की ये मिसरे..
    फूल बन्जर में उगाना सीखिये
    शोर महफिल में मचाना सीखिये

    ये ऐसे होना चाहिए था:

    बन्जर फूल में उगाना सीखिये
    महफिल शोर में मचाना सीखिये

    और अगर ऐसे भी उसे करना है.. तो फिर प्यूंक्चुयेशन मार्क्स लगायें.. क्यूंकी यहाँ हम सुन नही सकते... सुनने में विराम और अल्प विराम समझ आ जाते हैं.. लिखते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए...


    आशा करती हूँ की आप बुरा ना मान कर.. इससे पॉज़िटिव वे में लेंगे..

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  7. Gazal ka ek-ek sher dil ko chhoota
    hai.Jyon-jyon main sher padhta
    gayaa tyon-tyon dil "wah"kahta gaya.Neeraj bhai,is behtreen gazal
    kahne ke liye dher saaree badhaeean
    aapko.

    जवाब देंहटाएं
  8. खिड़कियों से झांकना बेकार है
    बारिशों में भीग जाना सीखिये

    डालिये दरिया में यूं मत नेकियां
    अब भला करके जताना सीखिये

    तकनीकी पहलुओं का तो मुझे ज्ञान नहीं किंतु निस्संदेह आपकी गज़ल बहुत प्रभावी है।

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  9. हर शेर बेहतरीन है। बहुत बहुत बधाई।

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  10. तान के रखिये इसे हरदम मगर
    सर किसी दर पे झुकाना सीखिये


    -बहुत उम्दा, क्या बात है!
    आनन्द आ गया.

    जैसे की ये मिसरे..
    फूल बन्जर में उगाना सीखिये
    शोर महफिल में मचाना सीखिये

    ये ऐसे होना चाहिए था:

    बन्जर फूल में उगाना सीखिये
    महफिल शोर में मचाना सीखिये

    समझ नहीं आ पाया!

    शायद ऐसा तो नहीं:

    बन्जर में फूल उगाना सीखिये
    महफिल में शोर मचाना सीखिये

    -खैर, तकनीकियों का मुझे ज्ञान नहीं. उनकी ही बात सही होगी. मैने तो एक और प्रयास बस किया.
    -

    जवाब देंहटाएं
  11. खिड़कियों से झांकना बेकार है
    बारिशों में भीग जाना सीखिये

    आंधियां जब दे रही हो दस्तकें
    तब दिये की लौ बचाना सीखिये


    खामशी से आज सुनता कौन है
    शोर महफिल में मचाना सीखिये

    सुभान अल्लाह....क्या बात है

    जवाब देंहटाएं
  12. Maktub jee,aap dwara sanshodhit
    ye do misre samajh mein nahin aaye
    hain-----
    Banjar phool mein ugaan chahiye
    aur
    Mahfil shor mein nachana chahiye
    kya aap inke arth aur inkee
    bahar bataayengee?Aapse vintee hai.

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  13. हमेँ तो नीरज भाई साहब की गज़लेँ हमेशा बहुत भातीँ हैँ -जितने अच्छे दिल के इन्सान हैँ लिखते भी उतना ही बढिया हैँ
    सभी को दीपावली की शुभकामनाएँ

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  14. डालिये दरिया में यूं मत नेकियां
    अब भला करके जताना सीखिये

    सही तस्वीर खिंची है आपने ज़माने के दस्तूरों की.

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  15. वाहवा
    अच्छी गज़ल लेकिन मैं इसे आपके ब्लाग पा काफी दिन पहले पढ़ चुका था बहरहाल दोबारा भी उतनी ही अच्छी लगी
    साधुवाद

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  16. Kya bat kahi hai janab....Dil khush ho gaya.
    मुश्किलों में मुस्कुराना सीखिये
    फूल बन्जर में उगाना सीखिये

    जवाब देंहटाएं
  17. मोहतरमा मकतब जी
    आप ने मेरी ग़ज़ल इतने ध्यान से पढ़ी उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया...आप ने सच कहा की ग़ज़ल कही जाती है लिखी नहीं जाती और ये ही सोच कर मैंने इस ग़ज़ल को कहने की कोशिश की...अगर आप इसे तरन्नुम से पढ़ें तो लफ्ज़ इतने ग़लत नहीं लगते....बहरहाल मैं तो तालिब-ऐ-इल्म हूँ और अभी अपने गुरुजनों से सीख ही रहा हूँ....गलतियाँ हमेशा सुधार की तरफ़ इशारा करती हैं और अच्छा कहने का हौसला बढाती हैं... मैं कोशिश करूँगा की आप के मशवरे को हमेशा जेहन में रखूं...इनायत बनाये रखें...
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  18. खिड़कियों से झांकना बेकार है
    बारिशों में भीग जाना सीखिये

    आंधियां जब दे रही हो दस्तकें
    तब दिये की लौ बचाना सीखिये
    वाह! बहुत खूब. पढ़कर आनंद आ गया.

