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पत्थर और हम [कविता] – दीपक गुप्ता

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रिश्ते भी आजकल "यूज एंड थ्रो" की तरह हो गए हैं
और लोग " थ्रस्टी क्रो " की तरह हो गए हैं
हमें जब प्यास लगती है
तो हम, रिश्तों के कुओं में
स्वार्थ के पत्थर डालते हैं
और जब पेट भरा हो
तो दूसरों पर कीचड उछालते हैं
सोचता हूँ आज के हालात्
कितने बदतर हो गए हैं
संवेदनाएं मर चुकी
और आदमी पत्थर हो गए हैं

हालांकि पत्थरों में भी जान होती है
उनकी भी पहचान होती है
एक पत्थर होता है - मील का
जो दिखाता है रास्ता
एक पत्थर होता है - बुत नुमा
जिसके प्रति होती है आस्था
एक पत्थर वो ,
जिसे मजदूर अपना तकिया बनाता है
और एक पत्थर वो
जो अमीरों के पैरों के नीचे पड़ा - पड़ा
किस्मत पर आंसू बहाता है
कुछ पत्थर होते हैं चट्टान
जो लहरों के वेग को झेलते हैं
और कुछ पत्थर वो
जिनसे छोटे-छोटे बच्चे खेलते हैं
एक पत्थर होता है - नींव का
जिस पर आदमी
अपने सपनों के महल खड़े करता है
और एक पत्थर वो - जिस पर कलाकार
अपनी कला को गड़ता है

सुना है , पुराने ज़माने में आदमी
आग जलाने के लिए
पत्थर का उपयोग करता था
और अब, आग भड़काने के लिए
पत्थर का प्रयोग करता है

तो आओ
पत्थरों की इस दुनिया में
हम भी एक पत्थर बनें
पर हमें जब भी कोई रगडे
तो हम आग बन कर जलें
मगर बुझे हुए चूल्हों में
और इंसानियत की बुझी हुई मशालों में
और इतिहास में एक मील पत्थर बन कर गडें
हे प्रभु, वर दे
कभी भी किसी की अक्ल पर पत्थर न पडें .......

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12 टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर भाव। अच्‍छी कविता।

    जवाब देंहटाएं
  2. रिश्ते भी आजकल "यूज एंड थ्रो" की तरह हो गए हैं
    और लोग " थ्रस्टी क्रो " की तरह हो गए हैं
    हमें जब प्यास लगती है
    तो हम, रिश्तों के कुओं में
    स्वार्थ के पत्थर डालते हैं
    और जब पेट भरा हो
    तो दूसरों पर कीचड उछालते हैं
    सोचता हूँ आज के हालात्
    कितने बदतर हो गए हैं
    संवेदनाएं मर चुकी
    और आदमी पत्थर हो गए हैं
    वाह! बहुत बढ़िया तुलना की है.

    जवाब देंहटाएं
  3. विशुद्ध मंचीय कविता है

    जवाब देंहटाएं
  4. आजकल के रिश्तों का बहुत खूब खाका खीन्हा है आपने मंच पर सस्वर सुनने में और आनंद आता.

    जवाब देंहटाएं
  5. तो आओ
    पत्थरों की इस दुनिया में
    हम भी एक पत्थर बनें
    पर हमें जब भी कोई रगडे
    तो हम आग बन कर जलें
    मगर बुझे हुए चूल्हों में
    और इंसानियत की बुझी हुई मशालों में
    और इतिहास में एक मील पत्थर बन कर गडें
    हे प्रभु, वर दे
    कभी भी किसी की अक्ल पर पत्थर न पडें .......

    सरल शब्दों में बडी बात। बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं
  6. हे प्रभु, वर दे
    कभी भी किसी की अक्ल पर पत्थर न पडें .......

    आपको यह वरदान प्राप्त हो, शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  7. हमेशा की तरह बेहतरीन। अंग्रेजी शब्दों का सुन्दर प्रयोग किया है आपनें।

    जवाब देंहटाएं
  8. दीपक जी,
    पत्थरों की एक नये भाषा.... बहुत ही अच्छी कविता बधाई स्वीकारें

    जवाब देंहटाएं
  9. पत्‍‍थर को दिए पत्‍थरी आयाम

    पथरी भी इसीलिए पड़ा है नाम

    पर इम्‍प्रेस कर दिया है आपने

    अंग्रेजी झाड़कर हिन्‍दी श्रीमान।

    जवाब देंहटाएं
  10. vaah kya pathar maare hain in kalyugi rishto or insaano par
    maan gaye sahab
    bahut-bahut dhanyavaad is takatvar rachna k liye

    जवाब देंहटाएं

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