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किस उलझन में उलझा आजा [बाल - साहित्य] - सुषमा गर्ग

चन्दा देखे धरती पे
धरती पे लाखों चुनमुन हैं
चुनमुन प्यारे प्यारे हैं
सारे जग से न्यारे हैं

एक दिन चाँद के मन में आयी
उसने माँ को बात सुनायी

सर्दी के दिन आऐ रे
मुझको ठँड सताऐ रे
सन सन करके पवन चले है
ठिठुर ठिठुर कर रात कटे है
मुझको ऊनी ड्रेस मँगा दे
सुंदर सी एक कैप लगा दे
नन्हे नन्हे मौजे ला दे
काले काले बूट मँगा दे

चन्दा की सुन बात रे
माता सोच के बोली रे

घटता बढता रोज तू
और कभी ना दिखता तू
कौन नाप की ड्रेस मँगायें
ये ना मेरी समझ में आये

किस उलझन में उलझा आजा
तू है नील गगन का राजा
मेरे प्यारे लाल लाडले
तेरा यूँ ही रूप सलोना
मेरी लाख दुआएँ तुझको
लगे कभी ना जादू टोना
तेरा रुप लुभाता है
तू मामा कहलाता है
*****

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10 टिप्पणियाँ

  1. Nice poem for childrens. Liked it.

    Alok Kataria

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  2. सरदी और मौसम के अनुकूल कविता। बच्चों को बहुत पसंद आयेगी।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी कविता है सुषमा जी, बधाई।

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  4. अच्छी बाल कविता।

    जवाब देंहटाएं
  5. बधाई स्वीकार कीजिये। बाल मन की आपको समझ है, सुन्दर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहोत खूब लिखा है आपने ढेरो बधाई आपको...

    जवाब देंहटाएं
  7. बाल सुलभ मन भाती कविता.. बधाई

    जवाब देंहटाएं
  8. अच्छी प्रस्तुति।

    सुषमा जी, बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  9. मौसम के अनुरूप सुन्दर बाल-कविता

    जवाब देंहटाएं
  10. रचना ने बच्चा बन जाने का अहसास करा दिया।
    और सुख किसे कहते हैं।

    प्रवीण पंडित

    जवाब देंहटाएं

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