सबसे दिल का हाल न कहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं
जो कुछ गुज़रे ख़ुद पर सहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं
हो सकता है इससे दिल का बोझ ज़रा कम हो जाए
क़तरा क़तरा आंख से बहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं
इस जीवन की राह कठिन है पांव मे छाले पड़ते हैं
मगर हमेशा सफ़र में रहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं
नए रंग में ढली है दुनिया प्यार पे लेकिन पहरे हैं
ख़्वाब सुहाने बुनते रहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं
प्यार को अब तक इस दुनिया ने जाने कितने नाम दिये
हमने कहा ख़ुशबू का गहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं
उसकी यादों से रोशन है अब तक दिल का हर कोना
मिल जाए तो उससे कहना लोग तो कुछ भी कहते हैं
*****
देवमणि पांडेय, हिन्दी और संस्कृत में प्रथम श्रेणी एम.ए. हैं। अखिल भारतीय स्तर पर लोकप्रिय कवि और मंच संचालक के रूप में सक्रिय हैं। अब तक दो काव्यसंग्रह प्रकाशित हो चुके हैं- "दिल की बातें" और "खुशबू की लकीरें"। मुम्बई में एक केंद्रीय सरकारी कार्यालय में कार्यरत पांडेय जी ने फ़िल्म 'पिंजर', 'हासिल' और 'कहां हो तुम' के अलावा कुछ सीरियलों में भी गीत लिखे हैं। फ़िल्म ' पिंजर ' के गीत '' चरखा चलाती माँ '' को वर्ष 2003 के लिए 'बेस्ट लिरिक आफ दि इयर' पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इस गीत को सुनने के लिये नीचे प्रस्तुत प्लेयर पर चटखा लगायें:-
हमारे एक सुधी पाठक ने उपर्युक्त गीत के बारे में कुछ शंका ज़ाहिर की थी जिसे जानकर देवमणि जी ने इस संदर्भ में स्पष्टीकरण दिया है -
"अपनी ग़ज़ल पर इतनी सुंदर टिप्पणियां पढ़कर अभिभूत हूँ| भाई पंकज सक्सेना ने फिल्म 'पिंजर'के गीत के बारे में एक सवाल उठाया है| दरअसल निर्माता की ग़लती से कैसेट/सीडी पर मेरे गीत पर अमृता जी का नाम छप गया था| इस विवाद पर मुम्बई के अख़बारों में बहुत कुछ छप चुका है| वास्तविकता यह है कि अमृता प्रीतम ने 'पिंजर' उपन्यास में एक पंजाबी लोकगीत की चार लाइनें कोट की हैं- 'चरखा जू डाहनीया,छोपे जू पाणीयां,पिणियां ते वाले मेरे खेस नी......|’ निर्देशक डॉ.चंद्रप्रकाश द्विवेदी के अनुरोध पर मैने इसी को बेस बनाकर 16 लाइनों का एक गीत लिखा था| जब मैने यह गीत लिखा था उस समय अमृता जी इतनी बीमार थीं कि चलने फिरने की स्थिति में नहीं थीं| बहरहाल मैं इस गीत का प्रेरणास्रोत अमृता जी को ही मानता हूं और उनका आभारी हूँ|"
हम अपने ऐसे पाठकों के आभारी हैं जो हमें इतने ध्यान से पढ़ते हैं और किसी भी संभावित चूक की तरफ हमारा ध्यान आकर्षित करते हैं। आशा है कि आप भविष्य में भी ऐसा ही स्नेह बनाये रखेंगे ।
21 टिप्पणियाँ
बहुत अच्छा लगा देवमणि जी को साहित्य शिल्पी पर पढ कर और सुन कर। बहुत अच्छी गज़ल है, साथ ही गीत भी बेहतरीन है।
जवाब देंहटाएंहो सकता है इससे दिल का बोझ ज़रा कम हो जाए
जवाब देंहटाएंक़तरा क़तरा आंख से बहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं
ultimate.
-Alok Kataria
उसकी यादों से रोशन है अब तक दिल का हर कोना
जवाब देंहटाएंमिल जाए तो उससे कहना लोग तो कुछ भी कहते हैं
अतिउत्तम!!!
मज़ा आ गया।
इस जीवन की राह कठिन है पांव मे छाले पड़ते हैं
जवाब देंहटाएंमगर हमेशा सफ़र में रहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं
नए रंग में ढली है दुनिया प्यार पे लेकिन पहरे हैं
ख़्वाब सुहाने बुनते रहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं
वाह! बहुत सुंदर लिखा है.
Devmani pandey jee ne lambee radeef
जवाब देंहटाएं"log to kuchh bhee kahte hai"ko
badee khoobee ke saath nibhaayaa
hai.Ek-ek sher mein saadgee,
ravaangee aur shaeestgee hai.
Devmani pandey jee mere priy
gazalkaron mein hain.
बहुत ही बेहतरीन गज़ल है। अंतिम शेर का कोई जवाब नहीं...वाह!
जवाब देंहटाएंउसकी यादों से रोशन है अब तक दिल का हर कोना
मिल जाए तो उससे कहना लोग तो कुछ भी कहते हैं
"चरखा चलाती माँ" गीत के विषय में कृपया स्पष्ट करें। देवमणि जी नें संभवत: गीत का अनुवाद अथवा कुछ पंक्तियाँ जोडी हैं अमृता प्रीतम की कविता के साथ। सही जानकारी के आभाव में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
देवमणि जी की और भी रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
बहुत ही सुंदर ग़ज़ल है.आनंद आ गया पढ़कर.
