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घर का चूल्हा जलता देखा [कविता] - शम्भु चौधरी


घर का चूल्हा जलता देखा
चूल्हे में लकड़ी जलती देखी
उस पर जलती हाँड़ी देखी,
हाँड़ी में पकते चावल देखे,
फिर भी प्राणी जलते देखे।
घर का चूल्हा जलता देखा।।

हाय.. रे..घर...का..चूल्हा...।
घर का चूल्हा जलता देखा।।

खेतों में हरियाली देखी
घर में आती खुशीयाली देखी
बच्चों की मुस्कान को देखा,
मन में कोलाहल सा देखा,
मंडी में जब भाव को देखा
श्रम सारा पानी सा देखा।

हाय.. रे..घर...का..चूल्हा...।
घर का चूल्हा जलता देखा।।

घर का चूल्हा जलता देखा
बर्तन-भाँडे बिकता देखा
हाथ का कंगना बिकता देखा,
बिकती इज़्ज़त बच्चों को देखा
खेते -खलियानों को बिकता देखा
हल-जोड़े को बिकता देखा।

हाय.. रे..घर...का..चूल्हा...।
घर का चूल्हा जलता देखा।।

बैल को जोता, खुद को जोता,
बच्चों और परिवार को जोता
ब्याज का बढ़ता बोझ को जोता
सरकार को जोता, फसल को जोता,
घरबार- परिवार को जोता
दरबारी-सरपंच को जोता,

हाय.. रे..घर...का..चूल्हा...।
घर का चूल्हा जलता देखा।।

मुर्दों की संसद को देखा
बन किसान मौज करते देखा,
घर का चूल्हा जलता देखा
बेच-बेच ऋण चुकता देखा
फिर किसान को मरता देखा
फांसी पर लटकता देखा।

हाय.. रे..घर...का..चूल्हा...।
घर का चूल्हा जलता देखा।।
***** 

एक टिप्पणी भेजें

16 टिप्पणियाँ

  1. जन सरोकार कवि को समाज से जोडते हैं। आपकी कविता का स्वर संवेदित भी करता है और आंदोलित भी करता है।

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  2. Poem is ANDOLANKARI. Very well written and conveys every thing ti heart.

    Alok Kataria

    जवाब देंहटाएं
  3. मुर्दों की संसद को देखा
    बन किसान मौज करते देखा,
    घर का चूल्हा जलता देखा
    बेच-बेच ऋण चुकता देखा
    फिर किसान को मरता देखा
    फांसी पर लटकता देखा।

    हाय.. रे..घर...का..चूल्हा...।
    घर का चूल्हा जलता देखा।।

    मर्मस्पर्शी कविता के लिये बधाई स्वीकार करें।

    जवाब देंहटाएं
  4. kavita bahut prabhavshali ban padi hai ... aaj ke samay ko wyakat karti hai , aur desh ke haalat ki oor dyan dilwati hai ...

    there is clearly a demarkation between India's poor and India's rich and the gap is incresing ...

    kavita mein darshaye gayen haalat ke liye desh ke politician tath officers jimmedar hai ..

    bahut acchi rachna ..
    bahut bahut badhai .

    regards

    vijay

    जवाब देंहटाएं
  5. हाँड़ी में पकते चावल देखे,
    फिर भी प्राणी जलते देखे।

    मंडी में जब भाव को देखा
    श्रम सारा पानी सा देखा।

    खेते -खलियानों को बिकता देखा
    हल-जोड़े को बिकता देखा।

    बेच-बेच ऋण चुकता देखा
    फिर किसान को मरता देखा
    फांसी पर लटकता देखा।

    इसे कहते हैं कविता नि दृश्य इस तरह दिखाये कि मरी हुई संवेदनायें भी झकझोर उठें।

    जवाब देंहटाएं
  6. मुर्दों की संसद को देखा
    बन किसान मौज करते देखा,
    घर का चूल्हा जलता देखा

    बहुत अच्छी कविता के लिये बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  7. शंभु जी,

    आपको पहली बार पढा है लेकिन अब नीयमित पढने की इच्छा है। बात कहने का आपका तरीका प्रशंसनीय है।

    जवाब देंहटाएं
  8. घर का चूल्हा जलता देखा
    बेच-बेच ऋण चुकता देखा
    फिर किसान को मरता देखा
    फांसी पर लटकता देखा।
    " very emotional and heart touching.."

    regards

    जवाब देंहटाएं
  9. shambhuji,
    aapki kavitayen soye hue samaj ko jaga sakti hain. bahut gehre bhav hain. likhna jaari rahe

    जवाब देंहटाएं
  10. एक सशक्त रचना है। प्रत्येक पद को पढ़ते हुए रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
    बेच-बेच ऋण चुकता देखा
    फिर किसान को मरता देखा
    फांसी पर लटकता देखा।

    हाय.. रे..घर...का..चूल्हा...।
    घर का चूल्हा जलता देखा।।

    जवाब देंहटाएं
  11. सभी टिप्पणीकारों को मेरा सादर प्रणाम।
    शम्भु चौधरी

    जवाब देंहटाएं
  12. दुष्यंत कुमार जी कह गए हैं कि "मेरे सीने में नही तो तेरे सीने में सही,हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए ".....
    ये आग जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गयी है , और चूल्हे में चली गयी है :-) पर हाँ जल ये अब भी रही है .. और साथ में काफ़ी कुछ जल रहा है .. सब कुछ बयान करती है आप की कविता .. जिसे गीत में भी तब्दील किया जा सकता है .. सुंदर ...:-)

    जवाब देंहटाएं
  13. Baba Nagarjun ne chulhe par kya khoob likha hai..Shambhuji ki baat ko aage badhate hue baba ki panktiyan....

    क‍ई दिनो तक चुल्हा रोया ,चक्की रही उदास

    "क‍ई दिनो तक कानि कुतिया सोयी उसके पास

    "क‍ई दिनो तक लगी भीत पर छिपकलीयो कि गस्त"
    क‍ई दिनो तक चुहो कि भी हालत रही शिकस्त

    "धुआँ उठा आँगन के उपर क‍ई दिनो के बाद
    दाना आया घर के भीतर कई दिनो के बाद
    कौव्वे ने खुजलायी पाँखे कई दिनो के बाद

    जवाब देंहटाएं
  14. सामायिक विषय पर कुठाराघात करती कविता.. आज किसान की हालत क्या है सब जानते हैं... अन्नदाता खुद अन्न के लिये त्रासद है

    जवाब देंहटाएं
  15. सशक्त रचना ...

    बधाई स्वीकार करें।

    जवाब देंहटाएं
  16. एक कटु सत्य को उसके यथार्थ रूप मे देखा । निश्चय ही एक सार्थक रचना ।

    प्रवीण पंडित

    जवाब देंहटाएं

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