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17 टिप्पणियाँ
बिल्कुल सटीक | छटनी की शुरुआत छोटे कर्मचारियों से ही शुरू होती है
जवाब देंहटाएंइस विडंबित संसार में सताया लघुमानव को जाता है। इसलिये कार्टून प्रासंगिक और समसामयिक है।
जवाब देंहटाएंअभिषेक भाई , बहुत बढिया ।
जवाब देंहटाएंअभिषेक जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सामयिक विषय लिया है. इसमें आम इंसान की पीड़ा बहुत सुंदर रूप मैं व्यक्त हो रही है.बधाई.
अभिषेक जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सामयिक विषय लिया है. इसमें आम इंसान की पीड़ा बहुत सुंदर रूप मैं व्यक्त हो रही है.बधाई.
यह छंटनी की छटा
जवाब देंहटाएंबहुत अद्भुत है क्योंकि
छंटनी और छोटे
'छ' की नामराशि के
ही हैं इसलिए छंटनी की
छवि छोटे कर्मचारियों पर
छिटकती है, इसमें कोई
आश्चर्य नहीं ? इससे
मिल सकता छुटकारा नहीं
वैसे यह है कोई कारा नहीं।
छटनी डालों की ही की जाती है। कभी मुख्य शाखा को कटते देखा है?
जवाब देंहटाएंरघुकुल रीत सदा चली आई...
जवाब देंहटाएंछोटों की बलि ही कष्ट मिटाई...
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअभिषेक जी,
जवाब देंहटाएंकार्टून को विधा का दर्जा आप जैसे विचारशील कलाकारों की बदौलत है। किस खूबसूरती से दर्द को बयाँ किया है कि मुस्कुराहट उभरती भी है और चुभती भी है।
***राजीव रंजन प्रसाद
सच्चाई को बयाँ करता बहुत अच्छा कार्टून है।
जवाब देंहटाएं:) बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंसच्चाई है। बहुत अच्छा कार्टून। बधाई।
जवाब देंहटाएंसुंदर सामयिक कार्टून
जवाब देंहटाएंक्या बात है..... बिलकुल सच है....
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया.
जवाब देंहटाएंएक पुरानी कहावत है... कि जब दो भैंसे लडते हैं तो छोटे मोटे पेड पौधों और जीवों की शामत आ जाती है :)
बहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.