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कौन हूँ मैं … - [कविता] - श्रीकान्त मिश्र ’कान्त’


कौन हूँ मैं …
ले उर में अथाह जलराशि
नील नभ में तैरता ...
हवा के झोंकों पर सवार
ऊपर और ऊपर …
अपने प्रस्तार से
सूरज को ढंक लेने का दंभ लिये
हर पल कोई नया रूप लिये
कोई भटकता बाद्ल ...
किन्तु वादियों में बहुधा उलझ जाता हूँ
नवयौवना की वेणी जैसा गुंथ जाता हूँ
वर्फीली पर्वत चोटियों से नीचा हो जाता हूँ
और मेरा दंभ चूर हो जाता है ...
फिर कौन हूँ मैं …

कौन हूँ मैं …
अछूती कन्या के शील सी
दूर तक पसरी हुयी रेत पर
हवा की ख़ारिशों से लिखा नाम ...
चमकता हूँ दूर तक, सबसे अलग
बेचैनी से ……
और प्रस्तार की प्रतीक्षा में
किन्तु फिर दूब उग आती है
या फिर अंधड़ तूफ़ान के आते ही
ढंक जाता है …
समाप्त हो जाता है मेरा अस्तित्व
फिर कौन हूँ मैं …

कौन हूँ मैं …
काल की अनवरत धारा पर
बनी हुयी एक आकृति …
बहती जा रही है
अपनी क्षणभंगुरता से बेख़बर …
यौवन की देहरी पर खड़ी
आसपास की सभी आकृतियों को
आकृष्ट करने में निरन्तर ….
एक निश्चित दूरी पर,
बहती हुयी धारा में जो भँवर है
वहां पहुंचते ही आकृति विलीन हो जाती है
कहीं कोई नाम नहीं …. कोई निशान नहीं
गीली रेत पर पगचिन्ह…
दोपहर होते ही मिट जाते हैं
फिर कौन हूँ मैं ….

मैं हूँ ... .... ...
शायद एक शाश्वत विचार ...
जो दिया है मैने, युग को ...
या फिर वो अमिट पल
जो जिया है मैने, मिटने से पहले

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9 टिप्पणियाँ

  1. बहुत बढिया...सुबह-सुबह एक उम्दा रचना पढने को मिली...धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. अपने प्रस्तार से
    सूरज को ढंक लेने का दंभ लिये
    हर पल कोई नया रूप लिये
    कोई भटकता बाद्ल ...
    " amezing thoughts, mind blowing creation"
    Regards

    जवाब देंहटाएं
  3. अपने अस्तित्व की तलाश में स्वयं को खंखालती एक सशक्त रचना.

    जवाब देंहटाएं
  4. हरेक के हृदय में हिलोरें लेता प्रश्न
    आपकी लेखनी से उभरकर
    सुंदर संभावित उत्तरों की
    श्रंखला भी साथ में लाया...बहुत सुंदर....
    रचना.......

    बधाई आपको श्रीकान्त जी


    -स्नेह

    गीता पंडित

    जवाब देंहटाएं
  5. काल की अनवरत धारा पर
    बनी हुयी एक आकृति …
    बहती जा रही है
    अपनी क्षणभंगुरता से बेख़बर …

    superb!behad khubsurat rachna hai!

    aap ka likha apne aap mein ek standard hota hai..ek class!

    जवाब देंहटाएं
  6. अछूती कन्या के शील सी
    दूर तक पसरी हुयी रेत पर
    हवा की ख़ारिशों से लिखा नाम ...
    सुंदर अलंकृत भाषा और गहन चिंतन जब मिलते हैं तब ही इस तरह की रचनाएं निकल कर आती हैं | मैं निजी रूप से आत्ममंथन से जुड़ी कविताओ का पक्षधर हूँ | इस कविता ने मेरे विश्वास को और बल दिया ... बहुत सुंदर | आप से काफी कुछ सीखने को मिलेगा इस मंच पर.. :-)

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही सुंदर रचना.
    मैं कौन हूँ.........चिरंतन अनुत्तरित प्रश्न.

    जवाब देंहटाएं
  8. मैं हूँ ... .... ...
    शायद एक शाश्वत विचार ...
    जो दिया है मैने, युग को ...
    या फिर वो अमिट पल
    जो जिया है मैने, मिटने से पहले

    विचार सौंदर्य अपने आप मे ही अलंकृत है। द्विगुणित हो गया रूप जब आपने इसे भाषालंकार से भी सुसज्जित कर दिया।
    श्रीकांत जी ! आपको पढ़ना एक निराले सुख का आचमन है ।

    प्रवीण पंडित

    जवाब देंहटाएं

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