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दीपावली पर कुछ कवितायें - प्रवीण पंडित, ब्रिजेश शर्मा व श्रीकान्त मिश्र 'कान्त'

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दिवाली गिफ़्ट एक्सप्रैस

मोनू को ग्रीटिंग भेजूँगा
नीनू को ई--मेल
अपने सारे फ़्रेंड्स को दूँगा
गिफ़्ट में एक-एक रेल

रेल में डिब्बे पाँच लगेंगे
इंजिन भागम-भाग
रूही दीदी बनी ड्राईवर
मुन्नु भैय्या गार्ड

डिब्बा नं॰ एक में ड्रेसेज
दो में ढेरों स्वीट्स
डिब्बा नं॰ तीन में रख दूँ
प्यारी--प्यारी गिफ़्ट्स

चौथे डिब्बे में कुछ केंडल
चौकलेट ,बाइट्स
मम्मा की पूजा की थाली
डेडी की लाइट्स

और पाँचवें डिब्बे में
कुछ क्रेकर , थोड़े बम
मुन्नु भैय्या गार्ड ये बोले
रुक जा वीनु! थम

बम,क्रेकर ना लोड करूँगा
जाये डिब्बा खाली
ख़तरनाक चीज़ों से बचना
हैप्पी तुम्हें दिवाली
वीनु!हैप्पी तुम्हें दिवाली
- प्रवीण पंडित


मेरी दिवाली तब मने!

हर और फैले रोशनी
हर घर मैं जब दीपक जले
मेरी दिवाली तब मने!

ना सोये फुटपाथों पर कोई
जा कोई बेघर सड़कों पर पडा
हो सबको छत और आसरा
मेरी दिवाली तब मने!

हो दीवलो मैं आग तो
पर पेट न भूखा कोई जले
हर एक को रोटी मिले
मेरी दिवाली तब मने!

अपने ही कुछ भाई जो
है रास्ता भूले भले
अपने ही घर गलियों को जो
बारूदों के हवाले कर रहे
ये अमन का पैगाम दे
मेरी दिवाली तब मने!

है मन में ये नन्हा ख़याल
ऐसी दिवाली अब मने
मेरी दिवाली अब मने !
- ब्रिजेश शर्मा



दिया नहीं जलेगा

धूम.. धूम.. पिट... पिट
ठायं ठायं … खुली सड़क
दिन दहाड़े धू धू जलता देश
आतंक का पर्याय ..?

और तुम…….?
धकेलते… सत्ता के अंधियारे में मगरूर
हर नौजवान को ....
झोंक चुके हो… एक पूरी पीढ़ी
सत्ताक्षरण से भयभीत
क्या करे ……
सही - ग़लत रास्ते पर भटकता आज का युवा..
पकड़ा उसने वही रास्ता दिखाया जो तुमने
और अब …..
मौत के सन्नाटे सी पसरी
चारो तरफ बेचैनी …..

बूढे बाबा … बता गए थे
सौंपने से पहले चाबी… तुम्हें
लोकतंत्र की ……
भोले हैं बहुत इसके स्वामी
सौंप देते हैं हर बार किसी के भी 'हाथ'
अपना भविष्य .... विश्वास में आकर

और अब तो …
तुम भी सीख चुके हो मक्कारी के सारे गुर ...
यह जो वोटबैंक का मन्त्र
ढूंढ निकाला है तुमने …
पाने को सत्ता किसी भी कीमत पर
करोगे कब तक उपभोग ?
डाक्टरों की भीड़ से संरक्षित …
बदलते हुये गुर्दे, घुटने, दिल और मष्तिस्क
शायद अब…
स्वयंमुग्ध अपनी उपस्थिति पर जैसे आलू
हो चुके हो तुम अमर अमरबेल,
डाकुओं से भी कठोर ...नहीं नहीं मुलायम
खेलते हो राजनीति का हर निषिद्ध खेल

जात-पांत ऊँच-नीच भेदभाव और धर्म सबसे घनिष्ठता
क्योंकि … हैं यही तुम्हारे अचूक हथियार
बस हो चुका है पारावार ..!

बाबा …. !
तुम्हारे इस लोकतंत्री चिराग का जिन्न
आज का नेता ….
कर रहा है निरीह लोगों की हत्या
और दुहाई संविधान के दायरे की ..

भगत सिंह! शर्मिन्दा हूँ मैं …
आज बहरे कानो पर फोड़ कर बम..
देश के सोये भारती की अस्मिता
नहीं जगा सकते थे तुम
आज तो सारा देश ही 'आमची मुम्बई' है
बस गोली खा सकते थे तुम
निगल गए कितनों को धमाके आतंक के
उनका घर अब कैसे चलेगा
और बेरोजगार बच्चे भूल गया….
तू राहुल है … राहुल बाबा नहीं है
तेरे घर में आज दिया नहीं जलेगा 
- श्रीकान्त मिश्र 'कान्त'

एक टिप्पणी भेजें

10 टिप्पणियाँ

  1. दीवाली पर्व पर हार्दिक शुभकामना और बधाई आपका भविष्य उज्जवल हों की कामना के साथ..

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन कवितायें...


    आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

    समीर लाल
    http://udantashtari.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर अभिव्यक्ति है. दीपावली की बहुत-बहुत शुभ कामनाएं. .

    जवाब देंहटाएं
  4. बढ़िया कविताएं !
    आपको व आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ।
    घुघूती बासूती

    जवाब देंहटाएं
  5. Shri praveen Pandit,Shri Brijesh
    aur ShriKant jee kee kavitayen
    achchhee lagee hai.
    SAbhee ko Dewali kee shubh
    kamnayen aur badhaaeean.

    जवाब देंहटाएं
  6. तीनो ही कविताओ ने प्रभावित किया | श्री कान्त जी कविता में आर्तनाद है तो प्रवीन जी एक मासूम कविता ले कर आए हैं | ब्रजेश जी की रचना , आशा से परिपूर्ण है .. हमें भी आप सभी से बहुत आशा है .. कुल मिला कर दीवाली की अच्छी भेंट ....सभी को दीवाली मुबारक....

    जवाब देंहटाएं
  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  8. दीपावली पर जैसे तीन विविध रंगों की फुलझरियाँ जैसी रचनायें हैं।

    प्रवीण जी नें अपनी बाल कविता में स्पष्ट संदेश दिया है:

    बम,क्रेकर ना लोड करूँगा
    जाये डिब्बा खाली
    ख़तरनाक चीज़ों से बचना
    हैप्पी तुम्हें दिवाली
    वीनु!हैप्पी तुम्हें दिवाली

    ब्रिजेश जी की कामना जन जन की कामना बने तो सच्ची दीपावली मने:

    ना सोये फुटपाथों पर कोई
    जा कोई बेघर सड़कों पर पडा
    हो सबको छत और आसरा
    मेरी दिवाली तब मने!

    श्रीकांत जी नें जनसरोकारों से ओतप्रोत रचना प्रस्तुत की है, बेहद प्रभावी:

    बस गोली खा सकते थे तुम
    निगल गए कितनों को धमाके आतंक के
    उनका घर अब कैसे चलेगा
    और बेरोजगार बच्चे भूल गया….
    तू राहुल है … राहुल बाबा नहीं है
    तेरे घर में आज दिया नहीं जलेगा

    सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।

    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  9. सभी रचनाओं में भावनाओं का सुन्दर प्रसार है

    जवाब देंहटाएं

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