
झींगा शेर तालाब के किनारे काँस के झुंडों के बीच में अपने भूखे बच्चों और पत्नी के साथ बैठा सूरज की मीठी धूप में ऊँघ रहा था| इस समय उसकी आँखें बंद थी ओर वह अपने सुनहरे दिनों के सपनों में खोया हुआ था उसे अपनी जवानी के उन दिनों की याद आ रही थी जब वह खूब शक्तिशाली था उन दिनों का भी क्या रंग था, क्या ताकत थी, शरीर की चुस्ती ओर फुरती के आगे क्या मजाल थी कि कोई शिकार हाथों से निकल जाये| अगर उसे दिन में दो तीन बार भी शिकार के पीछे दौड़ना पड़ता था तो वह तब भी नहीं थकता था| लेकिन अब उम्र का तकाजा था कि अब उसे एक शिकार मरने के लिए भी तालाब के किनारे कई-कई घंटे इंतजार करना पड़ता था, और कभी तो पूरा दिन भी कोई शिकार नहीं मिलता था ओर भूखों ही सो जाना पड़ता था | उसकी यह हालत बूढ़े हो जाने के कारण थी क्योंकि अब उसके शरीर की शक्ति अब क्षीण हो चुकी थी इसलिए वह अब तालाब के किनारे पानी पीने आए एक-आध कमजोर पशु को ही मार पता था ओर उसे उसी से ही अपने परिवार की भूख को शांत करना पड़ता था|
लेकिन आज सुबह से शाम होने को आयी , तो भी कोई शिकार दिखाई नहीं दिया था| झींगा शेर की माँद से कुछ दूर पर ही शेरू नाम का एक गीदड़ भी अपनी पत्नी रानी ओर अपने दो बच्चों के साथ एक बिल में रहता था| शेरू के परिवार का पेट भी काफी हद तक झींगा शेर के शिकार के ऊपर ही निर्भर करता था क्योंकि जब झींगा किसी शिकार की मार डालता था तो शेरू का परिवार भी बची झूठन को कई दिनों तक खाता था| लेकिन आज शेरू के परिवार का भी भूख के मरे बूरा हाल हुआ जा रहा था| लेकिन फ़िर भी वह अपने परिवार के साथ किसी शुभ घड़ी के इंतजार में, झींगे के ऊपर नजरे गडाये बैठा था| आखिर जब सूरज क्षितिज में छूपने जा रहा था तो शुभ घड़ी आ पहुँची ओर एक दरियाई घोड़ों का झुंड तालाब किनारे आ पहुँचा |
झुंड को देखते ही दोनों परिवारों में खुशी ही लहर दौड़ गई, झींगे ने भी झुंड को देखते ही अपनी स्थिति को संभाला ओर खड़ा होकर कमर को धनुष बनाते हुए अँगड़ाई ली| इसके बाद उसने हाथ पैरो को झटका ओर किसी पहलवान की तरह से आगे पीछे किया | इसके बाद उसने मूल-मन्त्र करने के लिए अपनी पत्नी को पास बुलाया जिससे झींगे के शरीर में एक उतेजना पैदा हो गई| उसने अपनी पूछ को कमर पर मोड़ा ओर आखे लाल की, फिर उसने अपनी पत्नी से पूछा-
-”देखो तो जरा मेरी पूछ मुंड कर पीठ पर आ गई हैंया नही”
शेरनी ने कहा -”हां स्वामी आप तो प्रचंड योद्धा की तरह से लग रहे हो “
इसके बाद झींगे ने पूछा-
-”मेरी आँखें कैसी लग रही हैं”
शेरनी ने कहा -”स्वामी आप की आँखें तो इस समय ऐसी लग रही हैं मनो कोई ज्वालामुखी लावा उगल रहा हो “
झींगे ने इतना सुना तो वह पूर्ण रूप से उतेजित हो गया ओर उसने तूफान की गति से दौड़ कर एक ही झटके में एक कमजोर से दिखाई देने वाले दरियाई घोड़े को मार गिराया जिसे वह खींचकर अपने झुंड में ले आया| इसके बाद पूरे परिवार ने व्रत तोड़ा ओर खूब डट कर खाया ओर फिर पेट पारा हाथ फिराते हुए अपनी माँद की तरफ़ चल पड़े|
झींगा शेर ने जब से शिकार किया तब से ही शेरू गीदड़ का परिवार भी उन पर आँखें गडाये बैठा था, झींगे का परिवार पातळ से उठ कर चला तो शेरू झूठी पातळ को साफ़ करने के लिए उसकी तरफ़ दोडा ओर वह भी अपने परिवार सहित अपनी भूख मिटाने में जुट गया| परिवार के सभी सदस्य झूठन को खा रहैंथे लेकिन शेरू की पत्नी रानी के मन में सुबह से व्रत करते-करते कुछ प्रश्न जमा हो रहे थे, जिन्हें पूछने का वह मोका तलाश रही थी |
