इनसे मिलिये। देवरे जी हैं। पूरा नाम शांताराम रघुनाथ देवरे। उम्र साठ साल और पांच महीने लेकिन लगते मुश्किल से चालीस - बयालीस के ही हैं। और यही सारी मुसीबत की जड़ है। सेहत एकदम फिट। उस पर सारे बाल मौजूद और एकदम घने - काले। चेहरे पर हर वक्त ताजग़ी और साथ में मारक मुस्कान। वैसे भले और मिलनसार हैं लेकिन चरित्र की गारंटी हम नहीं दे पायेंगे। आगे जो किस्सा है हम बयान कर रहे हैं उसी से आपको उनके चरित्र के बारे में भी पता चल जायेगा। हमारे ही ऑफिस में काम करते हैं। काम करते हैं कहना ठीक नहीं होगा क्योंकि पांच महीने पहले वीआरएस ले कर रिटायर हो चुके हैं।
उनकी आशिक मिजाजी ज़गजाहिर है। शायद ही उनके जीवन में कभी कोई ऐसा दौर आया हो जब उनकी दो - चार प्रेमिकाएं न रही हों। घोषित भी और अघोषित भी। प्रेमिकाएं न भी रही हों तो भी उन्हें कोई मलाल नहीं होता। वे घर पर झाडू - पौंछा करने वाली लडक़ी पर भी उतना ही प्यार और उपहार न्यौछावर करते देखे जा सकते हैं जितने किसी और ठीक - ठाक प्रेमिका पर। पत्नी ने कितनी बार तो रंगे हाथों पकड़ा है। लेकिन देवरे जी को क्या परवाह!
अड़ोस पड़ोस में उनकी ख्याति का यह आलम है कि उनके दरवाजे से लगे दूसरे फ्लैट में रहने वाली ने उन्हें अपनी दहलीज लांघने से मना कर रखा है। जो कुछ कहना - सुनना है, मांगना - देना है, वो सब बीवी के जरिये करो। आप दहलीज पार नहीं करेंगे।
पत्नी उनकी टैलिफोन विभाग में काम करती है। दोनों बच्चों की शादी हो चुकी है और उन्हें नाना - दादा बने अरसा हो गया है। लडक़ा आजकल आयरलैण्ड में है।
तो बात यूं बनी या कि बिगड़ी कि वैसे तो उनकी पत्नी ने उनकी परवाह करना बन्द कर दिया है - कहीं जिये या मरे लेकिन जब उसे अपने ऑफिस से मोबाइल फोन मिला तो उसने सोचा कि वह पहला फोन देवरे को ही करे। उसने जब उसे अपने मोबाइल से उसके ऑफिस फोन मिलाया तो उसे बताया गया कि देवरे को रिटायर हुए तो पांच महीने होने को आये और रिटायरमेन्ट के बाद तो वह एक बार भी ऑफिस नहीं आया है उसका चमकना लाजमी था।
- लेकिन वह तो रोज सुबह टिफिन लेकर हमेशा की तरह मुझसे पहले ही निकलता है घर से।
- अब इस बारे में हम क्या कह सकते हैं, बल्कि हमारे यहां तो नये प्रोविजन के मुताबिक रिटायरमेन्ट की पार्टी में आजकल वाइफ को भी बुलाते हैं। आपके बारे में तो देवरे ने यही बताया था कि आप शहर में ही नहीं हैं।
- आपको पक्का यकीन है कि वो रिटायर हो गया है!
- क्या बात करती हैं मैडम। पूरे ऑफिस की मौजूदगी में उसकी फेयरवेल पार्टी हुई थी और उसे चांदी के गिलास भी दिये गये थे।
- ठीक है। थैंक्स। मेरी किस्मत में शायद यही लिखा था कि मेरे मोबाइल पर पहली खबर यही मिलेगी!
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18 टिप्पणियाँ
मैं दो एक एसे लोगों को जानता भी हूँ। सूरज प्रकाश एसे ही महान कहानीकारों में नहीं गिने जाते, उनकी कलम से उनका अनुभव व ऑबजर्वेशन बोलता है।
जवाब देंहटाएंविवाह एक सामाजिक संस्थान है और पुरुषों की लम्पटता से इस पर कभी कभी आघात होते रहते हैं | उन्हीं आघातों में से एक का बयान करती है ये लघु कथा | देवरे का पूरा चरित्र चित्रण आरम्भ में कर देने के बाद भी आप अंत में पाठक को चकित कर देते हैं , जो की इस रचना की खूबी कही जा सकती है | अच्छा प्रयास | :-)
जवाब देंहटाएंपत्नी की सामान्य जानकारी कमजोर लगती है.. वर्ना रिटार्यमेंट का तो एक साल पहले से ही पता चल जाता है और उल्टी गिनती शुरु हो जाती है.. यही गेप पतियों के लिये बाहर का रास्ता खोल देता है..
जवाब देंहटाएंसामान्य सी घटना को एक विशिष्ट लघुकथा में परिणत करना एक सिद्ध लेखक का प्रमाण है..
बहुत प्रभावित किया इस लघुकथा नें। सोच को एक दूसरा ही दृष्टिकोण मिला।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सूरजप्रकाश जी,
जवाब देंहटाएंआपकी कहानिया/लघुकथा पढना एक अनुभव है। हर बार एक नये आयाम के साथ..देवेरे जी जैसे बहुतेरे हैं आज।
***राजीव रंजन प्रसाद
ग़नीमत है कि पत्नी को मोबाइल
जवाब देंहटाएंमिल गया था ,देवरे जी के रिटायरमेंट का पता तो चल गया उन्हें।
वरना तो क़ुनबा बसा चुके होते कहीं , और पत्नी टिफ़िन ही लगाती रहतीं।
कथा बहुत मन भाई ।
प्रवीण पंडित
बहुत अच्छे ढंग से कही गई शसक्त कथा.
जवाब देंहटाएंदेवरे जैसे लोगों की कमी नही समाज में.कहीं ढांपे छुपे कहीं,कुख्यात. .शायद यही वजह है कि नई पीढी विवाह जैसी संस्थाओं पर से आस्था खोती जा रही.
एक अच्छी रचना के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंEk aur sashakt rachnaa janaab
जवाब देंहटाएंSuraj Prakash kee lekhnee se.
अच्छी कहानी है सूरज जी. आप मानव स्वाभाव का सूक्ष्म विश्लेषण कर लेते हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी कहानी.... बधाई
जवाब देंहटाएंशुकर मानिए मोबाईल का कि पाँच महीने में ही पता लग गया, नहीं तो पोस्ट कार्ड के ज़माने में तो वो भी पता नहीं लगता।
जवाब देंहटाएंऔर देवरे जी जैसे लोगों की तो कमी नहीं, उमर पचपन की और दिल बचपन का ले कर घुमते हैं।
बहुत अच्छी लघु कथा।
मोबाईल की यह खता बेचारे देवरे जी को भारी पडने वाली है,...आगे क्या हुआ? :)
जवाब देंहटाएंसूरजप्रकाश जी की एक और बेहतरीन प्रस्तुति। वैसे भी सूरज जी की प्रशंसा में दीपक क्या जलाना, सूरज तो सूरज ही है।
जवाब देंहटाएंएक अच्छी रचना के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी कहानी.... बधाई
जवाब देंहटाएंघर घर की कहानी
जवाब देंहटाएंमें
मोबाइल फोन की
उप (योगिता) ?
"भला है...बुरा है...
जवाब देंहटाएंजैसा भी है...
मेरा पति...मेरा देवता है"...
"जय हो पति परमेश्वर की"...
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