
बेटा पढ लिख कर गया, बन गया वो इंसान.
देख उजडती फसल को, रोता रहा किसान.
सारी उम्र चलाया हल, हर दिन जोते खेत.
बूढा हल चालक हुआ, सूने हो गए खेत.
दो बेटे थे खेलते इस आंगन की छांव.
अब नहीं आते यहां नन्हें नन्हें पांव.
बुढिया चूल्हा फूंकती सेक रही थी घाव.
अबके छुट्टी आएंगे बच्चे उसके गांव.
बडा बनाने के लिये क्यों भेजा स्कूल.
बूढा बैठा खेत पर कोसे अपनी भूल.
खेत बेच कर शहर में ले गया बेटा धन.
बूढे बूढी का इस घर में लगता नहीं है मन.
जब शहर वाले फ्लैट में गये थे बापू राव.
हर दिन उनको वहां मिले ताजे ताजे घाव.
आज पार्क में राव जी की आंखें गयी छलक.
देख नीम के पेड को झपकी नही पलक.
27 टिप्पणियाँ
शहरीकरण की कुछ तो कीमत चुकानी पड़ेगी....
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता
वो गांव की
जवाब देंहटाएंहलचल थी
यह शहर की
चलचल है
जो चलती
पलपल है
हंसते हैं
फंसते हैं
हम सब
दलदल है
दलदल है।
अच्छी लगी कविता.
जवाब देंहटाएंवास्त्विकता व दिल के मर्म को संप्रेशित करती रचना... पढ कर आंख भर आई... आभार
जवाब देंहटाएंMARMSPARSHI KAVITA--bahut hi achchee.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआप को रचनाओ को पढ़ कर लगता है की साहित्य का गाँव की ऑर रुझान मरा नही है .... हर कविता में गाँव से शहर आ जाने की मजबूरी और उस की टीस साफ़ नज़र आती है | ऑर वही टीस आप के लेखन की आत्मा है | हम अपना गाँव घर आँगन छोड़ कर निकल तो पढ़ते हैं उन्नति के लिए पर समझ नही पाते कि अपने पीछे क्या छोडे जा रहे हैं |
जवाब देंहटाएंDown to earth
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
गाँव और ग्रामीण परिवेश को आप बहुत अच्छी तरह प्रस्तुत करते हैं। आपकी रचनाओं में बात तो है।
जवाब देंहटाएंkya khoob likha hai
जवाब देंहटाएंmuja aa gaya
sachmuch aatme prasann ho gayi
aisi rachna har dil k kone tak jaati hai
bahut-bahut shukriya
समदर्शी में कभी प्रेमचंद दिखते हैं तो कभी फणीश्वर्। गहरा लिखते हो भाई।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता है योगेश जी। बधाई।
जवाब देंहटाएंबेटा पढ लिख कर गया, बन गया वो इंसान.
जवाब देंहटाएंदेख उजडती फसल को, रोता रहा किसान
बुढिया चूल्हा फूंकती सेक रही थी घाव.
अबके छुट्टी आएंगे बच्चे उसके गांव.
आज पार्क में राव जी की आंखें गयी छलक.
देख नीम के पेड को झपकी नही पलक.
संवेदित कर दिया आपने। गंभीर् लेखन।
हकीकत बयाँ कर दी आपने .मर्मस्पर्शी ,धीर ,गंभीर कविता . दर्द के लिए साधुबाद
जवाब देंहटाएंयोगेश जी,
जवाब देंहटाएंआप सही मायनों मे एक रचनाधर्मी हैं, कविता वही जो मिट्टी की खुशबू से पगी हो। छूटते गाँव, खेत, खलिहानों और खोते हुए आदमी बखूबी आपकी संवेदनाओ भरे शब्द से किसी को भी बेध सकते हैं।
***राजीव रंजन प्रसाद
ग्रामीण परिवेश को
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी तरह प्रस्तुत करते हैं।
अच्छी कविता
आभार।
योगेश जी!
बधाई।
ग्रामीण परिवेश को
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी तरह प्रस्तुत करते हैं।
अच्छी कविता
आभार।
योगेश जी!
बधाई।
योगेश जी,
जवाब देंहटाएंआपकी मार्मिक रचना मन को छूने के साथ साथ निदा फाज़ली जी के दोहों की याद दिला गई.
बहुत बढ़िया कविता.
kavita main kisanaur vridh dono ka dard jhalak raha hai
जवाब देंहटाएंmeenakshi prakash
राजनीति के अंधे समझें कैसे कष्ट किसानों का -वीं. पी.सिंह
जवाब देंहटाएंबुरे हाल मे साथ न छोड़ें,देंगे साथ किसानों का !
गांव-गांव में पैदल जाकर,जानें दर्द किसानों का !
