
बस्तर की वादियों में
यमदूत उतर आए हैं
गाँव खाली हैं, लोग बेघर
खेत बंजर, जंगल सुन्न है
हवा में घुल गई है, बारूदी गंध
अब बच्चे नही खेलते हैं
पेडों के नीचे/ पेडों पर नही चढते हैं
नही करते हैं /नदी पहाडों जंगलों की सैर
धमाकों से सहमे हुए बच्चे
स्कूल जाने भी डरते हैं
पनिया गया है/ ताडी शल्फी का स्वाद
तीखुर मडिया की मिठास पर
भयानक कडुवाहट भरी है
गायब होती जा रही है/ हाट-बाज़ार की रौनक
‘भागा’ और ‘पुरौनी’ की आदिम प्रथा
युवक-युवतियों की हँसी-ठठ्ठा
अब गाँवों में नही लगती है पंचायतें
नही होता कोई आपसी फैसला
फ़रमान जारी होते हैं
मौत! मौत!! मौत!!!
बाजे-गाजे खामोश हो चुके हैं
अब नही बजता है ‘मृत्यु-संगीत’
परिजनो की मौत पर भी
रोने की सक्त मनाही है
यहाँ के नदी पहाड जंगल गाँव
सब पर यमराज का कडा पहरा है
सदियों से सताए हुए लोग
आज भी विवश हैं
भूख दुख और शोषण के
पिराते पलों में जीने के लिए
लेकिन राजनीति का रंग गहरा है
*****
19 टिप्पणियाँ
सदियों से सताए हुए लोग
जवाब देंहटाएंआज भी विवश हैं
भूख दुख और शोषण के
पिराते पलों में जीने के लिए
लेकिन राजनीति का रंग गहरा है
हाल ही में बस्तर से घूम कर लौटा हूँ, आपकी कविता को और दर्द को समझ सकता हूँ।
सदियों से सताए हुए लोग
जवाब देंहटाएंआज भी विवश हैं
भूख दुख और शोषण के
पिराते पलों में जीने के लिए
लेकिन राजनीति का रंग गहरा
अच्छी प्रस्तुति।
Naxalism is terrorism. Nice poem.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
I wonder when these words can touch the soul of heartless people.I feel Terrorist/Naxals are the people who could't stand the harshness of life.So i consider them very week people.
जवाब देंहटाएंPoem is good enough
अब बच्चे नही खेलते हैं
जवाब देंहटाएंपेडों के नीचे/ पेडों पर नही चढते हैं
नही करते हैं /नदी पहाडों जंगलों की सैर
धमाकों से सहमे हुए बच्चे
स्कूल जाने भी डरते हैं
" kya khun ek sach hai or marmsparshee.."
Regards
बस्तर की वादियों में
जवाब देंहटाएंयमदूत उतर आए हैं
गाँव खाली हैं, लोग बेघर
खेत बंजर, जंगल सुन्न है
हवा में घुल गई है, बारूदी गंध
एक स्वर्ग के नर्क बन जाने की दास्ता का चित्रण।
भोगा हुआ सा अहसास ।
जवाब देंहटाएंदूसरे की पीड़ा जब अपनी हो जाती है तब ऐसी मार्मिक रचना का जन्म होता है।
प्रवीण पंडित
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जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
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जवाब देंहटाएंनक्सलवाद की जड़ें दिन पर दिन गहरी होती जा रही हैँ.....
जवाब देंहटाएंनक्सल का बढता आतंक और बस्तर की बदलती फिज़ा आहत करती है। कविता मर्मस्पर्शी लगी।
जवाब देंहटाएंनक्सलवाद जैसे नासूर पर अभिव्यक्त यह कविता बडी सच्चाई है। सच्ची अभिव्यक्ति है।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत कविता, सराहनीय प्रयास। बस्तर की अनुभूत पीड़ा को शब्दों की लड़ियों में पिरोकर लिखी गयी एक सच्ची कविता। धन्यवाद डॉ. नंद जी।- सुशील कुमार।
जवाब देंहटाएंआतंकवाद की त्रासदी से झूझते प्रदेश की व्यथा का सुन्दर चित्रण
जवाब देंहटाएंअब गाँवों में नही लगती है पंचायतें
जवाब देंहटाएंनही होता कोई आपसी फैसला
फ़रमान जारी होते हैं
मौत! मौत!! मौत!!!
बाजे-गाजे खामोश हो चुके हैं
अब नही बजता है ‘मृत्यु-संगीत’
परिजनो की मौत पर भी
रोने की सक्त मनाही है
यहाँ के नदी पहाड जंगल गाँव
सब पर यमराज का कडा पहरा है
संवेदनशील व सशक्त अभिव्यक्ति। हार्दिक बधाई।
आदरणीय डॉ. नंदन,
जवाब देंहटाएंबस्तर की आबोहवा अब खामोशी, डर व बारूद के साये में जीने को बाध्य है, आपने अपने अनुभवों से जो चित्र खींचा है वह सोचने पर मजबूर करता है कि आतंकवाद कितना भयावह होता है व इसकी कितनी बडी कीमत निरीह बस्तर अंचल को चुकानी पड रही है।
आपने एक कवि की जिम्मेदारी का निर्वहन किया है।
***राजीव रंजन प्रसाद
.........Achha prayas hai.
जवाब देंहटाएंसदियों से सताए हुए लोग
जवाब देंहटाएंआज भी विवश हैं
भूख दुख और शोषण के
पिराते पलों में जीने के लिए
लेकिन राजनीति का रंग गहरा है
एक विशेष अंचल की अवस्था का बहुत सुन्दर चित्रण किया है। कविता सच्चाई का आइना सी लगी। कवि को बहुत-बहुत बधाई।
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.