
जो कुछ भी जिया है अब तक
सबको पास बिठा कर..
मजमा लगा दिया है मैने
मगर सब टिकते कहाँ हैं!
करवट के कोण बदलते ही,
ख़याल, यादें, तजुर्बे,
सब के सब बदल जाते हैं.
और फिर कहाँ से कहाँ ले जायेंगे
पता नही चलता
मगर एक करवट लिए रहना भी तो मुश्किल है!
बड़ी बेचैनी सी रहती है कि...
रात गुज़ारना मुश्किल है
*****
21 टिप्पणियाँ
मगर एक करवट लिए रहना भी तो मुश्किल है!
जवाब देंहटाएंबड़ी बेचैनी सी रहती है कि...
रात गुज़ारना मुश्किल है
बहुत अच्छी कविता है, बधाई।
मगर सब टिकते कहाँ हैं!
जवाब देंहटाएंकरवट के कोण बदलते ही,
ख़याल, यादें, तजुर्बे,
सब के सब बदल जाते हैं.
मगर एक करवट लिए रहना भी तो मुश्किल है!
बड़ी बेचैनी सी रहती है कि...
रात गुज़ारना मुश्किल है
आपने मुश्किल बडे सरल शब्दों में कह दी है, वाह क्या बात है!
उपासना जी,
जवाब देंहटाएंअंतर्मन की उहापोह को बहुत सरलता से दर्शाया है आपने। कई बार होता है - गहरी सोच में, मन की उथल-पुथल में, पीडा में, या प्रसन्नता में...बिलकुल एसा ही।
मगर एक करवट लिए रहना भी तो मुश्किल है!
बड़ी बेचैनी सी रहती है कि...
रात गुज़ारना मुश्किल है
***राजीव रंजन प्रसाद
बहुत सुंदर कविता है सोचने पर विवश करती है..
जवाब देंहटाएंNice poem, appreciable.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
मगर एक करवट लिए रहना भी तो मुश्किल है!
जवाब देंहटाएंबड़ी बेचैनी सी रहती है कि...
रात गुज़ारना मुश्किल है
" very touching words"
Regards
मन को छूने वाली कविता।
जवाब देंहटाएंबात सोलह आने सच है, लेकिन मुझे लगा कि कविता शुरू होते खत्म हो गई। कुछ ज़्यादा की उम्मीद थी मुझे।
जवाब देंहटाएंवैसे जितनी भी है, प्रशंसनीय है। बधाई स्वीकारें।
"मगर एक करवट लिए रहना भी तो मुश्किल है!" बहुत खूब। अच्छी क्षणिका।
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachana
जवाब देंहटाएंregards
मगर एक करवट लिए रहना भी तो मुश्किल है!
जवाब देंहटाएंबड़ी बेचैनी सी रहती है कि...
रात गुज़ारना मुश्किल है
सुंदर ....
बधाई।
Upaasnaa jee,
जवाब देंहटाएंMun kee baichainee ko
bkhoobee dhaalaa hai kavyatmak
panktion mein aapne.Badhaaee.
मगर सब टिकते कहाँ हैं!
जवाब देंहटाएंकरवट के कोण बदलते ही,
ख़याल, यादें, तजुर्बे,
सब के सब बदल जाते हैं.
BAHUT ACHHA LIKHA HAI.
बड़ी बात...सरल शब्द...
जवाब देंहटाएंशानदार कविता...
और क्या कहें?
सुंदर कविता है।
जवाब देंहटाएंमगर एक करवट लिए रहना भी तो मुश्किल है!
बड़ी बेचैनी सी रहती है कि...
रात गुज़ारना मुश्किल है
मन को छू गई।
बेकल मन की प्रतिक्रिया को बखूबी अपनी रचना में ढाला है आपने.
जवाब देंहटाएंनिशब्द हूँ.......बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंव्यग्रता साकार हो उठी।
जवाब देंहटाएंदुविधा भरे पल जी उठे ।
बहुत अच्छा ।
प्रवीण पंडित
क्या बात है!!! उपासना जी बहुत गहरी बात कही है रचना में...बधाई स्वीकारे...
जवाब देंहटाएंbhav purna zinda kriti
जवाब देंहटाएंसत्य वचन...आभार
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.