वह भिखारन थी। होश सँभालते ही उसने भीख माँगना शुरू कर दिया था। भीख माँगते समय उसे हर किस्म के ताने सुनने पड़ते थे, गालियाँ सुननी पड़ती थी, पर पेट की भूख और बरसों से भीख माँगने की आदत के आगे उसने कुछ न जाना था। रोज की तरह वह आज भी भीख माँगने निकली। एक पनवाड़ी की दुकान पर खड़े नौजवान के आगे उसने भीख के लिये हाथ बढाया। नौजवान ने उसके फटे चीथड़ों मे झाँकते उसके सुडौल बदन को आँखो-ही-आँखो मे तौला। आँख मारते हुए उसने व्यंग्य कसा, ”अरी, क्यों पाँच-पाँच दस-दस पैसे के लिये अपनी जवानी बरबाद कर रही है। जा, किसी कोठे पर बैठ जा। सौ-पचास रोज़ कमाएगी। कहे तो पहला ग्राहक मै ही बन जाऊँ।“ यह कहकर उसने उसे पाँच का नया नोट दिखाया।
वह वेश्या थी। उसे खुद पता नहीं, कब से धंधा करती आ रही थी। उसे तो इतना पता है, रात भर देह नुचवाने के बाद उसे जो मिलता है, उससे न तो उसका कल सुधरा था, न आज ही सुधरा है। आने वाला कल तो उसने जाना ही न था।
अब वह बूढ़ी हो चली थी। कई दिन कोई ग्राहक न फँसता। रोशनी मे तो कोई उसकी तरफ देखता भी नहीं। अँधेरे मे अगर कोई नशेड़ी-गँजेड़ी फँस जाता तो वह सँभाल न पाती।
एक दिन बड़ी मुश्किल से अँधेरे मे एक ग्राहक पटाया। अभी ग्राहक ने उसके बदन पर हाथ फेरना शुरू ही किया था कि वह चौंका। जेब से माचिस निकाली और उसके बाद उसके चेहरे पर रोशनी डाली। उसका चेहरा देखते ही बिदका और अपने कपड़े झाड़्ता हुआ उठ खड़ा हुआ-“साली, रंडियों के पेशे को बदनाम करती है...अब कुछ नहीं रहा तो भीख माँग ले...” और तभी अँधेरे मे एक सिक्का ज़मीन पर गिरने की आवाज आई।
22 टिप्पणियाँ
दुखद है पर सच है........ कोई नारी संगठन या समाजसेवी संस्था को बस यही समाज की गंदगी ढोती महिलाएं दिखाई नहीं देती, वे भी इन्हे अपने समाज का हिस्सा नहीं मानते.
जवाब देंहटाएंमार्मिक कहानी...
जवाब देंहटाएंStory touches heart.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
विडंबना ही है, मर्मस्पर्शी लघुकथा।
जवाब देंहटाएंसमाज के एक अंधेरे पहलू को सामने लाती एक मार्मिक लघुकथा!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लघुकथा के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंकहानी मन को छूती है, सच्चाई को दिखाती है और सवाल भी खडे करती है। विकल्प शीर्षक अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंविकल्पहीन ही कहिये। बहुत अच्छी कहानी। जिस नौजवान से लघुकथा आरंभ हुई थी वह बीच में छूट गया।
जवाब देंहटाएंबिलकुल अंतिम पंक्ति में पूरी कहानी है। बहुत अच्छी लघुकथा। बधाई।
जवाब देंहटाएंसभ्य समाज का वीभत्स रूप.....
जवाब देंहटाएंये तय है कि समाज बदल रहा है और भी बदलेगा...तभी आपकी कथा के चरित्र भी बदलेंगे.......
हृदय को छूने वाली सुंदर कथा....
सूरज प्रकाश जी,
बधाई....
मार्मिक सशक्त लघु कथा... वक्त की मार और बेबसी का सुन्दर चित्रण
जवाब देंहटाएंकहानी में विरोधाभास को जिस तरह प्रस्तुत किया गया है, वही कहानी की जान है। उम्र के साथ विकल्पों का बदलना फिर भी एक अदने से प्राणी के लिए एक हीं विकल्प का होना(बेहया बनना) यह भी एक विरोधाभास हीं है।
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रस्तुतिकरण। बधाई स्वीकारें।
समाज का क्रूर और नंगा चेहरा। विभत्स्य।
जवाब देंहटाएंआदरणीय सूरज प्रकाश जी,
जवाब देंहटाएंआपकी कहानी हर बार एक नये अनुभव से गुजारती है, एक नयी सोच, नया आयाम देती है। यह लघु-कहानी भुलायी नहीं जा सकती।
*** राजीव रंजन प्रसाद
समाज मे व्याप्त विसंगतियों को उभारती, गम्भीर संदेश अपने आप मे समाहित किये थोड़े शब्दों मे बड़ी बात ।
जवाब देंहटाएंप्रवीण पंडित
Suraj Prakash jee,
जवाब देंहटाएंBadee-badee aur lambee-
lambee kahanion mein jo baat kahni
kathin ho jaatee hai vo baat aapne
ek chhotee see kahani mein kah dee
hai.Gaagar mein saagar bharna khoob
jaante hain aap.Nissandeh aap
adhunik sarvshreshth kathakaron mein ek hain."Vikalp laghukatha kee
uttam prastuti ke liye aapko naanaa
badhaaeean.
समाज के उस वर्ग का दर्द समेटे है ये लघुकथा जिस से हम सब वाकिफ हो कर भी कतराते हैं | पेट और जिस्म की भूख आपस में किस कदर जुड़ी हुई हैं ये समझ आता है |
जवाब देंहटाएंनारी के पूरे जीवन का सजीव चित्रण आपकी लघुकथा में पढ़ कर हृदय विह्वल हो गया।
जवाब देंहटाएंआप जैसे उच्च कोटि के साहित्यकारों की रचनाएं ब्लॉगों पर पढ़ने से नए लेखकों को प्रोत्साहन और प्रेरणा मिलेगी। नमन सहित बधाई स्वीकार करें।
हृदयविदारक लघुकथा। मन को मथने वाली।-सुशील कुमार।
जवाब देंहटाएंअत्यन्त सशक्त और मार्मिक कथा के लिए आपका साधुवाद........
जवाब देंहटाएं......कटु सत्य का दिग्दर्शन कराती यह कथा बहुत गहरे झकझोर जाती है.
सशक्त और मार्मिक कथा.
जवाब देंहटाएंआपके लेखन में गाम्भीर्य है और स्थितियों को प्रस्तुत करने का भावपूर्ण शब्द संसार भी है।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.