आख़िर उसने भोजन करते-करते शेरू से पूछा -
-”स्वामी आख़िर हम कब तक दूसरों का झूठा खाते रहेंगे ,किया हम अपने लिए ख़ुद शिकार नहीं कर सकते “
शेरू ने रानी के ये वाक्य सुने तो मुँह चलते हुए बोला -
-”अरे जब तक मिलता हैंतब तक खाओ, आगे की आगे संचेंगे “
रानी त्योरिया चढाते हुए बोली -”नहीं आगे न खायेगे,तुम भी तो जवान हो,झींगा बूढ़ा हो चुका हैं लेकिन अब भी शिकार करता हैं किया तुम नहीं कर सकते “
रानी की इस बात पर शेरू चुप रहा,कुछ न बोला | उधर रानी ने पेट भर खाया ओर बच्चों को को लेकर अपने बिल में जा लेटी | शेरू वही झूठन चाटता रहा लेकिन रानी फ़िर उसके साथ न बोली| शेरू की झूठन ख़त्म हुई तो वह भी बिल की तरफ चला, लेकिन उदास क़दमों से | उसे वास्तव में रानी ने सोचने के लिए मजबूर कर दिया था वह जाकर बिल में लेट जाता हैंलेकिन उसे नींद नहीं आती, वह सोच रहा था आख़िर झींगा इतना बड़ा शिकार कैसे मार लेता हैं, ऐसी कोन सी शक्ति हैंउसके पास जो उसमें बूढ़ा होने पर भी इतना जोश ओर ताकत पैदा कर देती हैं | शेरू इन्ही विचारों में काफी देर तक उलझा रहा ओर यह सोच कर सोया की कल झींगे शेर की जासूसी करता हूँ ओर देखता हूँ की ऐसी कोन सी शक्ति हैं जो उसमें इतना जोश बार देती हैं| इतना सोच कर शेरू गीदड़ निश्चित होकर सो गया|
अगले दिन शेरू जल्दी जाग गया, उसने बिल से बहार मुह निकल कर देखा तो अभी काफी अँधेरा था, ओर पाला पड़ने के कारण काफी ठंड थी | लेकिन उसने उसकी परवाह नहीं की ओर वह अपनी पत्नी ओर बच्चों के उठने से पहले ही झींगे शेर की माँद की तरफ चल दिया ओर जाकर एक काँस के झुंड के पीछे छिप कर बैठ गया | झींगा शेर अभी जागा न था, कुछ देर बाद सूरज की मीठी धूप चारो ओर फैली तो झींगा अपनी मांद से बहार आया ओर उसने कमर को धनुष बनाते हुए अँगड़ाई तोड़ी ओर फिर जाकर धूप में बैठ गया | इसके बाद उसके बच्चे ओर शेरनी जागी वे भी मांद से बहार आये ओर धूप में बैठ कर उंगने लगे, ओर झींगा अपनी उसी तलास में लग गया कि कब शिकार आये ओर कब वह उसे मार कर अपने आज के भोजन का इंतजाम करे|
काँस के झुंड के पीछे छिपा शेरू झींगे शेर कि इस सारी दिनचर्या बड़े ध्यान से देख रहा था ओर इस समय वह झींगे के हर पैंतरे को बड़े ध्यान से सीख कर रहा था | झींगा अपने परिवार के साथ धूप में बैठा था तो एक जंगली भैंसा पानी कि टोह में उधर से आ निकला, वह धीमे ओर टूटे क़दमों से चल रहा था देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि शायद वह बीमार था ओर बीमारी में अपनी प्यास बुझाने तालाब किनारे आया था| आख़िर जब झींगे ने जंगली भैंसे को देखा तो उसे सुबह-सुबह पै-बारह होते नजर आये ओर वह भैंसे को देखकर खड़ा हो गया |
झींगे शेर के खड़े होते ही शेरू गीदड़ के भी कान खड़े हो गये, उसकी एक आँख शिकार पर लगी हुई थी तो दूसरी आँख झींगे कि हर हरकत को बारीकी से देख रही थी | ज्यों ही भैंसा तालाब में पानी पीने के लिए घुसा तो झींगे शेर ने अपना मूल-मंत्र पढ़ा | वह पास बैठी शेरनी से बोला -”देखो तो जरा मेरी पूछ मुंड कर पीठ पर आ गई हैं या नहीं”