जुड़ा हमारा जीवन गहरा ,भोजन के रखवालों से !
किसी हाल में साथ न छोड़ें,देंगे साथ किसानों का
इन्द्र देव की पूजा करके, भूख मिटायें मानव की
राजनीति के अंधे समझें, कैसे कष्ट किसानों का !
यदि आभारी नहीं रहेंगे,मेहनत कश इंसानो के
मूल्य समझ पायेगे कैसे,इन बिखरे अरमानों का !
आओ किसानों के संग बैठे,दुःख और दर्द समझने को
सारा देश समझना चाहे, कष्ट कीमती जानों का !
राजनीति के अंधे समझें कैसे कष्ट किसानों का -वीं. पी.सिंह
जवाब देंहटाएंबुरे हाल मे साथ न छोड़ें,देंगे साथ किसानों का !
गांव-गांव में पैदल जाकर,जानें दर्द किसानों का !
जुड़ा हमारा जीवन गहरा ,भोजन के रखवालों से !
किसी हाल में साथ न छोड़ें,देंगे साथ किसानों का
इन्द्र देव की पूजा करके, भूख मिटायें मानव की
राजनीति के अंधे समझें, कैसे कष्ट किसानों का !
यदि आभारी नहीं रहेंगे,मेहनत कश इंसानो के
मूल्य समझ पायेगे कैसे,इन बिखरे अरमानों का !
आओ किसानों के संग बैठे,दुःख और दर्द समझने को
सारा देश समझना चाहे, कष्ट कीमती जानों का !
स्वदेशी खेती किसानो को लिए सोशल मीडिया से लेकर खेतो तक काम कर रही है.. आप सब से अनुरोध है आप भी किसी ना किसी तरह किसानो की मदद करें
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी कविता दिल को छु गयी
जवाब देंहटाएंजिनके अनाज के भंडार हैं
जवाब देंहटाएंपर खाने को दाना नहीं
जिनके आँगन में दुग्ध बहे
पर उसने कभी चखा नहीं
मेहतन ही उसकी ताकत हैं
फिर भी वो आज भिखारी हैं
अनाज का हैं वो दाता
फिर भी सोता भूखा हैं
वह मेहनत की ही खाता हैं
पर पृकृति का गुलाम हैं
आस लगाये वो आसमान निहारे
लेकिन भाग्य में उसके शाम हैं
साहूकार ने रही सही
सांसे भी उससे छीन ली
सियासी और कालाबजारी ने
उसकी जिन्दगी दूभर करी
फिर भी वो उठता हैं
मेहनत करते जाता हैं
एक दिन आएगा फिर से
जब किसान ही लहरायेगा
कब तक रूठेगी तू पृथ्वी
तुझे वो मेहनत से ही मनायेगा
बहुत ही सुन्दर है दिल को छूग ई महोदय सत सत नमन करता हु आप को🙏
हटाएंमुझे सोचने को मजबूर कर दिया
जवाब देंहटाएं🌼🌹🌼🌹🌼🌹🌼🌹
जवाब देंहटाएंऐ ख़ुदा बस एक ख़्वाब सच्चा दे दे,
अबकी बरस मानसून अच्छा दे दे,
—
शुक्र हैं कि बच्चे अब शर्म से नही मरेंगे,
चुल्लू भर पानी के लिए खुदा दे दुआँ करेंगे.
—
किसानो से अब कहाँ वो मुलाकात करते हैं,
बस ऱोज नये ख्वाबो की बात करते हैं.
—
कोई परेशान हैं सास-बहू के रिश्तो में,
किसान परेशान हैं कर्ज की किश्तों में
—
एक बार आकर देख कैसा, ह्रदय विदारक मंजर हैं,
पसलियों से लग गयी हैं आंते, खेत अभी भी बंजर हैं.
—
ये सिलसिला क्या यूँ ही चलता रहेगा,
सियासत अपनी चालों से कब तक किसान को छलता रहेगा.
—
मत मारो गोलियो से मुझे मैं पहले से एक दुखी इंसान हूँ,
मेरी मौत कि वजह यही हैं कि मैं पेशे से एक किसान हूँ.
—
जिसकी आँखो के आगे,किसान पेड़ पे झूल गया,
देख आईना तू भी बन्दे,कल जो किया वो भूल गया.
—
किसान की आह जो दिल से निकाली जाएगी
क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी
—
मर रहा सीमा पर जवान और खेतों में किसान,
कैसे कह दूँ इस दुखी मन से कि मेरा भारत महान.
—
लोग कहते हैं बेटी को मार डालोगे,तो बहू कहाँ से पाओगे?
जरा सोचो किसान को मार डालोगे, तो रोटी कहाँ से लाओगे?
*समाजसेवी वनिता कासनिया*
*राम राम जी*
🌹🌹🙏🙏🌹🌹
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