वो नहीं मेरी और ना आयेगी कभी हाथ में
आईने में परछाईयों से खुद को छलता रहा
क्या करूं प्यार हो गया फ़ासलों से इस कदर
मंजिलों को भूल कर उम्र भर यूंही चलता रहा
हौले हौले आस के सारे सहारे बिखरे टूट कर
बेनूर पुतलियों में फ़िर भी सपना पलता रहा
होश में हूं और देखे कोई तो डूबा मदहोशियों में
दुनियां की मानूं या दिल की,फ़ैसला टलता रहा
तुम नहाये रात भर जिस ठंडी मीठी चांदनी में
उसके लिये रात भर चांद धूप में जलता रहा
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22 टिप्पणियाँ
हौले हौले आस के सारे सहारे बिखरे टूट कर
जवाब देंहटाएंबेनूर पुतलियों में फ़िर भी सपना पलता रहा
होश में हूं और देखे कोई तो डूबा मदहोशियों में
दुनियां की मानूं या दिल की,फ़ैसला टलता रहा
बहुत अच्छे।
लाजवाब ! एक एक शेर और शब्द पर मुंह से दाद निकल रहा था पढ़ते समय.बहुत ही सुंदर ग़ज़ल है.इसकी जितनी तारीफ की जाए कम है.
जवाब देंहटाएंतुम नहाये रात भर जिस ठंडी मीठी चांदनी में
जवाब देंहटाएंउसके लिये रात भर चांद धूप में जलता रहा
आख़िरी शेर काफ़ी दमदार रहा | कई मायने निकलते हैं इस के | चाँद का धूप में जलना किसान की मेहनत भी हो सकती है तो मां की स्वार्थहीन ममता भी | सुंदर पंक्तियाँ |
वैसे लय की कमी है और एक दो शेर कुछ कमज़ोर से लगे | आप इस से बेहतर लिख चुके हैं | :-)
gazlon ki main kayal hu....ek ek akshar moti hai.....aur dil me ravani paida karta hai
जवाब देंहटाएंAnupama
वो नहीं मेरी और ना आयेगी कभी हाथ में
जवाब देंहटाएंआईने में परछाईयों से खुद को छलता रहा
बहुत खूब . सुंदर अभिव्यक्ति.
दिव्यांशु जी,
जवाब देंहटाएंटिप्पणी के लिये धन्यवाद.
चांद तो हमेशा जलता है... साईंटिफ़कली जो चांदनी हमें प्राप्त होती है वह सूरज की रोशनी ही है जो चांद से धरती की तरफ़ परावर्तित होती है.. सो चांद को तो धूप में जलना ही पडता है...
बहुत ही अच्छी कविता... बहुत बहुत
जवाब देंहटाएं"तुम नहाये रात भर जिस ठंडी मीठी चांदनी में
जवाब देंहटाएंउसके लिये रात भर चांद धूप में जलता रहा.."
ये शेर अच्छा रहा..
बाकी बह'र पकड़ में नही आई.. क्या आप कुछ बता सकते हैं इस बारे में?... क्यूँ की शेर पढ़ने में अटक रहे हैं.. कुछ शेर, शेर कम दो मिसरे ज़्यादा लग रहे हैं.. जैसे की ये शेर :
"हौले हौले आस के सारे सहारे बिखरे टूट कर
बेनूर पुतलियों में फ़िर भी सपना पलता रहा"
बाकी ख़याल अच्छे हैं... लिखते रहिए...
बहुर ही सुन्दर भाव लिये।
जवाब देंहटाएंतुम नहाये रात भर जिस ठंडी मीठी चांदनी में
उसके लिये रात भर चांद धूप में जलता रहा
वाह।
क्या करूं प्यार हो गया फ़ासलों से इस कदर
जवाब देंहटाएंमंजिलों को भूल कर उम्र भर यूंही चलता रहा
बहुत अच्छा लगा
शुभकामना
ख़ुद से जूझता हुआ हर ख़्याल ग़ज़ल मे दर्द बन कर उभरा-और खूब उभरा।
जवाब देंहटाएंसाइंटिफ़िकली जो भी हो,किंतु चांद का धूप मे पिघलना मन को जाने कैसा कैसा कर गया
प्रवीण पंडित
भाई महेन्द्र जी
जवाब देंहटाएंमुझे कविताओं और ग़ज़लों की समझ जराकम है इसलिए तुरंत बता नहीं पाता कि कैसी है क्योंकि काफिया और रदीफ की बारीकियों का जानकार नहीं हूं. फिर भी इस बात की तारीफ तो कर ही सकताहूं कि ग़ज़लमें रवानगी है और दिल की बात बेहद आसान लफ्जों में कही गयी है
ये मेरी सीमा है
सूरज
आदरणीय मोहिन्दर जी,
जवाब देंहटाएंकविता पहले उसके कथ्य से है और आपकी यह रचना गहरी तथा गंभीर है।
"आईने में परछाईयों से खुद को छलता रहा" के साथ साथ अंतिम शेर में बिम्ब अनूठे हैं। बधाई स्वीकारें।
***राजीव रंजन प्रसाद
हौले हौले आस के सारे सहारे बिखरे टूट कर
जवाब देंहटाएंबेनूर पुतलियों में फ़िर भी सपना पलता रहा
होश में हूं और देखे कोई तो डूबा मदहोशियों में
दुनियां की मानूं या दिल की,फ़ैसला टलता रहा
सुंदर अभिव्यक्ति...
लाजवाब!...एक-एक शब्द जैसे दिल की गहराइयों से निकला हो
जवाब देंहटाएंतुम नहाये रात भर जिस ठंडी मीठी चांदनी में
जवाब देंहटाएंउसके लिये रात भर चांद धूप में जलता रहा
यह शेर बेहद पसंद आया। विज्ञान और शाइरी का अद्भुत मिश्रण है ये।
बाकी भी बढिया हैं।
बधाई स्वीकारें।
बहुत खूब मोहिंदर जी... इसी तरह की ग़ज़ल अच्छी लगती हैं जो सीधे दिल में उतार जाएँ अंतिम शेर तो कमाल का है .....
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना, बधाई।
जवाब देंहटाएंContent wise it is a nice gazal.
जवाब देंहटाएं- Alok Kataria
मोहिन्दर जी,
जवाब देंहटाएंपुन: एक अच्छी रचना के लिये बहुत बहुत बधाई
bahut badhiya mohindar ji :)
जवाब देंहटाएंकुछेक पंक्तियाँ बहुत अच्छी हैं जैसे कि
जवाब देंहटाएंक्या करूं प्यार हो गया फ़ासलों से इस कदर
मंजिलों को भूल कर उम्र भर यूंही चलता रहा
अंत में रचना थोडी कमज़ोर है, परंतु अच्छा प्रयास।
कृपया ऐसे ही लिखते रहें।
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.