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11 टिप्पणियाँ
bahut sundar rachana
जवाब देंहटाएंशुचि-शीतल मंद समीर बही, तन-मन में उल्लास जगाती
जवाब देंहटाएंसद्य:प्रकाशित पूर्व-क्षितिज से, फटने लगी तिमिर की छाती
खनक उठे चूड़ी और कंगन, छाछ बिलोते मृदुल करों में
बच्चों की किलकारी गूँजी, माता के मन को हरषाती
घंटा-ध्वनि छायी मंदिर में, बहने लगी भक्ति-रस धारा
"jvab nahee sunder abheevyktee"
Regards
अजय साहब .. बस भोर का तारा ही लगी ये रचना .. वैसी ही सौम्य , साफ़, निष्पाप | अपने घर का सवेरा याद हो आया | परदेस में तो ऐसा लगता हैकि भोर ही नही होती .. :-) बहुत सुंदर कविता..
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar kavita...shbdon ka bahut hi sundar gathan kiya hai--bilkul subah ke suraj ugney jaisee roshani bikherti hui....badhaayee
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दों का संगम.. शहरी वातावरण से दूर गांव की और ले जाता हुआ..मन में आशा व शान्ति का संचार करता हुआ
जवाब देंहटाएंGood selevtion of words. Appriciable.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
प्रकृति और उससे जुडे विषयों पर बहुत कम लिखा जाता है आज कल। इस विषय तथा सुन्दर प्रस्तुतिकरण की बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंअजय जी बहुत अच्छी कविता के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंशुचि-शीतल मंद समीर बही, तन-मन में उल्लास जगातीसद्य:प्रकाशित पूर्व-क्षितिज से, फटने लगी तिमिर की छातीखनक उठे चूड़ी और कंगन, छाछ बिलोते मृदुल करों मेंबच्चों की किलकारी गूँजी, माता के मन को हरषातीघंटा-ध्वनि छायी मंदिर में, बहने लगी भक्ति-रस धारानिकला नभ में, भोर का तारा
जवाब देंहटाएंभाषा और प्रवाह आपकी इस कविता के प्राण हैं।
प्रकृति का सशक्त चित्रण। भोरऊवा गीत का आभास।
जवाब देंहटाएंएक सुन्दर कविता।- सुशील कुमार
बहुत सुंदर .....
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें।
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.