
रेल की पटरियाँ
और पटरियों पर पड़ी दो लाशें
कैसे हटवांए, किसे तलाशें
एक आदमी और एक जानवर
गाड़ी से कट गये थे
इत्तेफाकन....
एक दूसरे से सट गये थे
भीड़ आती, देखती
और खड़ी हो जाती
पीछे से कुछ
उचक उचक कर झांक रहे थे
आदमी को कम
जानवर को ज्यादा ताक रहे थे
मौका तलाश रहे थे
देखिये समय का परिवर्तन
और भूख का नर्तन
समय ने स्थिति को बदला
जानवर की लाश को
उठाने के लिये भीड़ बढ़ती रही
लड़ती रही
और आदमी की लाश पड़ी सड़्ती रही
भीड़ ने आदमी
की लाश का क्या करना था
भला उससे
किस का पेट भरना था....?
20 टिप्पणियाँ
और आदमी की लाश पड़ी सड़्ती रही
जवाब देंहटाएंभीड़ ने आदमी
की लाश का क्या करना था
भला उससे
किस का पेट भरना था....?
उफ़! कितनी मार्मिक और दर्द भरी अभीव्यक्ति है, दिल दहल गया है पढ़ कर, लानत है ऐसे इंसानियत पर,'
Regards
चंदन की महकती
जवाब देंहटाएंकविता के गहरे
भावों और यथार्थ
अभिव्यक्ति को
वंदन।
पवन जी,
जवाब देंहटाएंसाहित्य शिल्पी मे आपको देखकर काफी अच्छा लगा... बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता... बहुत बहुत बधाई
किसी पीड़ित का साथ , सामजिक डर या अपने स्वार्थ हेतु ना देना अपने आप में चिंता जनक है | और निंदनीय भी | स्थिति को अच्छे से हाशिये पर लिया है आप ने | एक तल्ख़ कटाक्ष भी किया है |
जवाब देंहटाएंएक गुजारिश है कि उन लोगो के बारे में भी एक कविता लिखें जो मदद के लिए आगे आते हैं | आप ने उन्हें एक सिरे से नकार दिया है | समाज इतना बुरा भी नही है , जितना आप की इस कविता में दिखाई पड़ रहा है | भविष्य में और आशावादी लेखन प्रयास करें |
फिलहाल कविता के लिए बधाई स्वीकारें | :-)
भीड़ ने आदमी
जवाब देंहटाएंकी लाश का क्या करना था
भला उससे
किस का पेट भरना था....?
बहुत खूब।
संवेदन -शील मन की
जवाब देंहटाएंसंवेदन - शील रचना....
बहुत सुंदर...
आभार...चंदन जी....
एक संवेदनशील और मार्मिक कविता जिसमें घटना, घटना-स्थल और मर्म-भेदी शब्दों का समन्वित भावुक चित्रण है। पढ़ने के बाद पाठक कुछ देर तक मानसिक रूप से घटना-स्थल पर ही सिहरता हुआ ठहर जाता है।
जवाब देंहटाएंपवन जी को इस सुंदर रचना के लिए बधाई!
Very nice poem. I am touched. Thanks.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
चंदन जी,
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम तो साहित्य शिल्पी पर आपका स्वागत।
आपकी रचना नें सिहरा देने वाला दृश्य उपस्थित कर दिया। भूख के आगे मानवता कितनी बौनी है..
आलोक कटारिया जी
जवाब देंहटाएंआप कब तक
एनोनिमस बनकर
टिप्पणी करते रहेंगे
मुझे अपनी ई मेल से
एक मेल भेजिए
मैं आपको जी मेल
का आमंत्रण भेजता हूं
जिसमें मेल क्रिएट
करके आप अपने
नाम से टिप्पणी कर सकते हैं
और पा सकते हैं
छुटकारा
इस एनोनिमस की जो है
कारा।
avinashvachaspati@gmail.com
बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता है .बधाई
जवाब देंहटाएंमार्मिक....संवेदनशील और तीखी व्यंग्यात्मक कविता लिए पवन जी को चंदन लगा के बधाई......
जवाब देंहटाएंतालियाँ.....
मार्मिक..
जवाब देंहटाएंपवन जी,
जवाब देंहटाएंआपकी कविता संवेदनाओं के उस पहलू को खुरचती है जहाँ आदमी के लिये भूख का सवाल सर्वोपरी है और सब गौण..जो चित्र आपने उकेरा है वह आपकी कलम के जनवादी संदर्भो को प्रस्तुत करता है। आपसे द्वारा प्रस्तुत चित्र सिहराता भी है..
***राजीव रंजन प्रसाद
आपकी कविता वास्तव में बहुत अच्छी है
जवाब देंहटाएंवीनस केसरी
बहुत अच्छी कविता.
जवाब देंहटाएंबधाई.
जिस कविता में मर्म हो संवेदना हो वह खूबसूरत क्यों न बन पड़ेगी .. मरने के बाद आदमी की कीमत जानवर से कम ही है तो क्यों न जीते जी कुछ ऐसा किया जाए की लोग मरने के बाद भी याद रखें.
जवाब देंहटाएंinsightful!
जवाब देंहटाएंआइने से झांकता विद्रूप चेहरा। सत्य चिंतित करता हैकिंतु मुंह छिपाया नहीं जा सकता।
जवाब देंहटाएंजागृति लाई जा सके इस भीड़् मे,कुछ ऐसा कहना और करना होगा।
प्रवीण पंडित
'उपयोगिता' की सराहना के लिए मैं हर लेखक पाठक का आभारी हूं। आपकी प्रतिक्रियाएं ही तो मेरे लेखन को जीवंत करेंगी।
जवाब देंहटाएंयह एक सच्ची घटना पर आधारित है। रेलवे में इस तरह की मौत की घटनाएं होती ही रहती हैं। ये घटना अपने आप में विचित्र थी। इसकी विचित्रता ने ही मुझे लेखन के लिए विचलित किया । ये घटना दस वर्षों तक तो मेरे ज़हन में ही घूमती रही थी। श्री दिव्यांशु शर्मा जी को विशेष रूप से कहना चाहूंगा कि अच्छाइयों को नकारने का इरादा नहीं था और न होगा। ये सब परिस्थितिजन्य था। एक बार फिर आपके विचारों के लिए धन्यवाद।
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.