
चुन चुन कर नग
किस शिल्पी ने
तुम्हें सजाया है।
शायद
चंदन की लकड़ी से
तुम्हें बनाया है।
हवा बसंती
ठहर गयी है
तुम्हारे होठों पर,
या फिर
सावन की मस्ती ने
तुम्हें बुलाया है ?
गंगा में अर्पित पुष्पों सा
है मेरा जीवन,
श्रृध्दा ने ले
रंग सुनहरा
रुप बनाया है।
शीशे जैसे मन में दिखते
पावन कुछ बंधन,
या फिर बादल ने घूँघट में
चाँद छिपाया है।
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8 टिप्पणियाँ
बेहतरीन..बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंशब्द भाव का संगम ऐसा मुझको भाया है।
जवाब देंहटाएंऐसा लगता आपने मेरा दर्द बताया है।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
सरल शब्द...बढिया भाव....सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और बेहतरीन रचना है।
जवाब देंहटाएंशीशे जैसे मन में दिखते
जवाब देंहटाएंपावन कुछ बंधन,
या फिर बादल ने घूँघट में
चाँद छिपाया है।
waah! bahut sundar likha hai. badhayi sweekaren.
सहज बोल हैं किंतु मधुर मृदु।
जवाब देंहटाएंपढ़ने के बाद अच्छा अच्छा महसूस होता रहा।
प्रवीण पंडित
सुन्दर सहज शब्दों में मन की गहरी बात कह गये आप इस रचना के माध्यम से.. बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया भाई ...
जवाब देंहटाएंशब्द जी उठे है आपकी कविता में , और मौसम के रंग छा गए है मेरे मन पर......
बहुत बहुत बधाई
विजय
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.