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छंटनी [सप्ताह का कार्टून] - अभिषेक तिवारी

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17 टिप्पणियाँ

  1. बिल्कुल सटीक | छटनी की शुरुआत छोटे कर्मचारियों से ही शुरू होती है

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  2. इस विडंबित संसार में सताया लघुमानव को जाता है। इसलिये कार्टून प्रासंगिक और समसामयिक है।

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  3. अभिषेक जी,
    बहुत ही सामयिक विषय लिया है. इसमें आम इंसान की पीड़ा बहुत सुंदर रूप मैं व्यक्त हो रही है.बधाई.

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  4. अभिषेक जी,
    बहुत ही सामयिक विषय लिया है. इसमें आम इंसान की पीड़ा बहुत सुंदर रूप मैं व्यक्त हो रही है.बधाई.

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  5. यह छंटनी की छटा
    बहुत अद्भुत है क्‍योंकि
    छंटनी और छोटे
    'छ' की नामराशि के
    ही हैं इसलिए छंटनी की
    छवि छोटे कर्मचारियों पर
    छिटकती है, इसमें कोई
    आश्‍चर्य नहीं ? इससे
    मिल सकता छुटकारा नहीं
    वैसे यह है कोई कारा नहीं।

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  6. छटनी डालों की ही की जाती है। कभी मुख्य शाखा को कटते देखा है?

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  7. रघुकुल रीत सदा चली आई...

    छोटों की बलि ही कष्ट मिटाई...

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. अभिषेक जी,

    कार्टून को विधा का दर्जा आप जैसे विचारशील कलाकारों की बदौलत है। किस खूबसूरती से दर्द को बयाँ किया है कि मुस्कुराहट उभरती भी है और चुभती भी है।

    ***राजीव रंजन प्रसाद

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  10. सच्चाई को बयाँ करता बहुत अच्छा कार्टून है।

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  11. सच्चाई है। बहुत अच्छा कार्टून। बधाई।

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  12. बहुत बढिया.
    एक पुरानी कहावत है... कि जब दो भैंसे लडते हैं तो छोटे मोटे पेड पौधों और जीवों की शामत आ जाती है :)

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