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कन्यादान [कविता] - सुनीता चोटिया 'शानू'

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इतिहास ने फ़िर धकेलकर,
कटघरे में ला खड़ा किया...
अनुत्तरित प्रश्नो को लेकर,
आक्षेप समाज पर किया॥

कन्यादान एक महादान है,
बस कथन यही एक सुना...
धन पराया कह-कह कर,
नारी अस्तित्व का दमन सुना॥

गाय, भैस, बकरी है कोई,
या वस्तु जो दान किया...
अपमानित हर बार हुई,
हर जन्म में कन्यादान किया॥

क्या आशय है इस दान का,
प्रत्यक्ष कोई तो कर जाये,
जगनिर्मात्री ही क्यूँकर,
वस्तु दान की कहलाये॥

जीवन-भर की जमा-पूँजी को,
क्यों पराया आज किया...
लाड़-प्यार से पाला जिसको,
दान-पात्र में डाल दिया॥

बरसों बीत गये इस उलझन में,
न कोई सुलझा पाये..
नारी है सहनिर्मात्री समाज की,
क्यूँ ये समझ ना आये॥

हर पीडा़ सह-कर जिसने ,
नव-जीवन निर्माण किया,
आज उसी को दान कर रहे,
जिसने जीवन दान दिया॥

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20 टिप्पणियाँ

  1. janha seeta bhee sukh pa na saki tu us dharti kee nari hai, jo julm teri takdir me hai vo julm yugo se jari hai
    narayan narayan

    जवाब देंहटाएं
  2. हर पीडा़ सह-कर जिसने ,
    नव-जीवन निर्माण किया,
    आज उसी को दान कर रहे,
    जिसने जीवन दान दिया॥

    कन्यादान पर बिलकुल नयी सोच है। बहुत अच्छी कविता के लिये बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. समय बदल रहा है। बहुत तेजी से बदल रहा है। अच्छी रचना है।

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  5. सुनीता जी आपने मन की बात कह दी है। आपकी यह कविता हर उस माता-पिता के मन की बात हैं बेटी जिनके कलेजे का टुकडा है। इस कविता के लिये आपकी आभारी हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुनीता जी,
    एक और बहुत ही अच्छी कविता के लिये बहुत बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  7. हकीकत से रूबरू कराती

    विमर्श को मजबूर करती

    कविता है या तीखी मार।

    जवाब देंहटाएं
  8. सुनीता जी,
    वैसे तो मैं ब्लोग की पगडंडियों से दूर ही रहती हूँ, पर शायद आज आप के कुशल-क्षेम में मन लगा था, कि रात ३ बजे यहाँ खिंची चली आई। और फिर मिल गई ये आपकी खूबसूरत रचना ! ऐसे ही बेहतरीन लिखती रहें।
    आपकी शार... {बूझो तो मेल कर देना :)}

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत ही उम्दा रचना. रचनाकारा को बहुत बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  10. सुनीता जी,

    आपकी यह कविता न केवल संवेदित ही करती है अपितु एक बडे सच व सामाजिक तानेबाने के एक बडे सच की ओर इशारा भी करती है। बहुत अच्ची रचना के लिये बधाई स्वीकारें।

    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  11. सुन्दर भाव भरी रचना..

    अगर थोडा हास्य की तरफ़ ले जायें तो कहेंगे कि कभी कभी दान लेने वाले पर "दान" काफ़ी भारी पड जाता है....
    समय के साथ मान्यतायें बदल रही हैं ख्याल बदल रहे हैं

    जवाब देंहटाएं
  12. inte naveen vicharo k liye lekhak ko lakh-lakh badhaayiyan
    kafi pasand aaya

    जवाब देंहटाएं
  13. आपका ब्‍लॉग बेहतरीन है। इसमें समाहित रचनाएं सभी भावपूर्ण गूढ़ अर्थ लिए हुए हैं।

    जवाब देंहटाएं
  14. आपका ब्‍लॉग बेहतरीन है। इसमें समाहित रचनाएं सभी भावपूर्ण गूढ़ अर्थ लिए हुए हैं।

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत की बक़वास कविता। इतनी खूबसूरत भावना को भी दूषित कर दिया आपने।आप जैसे लोग ही समाज मे जहर भरने का काम करते हैं।

    जवाब देंहटाएं

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