जवाब देंहटाएंबढ़िया ग़ज़ल | रदीफ़ का अचा इस्तेमाल किया है अधिकतर शेरो में | ये पंक्तिया काफ़ी पसंद आईं |
जवाब देंहटाएंप्यार को अब तक इस दुनिया ने जाने कितने नाम दिये
हमने कहा ख़ुशबू का गहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं....
बधाई स्वीकारें |
एसी रचनायें पढ कर लगता है कि साहित्य जीवित है। हर शेर बेहतरीन और सधा हुआ। देवमणि जी बहुत बहुत बधाई। आपको इस मंच पर निरंतर पढने की इच्छा बढ गयी है..
जवाब देंहटाएंपूरी की पूरी गज़ल उद्धरित करनी होगी यदि अपनी पसंद का शेर चुनना चाहूँ। बहुत सीखने को मिलेगा साहित्य शिल्पी पर यह तो तय है। देवमणि जी को इस गज़ल को पढवाने के लिये धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसबसे दिल का हाल न कहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं
जवाब देंहटाएंजो कुछ गुज़रे ख़ुद पर सहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं
हो सकता है इससे दिल का बोझ ज़रा कम हो जाए
क़तरा क़तरा आंख से बहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं
इस जीवन की राह कठिन है पांव मे छाले पड़ते हैं
मगर हमेशा सफ़र में रहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं
उसकी यादों से रोशन है अब तक दिल का हर कोना
मिल जाए तो उससे कहना लोग तो कुछ भी कहते हैं
एसी खूबसूरत ग़ज़ल कि गुनगुनाने को मन करता है। याद रह जाने वाली और मन में रह जाने वाली ग़ज़क है। देवमणि जी को बधाई।
हो सकता है इससे दिल का बोझ ज़रा कम हो जाए
जवाब देंहटाएंक़तरा क़तरा आंख से बहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं
kamaal kaha hai devmani ji ko padhna hamesha hi bhaut achha lagta raha hai
देवमणि जी इसे कहते है सरल शब्दों मैं गहरी बात कहना बहुत सुंदर, आपकी अन्य रचनाओं का इन्तेजार रहेगा
जवाब देंहटाएंदेवमणि जी,
जवाब देंहटाएंआपकी यह ग़ज़ल प्रभावित करती है। "लोग तो कुछ भी कहते हैं" को आपने बखूबी स्थापित किया है। एक बेहतरीन रचना के लिये बहुत बहुत बधाई।
***राजीव रंजन प्रसाद
देवमणि जी,
जवाब देंहटाएंआप जैसे लोकप्रिय कवि और मंचसंचालक का साहित्य शिल्पी से जुडना निश्चय ही साहित्य शिल्पी के लिये एक बहुत बडी उपलब्धि है..
अपनी गजल में आपने बेहतरीन ख्यालात का मुजाहरा किया है...
इस जीवन की राह कठिन है पांव मे छाले पड़ते हैं
मगर हमेशा सफ़र में रहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं
उसकी यादों से रोशन है अब तक दिल का हर कोना
मिल जाए तो उससे कहना लोग तो कुछ भी कहते हैं
देवमणि जी!
जवाब देंहटाएंआपकी रचना सच में प्रशंसनीय है, क्योंकि सीधे-सादे शब्दों में आपने बहुत हीं बड़ी बात कही है।
बधाई स्वीकारें।
Aapkee kavita ke pahle mahakavi
जवाब देंहटाएंPt.Narendra Sharma jee kee kaavya-
panktion ne bhee mun ke taar jankrit kar diye hain.
नए रंग में ढली है दुनिया प्यार पे लेकिन पहरे हैं
जवाब देंहटाएंख़्वाब सुहाने बुनते रहना लोग तो कुछ भी कहतें हैं
प्रशंसनीय प्रस्तुति। सुन्दर।
लगे चुराने सपन हमारे सुनहरे सपने सजाये रखना।
कभी तीरगी खतम तो होगी चराग दिल मेंजलाये रखना।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
देवमणि जी जितनी खूबसूरत ग़ज़ल कहते हैं उतने ही खूबसूरत दिल के मालिक हैं. एक सच्चा और अच्छा इंसान ही बेहतरीन कलाम लिख सकता है. मुझे खुशी है की मैं उन्हें जानता हूँ और एहसान मंद हूँ की उन्होंने मेरे निमंत्रण को स्वीकार कर मेरे यहाँ हुए काव्य संध्या समारोह में शिरकत की.
जवाब देंहटाएंउनकी ये ग़ज़ल न सिर्फ़ काफिये और रदीफ़ की वजह से बल्कि अपने एहसास की वजह हमेशा याद रहेगी. उनसे आईन्दा भी ऐसी ही ग़ज़लें पढने को मिलें तो लुत्फ़ आता रहे.
नीरज
किस शेर को छोड़ूं और किस का ज़िक़्र करूं।इस पशोपेश मे यह कहना ना भूलूंगा कि बेमिसाल गज़ल है ।
जवाब देंहटाएंदेव मणि जी !खूबसूरत अहसास के लिये शुक्रिया।
प्रवीण पंडित
बहुत अच्छी गज़ल
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गीत
देव मणि जी !
शुक्रिया।
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.