    जवाब देंहटाएं
  19. ख़ाक इनायत बनायें रक्खे मोहतरमा को वज़्न का इल्म होता तो उपरोक्त मिसरों को ऐसे नहीं कहतीं.
    तुम अपनी जगह दुरस्त हो और मिमियाकर मोहतरमा की नवाज़िश कर रहे हो धन्य हो यार.समीरजी ने अपने तरीके से इशारा कर दिया.प्राणजी भी इशारा करहे है फिर भी तुम्हें अपने पर भरोसा नहीं हमने तो सोचा था तुम्हारे गुरु आकर कुछ कहेंगे.वे तो नज़र नहीं आये. सो हमें मज़बूरन आना पड़ा.सौम्यता इतनी भी ठीक नहीं मित्र की लोग मुर्ख समझ बैठें तुमलोगों की टिप्पणी लोलुपता खास कर एस वर्ग विशेष की तुम्हारी जहियत पर सवाल खड़ा करती है क्यों अपने गुरू का नाम डुबोते हो उनका दिया इल्म सही है और तुम भी सही अपने पर यकीन करों.यूँ फेंफें मत किया करो इनाइत बनाये रक्खो.आद पहली बार तुम पर गुस्सा आया है सच्चे हो फिर भी घिघिया रहे हो.

    जवाब देंहटाएं
  20. आदरणीय नीरज जी,

    बस्तर में हूँ इन दिनों और मुश्किल से ही नेट मिल पाता है इस लिये विलंब से टिप्पणी कर रहा हूँ क्षमा करेंगे।

    आप अपने प्रत्येक शेर और शिल्प पर कठिन श्रम करते हैं यह बात विदित है, बहुत कम रचनाकार इतना समय अपने विचारों को सही शिल्प में ढालने के लिये दे पाते हैं। यही कारण है आपकी गज़लें तराशी हुई होती हैं। प्रस्तुत गज़ल के कथ्य तथा शिल्प दोनों से प्रभावित हुआ जा सकता है, जो शेर खास पसंद आये उद्धरित कर रहा हूँ:

    मुश्किलों में मुस्कुराना सीखिये
    फूल बन्जर में उगाना सीखिये

    खिड़कियों से झांकना बेकार है
    बारिशों में भीग जाना सीखिये

    डालिये दरिया में यूं मत नेकियां
    अब भला करके जताना सीखिये

    भीगती 'नीरज' किसी की याद से
    आंख को सबसे छुपाना सीखिये

    बधाई स्वीकारें।

    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  21. "Dastak"shabd kriya hai aur vo ek
    vachan hai.Uskaa bahuvachan bhee
    dastak hai.Isliye "dastken"ya
    "dastkon"kaa prayog sahee nahin
    hai.Dastak ke baare mein to mohtarma Maktub ne sahee farmaya
    hai lekin ashaar ka sansshodhan
    unkee nasamjhee hai.

    जवाब देंहटाएं
  22. नीरज जी तकनीकी ज्ञान तो हमें है नहीं लेकिन गजल पढ़ते हुए, नहीं कहना चाहिए सुनते हुए कानों में तरन्नुम में ही सुनाई दे रही है और हम भाव विभोर हो रहे हैं। सच है आप ने इतने मीठे ढंग से बड़ी गहरी बातें कह दी। और आप की गजल से प्रभावित हो कर अनूप जी ने जो गजलनुमा चीज बनाई वो तो आप की गजल की अनूठी तारिफ़ है ही। दोनों बेहतरीन हैं।

    जवाब देंहटाएं
  23. डालिये दरिया में यूं मत नेकियां
    अब भला करके जताना सीखिये

    इत्तफ़ाक़ है इस सच से , बाक़ी ग़ज़ल --भई वाह !
    हर शेरे अपने मे लाजवाब ।

    प्रवीण पंडित

    जवाब देंहटाएं
  24. बहुत अच्छी गज़ल है। हर शेर बेहतरीन।

    खिड़कियों से झांकना बेकार है
    बारिशों में भीग जाना सीखिये

    जवाब देंहटाएं

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