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ज़बाँ मेरी कभी उर्दू कभी हिंदी [ग़ज़ल] - सतपाल 'ख्याल'


मैं शायर हूँ ज़बाँ मेरी कभी उर्दू कभी हिंदी
कि मैंने शौक़ से बोली कभी उर्दू कभी हिंदी

न अपनों ने कभी चाहा यही तकलीफ़ दोनों की
हैं बेबस एक ही जैसी कभी उर्दू कभी हिंदी

अदब को तो अदब रखते ज़बानों पर सियासत क्यों
सियासत ने मगर बाँटी कभी उर्दू कभी हिंदी

न लफ़्जों का वतन कोई न है मज़हब कोई इनका
ये कहते हैं फ़कत दिल की कभी उर्दू कभी हिंदी

महब्बत है वतन उसका, ज़बाँ उसकी महब्बत है
ख़्याल उसने ग़ज़ल कह दी कभी उर्दू कभी हिंदी

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16 टिप्पणियाँ

  1. अँग्रेज़ी के राज में हिन्दी और उर्दू दोनों बेबस है...

    अच्छी गज़ल..उम्दा विचार

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  2. न लफ़्जों का वतन कोई न है मज़हब कोई इनका
    ये कहते हैं फ़कत दिल की कभी उर्दू कभी हिंदी

    बिलकुल सही कहा आपने।

    जवाब देंहटाएं
  3. न लफ़्जों का वतन कोई न है मज़हब कोई इनका
    ये कहते हैं फ़कत दिल की कभी उर्दू कभी हिंदी
    " लफ्ज भी बेचारे बिना वतन के .... भावुक सी कहानी , लफ्जों की जुबानी ..."
    regards

    जवाब देंहटाएं
  4. महब्बत है वतन उसका, ज़बाँ उसकी महब्बत है
    ख़्याल उसने ग़ज़ल कह दी कभी उर्दू कभी हिंदी

    नजरिया अच्छा लगा। गज़ल प्रभावी है।

    जवाब देंहटाएं
  5. गज़ल को जुबानों के झगडे से निकालने की अच्छी कोशिश है।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत बेहतरीन गजल है।बधाई स्वीकारें।

    न लफ़्जों का वतन कोई न है मज़हब कोई इनका
    ये कहते हैं फ़कत दिल की कभी उर्दू कभी हिंदी

    महब्बत है वतन उसका, ज़बाँ उसकी महब्बत है
    ख़्याल उसने ग़ज़ल कह दी कभी उर्दू कभी हिंदी

    जवाब देंहटाएं
  7. न लफ़्जों का वतन कोई न है मज़हब कोई इनका
    ये कहते हैं फ़कत दिल की कभी उर्दू कभी हिंदी

    bahot khub kaha aapne dhero badhai ,umda lekhan hai wah,,,

    जवाब देंहटाएं
  8. हर बार की तरह एक और खूबसूरत और संपूर्ण ग़ज़ल!

    अदब को तो अदब रखते ज़बानों पर सियासत क्यों
    सियासत ने मगर बाँटी कभी उर्दू कभी हिंदी

    काश हमारी ज़ुबानें इस शियासत से आज़ाद होतीं!

    जवाब देंहटाएं
  9. खयाल साहब, बहुत ही उम्दा गज़ल है! हर एक शेर सधा हुआ और अत्यंत प्रभावी है.

    न अपनों ने कभी चाहा यही तकलीफ़ दोनों की
    हैं बेबस एक ही जैसी कभी उर्दू कभी हिंदी

    ऐसे खूबसूरत अशआर पढ़कर ’वाह’ करने को तो मन करता है पर कहीं एक टीस भी उठती है. पढ़ाने का आभार!

    जवाब देंहटाएं
  10. गज़ल अच्छी है। हर शेर रदीफ, काफिया और बहर(इसका मुझे ज्ञान नहीं, लेकिन चूँकि आपने लिखी है तो होगी हीं,यह मान रहा हूँ) में है।

    भाव भी अच्छे हैं,लेकिन मैं कुछ नयापन देखना चाहता था,जिसमें मुझे कमी लगी। जो लिखा है आपने,उसको पहले भी कई लोग कह चुके हैं। मैं चाहूँगा कि गज़ल में शिल्प के साथ-साथ भाव पर भी काम किये जाएँ।

    -"तन्हा"

    जवाब देंहटाएं
  11. bahut acchi gazal ban padi hai , aur specially ye lines bahut umda hai .

    न लफ़्जों का वतन कोई न है मज़हब कोई इनका
    ये कहते हैं फ़कत दिल की कभी उर्दू कभी हिंदी

    bahut bahut badhai

    vijay

    जवाब देंहटाएं
  12. Aap sab ne saraha sab ka aabharii hooN,
    Dear Vishavdeepak tanha ji,jiasa ki aapne kaha
    >>मैं कुछ नयापन देखना चाहता था,जिसमें मुझे कमी लगी। जो लिखा है आपने,उसको पहले भी कई लोग कह चुके हैं। <<
    khayal aur bhav kabhi naye nahi hote,aap agar sab shayaron ko paRen to lagega ki baateN to sab puranee hi haiN, lekin aapka kahne ka andaaz juda hota hai.
    Everything till now in poetry has been written, but yet we are writing, bcs our feelings are common.Anyway..
    thanks all and Rajeev ji.

    जवाब देंहटाएं
  13. ...achhi, maanakhez ghazal hai, badhaaee. purani zameen mei apne naye lehje mei baat kehna bhi nayapan hi hota hai. muaashre ko bedaar rakhne ke liye kuchh baateiN kehte rahna paRhta hai.

    "kabhi alfaaz mei dastak,
    kabhi shabdoN mei aahat hai ,
    tsalli hai sukhanvar ki,
    kabhi urdu kabhi haindi."
    ---MUFLIS---

    जवाब देंहटाएं

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