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निकला नभ में भोर का तारा [ कविता]- अजय यादव



चारों ओर अंधेरा छाया, जीव-जगत निस्पंद पड़ा था

रात्रि का अंतिम प्रहर था, रंग तारों का उड़ा था

सो रही थी सृष्टि सारी, स्वप्न में खोयी हुई सी

गति-चक्र जैसे ज़िन्दगी का, राह में ठिठका खड़ा था

दिख पड़ा सहसा क्षितिज पर, सूर्य का सच्चा दुलारा

निकला नभ में, भोर का तारा


अस्ताचल-गामी तारों ने और तेज हो कदम बढ़ाये

जाग्रत जीवन हुआ जगत में, चिड़ियों ने डैने फैलाये

स्वप्न-लोक के दर को छोड़ा, मतवाले ग्रामीण-जनों ने

पशुओं ने हर्षित हो-होकर, घंटी और घुंघरू झनकाये

पेड़ों पर कलरव ध्वनि छायी, गुंजित आसमान था सारा

निकला नभ में, भोर का तारा


शुचि-शीतल मंद समीर बही, तन-मन में उल्लास जगाती

सद्य:प्रकाशित पूर्व-क्षितिज से, फटने लगी तिमिर की छाती

खनक उठे चूड़ी और कंगन, छाछ बिलोते मृदुल करों में

बच्चों की किलकारी गूँजी, माता के मन को हरषाती

घंटा-ध्वनि छायी मंदिर में, बहने लगी भक्ति-रस धारा

निकला नभ में, भोर का तारा

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11 टिप्पणियाँ

  1. शुचि-शीतल मंद समीर बही, तन-मन में उल्लास जगाती
    सद्य:प्रकाशित पूर्व-क्षितिज से, फटने लगी तिमिर की छाती
    खनक उठे चूड़ी और कंगन, छाछ बिलोते मृदुल करों में
    बच्चों की किलकारी गूँजी, माता के मन को हरषाती
    घंटा-ध्वनि छायी मंदिर में, बहने लगी भक्ति-रस धारा
    "jvab nahee sunder abheevyktee"

    Regards

    जवाब देंहटाएं
  2. अजय साहब .. बस भोर का तारा ही लगी ये रचना .. वैसी ही सौम्य , साफ़, निष्पाप | अपने घर का सवेरा याद हो आया | परदेस में तो ऐसा लगता हैकि भोर ही नही होती .. :-) बहुत सुंदर कविता..

    जवाब देंहटाएं
  3. bahut hi sundar kavita...shbdon ka bahut hi sundar gathan kiya hai--bilkul subah ke suraj ugney jaisee roshani bikherti hui....badhaayee

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर शब्दों का संगम.. शहरी वातावरण से दूर गांव की और ले जाता हुआ..मन में आशा व शान्ति का संचार करता हुआ

    जवाब देंहटाएं
  5. Good selevtion of words. Appriciable.

    Alok Kataria

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रकृति और उससे जुडे विषयों पर बहुत कम लिखा जाता है आज कल। इस विषय तथा सुन्दर प्रस्तुतिकरण की बधाई स्वीकारें।

    जवाब देंहटाएं
  7. अजय जी बहुत अच्छी कविता के लिये बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  8. शुचि-शीतल मंद समीर बही, तन-मन में उल्लास जगातीसद्य:प्रकाशित पूर्व-क्षितिज से, फटने लगी तिमिर की छातीखनक उठे चूड़ी और कंगन, छाछ बिलोते मृदुल करों मेंबच्चों की किलकारी गूँजी, माता के मन को हरषातीघंटा-ध्वनि छायी मंदिर में, बहने लगी भक्ति-रस धारानिकला नभ में, भोर का तारा

    भाषा और प्रवाह आपकी इस कविता के प्राण हैं।

    जवाब देंहटाएं
  9. प्रकृति का सशक्त चित्रण। भोरऊवा गीत का आभास।
    एक सुन्दर कविता।- सुशील कुमार

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुंदर .....

    बधाई स्वीकारें।

    जवाब देंहटाएं

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