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घबराता है दिल [ग़ज़ल] - मंगल नसीम

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रात जब ढलने को होती है तो घबराता है दिल
दिन निकलने के तसव्वुर से ही डर जाता है दिल

उम्र का बाक़ी सफ़र भी यूँ ही तय हो जायेगा
दिल को समझाता हूँ मैं और मुझको समझाता है दिल

किस तरह ज़िन्दा हूँ आखिर सोचने लगता हूँ मैं
जब कभी तनहाई मेँ ज़ख्मों को दिखलाता है दिल

वक्त के मूजिब यहाँ चेहरे बदल लेते हैं लोग
लाख समझाता हूँ लेकिन कब समझ पाता है दिल

तुम खुशी मेरे लिये लाये हो लेकिन 'नसीम'
अब ख़ुशी की बात भी मुश्किल से कह पाता है दिल

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18 टिप्पणियाँ

  1. जवाब नहीं इस गज़ल का। बधाई नसीम साहब।

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  2. उम्र का बाक़ी सफ़र भी यूँ ही तय हो जायेगा
    दिल को समझाता हूँ मैं और मुझको समझाता है दिल

    वाह।

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  3. आजकल के बदले हुये हालात का जायजा देती हुई भाव भरी गजल...

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  4. उम्र का बाक़ी सफ़र भी यूँ ही तय हो जायेगा
    दिल को समझाता हूँ मैं और मुझको समझाता है दिल

    क्या बात है. बहुत अच्छे शेर.

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  5. रात जब ढलने को होती है तो घबराता है दिल
    दिन निकलने के तसव्वुर से ही डर जाता है दिल

    उम्र का बाक़ी सफ़र भी यूँ ही तय हो जायेगा
    दिल को समझाता हूँ मैं और मुझको समझाता है दिल

    बहुत ख़ूब...

    जवाब देंहटाएं
  6. उम्र का बाक़ी सफ़र भी यूँ ही तय हो जायेगा
    दिल को समझाता हूँ मैं और मुझको समझाता है दिल
    " bhut sunder alfaj bhut accha lga pdh kr"

    Regards

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  7. अब ख़ुशी की बात भी मुश्किल से कह पाता है दिल....
    बहुत दर्द है साहब.. आप के अशआर से मंच की शोभा बढ़ती है और नए कवियों का मार्गदर्शन होता है | शुक्रिया |

    जवाब देंहटाएं
  8. अच्छी और सच्ची गज़ल। बधाई नसीम साब और साहित्य के शिल्पियो को।

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  9. बेहतरीन ग़ज़ल...एक एक शेर तारीफ के काबिल...वाह..वा...
    नीरज

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  10. किस तरह ज़िन्दा हूँ आखिर सोचने लगता हूँ मैं
    जब कभी तनहाई मेँ ज़ख्मों को दिखलाता है दिल

    bahot hi sundar umda sonch mili muje is ghazal me wah bahot khub likha hai aapne....

    arsh

    जवाब देंहटाएं
  11. आज के ज़माने के अनुरूप लिखी गई एक अच्छी और सच्ची गज़ल....

    बधाई स्वीकार करें...

    जवाब देंहटाएं
  12. रात जब ढलने को होती है तो घबराता है दिल
    दिन निकलने के तसव्वुर से ही डर जाता है दिल

    बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं
  13. बेहतरीन। इसे कहते हैं ग़ज़ल।

    जवाब देंहटाएं
  14. किस तरह ज़िन्दा हूँ आखिर सोचने लगता हूँ मैं
    जब कभी तनहाई मेँ ज़ख्मों को दिखलाता है दिल

    बहुत अच्छी ग़ज़ल।

    जवाब देंहटाएं
  15. मंगल नसीम की गज़लेंशिल्प सौष्ठव के लिये तो जानी ही जाती हैं, शब्दों और भावों के भी आप कुशल चित्रकार हैं, हर शेर आपकी इस विधा पर गहरी पकड का गवाह है। बधाई।

    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  16. बेहतरीन ग़ज़ल नसीम साहब!
    किस तरह ज़िन्दा हूँ आखिर सोचने लगता हूँ मैं
    जब कभी तनहाई मेँ ज़ख्मों को दिखलाता है दिल

    कितनी नफ़ासत से अपने ज़ख़्म देखने का मौक़ा दिला दिया आपने ।

    प्रवीण पंडित

    जवाब देंहटाएं

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