इतिहास ने फ़िर धकेलकर,
कटघरे में ला खड़ा किया...
अनुत्तरित प्रश्नो को लेकर,
आक्षेप समाज पर किया॥
कन्यादान एक महादान है,
बस कथन यही एक सुना...
धन पराया कह-कह कर,
नारी अस्तित्व का दमन सुना॥
गाय, भैस, बकरी है कोई,
या वस्तु जो दान किया...
अपमानित हर बार हुई,
हर जन्म में कन्यादान किया॥
क्या आशय है इस दान का,
प्रत्यक्ष कोई तो कर जाये,
जगनिर्मात्री ही क्यूँकर,
वस्तु दान की कहलाये॥
जीवन-भर की जमा-पूँजी को,
क्यों पराया आज किया...
लाड़-प्यार से पाला जिसको,
दान-पात्र में डाल दिया॥
बरसों बीत गये इस उलझन में,
न कोई सुलझा पाये..
नारी है सहनिर्मात्री समाज की,
क्यूँ ये समझ ना आये॥
हर पीडा़ सह-कर जिसने ,
नव-जीवन निर्माण किया,
आज उसी को दान कर रहे,
जिसने जीवन दान दिया॥
20 टिप्पणियाँ
janha seeta bhee sukh pa na saki tu us dharti kee nari hai, jo julm teri takdir me hai vo julm yugo se jari hai
जवाब देंहटाएंnarayan narayan
हर पीडा़ सह-कर जिसने ,
जवाब देंहटाएंनव-जीवन निर्माण किया,
आज उसी को दान कर रहे,
जिसने जीवन दान दिया॥
कन्यादान पर बिलकुल नयी सोच है। बहुत अच्छी कविता के लिये बधाई।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसमय बदल रहा है। बहुत तेजी से बदल रहा है। अच्छी रचना है।
जवाब देंहटाएंNew Thoughts, nice poem.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
सुनीता जी आपने मन की बात कह दी है। आपकी यह कविता हर उस माता-पिता के मन की बात हैं बेटी जिनके कलेजे का टुकडा है। इस कविता के लिये आपकी आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंसुनीता जी,
जवाब देंहटाएंएक और बहुत ही अच्छी कविता के लिये बहुत बहुत बधाई
Nari kee aaj ki sahi sthiti ka warnan. sunder kawita.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता है यह
जवाब देंहटाएंहकीकत से रूबरू कराती
जवाब देंहटाएंविमर्श को मजबूर करती
कविता है या तीखी मार।
सुनीताजी का लिखा
जवाब देंहटाएंहमेशा पसँद आता है!
सुनीता जी,
जवाब देंहटाएंवैसे तो मैं ब्लोग की पगडंडियों से दूर ही रहती हूँ, पर शायद आज आप के कुशल-क्षेम में मन लगा था, कि रात ३ बजे यहाँ खिंची चली आई। और फिर मिल गई ये आपकी खूबसूरत रचना ! ऐसे ही बेहतरीन लिखती रहें।
आपकी शार... {बूझो तो मेल कर देना :)}
बहुत ही उम्दा रचना. रचनाकारा को बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंसुनीता जी,
जवाब देंहटाएंआपकी यह कविता न केवल संवेदित ही करती है अपितु एक बडे सच व सामाजिक तानेबाने के एक बडे सच की ओर इशारा भी करती है। बहुत अच्ची रचना के लिये बधाई स्वीकारें।
***राजीव रंजन प्रसाद
सुन्दर भाव भरी रचना..
जवाब देंहटाएंअगर थोडा हास्य की तरफ़ ले जायें तो कहेंगे कि कभी कभी दान लेने वाले पर "दान" काफ़ी भारी पड जाता है....
समय के साथ मान्यतायें बदल रही हैं ख्याल बदल रहे हैं
inte naveen vicharo k liye lekhak ko lakh-lakh badhaayiyan
जवाब देंहटाएंkafi pasand aaya
bahot khub
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग बेहतरीन है। इसमें समाहित रचनाएं सभी भावपूर्ण गूढ़ अर्थ लिए हुए हैं।
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग बेहतरीन है। इसमें समाहित रचनाएं सभी भावपूर्ण गूढ़ अर्थ लिए हुए हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत की बक़वास कविता। इतनी खूबसूरत भावना को भी दूषित कर दिया आपने।आप जैसे लोग ही समाज मे जहर भरने का काम करते हैं।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.