
करने को हाथ पीले
बाबुल का भाग्य कैसा
देता दहेज़ वर को
लेकर उधार पैसा
वह कर्ज मे दबेगा
ये नोट हैं लुटाते
खुलती है रोज़ बोतल
लब जाम से लगाते
देखिये सब पैसे की
बरबादी हो रही है
लोग कहते है
शादी हो रही है
शादी-2
आब तक स्वछंद चिड़िया
आज़ाद इस गगन मे
उड़ चली उधर ही
जहां चाह आई मन में
बंध गई है उसकी
उड़ानों की सीमा
एक अदद प्राणी से
बंधकर है
अब तो जीना
ख़तम आज इसकी
आजादी हो रही है
लोग कहते है
शादी हो रही है
*****
21 टिप्पणियाँ
पवन जी, बहुत अच्छी लगीं क्षणिकायें। खुसरो को प्रस्तुत करने के लिये भी साहित्य शिल्पी का धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंशादी के ये रंग भी हैं, आपकी कविता का धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंख़तम आज इसकी
जवाब देंहटाएंआजादी हो रही है
लोग कहते है
शादी हो रही है
:)
अच्छी लगी रचनायें।
आपके दृष्टिकोण की प्रशंसा करनी होगी। अच्छी क्षणिकाओं की बधाई।
जवाब देंहटाएंशादी पर आपकी दोनों ही रचनायें अच्छी बन पडी हैं। बधाई।
जवाब देंहटाएंशादी की तो बरबादी
जवाब देंहटाएंकर दी चंदन जी
चुनाव का वंदन
कब करोगे कविता
के नंदन जी।
वाह बहुत बढ़िया लिखा है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कवितायें हैं। बधाई।
जवाब देंहटाएंNice poems.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
बहुत सुंदर क्षणिकाएं हैं। पवन जी आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंउर्दू में शाद का मतलब खुश होता है और उस से ही शादी शब्द आया है ..पर वाकई कुछ कुरीतियों के चलते शादी में लोग ख़ास "शाद " नहीं हो पाते ...शादी में होने वाले फिजूलखर्च को भी हाशिये पर लिया है आपने ..हाँ पर दूसरी कविता में आज़ादी की बात पढ़ कर, सभी कुंवारे डर गए होंगे ..:-) .. शादी से जुड़े कुछ आशावादी पहलू भी कविताओ में निकल कर आयें तो और मज़ा हो |बहरहाल सुंदर रचनाएँ...बधाई
जवाब देंहटाएंसत वचन.....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाएँ...
बहुत सुंदर रचनाएं।
जवाब देंहटाएंअच्छी क्षणिकायें ...
जवाब देंहटाएंबधाई।
देखिये सब पैसे की
जवाब देंहटाएंबरबादी हो रही है
लोग कहते है
शादी हो रही है
सुंदर रचनाएँ...बधाई
अब मैं क्या कहूँ ...
जवाब देंहटाएंपंक्तियों के माध्यम से बहुत अच्छे चित्र !!
बधाई
विजय
bahut acchi shanikayen pankaj ji
जवाब देंहटाएंबेहद गंभीर मुद्दे को उठाया है आपने। शादी का अब यही रंग रह गया है, जो बेहद चिंतनीय है।
जवाब देंहटाएंरचना अच्छी लगी।
बीस तारीख़ को मैं पवन कुमार चंदन जी के ही घर में था। उनके लैपटॉप पर उनकी कुछ बेहतरीन कवितायें भी पढ़ी और ’कलमदंश’ जन-मार्च 2006 का अंक भी उनसे माँग कर रख लिया क्योंकि वह अंक पवन कु.’चंदन’ के कृतित्व पर ही केन्द्रित है। पर ’शादी’ की क्षणिकाओं पर उन्होंने कोई चर्चा नहीं की। शायद भूल गये हो!पर उनसे मिलकर यह पता चला कि वे बहुत अच्छे इंसान भी हैं,कवि तो हैं ही। शादी की बरबादी का रंग उन पर तब भी चढ़ा ही था क्योंकि वे अपने किसी रिश्तेदार के बारात-घर की व्यवस्था में चिंतामग्न थे! कहना यही चाहता हूँ कि कविता या व्यंग्य जो भी हो, कोई भी रचना उनसे गुज़र कर उनको मथकर ही पाठकों तक आती है और इस वज़ह से खा़स बन जाती है।-सुशील कुमार।
जवाब देंहटाएंबीस तारीख़ को मैं पवन कुमार चंदन जी के ही घर में था। उनके लैपटॉप पर उनकी कुछ बेहतरीन कवितायें भी पढ़ी और ’कलमदंश’ जन-मार्च 2006 का अंक भी उनसे माँग कर रख लिया क्योंकि वह अंक पवन कु.’चंदन’ के कृतित्व पर ही केन्द्रित है। पर ’शादी’ की क्षणिकाओं पर उन्होंने कोई चर्चा नहीं की। शायद भूल गये हो!पर उनसे मिलकर यह पता चला कि वे बहुत अच्छे इंसान भी हैं,कवि तो हैं ही। शादी की बरबादी का रंग उन पर तब भी चढ़ा ही था क्योंकि वे अपने किसी रिश्तेदार के बारात-घर की व्यवस्था में चिंतामग्न थे! कहना यही चाहता हूँ कि कविता या व्यंग्य जो भी हो, कोई भी रचना उनसे गुज़र कर उनको मथकर ही पाठकों तक आती है और इस वज़ह से खा़स बन जाती है।-सुशील कुमार।
जवाब देंहटाएंडरा रहे हैं आप ।
जवाब देंहटाएंकिंतु , निश्चय ही, इस कोण से नावाक़िफ़ नहीं रहा जा सकता।
प्रवीण पंडित
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.