शेरनी ने कहा -”हां स्वामी आप तो प्रचंड योद्धा की तरह से लग रहे हो “
इसके बाद झींगे ने पूछा-
-”मेरी आँखें कैसी लग रही हैं”
शेरनी ने कहा -”स्वामी आप की आँखें तो इस समय ऐसी लग रही हैं मनो कोई ज्वालामुखी लावा उगल रहा हो “
शेर ने इतना सुना तो वह पूर्ण रूप से उत्तेजित हो गया ओर इससे पहले कि जंगली भैंसा पानी पीकर अपनी प्यास बुझाता, झींगे शेर ने एक ही वार में तूफान कि गति से आगे बढ़कर भैंसे को धराशाई कर दिया ओर उसे खींचकर अपने झुंड में ले आया |
काँस के झुंड के पीछे छुपा शेरू गीदड़ झींगे की ये सारी हरकत देख रहा था उसने जब झींगे का मूल-मंत्र सुना तो खुशी से झूम उठा ओर खुशी को कारण जमीन में लोटपोट हो गया | उसने भी आज शक्ति के उस मूल-मन्त्र को पा लिया था जिसे पढ़कर वह भी अधिक शक्तिशाली हो सकता था | वह धूल से उठा ओर खुशी से कुचले भरता हुआ अपने बिल में जा घुसा | शेरू की पत्नी रानी अब तक जग चुकी थी उसने शेरू को इतना खुश होते देखा तो बोली -
“क्या बात हैं बड़े खुश नजर आ रहे हो,ऐसा सुबह-सुबह किया मिल गया जो तुम फूले नहीं समां रहे हो”
शेरू बच्चों के पास बैठते हुए टांग पर टांग रखकर बोला -
“तुम कहती थी ना में शिकार नही कर सकता ओर में डरपोक और भुज दिल हूँ,तो तुम झूठ बोलती थी,तुम नहीं जानती मेरे अन्दर कितनी शक्ति हैं,में चाँहू तो अच्छे से अच्छे बलशाली को धूल चटा सकता हूँ |
रानी त्योरिया चढाते हुए बोली - “रहने दो कभी किसी चूहे का शिकार तो किया नही,कहते हो बलशाली को धूल चटा सकता हूँ “
शेरू रहस्यमय मुस्कान होठों पर लाते हुए बोला -”अरे तुम्हें किया पता ,जब में तुम्हें अपनी शक्ति दिखाऊंगा तब देखना दांतों तले उँगली दबा लोगी,तुम बस ऐसा कहना जैसा में कहता हूँ “|
रानी -”ठीक हैं कह दूंगी लेकिन कुछ कर के तो दिखाओ “|
इसके बाद शेरू का पूरा परिवार उठा और जाकर तालाब किनारे काँस के झुंड में छिपकर बैठ गया, और शेरू इस बात का इंतजार करने लगा की कब कोई शिकार आये और वह उसे अपने मूल-मंत्र से धराशायी करे | शेरू को अपने परिवार सहित काँस में छुपे-छुपे शाम हो गई थी | सूरज अब डूबने ही वाला था लेकिन शेरू को अब तक कोई ऐसा शिकार दिखाई नहीं दिया था जिस पर वह अपना मूल-मंत्र आजमा सके| आखिर जब शाम होने को आयी तो दरयाई-घोडो का वही झुंड जो कल आया था तलब किनारे पानी पीने आ पंहुचा | जिसे देखते ही शेरू गीदड़ के मुह में पानी भर आया और उसके पैरो में खुजली होने लगी और ज्यो ही घोडो का झुंड तालाब में पानी पीने घुसा तो शेरू खड़ा हो गया | उसने भी अपनी कमर को धनुष बनाते हुए अँगड़ाई तोडी और अपनी पत्नी रानी से मूल-मंत्र पढ़ते हुए बोला -
“देखो तो जरा मेरी पूछ मुड़कर पीठ पर आ गई हे या नहीं ” |
रानी -”हाँ स्वामी आप तो इस समय एक प्रकांड योद्धा की तरह लग रहे हो” |
शेरू आँखें निकलते हुए -”और मेरी आँखें तो देखो लाल हुई या नहीं ” |
रानी -”हाँ स्वामी आपकी तो इस समय ऐसी लग रही हे मनो ज्वालामुखी लावा उगल रहा हो” |
