साथ ही आकांक्षा जी और उन जैसे अन्य सभी साहित्य-शिल्पियों के भी हम शुक्रगुज़ार हैं जो अपनी उच्चस्तरीय रचनायें हमें भेजकर साहित्य शिल्पी के स्तर को उत्तरोत्तर ऊँचा उठाने में हमारी मदद करते हैं।
अमर-उजाला में प्रकाशित आलेख की स्कैन की गई एक प्रति:
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16 टिप्पणियाँ
bahut bahut badhayee
जवाब देंहटाएंअभी तो अंगडाई है , आगे और लड़ाई है ..:-)
जवाब देंहटाएंवाकई आलेख बहुत बढिया है - आकाँक्षाजी को बधाई -
जवाब देंहटाएंसाहित्य शिल्पी प्रगति करता रहे यही शुभकामना है
- लावण्या
bahut bahut badhayee
जवाब देंहटाएंब्लॉगर'स के लिए आपने बड़ा काम किया
जवाब देंहटाएंबधाई और शुक्रिया ही कहूंगा
साहित्य शिल्पी को बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंbahut badhaee
जवाब देंहटाएंसाहित्य शिल्पी की पूरी team को मेरी बहुत बधाई और मेरी दिल से शुभकामनाएं है की ,ये पत्रिका , हिन्दी जगत में नए कीर्तिमान स्थापित करें...
जवाब देंहटाएंऔर हाँ , मैं इस पत्रिका से जुड़ा हुआ हूँ ,इस बात का गर्व है ..
विजय
आकांक्षा जी और सहित्यशिल्पी को बधाई कि रानी लक्ष्मीबाई पर लिखे इस लेख को लीडिंग हिंदी समाचार पत्र अमर उजाला में ब्लॉग कोना में प्रस्तुत किया गया है.
जवाब देंहटाएंअमर उजाला में सम्पादकीय पृष्ठ पर ब्लॉग कोना में यह अदभुत लेख पढना रोचक लगा. वाकई आकांक्षा यादव जी का यह लेख अलग हटकर है, बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंAmar Ujala akhbar men blog ke kone men Akanksha ji ke is lekh ko padhkar achha laga.
जवाब देंहटाएंआकांक्षा जी की सुन्दर लेखनी से एक और अतिसुन्दर एवं सारगर्भित प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंAdbhut...Sahitya Shilpi aur Akanksha ji ko badhai.Bas yun hi kadam badhate rahen, karvan judta jayega !!
जवाब देंहटाएंसाहित्य शिल्पी की चर्चा चारों तरफ है, कम समय में अच्छा नाम कमाया इस पत्रिका ने. फिर अमर उजाला और अन्य अख़बार क्यों न इसकी चर्चा करें....हार्दिक बधाई!!
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.