
कब इश्क बेईमान हो जाए, क्या खबर !
कभी अपने गलीचे के पत्थरों को देखना,
दब-दब के मोम हो पड़े हैं सारे हमसफ़र !!
तेरे अलावा लब्ज़ इक बचा न शेर में,
वल्ला! तुम्हें है चाहती ,गज़ल किस कदर!
उनतीस बिछोह झेलकर हीं इंतज़ार में,
हर माह, माह एक शब जाए है तेरे घर!
सीसे-सबा पे, आब पे जादू किया है यूँ,
खुशबू घुली है तेरी, बस आए तू नज़र।
किस नाते, तुझे देखकर जी रहा हूँ मैं,
हो जो भी, है तो साफगोई मेरे में मगर।
होने में तेरे देखता हूँ अक्स आप का,
खुद के बिना यूँ कैसे, 'तन्हा' करे बसर।
*****
16 टिप्पणियाँ
Nice Gazal.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
बढिया....
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढिया
कभी अपने गलीचे के पत्थरों को देखना,
जवाब देंहटाएंदब-दब के मोम हो पड़े हैं सारे हमसफ़र !!
अच्छी लगी, विविधता है। कहन अच्छा है।
उनतीस बिछोह झेलकर हीं इंतज़ार में,
जवाब देंहटाएंहर माह, माह एक शब जाए है तेरे घर!
बहुत दिमाग खपाया इस शेर पर, अच्छा है। मानिये न मानिये मैने सत्रह माने ढूंढ निकाले हैं। ग़ज़ल अच्छी है।
तनहा जी अच्छी गज़ल के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएं"बहुत सुंदर प्यारी सी ग़ज़ल "
जवाब देंहटाएंRegards
जिन कूचों में खेल खेलते, बचपन छूट गया हमसे
जवाब देंहटाएंउन कूचों की, गलियारों की चर्चा जारी रहने दो
deepak ji mai modgil ji ka she'r quote kar raha hoon take aap dekh saken ki behar me aur behar ke bina ghazal ka kya haal hota hai.bahar ghazal ki aatma hote hai.
सुन्दर गजल .. यह शेर खास कर
जवाब देंहटाएंसीसे-सबा पे, आब पे जादू किया है यूँ,
खुशबू घुली है तेरी, बस आए तू नज़र।
होने में तेरे देखता हूँ अक्स आप का,
खुद के बिना यूँ कैसे, 'तन्हा' करे बसर।
रचना पर अमूल्य टिप्पणियाँ देने के लिए आप सभी मित्रों का धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसतपाल जी, मैं अभी बहर हीं सीख रहा हूँ। इसलिए मैं भी आपकी बात से इत्तेफाक रखता हूँ कि बहर गज़ल की जान होती है। यह रचना(गज़ल कहूँ या न कहूँ,संदेह है) साहित्य-शिल्पी को मैने तब भेजी थी, जब मुझे बहर की उपयोगिता का भान नहीं था। जब भान हुआ, तब से प्रण कर लिया है कि जब तक बहर की पूर्ण जानकारी न होगी, गज़ल लिखने का प्रयास भी नहीं करूँगा। अभी तक मैं उस प्रण को जी रहा हूँ ।
सतपाल जी, जहाँ तक मैं जानता हूँ बहर के कई प्रकार होते है, इसलिए सीखना तब हीं संभव हो सकता है, जब उनके बारे में जानूँ। आपने "मौदगिल" जी के गज़ल से एक शेर को उद्दृत किया है, पर मेरी शिकायत है कि "मौदगिल" जी को भी वहाँ बताना चाहिए था कि गज़ल किस बहर का पालन कर रही है और अगर उन्होंने नहीं किया था तो आप हीं कर देते। कम से कम मुझे सीखने को तो मिलता।
उम्मीद करता हूँ कि बहर पर पकड़ बनाने में आप मेरी मदद करेंगे।
आपका और सबका-
"तन्हा"
तनहा जी अच्छी गज़ल के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंvijay
GAZAL KE BHAAV ACHCHHE HAIN
जवाब देंहटाएंLEKIN KAEE MISRE VAZAN SE GIR
GAYE HAIN.MAIN TANHA SAHIB KO
SALAH DOONGAA KI AGAR UNHE
GAZALKAAR BANNA HAI TO PAHLE KUCHH
BAHRON KO PUREE TARAH AATMSAAT
KAREN.MAIN ASHA KARTA HOON KI TANHA
SAHIB MEREE IS SALAAH KO ANYATHA
NAHIN LENGE.
TANHAA JEE,
जवाब देंहटाएंAAPKA POOCHHNAA UCHIT
HAI.MOUDGIL KE JIS SHER KO SATPAL
JEE NE UDDHRIT KIYAA HAI USKAA
PAHLA MISRA URDU KEE BAHAR KE HISAAB SE SAHEE NAHIN HAI.MISRA
SAHEE TAB HOTA JAB VO YUN LIKHAA
JAATAA---
JIN KOOCHON MEIN KHEL KHILAATE
BACHPAN CHHOOT GAYAA HUMSE
KYONKI SAHEE BAHAR HAI---
22 22 22 22 22 22 22 2
AAPKEE JAANKAREE KE LIYE
MAIN BATAANAA CHAHTAA HOON KI JIS
BAHAR MEIN AAPNE GAZAL LIKHEE HAI
HINDI KE KAEE PRAMUKH GAZALKAR USKO
NIBAH NAHIN PAATE HAIN.
ग़ज़ल का मकता तो kamaal का लिखा है आपने बहोत खूब पड़ा है ग़ज़ल ये बहोत उम्दा साहब ढेरो बधाई आपको ....
जवाब देंहटाएंwaah bahut badhiya
जवाब देंहटाएंप्राण जी!
जवाब देंहटाएंमेरी रचना पर आपकी टिप्पणी आई, मेरे लिए इससे बड़े सौभाग्य की बात क्या होगी!
आपकी सलाह को अन्यथा लूँ, ऎसा दुस्साहस कैसे कर सकता हूँ। मैं तो आप जैसे गुणिजनों के सान्निध्य में हीं गज़ल-विधा सीख सकता हूँ और सीखूँगा, ऎसा विश्वास रखता हूँ।
बस अपना सहयोग ऎसे हीं बनाए रखिएगा।
-"तन्हा’
किसीकी ठोड़ी को अनछूई पकड़ से छूकर चेहरे मे झांकने की तरह भक्ति- भाव से ग़ज़ल पढ़ी।
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी , इसलिये कहता हूं कि अच्छी है।बस--
प्रवीण पंडित
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.