शेरू ने इतना सुना तो वास्तव में उसे अपने अन्दर एक शक्ति सी जान पड़ी | वह तेजी से काँस के झुंड के ऊपर से कूदते हुए किसी तूफान की तरह से एक दरियाई घोड़े पर कूद पड़ा |लेकिन ज्योंही शेरू ने घोड़े की पिछली टांग में अपने दांत गाड़ ने चाहे तो घोड़े ने अपनी शक्तिशाली दुल्लती से शेरू को काँस के झुंडों के ऊपर से दर्जनों मीटर दूर फेक दिया, जिसके कारण जमीन पर पड़ते ही शेरू का मुंह जमीन में चार-पाँच अंगुल नीचे धस गया | उसकी लाल ज्वालामुखी आँखें धूल मिट्टी के कारण सूखे कुए की तरह से रूँध गई और उनका लाल रंग भी पीला-पीला सा दिखाई देने लगा | इसके आलावा उसकी धनुष रूपी पूँछ भी टूटकर नीचे को मुड़ती हुई किसी पिटी भिखारिन की भांति दोनों टाँगों के बीच में छुप गई |
इतना सब होने के बाद शेरू अपनी टूटी टांग से खड़ा हुआ और किसी पैर बंधे ख़च्चर की भांति लंगड़ता हुआ अपने बिल की तरफ़ चल दिया |
शेरू की महेरिया रानी अपने बच्चों के साथ इस समय दूर से अपने स्वामी की इस वीरता को देख रही थी | लेकिन जब उसने स्वामी को स्वादिष्ट शिकार की जगह जंगली धूल खाते देखा तो उसे बड़ा दुःख हुआ और वह खबर लेने के लिए अपने स्वामी की तरफ़ दोड़ी | एक बार रानी डर गई थी लेकिन अगले ही पल शेरू की हालत पर रानी हँस पड़ी उसने शेरु की इतनी बुरी हालत आज से पहले कभी नहीं देखी थी | शेरू ने जब पत्नी के द्वारा उपहास होते देखा तो वह जल उठा और वह रानी हो जलती आँखों से देखते हुए अपने बिल की दीवार के पास बैठ कर अपनी टांग के दर्द को जीब से चाटने लगा | लेकिन रानी को अब भी अपने स्वामी की इस मूर्खता भरी वीरता पर हँसी आ रही थी और वह हँसी के कारण मिट्टी में लोट-पोट थी |
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14 टिप्पणियाँ
बहुत से शेरू है दुनियाँ में जो झींगा की जूठन पर जिन्दा रहते हैं लेकिन निकम्मे....मेहनत का कोई मूलमंत्र नहीं होता। बहुत अच्छी तरह बताया आपने।
जवाब देंहटाएंबाल दिवस पर अच्छी प्रस्तुति। जिसका काम उसी को साजै चरितार्थ होता है।
जवाब देंहटाएंलम्बी किंतु रोचक, मजा आया पढ कर।
जवाब देंहटाएंNice short story. Thanks.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
bahut hi badhiya kahani,sahi hai nakal karna buri baat:)
जवाब देंहटाएंअच्छी कहानी है। संसार में ऐसे बहुत से परजीवी हैं। इस कहानी ने एक बढिया संदेश दिया है। बधाई स्चीकारें।
जवाब देंहटाएंरोचक, मजेदार।
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति .....
जवाब देंहटाएंबाल दिवस पर ......
बहुत अच्छी कहानी है, झींगा और शेरू के माधयम से बहुत कुछ कह दिया आपने। बधाई।
जवाब देंहटाएंगूढ सार लिये रचना..सिर्फ़ मूल मंत्र से विजय मिल जाये तो फ़िर कमी किस बात की है.. :)
जवाब देंहटाएंरोचकता से भरपूर मज़ेदार कहानी....
जवाब देंहटाएंशब्दों पर आपकी पकड़ पसन्द आई...
कहानी रोचक होने के साथ साथ शिक्षाप्रद भी है, बच्चों नें निश्कित आनंद लिया होगा। उत्कृश्ट बाल रचना।
जवाब देंहटाएं***राजीव रंजन प्रसाद
Bahut achhi kahani hai, khaskar un logo ke liye jo dusro ki uplabdhiyo ke peeche chupi unki nesargik chamta, lagan, mehnat ko nahi samajh pate balki unki nakal karate huye shortcut marne ki koshish karte hai.
जवाब देंहटाएंGenial post and this mail helped me alot in my college assignement. Say thank you you as your information.
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.