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मुझे क्या ??[लघु कथा] - प्रवीण पंडित


दरख़्त था सदियों पुराना, और छांह भी।
दरख़्त था घना, छांह उससे भी घनी।
दरख़्त था हवादार, छांह कहीं अधिक शीतल ।
दरख़्त सब का, छांह भी सबकी अपनी।

--

एक शाम
राम चलते चलते थक गया। घनी छाया मे पेड़ से सटकर सुखासन मे बैठ गया।
किसी पल थका थकाया मुहम्मद भी आया,उसी दरख़्त के नीचे ठंडी ठंडी छांह मे सिरहाना लगा लिया।
याद नहीं पड़ता ठीक से कि राम ने सुखासन पहले लगाया कि मुहम्मद ने सिरहाना?
ठीक है , क्या फ़र्क़ पड़ता है छांह को ?

--

दूसरी सुबह
दिन निकला तो रौला मच गया।
धर्मसेवकों , समाजसेवकों और पंथ सेवकों का जमघट लग गया।
राम के सुखासन पर मुहम्मद का क़ब्ज़ा--!
मुहम्मद के सिरहाने पर राम का अतिक्रमण --!
छांह को क्या?

--

दमदार बाहुबलियों की बिसात।
अपने अपने तर्क ... अपनी अपनी दलीलें।
दरख़्त की हवा बांट दो... बंटी नहीं।
ठंडक बांट दो ...  बंटी नहीं।
छांह बांट दो बंटी नहीं।
बंदर-बांट करते करते ख़्याल कोंधा...
दरख़्त काट दो...  कट गया।
हवा खो गयी, ठंडक खो गयी, छांह खो गयी।

मुझे क्या... ??

*****

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25 टिप्पणियाँ

  1. प्रवीण जी !

    अति सुंदर
    बहुत ही थोड़े शब्दों में इससे बड़ी बोध कथा नहीं हो सकती ... हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  2. दो की लडाई में तीसरे ने दरख्त काट के आग ताप ली ........ मुझे क्या?

    जवाब देंहटाएं
  3. काव्यात्मक है आपकी लघुकथा, बहुत ही संदेशप्रद, सोचने को बाध्य करने में सक्षम।

    जवाब देंहटाएं
  4. तगड़ा कटाक्ष....

    बढिया कहानी...

    तालियाँ..

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी कहानी में कविता तत्व एसे हैं कि उपसंहार तक पहुँचते पहुँचते शब्दों की भावुकता के प्रवाह में भी पाठक बह जाता है।

    जवाब देंहटाएं
  6. बंदर-बांट करते करते ख़्याल कोंधा...
    दरख़्त काट दो... कट गया।
    हवा खो गयी, ठंडक खो गयी, छांह खो गयी।

    मुझे क्या... ??

    Regards

    जवाब देंहटाएं
  7. एक अलग हीं अंदाज की लघुकथा। कथ्य एवं शिल्प दोनों हीं प्रशंसनीय हैं।
    बधाई स्वीकारें।

    जवाब देंहटाएं
  8. सुन्दर प्रस्तुति एक अलग अन्दज में...
    धर्मान्धों को तो कोई बिन्दू चाहिये अलगाव के लिये..धर्म से उनका क्या लेना देना..

    जवाब देंहटाएं
  9. दमदार बाहुबलियों की बिसात।
    अपने अपने तर्क ... अपनी अपनी दलीलें।
    दरख़्त की हवा बांट दो... बंटी नहीं।
    ठंडक बांट दो ... बंटी नहीं।
    छांह बांट दो बंटी नहीं।
    बंदर-बांट करते करते ख़्याल कोंधा...
    दरख़्त काट दो... कट गया।
    हवा खो गयी, ठंडक खो गयी, छांह खो गयी।

    मुझे क्या... ??

    बहुत अच्छी लघुकथा। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  10. अनोखी शैली, याद नहीं पडता कि कभी इस तरह का कुछ पढा भी है। बहुत बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत अच्छी लघुकथा के लिये बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  12. यह केवल एक लघुकाव्य कविता ही नहीं है बल्कि एक एसी मारक विधा है कि हर कोई प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। तीनों ही पैराग्राफ दृश्य खींचते हुए से बन पडे हैं।

    जवाब देंहटाएं
  13. प्रवीण जी,

    आपकी शैली की जितनी प्रशंसा की जाये कम है। पहली ही चार पंक्तियों की काव्यात्मकता को ले लीजिये:

    "दरख़्त था सदियों पुराना, और छांह भी।
    दरख़्त था घना, छांह उससे भी घनी।
    दरख़्त था हवादार, छांह कहीं अधिक शीतल ।
    दरख़्त सब का, छांह भी सबकी अपनी।"

    आपके लेखन में गहरायी है, शब्दों में प्रभाव है, शैली में अनूठापन है। परिणाम भी कितनी सहजता से आपने दर्शा दिये:

    "दरख़्त की हवा बांट दो... बंटी नहीं।
    ठंडक बांट दो ... बंटी नहीं।
    छांह बांट दो बंटी नहीं।
    बंदर-बांट करते करते ख़्याल कोंधा...
    दरख़्त काट दो... कट गया।
    हवा खो गयी, ठंडक खो गयी, छांह खो गयी।"

    सबसे गंभीर अंत वह भी केवल दो शब्द "मुझे क्या?"
    .....

    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  14. बड़ा ही खूबसूरत प्रयोग | इस से साफ़ समझ आता है की आप काफ़ी सोचते हैं कुछ लिखने से पहले | बहुत उम्दा | जमे रहे | बहुत पहले पढा एक शेर याद आ गया "बैठ जाते हैं जहाँ छाँव घनी होती है , हाय क्या चीज़ , गरीब - उल -वतनी होती है !"..:-)

    जवाब देंहटाएं
  15. Ek damdaar aur prabhavshaalee
    kavyatmak laghukatha.Jitni taareef
    kee jaaye utnee kam hai.

    जवाब देंहटाएं
  16. काव्यात्मक लघु-कथा

    चित्रात्मक शैली....

    गागर में सागर भरने ली अनुपम कला....

    वाह्....मन मोह गयी.....

    बधाई आपको..

    जवाब देंहटाएं
  17. इसे लघु कथा कहना ग़लत होगा... विचारो की दृष्टि से बहुत बड़ी कथा है ये..

    आभार प्रवीण जी

    जवाब देंहटाएं
  18. बंदर-बांट करते करते ख़्याल कोंधा...
    दरख़्त काट दो... कट गया।
    हवा खो गयी, ठंडक खो गयी, छांह खो गयी।

    मुझे क्या... ??
    बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
  19. आभार आप सभी गुणी मित्रों का।

    एक विचार कसक बना,
    कसक ही कथा के रूप मे आपके सम्मुख थी।
    सराहना का श्रेय आपको,वरना किसी भी दोष का उत्तरदायित्व निश्चय ही मेरा है ।

    सस्नेह

    प्रवीण पंडित

    जवाब देंहटाएं
  20. गद्यकाव्य की शैली में कोई रचना लंबे अरसे बाद पढ़ने को मिली. कथानक तो सुंदर और प्रभावी है ही!
    आभार पढ़वाने का!

    जवाब देंहटाएं
  21. चन्द लफ़्ज़ों में आपने सारी कहानी बुन दी कहे बिना नही रहेंगे...वाह क्या बात है!!!

    जवाब देंहटाएं

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